Tuesday 26 August 2014

न तो मुख्यमंत्रियों की हूटिंग ठीक है और न ही पीएम का बहिष्कार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रमों में मुख्यमंत्रियों की हूटिंग का मामला व उनके कार्यक्रमों का कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों द्वारा बहिष्कार करने का फैसला एक गलत शुरुआत तो है बल्कि एक गलत राजनीतिक परंपरा को जन्म देना है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भी हूटिंग हुई है और यह तब हुई जब प्रधानमंत्री खुद मंच पर मौजूद थे। इस मामले में कांग्रेस ने तय कर लिया है कि उनके मुख्यमंत्री भविष्य में अपने आपको प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों से अलग रखेंगे यानि वह प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगे। इसका एक परिणाम यह भी हुआ है कि झारखंड में केंद्रीय श्रम, इस्पात और खनन मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को रांची में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की। दरअसल गलती दोनों तरफ से है। पहली गलती उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरफ से है जो यकीनन भारतीय जनता पार्टी या राजग से जुड़े होंगे क्योंकि वह न्यूनतम शिष्टाचार का पालना नहीं कर रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में मंचासीन किसी भी वरिष्ठ व्यक्ति के बोलने के दौरान उसको सुनने के बजाय हुड़दंग मचाना अशिष्टता है। मगर इसके साथ यह भी कहना जरूरी है कि प्रधानमंत्री को भी इन्हें रोकने के लिए प्रयास करने चाहिए थे, इसका विरोध करना चाहिए था। बेशक उन्होंने एक-दो बार रोकने का इशारा तो किया पर हुड़दंग मचाने वालों को और सख्ती से रोकना चाहिए था। मगर इसके साथ मुख्यमंत्रियों या राजनेताओं की भी कम जिम्मेदारी नहीं है। प्रदेश में कानून व्यवस्था से लेकर राजकाज एवं सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार से आम आदमी जिस तरह से आजिज आ चुका है उसकी वजह से अपने शासकों एवं राजनेताओं के प्रति उसके  मन में आदर-भाव कम होता जा रहा है, इसलिए कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्रियों को प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा न करने की जो हिदायत दी है वह प्रोटोकॉल का उल्लंघन तो है ही, साथ-साथ कांग्रेस की हताशा का भी नमूना है। उसे अपने ही मुख्यमंत्री के. सिद्धरमैया से सीखना चाहिए जिन्होंने प्रोटोकॉल का पालन करने की प्रतिबद्धता जताई है। इस प्रकरण में यह बात खासतौर पर रेखांकित करने की है कि राष्ट्र के विकास के लिए केंद्र और राज्य के बीच का रिश्ता सौहार्दपूर्ण और सहयोग का होना चाहिए। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में भी मोदी ने इस बात पर बल दिया था। लिहाजा यह मानने का न तो कोई कारण है और न ही आधार कि प्रधानमंत्री की सभाओं में जो कुछ हो रहा है वह उसे खुद अच्छा मान रहे होंगे। केंद्र में सत्ता के परिवर्तन के बाद अभी कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जो स्थिति नजर आ रही है उसमें ज्यादातर सूबों में मौजूदा सरकारों के कामकाज से वहां की जनता खासी नाराज है। ऐसे में परिवर्तन की चाह का प्रकटीकरण जनता अपने तरीके से कर रही है। बेहतर हो कि इस सच्चाई को भी पार्टियां समझें। अलबत्ता यह जरूर है कि अभी जो हो रहा है उसे अगर किसी क्षुद्र राजनीतिक फायदे के लिए और बल दिया गया तो इससे केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की एक खतरनाक शुरुआत होगी जो हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

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