Sunday 17 August 2014

दिल्ली में गरीब का बीमार होना मतलब उसका उजड़ना

दिल्ली में गरीबों की चिकित्सक व्यवस्था में बहुत कमी सामने आ रही है। मोदी सरकार और खासकर डॉ. हर्षवर्धन से उम्मीद की जाती है कि वह इसमें सुधार करने के लिए अविलंब कदम उठाएं। बात करते हैं गरीब मरीजों के फ्री इलाज की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गरीबी रेखा से नीचे वालों के लिए दिल्ली एनसीआर के 46 अस्पतालों में फ्री इलाज के नियम बनाए पर तमाम अस्पतालों से शिकायतें आ रही हैं कि वहां जितने बैड बीपीएल कार्ड धारकों के लिए आरक्षित हैं, उतना एडमिशन नहीं किया जाता। गरीब मरीज लाखों का बिल देने पर मजबूर हैं। बार-बार शिकायतों और अस्पतालों को बार-बार निर्देश मिलने के बाद भी ऐसा लगातार हो रहा है। यह भी आरोप लगते हैं कि मरीज द्वारा पेश किए जाने वाले डाक्यूमेंट में कोई न कोई कमी निकालकर मामला लटका दिया जाता है। हालांकि इस बारे में अस्पतालों का अपना तर्प है। उनका कहना है कि बीपीएल कार्ड मिस्यूज के तमाम केस के बाद सावधानी बरती जाती है, वहीं कुछ लोग इलाज के शुरुआत में नहीं बल्कि बीच में अपने दस्तावेज दिखाते हैं तो परेशानी बढ़ जाती है। प्राइवेट अस्पतालों में गरीब मरीजों के इलाज में आ रही बार-बार शिकायतों और उन्हें इलाज में छूट को लेकर लम्बी कवायद के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में नियम बनाए। वर्तमान में नियम के अनुसार अगर किसी की मासिक आय 8086 रुपए से कम है तो उसे गरीब माना जाएगा। इन्हें दिल्ली-एनसीआर के 46 अस्पतालों में फ्री इलाज मिल सकेगा। यह वो अस्पताल हैं जिन्हें सरकार की ओर से कंसैशन दरों पर अस्पताल बनाने के लिए जमीन दी गई है। लेकिन आए दिन शिकायत आती रहती है कि गरीब मरीजों को न तो इन अस्पतालों में बैड दिया जाता है और न ही उनका इलाज हो पाता है। गरीबों के लिए आरक्षित 80 फीसदी बैड भी नहीं भरे रहते हैं। नियम ः कम आय वर्ग के लोगों के लिए ओपीडी में 25 फीसदी कोटा जबकि इलाज के लिए 10 फीसदी बैड आरक्षित करने का नियम है। पिछले दिनों उपराज्यपाल नजीब जंग के निर्देश पर जब स्वास्थ्य विभाग ने अलग-अलग अस्पतालों का औचक निरीक्षण किया था तो वहां की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही थी। अगर एम्स या दिल्ली के किसी नामचीन अस्पताल में आपका काम जल्दी करवाने के लिए कोई पैसा मांगे तो थोड़ा सावधान हो जाएं। वह हमदर्द के रूप में ठग या दलाल भी हो सकता है। यह नई समस्या पैदा हो गई है कि जल्दी काम करवाने, बैड दिलवाने के लिए दलालों की फौज खड़ी हो गई है। दिल्ली के कुछ अस्पतालों में ऐसी कई शिकायतें देखी गई हैं। अस्पताल प्रशासन की तमाम कोशिशों के बाद भी इन पर लगाम नहीं लग पा रही है। यह उन मरीजों को खासकर निशाना बनाते हैं जो बाहर से आते हैं और यहां उन्हें डाक्टर से मिलने से लेकर टेस्ट कराने तक की तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जल्दी काम करवाने, टेस्ट इत्यादि करवाने, बैड दिलवाने का रेट 500 से 2000 रुपए तक का है। डाक्टरों की बात करें तो कई अस्पतालों में तो डाक्टरों का अकाल पड़ा हुआ है। दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों से पिछले साढ़े तीन सालों के दौरान 60 डाक्टरों ने सरकारी नौकरी छोड़ दी। इनमें अकेले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से ही 19 डाक्टर शामिल हैं। अधिकांश डाक्टरों ने बेहतर वेतन के लिए अन्य अस्पतालों की ओर रुख किया। वर्ष 2011 से 2014 तक केंद्र सरकार द्वारा संचालित चार बड़े अस्पतालोंöएम्स, सफदरजंग, लेडी हार्डिंग और डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल से 60 डाक्टरों ने नौकरी छोड़ी। इनमें से सर्वाधिक 19 डाक्टर एम्स से और 17 डाक्टर सफदरजंग से, ने नौकरी छोड़ी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि डाक्टरों ने घरेलू समस्याओं और बेहतर कैरियर के अवसरों की वजह से इस्तीफा दिया। उधर इस मामले में डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक का कहना है कि लोहिया अस्पताल से इस्तीफा देने वाले अधिकांश डाक्टरों ने देश के अन्य हिस्सों में खुल रहे एम्स ज्वाइन कर लिए हैं, क्योंकि एम्स में डाक्टरों का पे स्केल ज्यादा है। निजी अस्पताल खुल रहे हैं वहां भी डाक्टर जा रहे हैं। कुल मिलाकर दिल्ली में मरीजों की हालत बहुत खराब है। डॉ. हर्षवर्धन और मोदी सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह गरीबों का सही और सस्ता इलाज करवाएं और गरीबों को चिकित्सा के कारण उजड़ने से बचाएं।

-अनिल नरेन्द्र

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