दिल्ली
में निलंबित पड़ी विधानसभा का मामला अब भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की फांस बनता
जा रहा है। इतने दिनों बाद भी दिल्ली में सरकार गठन का रास्ता साफ नहीं हो पाया है।
फिलहाल दिल्ली में न सरकार बनती दिख रही है और न ही चुनाव के आसार दिख रहे हैं। इसका
बड़ा कारण पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं से लेकर प्रदेश के भाजपा नेता यह तय नहीं कर
पा रहे हैं कि हमें जोड़तोड़ कर सरकार बनानी है या फिर पुन चुनाव में जाकर बहुमत हासिल
करने का जोखिम उठाना चाहिए। देश में रिकार्ड वोट से जीत दर्ज कराने के बाद अब दिल्ली
में उत्तराखंड उपचुनाव के परिणामों ने दरअसल भाजपा नेताओं के पैरों तले जमीन खिसका
दी है। नेताओं को उत्तराखंड के चुनाव के परिणामों ने डरा दिया है। भाजपा में तीन विकल्पों
को लेकर घमासान मचा हुआ है। आने वाले सप्ताह में इस स्थिति से बादल छंटने के संकेत
शायद मिलें। महंगाई व भ्रष्टाचार को इन चुनावों में डर की प्रमुख वजह माना जा रहा है।
लोकसभा चुनावों में जिन सीटों पर पार्टी को रिकार्ड जीत मिली थी उन्हीं सीटों पर उत्तराखंड
में भारी हार मिली है। पार्टी नेता मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद से आप पार्टी
का दिल्ली में असर बढ़ा है। ताजा स्थिति में पार्टी यदि सिर्प उपचुनाव की राह पर जाने
का निर्णय लेती है तो नुकसान लगभग तय है। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में आप को ही फायदा
होगा। विश्वस्त सूत्र की मानें तो दिल्ली में छह महीने और राष्ट्रपति शासन बढ़ाए जाने
की तैयारी है और उसके बाद ही चुनाव की तिथि के बारे में फैसला लिया जाएगा। इस साल अक्तूबर
या अगले साल जनवरी-फरवरी
में चुनाव कराने की संभावना व्यक्त की जा रही है। हालांकि भाजपा की दिल्ली इकाई अब
भी वेट एंड वॉच की स्थिति में है और उसका कहना है कि उपराज्यपाल की तरफ से बुलावा आएगा,
तब पत्ते खोलेंगे। लेकिन जानकारों का मानना है कि वह जानबूझ कर ऐसी स्थिति
पैदा कर रही है ताकि राष्ट्रपति शासन का छह महीने का समय (16 अगस्त) निकल जाए और उसके बाद फिर से दिल्ली में छह महीने
के लिए राष्ट्रपति शासन लग जाए। चुनाव के लिए जनवरी-फरवरी का
समय माकूल माना जा रहा है क्योंकि महंगाई अभी चरम पर है और माना जा रहा है कि मानसून
की रफ्तार पकड़ने के साथ ही महंगाई की कमी होगी। इसके अलावा तब तक केंद्र में सत्तारूढ़
मोदी सरकार का एक साल का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा और पार्टी को भरोसा है कि तब तक
लोगों को अच्छे दिन आने वाले हैं के आसार साफ-साफ दिखने शुरू
हो जाएंगे। बताते हैं कि भाजपा के सभी 28 विधायकों ने पार्टी
आला कमान को साफ-साफ बता दिया है कि फिलहाल चुनाव में जाना न
तो विधायकों के हित में है और न ही पार्टी के। भारी-भरकम बिजली
के बिल व बिजली कटौती
और आसमान छूती सब्जियों की कीमतों के बीच चुनाव में जाना घातक साबित हो सकता है। विधायकों
ने 1993 में सत्ता में आने के बाद 1998 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार का जिक्र करते हुए
बता दिया है कि वह चुनाव प्याज की वजह से हाथ से निकला था। प्याज का भाव आसमान छू चुका
था 100 रुपए किलो तक और कांग्रेस इसे ही मुद्दा बना चुनाव में
चली गई और जनता ने उसे हाथों हाथ ले लिया। आज टमाटर का भाव 100 रुपए तक पहुंच गया है जबकि आलू, प्याज सहित अन्य सभी
सब्जियां काफी महंगी हो गई हैं, इसलिए फिलहाल चुनाव से बचा जाए।
उधर आम आदमी पार्टी को भी आशंका है कि अगर जल्द चुनाव नहीं हुए तो उन्हें अपने विधायकों
को एकजुट रखने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी जल्द
से जल्द दिल्ली में चुनाव कराए जाने के पक्ष में है। कांग्रेस के कुल आठ विधायकों में
से छह विधायक टूटने की कगार पर थे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की असंतुष्टों
से बातचीत के बाद सभी विधायकों ने एकजुटता दिखाई तो है लेकिन जिस तरह देश के अन्य हिस्सों
में कांग्रेस के भीतर बगावती स्वर तेज हुए हैं उससे एक बार फिर दिल्ली के असंतुष्ट
विधायकों के बीच एका हो सकता है। गेंद अब उपराज्यपाल के पाले में है। पिछले दिनों उपराज्यपाल
नजीब जंग ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात के दौरान दिल्ली की स्थिति पर भी विस्तृत
चर्चा की थी और जल्द ही इस दिशा में उपराज्यपाल की तरफ से पहल करने की उम्मीद की जा
रही है।
-अनिल नरेन्द्र
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