Thursday 21 August 2014

इस शर्मसार हार के बाद समय है कुछ कठोर फैसलों का

टीम इंडिया ने इंग्लैंड के हाथों टेस्ट सीरीज में शर्मनाक हार से देश को शर्मसार कर दिया है। टीम इंडिया ने इस सीरीज में सीरीज तो खोई ही साथ-साथ सम्मान भी खो दिया। हार-जीत खेल का हिस्सा है, लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम ने बढ़त लेने के बाद जिस अंदाज में इंग्लैंड टीम से पांच टेस्ट मैचों की सीरीज को 3-1 से गंवाया वह काफी शर्मनाक और चौंकाने वाला है। भारतीय बल्लेबाजों ने इंग्लैंड के खिलाफ पांचवें और आखिरी टेस्ट में जिस तरह हथियार डाले, उसकी हाल-फिलहाल कोई मिसाल नहीं मिलती है। भारतीय टीम 40 साल पहले यानि 1974 में इंग्लैंड से लॉर्ड्स में पारी और 285 रन से हारी थी। उसके बाद से यह भारतीय टीम की सबसे शर्मनाक हार है। इस शर्मनाक प्रदर्शन के बाद अब आलोचना का दौर शुरू होना स्वाभाविक ही है। सुनील गावस्कर तो टीम के प्रदर्शन से काफी दुखी हैं। उन्होंने कहा, `अगर आप भारत के लिए टेस्ट नहीं खेलना चाहते तो इसे छोड़ दें। सिर्प सीमित ओवरों का क्रिकेट खेलो। आपको इस तरह देश को शर्मसार नहीं करना चाहिए।' पूर्व कप्तान अजीत वाडेकर ने कहा कि लॉर्ड्स की मुश्किल पिच पर हमारे जीतने के बाद कोच फ्लैचर क्या कर रहे थे? धोनी के संदर्भ में वाडेकर ने कहा, `उसने अपनी तकनीक में बदलाव किया और अच्छी बल्लेबाजी की। लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा है कि वह कप्तान के रूप में अपनी रणनीति में बदलाव क्यों नहीं करते।' पूर्व महान बल्लेबाज गुंडप्पा विश्वनाथ का भी मानना है कि मुश्किल समय में धोनी उम्मीद करते हैं कि करिश्मे से टीम उभरने में सफल रहेगी। मैं उसकी विकेट कीपिंग और कप्तानी से खुश नहीं हूं। उसका अपना दिमाग है। वह हमेशा चीजों को दोहराता है। पूर्व क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर ने कहा कि धोनी ने टीम की अगुवाई अच्छी तरह से नहीं की। उसकी चयन नीति, रणनीति, क्षेत्ररक्षण की सजावट और गेंदबाजी में बदलाव में व्यावहारिक समझ की कमी दिखी। सौरभ गांगुली ने कहा कि चयनकर्ताओं को अब अपना नजरिया बदलना होगा। कुछ कड़े निर्णय लेने होंगे। दरअसल धोनी के टेस्ट कप्तान के रूप में उनकी प्रतिभा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने ट्विटर पर अपमानजनक टिप्पणी कर टीम को निचले दर्जे का बताया। गौर से देखें तो हमारा टॉप बैटिंग ऑर्डर इस सीरीज में शुरू से ही बेबस साबित हुआ। लॉर्ड्स की पहली इनिंग के बाद से लगातार हमारा स्कोर नीचे आता रहा और अंतिम पारी में हमारी टीम 29.2 ओवर में ही महज 94 रन बनाकर ढेर हो गई। अगर अंतिम पांच इनिंग का हिसाब देखें तो टीम इंडिया ने सभी 50 विकेट खोकर सिर्प 733 रन बनाए यानि प्रति पारी डेढ़ सौ रन से भी कम। टीम द्वारा आजमाए गए कुल सात स्पेशलिस्ट बल्लेबाजों में सिर्प मुरली विजय और धोनी के अलावा अजिंक्य रहाणे ही कुछ रन बना सके। शिखर धवन, गौतम गंभीर, विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा ने बुरी तरह निराश किया। यह सिर्प एक सीरीज का मामला नहीं है। कोच गैरी कर्स्टन ने अपने समय में टीम को जिन बुलंदियों तक पहुंचाया था उसकी कोई झलक इस टीम में नहीं दिखी। टीम इंडिया विदेशी भूमि पर 2011 के बाद से 13 टेस्ट हार चुकी है और कोच कमियों को दूर नहीं करा पा रहे हैं तो उनके बने रहने का कोई मतलब नहीं रहा। यह बात कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी पर भी लागू होती है। उन्हें खुद ही अपनी असफलताओं को ध्यान में रखते हुए टेस्ट कप्तानी छोड़ देनी चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि खिलाड़ियों का वन डे क्रिकेट को लेकर बना माइंडसेट उन्हें टेस्ट क्रिकेट में सफल नहीं होने दे रहा है। यह बीसीसीआई की चयन समिति का फर्ज बनता है कि वह खिलाड़ियों से खुलकर पूछे कि कौन टेस्ट क्रिकेट नहीं खेलना चाहता है और ऐसे खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाए। वह टेस्ट में उन्हीं क्रिकेटरों पर भरोसा करे जो क्रिकेट के इस प्रारूप के लिए समर्पित हों। समस्या यह भी है कि कप्तानी के मोर्चे पर महेन्द्र सिंह धोनी का फिलहाल कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। विराट कोहली से उम्मीद थी पर वह इस टूर में बुरी तरह फ्लॉप हुए हैं और उनसे विश्वास डगमगा गया है। जल्द ही हमें कुछ नई सीरीज खेलनी है और फरवरी में वर्ल्ड कप बचाने की जंग लड़नी है। ऐसे में धोनी को अपनी टीम का आत्मविश्वास लौटाना होगा ताकि हम 13वीं बार तीन दिन में टेस्ट गंवाने के सदमे से बाहर आ सकें। बीसीसीआई में पैसे और सत्ता का इतना बड़ा खेल चलता रहता है कि पदाधिकारी अपनी सबसे जरूरी ड्यूटी ही भूल गए हैं। पैसे से ज्यादा क्रिकेट पर ध्यान देना होगा जिसका गिरता स्तर सभी को चिंतित कर रहा है।

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