Tuesday 12 August 2014

अमेरिका की इराक में हस्तक्षेप करना मजबूरी बन गई है

तीन साल बाद अमेरिका लगातार खराब होते माहौल को देखते हुए एक बार फिर इराक जंग में कूद पड़ा है। अमेरिका ने इरबिल के करीब उत्तरी इराक में आईएसआईएस आतंकियों के खिलाफ शुक्रवार को  कार्रवाई करते हुए दो एफ-18 विमानों से 500 पाउंड वजन के लेजर बम गिराए। इस शुरुआती हमले में 55 आतंकी मारे गए और 60 घायल हुए। अमेरिकी हमले की वजह यह है कि आईएसआईएस के लड़ाकों ने मोसूल के पास ईसाई आबादी वाले सबसे बड़े शहर कराकोश पर कब्जा कर लिया है। सिंजार की पहाड़ियों पर भी 48 घंटे से 30,000 परिवार भूखे-प्यासे फंसे हैं। इनमें 25,000 बच्चे हैं। 70 बच्चों की तो भूख-प्यास की वजह और दम घुटने से मौत हो चुकी है। 500 पुरुषों का कत्ल कर दिया गया है। आतंकियों के हमलों से बचने के लिए एक लाख ईसाई पहाड़ी पर चले गए हैं।  बराक ओबामा की घोषणा से पहले ही अमेरिकी वायुसेना सक्रिय हो चुकी थी। उसके सी-17 और सी-130 विमान 20,060 लीटर साफ पानी और 8000 पैकेज गिरा चुके थे। दरअसल आईएसआईएस के आतंकी कुर्द क्षेत्र की राजधानी इरबिल तक पहुंच गए हैं। यहां न केवल अमेरिकी वाणिज्य दूतावास ही है साथ-साथ यहां अमेरिका का क्षेत्र में सबसे बड़ा सैन्य अड्डा भी है। इरबिल में अमेरिका के 1000 लोग जिनमें अमेरिकी सैन्य सलाहकार, राजनयिक व उनके परिजन भी मौजूद हैं। सो अमेरिका ने दोहरे उद्देश्य से यह हमले आरम्भ किए हैं। पहला तो ईसाइयों को राहत पहुंचाना और दूसरा अपने अड्डे व मौजूद अमेरिकी नागरिकों को बचाना। कुर्द क्षेत्र में 45 अरब बैरल के तेल भंडार हैं जिन्हें बचाना जरूरी है। पाठकों को याद करवा दें कि आईएसआईएस आखिर है क्या? सीरिया व इराक में इस्लामी राज्य की स्थापना के लिए जेहाद छेड़ने वाला यह कट्टर सुन्नी चरमपंथी संगठन पहले इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया एंड इराक के नाम से जाना जाता था। सीरिया के अलेधी से लेकर इराक के फाजूला तक करीब एक हजार किलोमीटर के इलाके पर कब्जा जमाने के बाद इसका मुखिया अबू बकर अल बगदादी ने खुद को मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया और इस संगठन का नाम बदलकर इस्लामिक स्टेट (आईएस) कर दिया। आईएस खासतौर पर शियाओ व यजीदियों से घृणा करता है जिन्हें वह विधर्मी मुसलमान मानता है। बगदादी साफ कह चुका है कि उसका लक्ष्य शियाओं व अन्य विधर्मियों का खात्मा कर कट्टर सुन्नी राज्य की स्थापना करना है। यह नजफ और करबला को भी नेस्तनाबूद करने की धमकी दे चुका है। संगठन इससे पहले भी कई जनसंहारों को अंजाम दे चुका है। अभी तक इराकी व सीरियाई सेना पर हमला करता था पर हाल ही में उसने कुर्दों पर भी हमले करने शुरू कर दिए हैं। अमेरिका के हमले से बौखलाए अबू बकर अल बगदादी ने शुक्रवार को एक संदेश दिया। इसमें लिखा है कि यह संदेश अमेरिका के लिए है। सुनो तुम्हारी ओर से जो भी लड़ रहे हैं वह तुम्हें इराक और सीरिया में कोई लाभ नहीं देने वाले। जल्द ही तुम्हारा सामना सीधे इस्लाम के बंदों से होगा जिन्होंने खुद को इस दिन के लिए तैयार कर रखा है। हमसे-तुमसे जंग लड़ेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का इराक के कई शहरों में काबिज आईएसआईएस के ठिकानों पर हवाई हमले का फैसला इसलिए सही है क्योंकि ऐसा न करने से उत्तरी इराक में फंसे हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी। यह आश्चर्यजनक है कि आईएसआईएस इराक के सभी धार्मिक समूहों पर यहां तक कि शियाओं का भी कत्लेआम कर रहा है लेकिन विश्व समुदाय एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं, किसी प्रकार की कार्रवाई करना तो दूर की बात है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस नरसंहार पर चुप्पी साधे हुए है। अमेरिका अभी तक दुविधा में था और शायद यही कारण था कि इराक की मौजूदा स्थिति के लिए वही जिम्मेदार है। कुछ समय तक इराक में सैन्य हस्तक्षेप की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी थी, ठीक वैसी ही जैसी अफगानिस्तान में चुकानी पड़ रही है। यह अत्यंत दुख की बात है कि 2011 में अमेरिकी सेना इराक को जिस स्थिति में छोड़कर वहां से लौट गई थी आज इराक लगभग उसी स्थिति में पहुंच गया है। अमेरिका को न चाहते हुए भी फिर इराक में हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। इसी साल अमेरिका अफगानिस्तान से भी निकलना चाहता है। तो क्या अफगानिस्तान और इराक में अमेरिकी हस्तक्षेप अंतत नुकसानदेह रहा? ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में इराक में जो युद्ध चल रहा है वह बढ़ेगा और देखना यह होगा कि अमेरिका किस हद तक कूदने को तैयार होगा?

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