Tuesday, 26 August 2014

मोदी सरकार के ऑपरेशन गवर्नर बदल मुहिम को झटका

राज्यपालों को हटाने की प्रक्रिया पर उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी ने सुप्रीम कोर्ट जाकर मोदी सरकार के ऑपरेशन गवर्नर मुहिम को झटका दिया है। इसके चलते सरकार के निशाने पर आए कई राज्यपालों के ऑपरेशन का मामला फंस गया है। राज्यपाल अजीज कुरैशी ने अब सीधे तौर पर मोदी सरकार को चुनौती दी है। वह इस बात से खासतौर पर खफा हैं कि केंद्रीय गृह सचिव ने कैसे उनसे इस्तीफे की मांग कर डाली। राज्यपाल ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके सरकार के रवैये को चुनौती दी है। राज्यपाल कुरैशी ने संविधान की धारा 157() का हवाला देकर याचिका दायर की है। इसमें मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देकर कहा गया है कि राज्यपाल केंद्र सरकार का कर्मचारी नहीं होता। ऐसे में उसे संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल से इस्तीफा मांगने का अधिकार नहीं है। उल्लेखनीय है कि मई 2010 में राज्यपालों की बर्खास्तगी से जुड़े एक मामले में संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया था। इसी फैसले को आधार बनाकर राज्यपाल कुरैशी के वकीलों ने चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय गृह सचिव ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था जबकि ऐसा अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है। वह समझते हैं कि सरकार ने ऐसा करके गैर-कानूनी काम किया है। ऐसे में अदालत जरूरी निर्देश जारी करे। इस पर अदालत ने सरकार और गृह सचिव को नोटिस जारी करते हुए छह सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है। साथ ही अदालत ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया है क्योंकि यह अनुच्छेद 156 (राज्यपाल के कार्यकाल) की व्याख्या से संबंधित है। बहरहाल अदालत में जिस तरह राज्यपाल के पक्ष में पेशे से वकील परन्तु पूर्ववर्ती कैबिनेट के दो सदस्य मौजूद रहे, उससे साफ है कि यह लड़ाई कानूनी कम और राजनीतिक अधिक है लेकिन जिस तरह राज्यपाल और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं, वह यकीनन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल आमतौर पर यही होता रहा है कि जब केंद्र में नई सरकार बनती है तो  पूर्व सरकार द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति चेंज हो जाती है। पूर्ववर्ती सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल या तो इस्तीफा दे देते हैं या फिर उन्हें बदल दिया जाता है। इसका कारण यह है कि वैसे तो राज्यपाल का पद संवैधानिक है लेकिन इस पर आमतौर पर केंद्र में सत्ताधारी दल के रिटायर्ड नेता या रिटायर्ड नौकरशाह आदि काबिज होते रहे हैं। 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तो उसने एनडीए कार्यकाल में नियुक्त ज्यादातर राज्यपालों को हटा दिया था। दरअसल यह मामला जितना संवैधानिक है उससे कहीं अधिक राजनीतिक अवमूल्यन से जुड़ा है। इससे यह बात भी जाहिर होती है कि हमारे सियासी दल और राजनेता संवैधानिक प्रावधानों को अपने फायदे के अनुरूप व्याख्या करने में ज्यादा संलग्न रहते हैं लेकिन किसी प्रावधान के पीछे संविधान की क्या भावना है इसे वह या तो समझते नहीं या समझना नहीं चाहते। बेहतर होगा कि दिन-रात कसमें खाने वाले हमारे सियासी दल राज्यपाल पद को संकीर्ण राजनीति में घसीटने से बाज आएं। इतना तय है कि चूंकि मामला अब सुप्रीम कोर्ट में आ गया है, इसलिए मोदी सरकार को बाकी राज्यपालों को हटाने की मुहिम को झटका जरूर लगा है।

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