Sunday 17 August 2014

लीक से हटकर मोदी का पहला लाल किले से अभूतपूर्व भाषण

आजादी की 67वीं सालगिरह पर दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला हर बार की तरह सजा-धजा था। हां, जश्न--आजादी की फिजां इस बार जुदा जरूर थी। इस पवित्र स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पहली बार आजाद भारत में  पैदा हुए पहले प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने तिरंगा फहराया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रभावी भाषण कला से परिचित होने के बावजूद इसे लेकर देशभर में उत्सुकता थी कि मोदी अपने प्रथम संबोधन में लाल किले से क्या बोलते हैं? जैसी कि उम्मीद थी लाल किले के प्राचीर से नरेन्द्र मोदी का अलिखित संबोधन कई मायनों में ऐतिहासिक और अभूतपूर्व रहा। उन्होंने `प्रधान सेवक' के रूप में अपना परिचय देकर शुरुआत में ही लोगों को अभिभूत कर दिया। अपेक्षा के अनुरूप न तो उन्होंने किसी लिखित भाषण का सहारा लिया और न ही जैसा आमतौर पर होता आया है लोक-लुभावन घोषणाओं की झड़ी ही लगाई। लाल किले से पहली बार देश को संबोधित करते हुए मोदी ने कई चौखटों के पार निकलकर जनता के दिल को छूने की कोशिश की। जिसमें वह सफल भी हुए। इस मौके पर  प्रधानमंत्री ने देश की अब तक की विकास यात्रा के लिए सभी प्रधानमंत्रियों और सरकारों को श्रेय तो दिया लेकिन यह भी याद दिलाया कि देश को किसानों, मजदूरों और नौजवानों ने बनाया है। प्रधानमंत्री ने लैंगिक भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को शर्मनाक बताया। उनका यह कहना महत्वपूर्ण था कि अभिभावकों और समाज की सारी बंदिशें लड़कियों पर थोपने के बजाय लड़कों से भी सवाल-जवाब करने चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि जवान बेटी से तो मां-बाप सैकड़ों सवाल पूछते हैं, लेकिन क्या कभी बेटे से पूछने की हिम्मत की कि कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डालकर देखो। डाक्टरों से अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी तिजोरी भरने के लिए किसी मां के गर्भ में पल रही बेटी मत मारिए। प्रधानमंत्री ने हिंसा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने अपने संबोधन में कहाöनिर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले माओवादी, आतंकवादी किसी न किसी के तो बेटे हैं। मैं उन मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि अपने बेटे से कभी इस रास्ते पर जाने से पहले पूछा था आपने? जातिवाद का जहर हो, सांप्रदायवाद का जहर हो, आतंकवाद का जहर हो, ऊंच-नीच का भाव हो, यह देश को आगे बढ़ाने में रुकावट है। एक बार मन में तय करो, 10 साल के लिए मोटेटोरियम तय करो। इसके अलावा नरेन्द्र मोदी ने और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार रखे। खुले में शौच करने की मजबूरी को महिलाओं का अपमान बताते हुए उन्होंने सांसदों से अनुरोध किया कि वह अपनी सांसद निधि से एक साल तक शौचालय निर्माण करें। प्रधानमंत्री ने सांसदों से अपने क्षेत्रों में आदर्श गांव विकसित करने को भी कहा। प्रधानमंत्री की यह घोषणा भी बेहद खास रही कि योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था बनाएंगे। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का संबोधन लीक से हटकर जनता से सीधा संवाद करने का अनूठा प्रयास रहा। जिस तरह से उन्होंने बुलेटप्रूफ घेरे के बगैर राष्ट्र को संबोधित किया और खुद दूसरों से अधिक परिश्रम करने की बात कही उससे साफ है कि वह देशवासियों को निडर रहकर निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि लाल किले के प्राचीर से नरेन्द्र मोदी एक ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में उभरते दिखे जो परंपरागत राजनीति के दकियानूसी ढांचे से बाहर निकलकर जनता को प्रेरित करके बहुत कुछ करना चाहते हैं। आगे के रास्ते को तय करने के लिए उन्होंने साफ कहा कि सब कुछ सरकारें नहीं कर सकतीं बहुत से काम ऐसे हैं जिन्हें जनता की भागीदारी से ही पूरा किया जा सकता है और उसमें हाथ बंटाना जनता की जिम्मेदारी भी है। इसमें कोई शक नहीं कि वर्षों बाद किसी प्रधानमंत्री ने देश की उम्मीदों को नए सिरे से जगाने का काम किया है। इन शानदार संकेतों के बीच सवाल सिर्प एक है कि क्या मोदी के भाषण उन तबकों को भी छू पाए हैं जो उनको संशय से देखते रहे हैं? एक राष्ट्र के रूप में जो कुछ भारत की पहुंच के भीतर दिखता है उसे पाने के लिए यह जरूरी है कि मोदी सरकार के प्रति लोगों के भरोसे को बनाए रखें क्योंकि यह भरोसा और उम्मीद वास्तव में बदलाव ला सकती है। हां कुछ राजनेता मोदी के भाषण से निराश भी होंगे। खासकर दिल्ली के भाजपा नेता जो यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि प्रधानमंत्री इस मौके पर दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की घोषणा करेंगे पर ऐसा नहीं हुआ।

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