Wednesday 6 August 2014

दरिद्रता का कलंक मिटाना मोदी सरकार के लिए चुनौती है

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन गया है। दुनियाभर के शहरीकरण की संभावनाओं से जुड़ी 2014 की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 3.8 करोड़ की आबादी वाला टोक्यो इकलौता ऐसा शहर है जो दिल्ली (2.5 करोड़) से आगे है। देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर मुंबई इस सूची में छठे स्थान पर है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 में दुनिया के निर्धनतम लोगों की 1.2 अरब आबादी का 32.9 प्रतिशत हिस्सा भारत में था। ब्राजील में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब बड़े गर्व से दुनिया को भारत की विशाल नौजवान आबादी के फायदे बता रहे थे तब सुखद भविष्य की कल्पना से पूरे देश का सीना चौड़ा हो रहा था। आबादी के लिहाज से चीन के बाद हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुल्क है और महज डेढ़ दशक की बात है जब कम से कम इस मामले में हम उसे भी पछाड़ते दिखेंगे। अभी पिछले दिनों दुनिया ने विश्व जनसंख्या दिवस मनाया था जिसमें भारत की जनसंख्या सवा अरब से अधिक की आंकी गई थी और बताया गया कि इसमें आधे लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं जबकि दो-तिहाई की उम्र 35 से नीचे है। इसके साथ ही यह वाकई चिन्ता की बात है कि दुनिया के बेहद गरीब लोगों का एक-तिहाई हिस्सा हमारे देश में है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक बाल मृत्यु दर भी भारत में सर्वाधिक है। 2012 में 14 लाख बच्चों की मौत पांच वर्ष की उम्र से पहले ही हो गई। दुनियाभर में घोरतम दरिद्रता में सिसकते हुए जीने वाले सबसे अधिक लोग भी भारत में हैं। दक्षिण एशिया और अफ्रीका में इंसानों की ऐसी सवा अरब आबादी है जिसके लिए किसी अभिशॉप से कम नहीं है। इनमें से एक-तिहाई लोग भारत में जिन्दगी काट रहे हैं। हमारे बाद चीन का नम्बर आता है जो अपने चमत्कारिक आर्थिक विकास के बावजूद आज भी ऐसी 13 फीसद आबादी का बोझ ढो रहा है। इन दोनों के साथ अगर नाइजीरिया, बंगलादेश और कांगो के नाम जोड़ दिए जाएं तो इन पांचों देशों में ही दुनियाभर के दो-तिहाई घोरतम दरिद्रों का ठिकाना ढूंढा जा सकता है। दरअसल भारत ने आजादी के बाद से पूंजी प्रधान विकास की नीति अपनाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है उसकी भरपायी नहीं हो सकी है। एक तरफ तो शहरों का विकास होता रहा है लेकिन गांवों में रोजगार के साधन लगातार खत्म होते गए। सरकार ने निर्धनता उन्मूलन के लिए जो योजनाएं चलाई हैं उनका मकसद निर्धनों को किसी तरह जीवित रखना है, उनके रोजगार-रोजी के लिए स्थायी संसाधन विकसित करना नहीं। उन पर से मुश्किल यह है कि इन योजनाओं में भी भ्रष्टाचार का घुन लगा हुआ है। प्रशासन के निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण आमतौर पर इसका लाभ गरीबों को नहीं मिला चाहे वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली हो या मनरेगा हो, सभी में अनियमितता की खबरें आती ही रहती हैं। हर नागरिक के लिए बुनियादी सहूलियतें उपलब्ध कराना सरकार की जवाबदेही है।

-अनिल नरेन्द्र

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