Tuesday 19 August 2014

अप्रासंगिक योजना आयोग जल्द बनेगा इतिहास

योजना आयोग के पुनर्गठन या उसमें व्यापक बदलाव की चर्चाओं पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विराम लगा दिया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में मोदी ने पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा तैयार करने वाली 64 साल पुरानी संस्था को खत्म करने की घोषणा की। हाल में वर्षों से विवादों में रहा योजना आयोग अब इतिहास बन जाएगा। बदलते वैश्विक व घरेलू आर्थिक परिदृश्य के मद्देनजर मोदी सरकार जल्द ही नई संस्था बनाएगी जो मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने, युवाओं की क्षमता के बेहतर उपयोग और संघीय ढांचे को मजबूत बनाने का काम करेगी। आयोग की स्थापना 1950 में ऐसे समय में हुई थी जबकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में सबसे ऊंचा स्थान देती थी। सोवियत योजना प्रणाली से बेहद प्रभावित देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की आर्थिक नीति को आगे बढ़ाने के लिए योजना आयोग की स्थापना की थी। मंत्रिमंडल के प्रस्ताव द्वारा स्थापित आयोग के पास असीम शक्ति और प्रतिष्ठा है क्योंकि इसकी अध्यक्षता हमेशा प्रधानमंत्री ने की। इसका सबसे महत्वपूर्ण काम है क्षेत्रवार वृद्धि का लक्ष्य तय करना और इसे प्राप्त करने के लिए संसाधन आबंटित करना। आयोग के उपाध्यक्ष पद पर बैठे व्यक्ति हमेशा ही राजनीतिक तौर पर कद्दावर व्यक्ति रहे हैं और उनका दर्जा कैबिनेट मंत्री का होता है। अब तक आयोग के उपाध्यक्ष का पद जिन लोगों ने संभाला उनमें गुलजारी लाल नंदा, वीटी कृष्णामाचारी, सी. सुब्रह्मण्यम, पीएन हक्सर, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, जसवंत सिंह, मधु दंडवते, मोहन धारिया, केसी पंत और रामकृष्ण हेगड़े जैसे दिग्गज शामिल हैं। यह और बात है कि हाल के वर्षों में इसकी भूमिका पर सवाल उठने लगे। 1991 में आर्थिक सुधारों के आगाज से जिस तरह आर्थिक गतिविधियों में सरकार की भूमिका सिमटी और निजी क्षेत्र की बढ़ी है उसे देखते हुए आयोग का खास औचित्य नहीं बचा। एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह आया कि बीते दो दशकों में राज्य विकास ध्रुव बनकर उभरे हैं। राज्यों के विकास की रफ्तार केंद्र से अधिक रही है। कई मौकों पर राज्यों ने ही लड़खड़ाती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संबल दिया। ऐसे में योजना आयोग की केंद्रीयकृत भूमिका की जरूरत अब नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि योजना आयोग का गठन तात्कालिक आवश्यकताओं को देखकर किया गया था। उसने देश के विकास में अपना योगदान तो दिया लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अगर भारत को आगे बढ़ना है तो राज्यों का विकास जरूरी है। हाल ही में पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी आयोग के  पुनर्गठन की आवश्यकता का समर्थन किया था। पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान ने कहाöयह अच्छा विचार है। योजना आयोग की अवधारणा पुरानी पड़ गई थी। इसको आधुनिक बनाने की जरूरत है। इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए आयोग के एक पूर्व सदस्य अभिजीत सैन ने कहा कि मोदी ने आयोग के भविष्य पर संदेह का पर्दा तो उठा दिया पर अभी भी यह साफ नहीं है कि नई संस्था का ढांचा क्या होगा? इनता तय है कि पहले वाला योजना आयोग अब नहीं होगा। उद्योग संगठन सीआईआई ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि हमें नए विकास और कार्यान्वयन संस्थान के बारे में विचारों की पेशकश के संबंध में सरकार से मिलकर काम करने में खुशी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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