Sunday, 30 November 2014

सिर्फ 11 रुपए के खाने पर रामपाल को करना पड़ रहा है गुजारा

जिसकी एक पलक झपकते धन की बरसात हो जाए, इशारा हो तो लाखों की सुख-सुविधाएं नतमस्तक होकर पैरों में पसर जाएं, मुंह से शब्द निकलने से पहले तमाम संसाधन सामने हों, आजकल वह रोजाना के महज 11 रुपए खर्च पर जिंदगी बिता रहा है। यह कोई और नहीं, करोड़ों की जायदाद जुटाने वाला सतलोक आश्रम का संचालक रामपाल है। हवालात में बैठे रामपाल पर नियमानुसार दिन के 11 रुपए खर्च होते हैं। एक समय में केवल साढ़े पांच रुपए की डाइट उसे उपलब्ध कराई जाती है। इसमें दाल-पानी के घोल में मिर्च व नमक और चार रोटी शामिल हैं। इसमें से भी रामपाल केवल एक रोटी का सेवन करता है। सुबह साढ़े 11 बजे हवालात में सलाखों के नीचे से थाली रामपाल की ओर सरका दी जाती है। यही सिलसिला शाम के समय भी दोहराया जाता है। हरियाणा पुलिस ने छह दिन रिमांड के बाद रामपाल को उसके अन्य आश्रमों की निशानदेही और पूर्व में दिए गए बयानों पर पूछताछ शुरू कर दी है। पुलिस रामपाल को मध्यप्रदेश के बेतूल आश्रम के अलावा अन्य कई ठिकानों पर ले जाने वाली है। पुलिस उसके बेहद नजदीकी समर्थकों को आमने-सामने बैठाकर अहम जानकारी जुटा रही है। इस दौरान यह भी पता चला है कि पुलिस और पैरा-मिलिट्री फोर्स पर गोलियां चलाने वाले रामपाल के निजी कमांडो रामपाल के बेटों और उसके दामाद के इशारों पर काम कर रहे थे। यह तीनों रामपाल की कोर कमेटी के सदस्यों के द्वारा बनाए गए पांच सदस्यों के ग्रुप में शामिल थे। यह खुलासा विशेष जांच टीम (एसआईटी) की जांच में सामने आया है। हालांकि ग्रुप के सभी सदस्य अभी पुलिस की गिरफ्त से  बाहर हैं। इसका खुलासा रामपाल के नजदीकी राम कुमार ढाका, बलजीत और पुरुषोत्तम ने रिमांड अवधि के दौरान किया। एसआईटी के सदस्य एवं सीआईए इंचार्ज मुकेश कुमार ने बताया कि पुलिस प्रशासन के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले रामपाल के निजी कमांडो रामपाल के बेटे वीरेन्द्र, मनोज कुमार और दामाद संजय फौजी के आदेशों पर काम कर रहे थे। इनके निर्देशों के बाद ही निजी कमांडो ने पुलिस बल पर फायरिंग शुरू की थी। कोर कमेटी की ओर से हथियारों और निजी कमांडो की व्यवस्था के लिए इस ग्रुप को राशि मुहैया कराई जाती थी। पुलिस का मानना है कि इन पांच आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद मामले की तह तक जाया जा सकता है। बेशक थाने में रामपाल पर रोजाना 11 रुपए खर्च निर्धारित हों परन्तु हवालात तक लाने में उस पर 17 करोड़ खर्च हुए हैं। यह खर्च सिर्प रामपाल की गिरफ्तारी के लिए आश्रम के बाहर हरियाणा पुलिस के डेरा डालने का है। पंजाब सरकार को भी करीब साढ़े चार करोड़ का खर्च उठाना पड़ा है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या भाजपा अपने मिशन-44 में कामयाब हो सकती है?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अपने मिशन-44 को पूरा करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी नेशनल प्रेजीडेंट अमित शाह के साथ काम कर चुके करीब 50 नेताओं को जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया है। जब अमित शाह को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई थी तब वह पार्टी महासचिव थे। नेताओं की इस फौज की औसत उम्र 30-40 साल के बीच है और सभी का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से है। चूंकि यह नेता पहले ही अमित शाह की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के लिए काम कर चुके हैं, इसलिए पार्टी अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में इनके अनुभव का लाभ उठाना चाहती है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा इस बार कई वर्षों के बाद रोचक होने जा रहा है। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोकेटिक पार्टी (पीडीपी) के बाद लोकसभा चुनाव में राज्य की छह में से तीन सीटें जीतने के कारण भाजपा को भी मजबूत दावेदार माना जा रहा है। अलगाववादियों के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में भी इस बार पोस्टर-बैनर इत्यादि नजर आ रहे हैं। 87 सीटों वाले राज्य में भाजपा मिशन-44 के साथ उतरी है। पार्टी की  बढ़ती सक्रियता से पड़ोसी देश पाकिस्तान भी आशंकित है। वहां की मीडिया में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव छाया हुआ है। इन लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जम्मू, लद्दाख और उधमपुर सीटें जीती थीं। इन क्षेत्रों के अंतर्गत 41 विधानसभा सीटें आती हैं। अकेले जम्मू क्षेत्र में आने वाली 37 सीटों में से 25 विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी को बढ़त मिली थी। पार्टी मोदी की लहर के भरोसे उस बढ़त को बरकरार रखते हुए इन पर जीत हासिल करने की फिराक में है। घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के मसले को उठाते हुए वहां की चार-पांच सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना उसका लक्ष्य है। अलगाववादियों और हुर्रियत नेताओं द्वारा चुनाव बहिष्कार पर अमल करने की दशा में कश्मीरी पंडितों के वोट कुछ चुनावी क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त दिलाएंगे। अगर सट्टा बाजार पर भरोसा किया जाए तो जम्मू-कश्मीर में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने की संभावना दिख रही है। मुंबई और दिल्ली के सट्टेबाजों ने इस साल मई में हुए लोकसभा चुनावों के बारे में सटीक भविष्यवाणी की थी। इतना ही नहीं, अक्तूबर में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बारे में भी उनका अनुमान सही साबित हुआ था। अब सट्टेबाजों ने जम्मू-कश्मीर चुनावों के बारे में भविष्यवाणी की है और इसके मुताबिक भाजपा पहली बार मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में कुछ सीटें जीत सकती है। भाजपा अगर जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है और किसी तरह से अपना मुख्यमंत्री बनाने में सफल होती है तो यह पार्टी के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। भाजपा अभी तक जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों में हावी रही है। इस बार घाटी में भी उसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। सट्टेबाजों का कहना है कि पहली बार घाटी के युवा भाजपा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए आमदनी का सबसे बड़ा साधन टूरिज्म है। प्रधानमंत्री और भाजपा के कार्यकर्ता राज्य को टूरिस्ट हब बनाने की थीम पर फोकस कर रहे हैं। इससे यहां के लोगों का भरोसा मजबूत हुआ है। अगर मोदी और ज्यादा रैलियां करते हैं तो इसका भाजपा को ज्यादा लाभ मिलेगा। 2009 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस को 28 सीटें मिली थीं और वह कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रही। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं। मतगणना 23 दिसम्बर को होगी। पहले चरण में भारी मतदान से भाजपा का उत्साह और विश्वास बढ़ा है। देखें, जम्मू-कश्मीर में क्या भाजपा अगली सरकार बना सकती है?

Saturday, 29 November 2014

विवादों में बनी रहने वाली वीना मलिक इस बार बुरी फंसीं

पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक हमेशा विवादों में रही हैं। पब्लिसिटी की खातिर वह अक्सर मीडिया में बनी रहने की कोशिश करती रहती हैं। मंगलवार को वह एक ऐसे मामले में फंस गई हैं जिससे अगर वह नहीं निकलीं तो उन्हें 26 साल जेल में बिताने होंगे। पाकिस्तान के मीडिया समूह जियो टीवी के मालिक, वीना मलिक और उनके पति बशीर खान को पाकिस्तान की आतंकवाद-निरोधी अदालत ने कथित रूप से ईश निंदा मामले में 26 साल कैद की सजा सुनाई है। जियो टीवी और पाकिस्तान के बड़े मीडिया समूह जंग के मालिक शकील-उर-रहमान पर आरोप थे कि उन्होंने मई में जियो टीवी पर प्रसारित एक कार्यक्रम में वीना मलिक और बशीर की नाटकीय शादी के दौरान एक धार्मिक गीत  चलाने की अनुमति दी। जज शहबाज खान ने वीना मलिक और बशीर के साथ-साथ प्रोग्राम के होस्ट शाइस्ता वहीदी को भी 26 साल की सजा सुनाई है। आतंकवाद-निरोधी अदालत ने दोषियों पर 13 लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना भी लगाया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अपने आदेश में जज ने कहा कि चारों आरोपियों ने पवित्र चीजों का अनादर किया है और पुलिस को इन्हें गिरफ्तार कर लेना चाहिए। हालांकि इस मामले में खास बात यह है कि कोर्ट के इस आदेश को लागू नहीं किया जा सकेगा क्योंकि गिलगित बालस्टितान को पाकिस्तान में पूर्ण प्रांत का दर्जा प्राप्त नहीं है। यानि यहां के कोर्ट का आदेश पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों पर लागू नहीं होता है। हालिया मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए चारों लोग पाकिस्तान से बाहर हैं। रहमान यूएई में रहते हैं और अन्य तीन आतंकी धमकी के चलते विदेश में रह रहे हैं। हालांकि वहीदी और जियो समूह इस मामले में माफी भी मांग चुका है लेकिन कट्टरपंथी इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए चारों को गिरफ्तार करने के आदेश दिए। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राशि जमा नहीं करने की स्थिति में धन की पूर्ति के लिए उनकी सम्पत्ति बेच दी जाए। वीना मलिक इस फैसले से सदमे में हैं। उन्होंने कहा कि हमने कुछ गलत नहीं किया। हम ऊंची अदालत में इस फैसले के खिलाफ जल्द अपील डालेंगे। जिस कार्यक्रम को लेकर वीना मलिक व अन्य को सजा हुई है उसमें दिखाया गया कि वीना अपने पति के साथ नाच रही हैं और बैकग्राउंड में सूफी गायक एक धार्मिक गाना बजा रहे हैं। वीना ने कहा कि यह गाना सैकड़ों बार पहले बज चुका है तब तो किसी ने ऐतराज नहीं किया। वीना ने आगे कहा कि दरअसल पाकिस्तान में एक मीडिया जंग छिड़ी हुई है और यह केस उसी का नतीजा है। मैं एक मुसलमान हूं, मैं सोच भी नहीं सकती अपने धर्म को किसी तरह नुकसान पहुंचाने की। मेरे खिलाफ कट्टरपंथियों ने तमाम झूठे केस बना रखे हैं। इस शो में 200 गेस्ट भी मौजूद थे। अकेले मुझे और मेरे पति को कैसे कसूरवार ठहराया जा सकता है? मुझे पाकिस्तानी न्यायपालिका पर पूरा यकीन है और मैं इस केस में बरी होऊंगी। देखें, अब केस आगे कैसे चलता है? क्या वीना पाकिस्तान आएंगी और अपील करेंगी? क्या वीना को कट्टरपंथियों ने बिला वजह टारगेट बनाया है, यह हैं कुछ प्रश्न जिनका शायद उत्तर आने वाले दिनों में मिले।

-अनिल नरेन्द्र

ह्यूज की मौत से शोक में डूबा क्रिकेट जगत

केवल 25 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले फिलिप ह्यूज की मौत से समूचा क्रिकेट जगत सदमे में है। आस्ट्रेलिया में तो मातम छाया हुआ है। आस्ट्रेलियाई टेस्ट बल्लेबाज फिलिप ह्यूज को मंगलवार को शेफील्ड शील्ड और न्यू साउथ वेल्स के बीच मैच में एक बाउंसर बाल जो कि एक साथी आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी सीन एबोट ने डाली सिर पर लगी थी। हालांकि ह्यूज ने एक हेलमेट पहन रखा था पर इसके बावजूद चोट इतनी गहरी और घातक थी कि दो दिन जीवन-मृत्यु में लटकता ह्यूज शुक्रवार को जीवन की  बाजी हार गया। ह्यूज साउथ आस्ट्रेलिया की ओर से ओपनिंग करने उतरे और हाफ सेंचुरी बनाई। जब वह 63 रन बनाकर खेल रहे थे तो न्यू साउथ वेल्स के तेज गेंदबाज सीन एबोट ने एक बाउंसर बाल मारी जो ह्यूज के सिर पर जा लगी। उस समय 63 रन बनाकर मैच खेल रहे थे। बाल लगने के बाद ह्यूज ने कुछ पल के लिए अपने हाथ घुटनों पर रखे और फिर पिच पर मुंह के बल गिर पड़े। मेडिकल स्टाफ और खिलाड़ी दौड़ कर उनके पास पहुंचे। मेडिकल स्टाफ ने उन्हें मुंह से सांस देने की कोशिश की और करीब 40 मिनट तक उनका ट्रीटमेंट किया। कोई फायदा न मिलते देख ह्यूज को सिडनी के सेंट विसेंट हास्पिटल ले जाया गया। मैच को वहीं रोक दिया गया क्योंकि सभी को समझ आ गया था कि ह्यूज की हालत अत्यंत गंभीर है। ह्यूज के सिर का आपरेशन हुआ, लेकिन वह कोमा में चले गए और होश में फिर नहीं आए। गुरुवार को उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। फिलिप ह्यूज की मौत ने पुरानी याद ताजा कर दी। 1998 में बांग्लादेश में एक क्लब मैच के दौरान भारतीय खिलाड़ी रमन लांबा शार्ट लेग पर बिना हेलमेट लगाए फील्डिंग कर रहे थे। बल्लेबाज का शाट सीधे उनके माथे पर लगा। तीन दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद 38 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। 1962 में नारी कांट्रेक्टर कैरेबियाई  दौरे पर भारतीय टीम के कप्तान थे। बैटिंग के दौरान वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज चार्ली ग्रिफिथ की गेंद उनके सिर पर लगी। वह छह दिन तक बेहोश रहे। उन्हें बचाने के लिए एक आपरेशन भी किया गया। कांट्रेक्टर बच तो गए लेकिन दोबारा क्रिकेट नहीं खेले। फिल की मौत पर सारी दुनिया के खिलाड़ियों के संदेश आ रहे हैं। उनकी मौत से जहां क्रिकेट में जीवन के रिस्क पर चर्चा फिर से शुरू हो गई है वहीं हेलमेट की क्वालिटी पर भी बहस छिड़ गई है। फिल ह्यूज की मौत के बाद क्रिकेट समुदाय में हेलमेट की क्वालिटी को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। यह साबित हो चुका है कि ह्यूज ने अच्छी क्वालिटी का हेलमेट नहीं पहन रखा था। क्रिकेर्ट्स, क्रिकेट से जुड़े तमाम लोग और क्रिकेट फैंस अब इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अच्छी क्वालिटी का हेलमेट जरूर बनना चाहिए। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि फिल ह्यूज के साथ जो हुआ, वैसी घटना दोबारा न हो उसके लिए क्या करना चाहिए? हम ह्यूज के परिवार को यह कहना चाहेंगे कि इस दुख की बेला में वह अकेले नहीं, तमाम दुनिया के क्रिकेट खिलाड़ी, खेल प्रेमी उनके दुख में शरीक हैं।

Friday, 28 November 2014

70 फीसदी वोट अलगाववादियों के मुंह पर करारा तमाचा है

जम्मू-कश्मीर में पांच चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मंगलवार को 15 निर्वाचन क्षेत्रों में अलगाववादी संगठनों के बहिष्कार को धत्ता बताते हुए और सर्द मौसम के बावजूद 70 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। किश्तवाड़ के 69 साल के आलमद्दीन किसी भी कीमत पर मतदान में हिस्सा लेना चाहते थे। अपने दो बेटों को आतंकी हिंसा में गंवा चुके आलमद्दीन का मतदान करने का मकसद यही था कि लोकतंत्र की जीत हो ताकि आतंकवाद का खात्मा हो। हमें इस बात से फर्प नहीं पड़ता कि मतदाताओं ने अपना वोट किसको दिया? महत्वपूर्ण तो यह है कि उन्होंने वोट दिया और ऐसा करने से उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि वह सूबे में आतंकवाद से तंग आ चुके हैं। कश्मीर के कंगन के यूसुफ के लिए मुद्दा आतंकवाद नहीं, न ही कश्मीर की आजादी था बल्कि वह गांव के विकास के लिए सरकार को चुनने का मकसद लेकर आतंकी धमकी के बावजूद मतदान के लिए ठंड की परवाह किए बिना पोलिंग बूथ पर आना था। पहले चरण के मतदान में शामिल हुए वोटरों की चाहे अलग-अलग वजहें हों लेकिन सबका मकसद एक ही था। वे सभी बिना खौफ के मतदान प्रक्रिया में शामिल हुए तो आतंकियों और उनके आकाओं व पड़ोसी मुल्क के दिलों पर सांप जरूर लोटा होगा। आखिर लोटे भी क्यों न, 25 साल के आतंकवाद के बावजूद वे राज्य की जनता को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से विमुख नहीं कर सके। अबकी बार जम्मू-कश्मीर में किसकी सरकार होगी? अनेक दावे हो रहे हैं। कहीं गठबंधन सरकार के दावे हैं तो कहीं बहुमत हासिल कर अपने दमखम पर सरकार बनाने के। जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता रह चुके सज्जाद लोन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात और उनकी तारीफ में कसीदे काढ़ने से इस राज्य की सियासत के समीकरण में अब तेजी से  बदलाव आने की उम्मीद है। राजनीतिक दलों के टूटने के साथ-साथ उनके नेता अब दलबदल कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि राज्य में सत्ता बदलने के आसार दिख रहे हैं। लेकिन इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अगुवाई वाली नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार के दौरान भारी भ्रष्टाचार, निर्णयहीनता, निकम्मेपन के साथ-साथ उसका पक्षपाती और संवेदनहीन होना रही है। इसकी इंतिहा सितम्बर माह में विनाशकारी बाढ़ में देखने को मिली। उमर की सरकार और प्रशासन प्रभावित लोगों को राहत तथा मदद पहुंचाने में निकम्मे साबित हुए। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तत्काल वहां पहुंचना और तत्काल 100 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता के साथ-साथ सुरक्षा बलों तथा सेना के जवानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर उनकी जान बचाई। जम्मू-कश्मीर के युवाओं में मोदी को लेकर काफी उत्साह और उम्मीदें हैं। यही वजह है कि पहले चरण में 70 फीसदी मतदान हुआ। लगता है युवाओं ने बढ़चढ़ कर मतदान किया। देखना यह होगा कि घाटी में भाजपा कितनी सीटें निकाल सकती है? जम्मू और लद्दाख में तो उसे जीत मिलेगी ही पर घाटी में क्या होता है? 70 फीसदी वोट आतंकवाद पर करारा चांटा है।

-अनिल नरेन्द्र

नस्ली हिंसा में अमेरिका के 90 शहर दंगों की चपेट में

  1. ऐसा नहीं कि भारत में ही दंगे होते हैं, इन दिनों दुनिया का सबसे समृद्ध व विकसित देश अमेरिका भी अचानक दंगे की चपेट में आ गया है। अमेरिका के मिसौरी प्रांत में 18 वर्षीय निहत्थे अश्वेत युवक की गोली मारकर हत्या करने वाले श्वेत पुलिस अधिकारी को बरी किए जाने के बाद पूरे देश में हिंसा फैल गई। घटना की जांच कर रही ग्रैंड ज्यूरी ने आरोपी श्वेत पुलिसकर्मी को रिहा कर दिया है। इसके विरोध में अमेरिका के करीब 90 शहरों में आगजनी और हिंसा हो रही है। कई शॉपिंग मॉल्स आग के हवाले कर दिए गए हैं। दर्जनों वाहन भी पूंके गए हैं। लूट की घटनाएं भी हो रही हैं। मामला कुछ यूं है ः अमेरिका के फर्ग्यूसन में 18 साल के निहत्थे अश्वेत माइकल ब्राउन की एक श्वेत पुलिस वाले डैरल विल्सन ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। मामले की जांच कर रही ग्रैंड ज्यूरी ने आरोपी पुलिसकर्मी डैरल विल्सन को रिहा कर दिया। डैरल विल्सन पर आरोप है कि उसने एक निहत्थे अश्वेत लड़के माइकल ब्राउन की बिना वजह गोली मारकर हत्या कर दी। ग्रैंड ज्यूरी ने उस पर अभियोग नहीं लगाने का फैसला किया है। सोमवार देर रात मिसौरी प्रांत के सेंट लुई काउंटी के अभियोजक राबर्ट मैक्कुलाक ने घोषणा की कि पुलिस अधिकारी डैरल विल्सन के खिलाफ कोई संभावित कारण नहीं मिला, जिसके आधार पर उस पर अभियोग चलाया जाए। बस यहीं से दंगों की शुरुआत हुई। अमेरिका की अश्वेत आबादी का आरोप है कि ग्रैंड ज्यूरी में श्वेतों का बहुमत है, इसलिए आरोपी को रिहा कर दिया गया है। ग्रैंड ज्यूरी में नौ श्वेत और तीन अश्वेत जज हैं। आरोप है कि माइकल ब्राउन ने एक दुकान से जबरन सिगार का पैकेट उठा लिया था। यह अकेला ऐसा किस्सा नहीं था जब एक श्वेत पुलिसकर्मी को अश्वेत युवक की हत्या में बरी कर दिया गया हो। फ्लोरिडा राज्य के सैनफोड में भी 17 साल के निहत्थे अश्वेत युवक को एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस मामले में भी दोषी पुलिस अधिकारी को बरी कर दिया गया था। फैसले की जानकारी मिलते ही सैकड़ों प्रदर्शनकारी उस थाने के सामने एकत्रित हो गए जहां पर डैरल विल्सन की तैनाती थी। पर यहीं से दंगा शुरू हुआ जिसने अब अमेरिका के 90 शहरों को अपनी चपेट में ले लिया। दस हजार से ज्यादा श्वेत सुरक्षा बल हिंसाग्रस्त इलाकों में तैनात किए गए हैं। 150 राउंड से ज्यादा गोलियां सुरक्षाकर्मियों पर प्रदर्शनकारियों ने दागी। अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा है कि राष्ट्रपति ओबामा ने अपील की है कि जो लोग ज्यूरी के फैसले पर प्रदर्शन करना चाहते हैं वह शांतिपूर्वक प्रदर्शन करें। माइकल ब्राउन की मौत के बाद अमेरिका में नस्लीय भेदभाव के मुद्दे को एक बार फिर भड़का दिया है। अफ्रीकी-अमेरिकी लोग विल्सन के खिलाफ हत्या का मामला चलाने की अपील करते रहे हैं। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि गोली चलाए जाने के वक्त माइकल ब्राउन ने आत्म समर्पण करने के लिए अपने हाथ हवा में उठा रखे थे, जबकि पुलिस का कहना है कि गोली चलाए जाने से पहले पुलिस और युवक के  बीच संघर्ष हुआ था। विल्सन के खिलाफ मामला चलाए जाने के लिए 12 सदस्यों वाली ग्रैंड ज्यूरी में से 9 सदस्यों को रजामंदी देनी थी। ग्रैंड ज्यूरी में 12 नागरिकों में छह गोरे पुरुष, तीन गोरी महिलाएं, एक काला पुरुष और दो काली महिलाएं शामिल थीं। फर्ग्युसन हिंसा में भले ही कोई भारतीय हताहत तो नहीं हुआ है। लेकिन सबसे ज्यादा आर्थिक चपत उन्हीं को लगी है। फर्ग्युसन में भारतीयों की आबादी भले ही आधा प्रतिशत से कम है, लेकिन डिपार्टमेंटल स्टोर, होटल के कारोबार में वे सबसे ज्यादा कामयाब हैं। जब से हिंसा फैली है उसके बाद दुकान खोलना तो दूर, सम्पत्ति बचाने की चुनौती है। फर्ग्युसन में हो रही हिंसा से भारतीय इसलिए भी डरे हैं क्योंकि पुलिस ने ब्राउन को गोली मारने के पीछे भारतीय मूल के कारोबारी एंडी पटेल के डिपार्टमेंटल स्टोर में लूट की कहानी गढ़ी थी। पुलिस का कहना था कि ब्राउन ने साथी के संग स्टोर में सिगार लिया और पटेल के पैसे मांगने पर हथियार दिखाकर निकल गए। हालांकि पटेल ने मामले में मौन साध लिया और जो वीडियो सामने आया है उसमें माइकल ब्राउन के हाथ में कोई हथियार नहीं दिखा।

Thursday, 27 November 2014

अडानी को कैसे मिला एक अरब डॉलर का कर्ज?

आस्ट्रेलिया में अडानी समूह के कोयला खनन परियोजना को कर्ज देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। कांग्रेस ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के आने से जनता की बजाय अडानी जैसे उद्योगपतियों के अच्छे दिन जरूर आ गए हैं। पाटी पवक्ता अजय माकन ने कहा अडानी को कर्ज देने का एसबीआई का औचित्य क्या है? और वह भी ऐसे समय जब पांच विदेशी बैंकों ने परियोजना के लिए इस समूह को कर्ज देने से मना कर दिया था। अडानी को इतना बड़ा कर्ज देने पर सवाल उठाते हुए माकन ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि आखिर एसबीआई इस परियोजना के लिए अडानी के साथ हस्ताक्षर किए गए सहमति पत्र को क्यों नहीं दिखा रही है। पधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आस्ट्रेलिया दौरे के बीच ही एसबीआई और अडानी समूह के बीच समझौता हुआ था। इसके तहत बैंक अडानी समूह को आस्ट्रेलिया में कोयला खनन के लिए 61.95 अरब रुपए कर्ज देगा। भारतीय बैंक द्वारा विदेश में किसी पेजेक्ट के लिए दिया जा रहा यह सबसे बड़ा कर्ज होगा। इस पर माकन ने कहा कि बैंकों का अडानी समूह पर 72,000 करोड़ रुपए का कर्ज पहले से बकाया है। उसे छह बड़े बैंक कर्ज देने से मना कर चुके हैं फिर एसबीआई किस आधार पर कर्ज देने को तैयार हुआ? बैंक को इस बाबत पूरी जानकारी देनी चाहिए। इस पर एसबीआई ग्रुप की अरुंधति भट्टाचार्य (चेयरपर्सन) ने कहा कि अभी अडानी समूह के साथ बैंक का सिर्फ समझौता हुआ है। कोई कर्ज मंजूर नहीं किया गया है। बैंक पूरी पकिया और पड़ताल के बाद ही रकम मंजूर करेगा। लेकिन एसबीआई को लगता है कि यह फायदे का सौदा है। इस परियोजना के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के बारे में उन्होंने क्वींसलैंड के उपपधानमंत्री से बात की। जिसमें क्वींसलैंड के उपपधानमंत्री ने बताया कि इस परियोजना को पूरी तरह से हरी झंडी मिली हुई है। हमारा मानना है कि इस तरह पधानमंत्री को एक विशेष उद्योगपति को साथ लेकर जाना और उसे वहीं (आस्ट्रेलिया) में कर्ज दिलवाना सही नहीं माना जा सकता। जिस समूह पर पहले से ही कर्ज न लौटाने का मामला चल रहा है उससे इस तरह के पक्षपात से जनता में गलत संदेश जाता है। फिर यह पैसा भारत की जनता का है। अगर कांग्रेस कहती है कि मोदी आम जनता के पैसों से उद्योगपतियों की मदद कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? कांग्रेस ने एक पमुख विदेशी पत्र का हवाला देते हुए कहा कि इस परियोजना को दुनिया की कोई भी अन्य वित्तीय एजेंसी कर्ज नहीं दे रही थी। पधानमंत्री पर देश से ज्यादा विदेश में रहने के आरोपों को दोहराते  हुए कांग्रेस ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार के करीबी माने जाने वाले उद्योगपतियों के लिए ही अच्छे दिन आए हैं।

-अनिल नरेंद्र

अखिलेश को मुलायम का 15 दिन का अल्टीमेटम

  यह पिता-पुत्र का किस्सा हमें तो समझ नहीं आता। आए दिन पिता मुलायम सिंह यादव बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, उनकी सरकार, मंत्रियों को धमकाते रहते हैं। बेशक मुख्यमंत्री तो अखिलेश हैं पर पाटी पमुख की हैसियत से नसीहतें देते रहते हैं मुलायम सिंह और सुधार नहीं करते। उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को रामपुर में अपने पिता मुलायम सिंह यादव के 75वें जन्मदिन के मौके पर भले ही नरेंद्र मोदी को चेताया हो मगर उनकी सरकार के कामकाज से सूबे में कोई भी तबका खुश नहीं है और यह बात खुद मुलायम सिंह भी जानते हैं। रामपुर में 75वां जन्मदिन मनाकर लौटे मुलायम सिंह ने रविवार को एक-एक कर सबकी खबर ली। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या फिर अफसर, किसी को नहीं बख्शा। बार-बार की चेतावनियों के बावजूद मंत्रियों की कार्यशैली में बदलाव न होने  से नाराज मुलायम ने उन्हें 15 दिन का अल्टीमेटम देते हुए साफ कहा कि ऐसा रहा तो उन्हें हटाने का विकल्प खुला है। शासन पर कमजोर पकड़ का हवाला देते हुए सीएम की पशासनिक दक्षता पर उंगली उठाई। मौका था सीएम आवास पर लखनऊ-आगरा एक्सपेस-वे और दो पुलों के शिलान्यास का। मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव आलोक रंजन के साथ शीर्ष नौकरशाही की मौजूदगी में मुलायम जब बोलने आए तो हर किसी को बगलें झांकने को मजबूर कर दिया। यह विशेष मौका था तो शिलान्यास को आ गए। मगर अब यहां इसके उद्घाटन से लेकर निर्माण की तारीख बतानी होगी। तभी पमुख सचिव सूचना व सीईओ यूपीडी नवनीत सहगल ने निर्माण कंपनियों की ओर इशारा किया। इसके बाद एफकॉन इन्फास्ट्रक्चर के पतिनिधि माइक पर आए और उन्होंने दो साल में काम पूरा करने का वादा किया। मुलायम इतने से भी संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा कि इसे दो महीने पहले ही पूरा कराइए। मुलायम का मूड देखकर मंत्रियों और अफसरों को जैसे सांप सूंघ गया। निशाने पर मीडिया भी था। खास तौर पर आजम खां पर सवाल उठाने की वजह से मुलायम ने मीडिया को नासमझ बताया। मुलायम पर 2017 के विधानसभा की चिंता सिर चढ़कर बोलती नजर आई जिस सूबे में एक नहीं चार-चार मुख्यमंत्री हों, एक सुपर मुख्यमंत्री हो, वहां का हाल क्या है? हत्या, डकैती, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार और अवैध वसूली जैसे अपराधों की खबरों से सूबे के अखबार हर दिन रंगे होते हैं। इस पर अखिलेश तुर्रा देते हैं कि मीडिया को उनकी सरकार का अच्छा कामकाज क्यों नहीं दिखता। अच्छा होता कि वे अपने पिता की नसीहतों को ही सही मान लेते जो कई मौकों पर उनकी कार्यपणाली की आलोचना तो कर ही चुके हैं। सपा के लोगों पर भ्रष्टाचार और गुंडागदी में लिप्त रहने की अपनी पीड़ा भी जता चुके हैं। पिछले हफ्ते तो मुलायम ने यहां तक कह दिया कि लैपटॉप योजना ने लोकसभा चुनाव में सपा को हरवा दिया। जैसा मैंने कहा कि यह पिता-पुत्र के नाटक  को समझना मुश्किल है, कम से कम हम तो समझ नहीं सके। 

Wednesday, 26 November 2014

नॉर्थ-ईस्ट के छात्रों के खिलाफ लगातार बढ़ती वारदातें

दिल्ली में 24 घंटे के अंदर अलग-अलग इलाकों में नॉर्थ-ईस्ट के तीन छात्रों की मौत ने चौंका दिया है। नॉर्थ-ईस्ट के छात्रों व अन्य लोगों की मौत का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पता नहीं क्या वजह है इनको निशाने पर लाने की? नॉर्थ-ईस्ट राज्यों के निवासियों पर राजधानी में अपराध बढ़ रहे हैं। इस साल जनवरी से 21 नवम्बर तक इन पर जुर्म की 666 कम्पलेंट पुलिस को मिलीं। इनमें से 232 मामलों में एफआईआर दर्ज हुईं जबकि पिछले साल 74 एफआईआर दर्ज हुई थीं। सबसे ज्यादा केस दक्षिण दिल्ली में दर्ज हुए। वसंत विहार पुलिस स्टेशन में सबसे ज्यादा केस दर्ज हुए। हर महीने नॉर्थ-ईस्ट के 23 लोग किसी न किसी वारदात के शिकार होते हैं। गौरतलब है कि गत बुधवार रात कोटला मुबारकपुर क्षेत्र स्थित कृष्णा गली में रहने वाले 32 वर्षीय मणिपुरी छात्र काशुंग निग्रांम केंगू की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। गुरुवार दोपहर खिड़की एक्सटेंशन जे ब्लॉक स्थित एक घर से व्हीरिल रानी नाम के युवक का पुलिस ने शव  बरामद किया। वहीं गुरुवार रात नेबसराय इलाके में संदिग्ध हालत में सीढ़ियों से गिरने के कारण सोनलियन (21) की मौत हो गई। लगातार शव मिलने से जहां दिल्ली पुलिस में खलबली मची हुई है वहीं सुप्रीम कोर्ट भी सख्त नाराज है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक हर महीने 23 से अधिक नॉर्थ-ईस्ट के लोग किसी न किसी वारदात के शिकार होते हैं। खासकर वहां की महिलाएं आए दिन छेड़खानी की शिकार होती हैं। जघन्य अपराधों की बात करें तो 31 अक्तूबर तक नॉर्थ-ईस्ट के चार लोगों की हत्या हो चुकी है जबकि 18 महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले सामने आ चुके हैं। छेड़खानी के 35, लूटपाट के 13 और अपहरण के 12 मामले अब तक सामने आ चुके हैं। नॉर्थ-ईस्ट के लोगों पर बढ़ती आपराधिक घटनाओं के कारण सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली पुलिस ने सबक सीखते हुए उन लोगों की सुरक्षा के लिए स्पेशल हेल्प लाइनें शुरू की थीं। दिल्ली पुलिस के पुलिस आयुक्त भीम सेन बस्सी ने मार्च के महीने में नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की सुरक्षा के लिए 1093 नम्बर से हेल्पलाइन शुरू की थी। उन्होंने यह भी आदेश दिए हैं कि दिल्ली के हर जिले में डीसीपी रैंक के अधिकारी अपने इलाके में रहने वाले नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की सुरक्षा पर स्वयं नजर रखेंगे। खासकर नॉर्थ कैम्पस, मुनिरका, द्वारका व दक्षिण दिल्ली में रहने वाले नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखने का वादा किया था। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में लगातार नॉर्थ-ईस्ट के लोग वारदात के शिकार हो रहे हैं। लेकिन पुलिस इन मामलों को सुलझाने में पीछे रही है। हत्या के सिर्प तीन फीसदी, दुष्कर्म के 17 फीसदी, छेड़खानी के 23 फीसदी, लूटपाट और अपहरण के सिर्प तीन फीसदी ही मामलों को सुलझाया गया है। हमें समझ नहीं आ रहा है कि नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? वजह जो भी हो हम मांग करते हैं कि दिल्ली पुलिस इन वारदातों पर अविलंब अंकुश लगाए। आखिर वह भी तो भारत के बाशिंदे हैं और उन्हें पूर्ण सुरक्षा देने को पुलिस वचनबद्ध है।

-अनिल नरेन्द्र

बोफोर्स घोटाले के 28 साल बाद तोपों की खरीद होगी

यह खुशी की बात है कि मोदी सरकार ने देश की सुरक्षा और हमारी सेनाओं के लिए जरूरी हथियार खरीदने को हरी झंडी दे दी है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में तो कमीशनखोरी के कारण सेना के लिए अत्यंत जरूरी हथियार खरीदना ही बंद कर दिया था। नतीजा यह था कि हमारे सुरक्षा बल पुराने हथियारों पर ही निर्भर थे जबकि पड़ोसी पाकिस्तान और चीन अत्याधुनिक हथियारों से अपनी सेनाओं को लेस कर रहे थे। मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार आवश्यक सैन्य सामग्री के अभाव के कारण हमारी थल सेना लंबा युद्ध करने में असमर्थ हो गई थी। 20 दिन की लड़ाई लड़ सकती थी और यह बात पाकिस्तान और चीन दोनों को मालूम भी थी। प्रधानमंत्री ने एक निहायत ईमानदार और कुशल प्रशासक मनोहर पर्रिकर को रक्षा मंत्रालय सौंप कर बहुत अच्छा किया और मनोहर पर्रिकर ने पदभार संभालते ही भारी तोपें खरीदने का निर्णय किया है। बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के भूत से बाहर निकलते हुए रक्षा मंत्रालय ने 28 साल बाद 15 हजार 750 करोड़ रुपए की लागत से तोपें खरीदने का निर्णय किया है। रक्षामंत्री बनने के बाद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में शनिवार को रक्षा खरीद परिषद की पहली बैठक हुई। इस बैठक में सेना की तोपों की कमी को देखते हुए 814 तोपें खरीदने का निर्णय किया गया। भारतीय सेना ने 1986 के बाद से अब तक एक भी तोप नहीं खरीदी है। विभिन्न केंद्र सरकारें तोप सौदे में दलाली से बचने के लिए इस बारे में फैसलों को बार-बार टालती रहीं हैं। लगभग दो घंटे चली बैठक में तोपों की कमी को पूरा करने के लिए 155 एमएम 52 कैलिबर की 814 तोपें खरीदने का निर्णय किया गया। तोप सौदे घरेलू उत्पादन बढ़ाने की योजना के तहत होंगे। इसके तहत पहले 100 तोपें खरीदी जाएंगी और उसके बाद तकनीक हासिल कर इनका देश में ही निर्माण होगा। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी `मेक इन इंडिया' योजना को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया पर भी बैठक में चर्चा हुई। पर्रिकर ने कहा कि अधिक से अधिक रक्षा उत्पाद देश में ही बनें इसके उपाय और तरीके खोजने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि माहौल को निवेश अनुकूल बनाया जाए। इससे निवेशकों को आकर्षित किया जा सकेगा। रक्षामंत्री ने कहा कि वह तेजी व पारदर्शी तरीके से निर्णय लेने की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। श्री पर्रिकर ने कहा कि हम किसी पर हमला नहीं करना चाहते लेकिन ऐसे दुश्मनों से रक्षा करने के लिए पर्याप्त ताकतवर होना हमारे लिए जरूरी है। जो बुरे इरादों से भारत को देखते हैं। मोदी सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्रों में तेजी से लिए जा रहे फैसलों से हमारी सुरक्षा सेनाओं पर अच्छा असर पड़ेगा और उनका गिरता मनोबल बढ़ेगा। यूपीए सरकार के कार्यकाल में हमारे तमाम सुरक्षा बल सरकार की ढुलमुल और अस्पष्ट नीति की वजह से परेशान थे, उनका मनोबल गिर गया था। वह सब बदल रहा है।

Tuesday, 25 November 2014

ममता बनर्जी की केंद्र को खुली चुनौती

करोड़ों रुपए के शारदा चिट फंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की गिरफ्तारी से तिलमिलाईं तृणमूल की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर भड़ास निकाली है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सरकार का डर है, इसलिए वे चुप हैं। लेकिन मैं किसी से नहीं डरती और चुप नहीं रहूंगी। ममता ने कहा कि उन्हें मुझे जेल भेजने दीजिए, मैं इसे देखूंगी। मैं देखूंगी कि वह कितनी बड़ी जेल है। पार्टी की एक बैठक में कहा कि अगर हम पर प्रहार होता है तो हम भी जवाब देंगे। हम सभी चुनौतियों को स्वीकार करते हैं। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे भाजपा से डरे नहीं और भगवा पार्टी की साजिशों के खिलाफ एकजुट हों। उन्होंने केंद्र को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी चुनौती दी। मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि देश की बागडोर संभाल रहे व्यक्ति ने कार्यभार संभालने के बाद पिछले छह महीनों के दौरान भारत में कितना समय बिताया है? ऐसा प्रतीत होता है कि उनका पता अब विदेश में है। ममता ने राज्यसभा सांसद श्रृंजय बोस की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया। कहा कि गत दिनों भाजपा के विपक्षी कांग्रेस के कार्यक्रम नेहरू सम्मेलन में शिरकत कर उन्होंने भाजपा से बदला लिया। उन्होंने वर्धमान धमाके का आरोप भी केंद्र पर मढ़ा। दरअसल शारदा घोटाले में गत शुक्रवार को सीबीआई ने तृणमूल सांसद श्रृंजय बोस को पूछताछ के लिए बुलाया था। कई सवालों के वाजिब जवाब न मिलने पर जांच एजेंसी ने सांसद को गिरफ्तार कर लिया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने दूसरी ओर शारदा चिट फंड मामले में श्रृंजय बोस की गिरफ्तारी को सही बताया। कहा सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत और कारण होंगे, तभी उन्होंने श्रृंजय बोस को गिरफ्तार किया। उनकी गिरफ्तारी जायज है, लेकिन अभी इस मामले पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। घोटाले में गिरफ्तार श्रृंजय बोस करोड़ों के मालिक हैं। बांग्ला दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक होने के साथ उनका जहाज में माल भेजने का व्यवसाय भी है। केटरिंगर दुबई में दो भाषाओं में रेडियो नेटवर्प, अंतर्राष्ट्रीय स्तर का रिकार्डिंग स्टूडियो भी है। शनिवार को अलीपुर अदालत में बोस को पेश किया गया जहां से उन्हें 26 नवम्बर तक हिरासत में भेज दिया गया। श्रृंजय बोस ने सीबीआई पूछताछ में अपना सारा दोष तृणमूल के निलंबित सांसद कुणाल घोष पर मढ़ दिया। कहा कि कुणाल ने ही शारदा प्रमुख सुदीप्त सेन से उनका परिचय करवाया था। वाम मोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस ने ममता के केंद्र से बदला लेने के बयान की निंदा करते हुए ममता पर आरोप लगाया कि अतीत में वे भाजपा और कांग्रेस के बीच पाला बदलती रही हैं। ममता के पास 45 सांसद हैं (लोकसभा और राज्यसभा में) उन्होंने केंद्र सरकार को चेताया कि अगर वे सोचते हैं कि हम बीमा में एफडीआई पारित करने में उनकी मदद करेंगे तो वे सपना देख रहे हैं। उनके सांसद शीत सत्र में कई मुद्दे भी उठाएंगे जिनमें काले धन वापसी का मुद्दा भी शामिल है।

-अनिल नरेन्द्र

ओबामा ने खेला बड़ा सियासी दांव

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विरोधी रिपब्लिकन के बहुमत वाली संसद को दरकिनार करते हुए आव्रजन मुद्दे पर राष्ट्रपति के तौर पर अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एक बड़ा सियासी दांव खेला है। अश्वेत समुदाय ने जहां इसे सराहा है वहीं रिपब्लिकन नेताओं ने ओबामा के इस कदम को गैर कानूनी अप्रवासियों को क्षमादान देने जैसा बताया है। ओबामा के आदेश से 44 लाख उन लोगों को उनके मूल देश वापस भेजने के खतरे का सामना नहीं करना पड़ेगा, जो अमेरिकी नागरिकों के अभिभावक हैं और  बिना कानूनी दस्तावेजों के वहां रह रहे हैं। इससे 2.7 लाख उन बच्चों को भी राहत मिलेगी, जिन्हें उनके मां-बाप गैर कानूनी तरीके से अमेरिका लेकर आए थे। 1986 में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की पहल के बाद अमेरिकी आव्रजन नीति में यह अब तक का सबसे आमूलचूल बदलाव माना जा रहा है। अश्वेतों पर डेमोकेटिक पार्टी की पकड़ मजबूत करते हुए ओबामा ने रिपब्लिकन नेताओं से कहा है कि वे उनकी योजना को रोकने का काम न करें और दोबारा शटडाउन जैसी स्थिति पैदा न करें। ओबामा ने स्पष्ट किया कि अमेरिकी कांग्रेस में लंबे समय से आव्रजन बिल लटकने के बाद उन्होंने यह कदम उठाया। उन्हें आपत्ति है तो नया बिल लेकर आएं। ओबामा के इस दांव से 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोकेटिक पार्टी की संभावनाओं को बल मिलेगा। ओबामा के निर्णय के बाद आव्रजन (इमीग्रेशन) मुद्दे पर गेंद अब रिपब्लिकन के पाले में है। अमेरिकी संसद के दोनों सदन, सीनेट और प्रतिनिधि सभा में बहुमत के बावजूद वह ओबामा के फैसले को पलटने का राजनीतिक साहस शायद ही दिखाएं। रिपब्लिकन के पास सीनेट में आव्रजन खर्च पर रोक लगाने का विकल्प है लेकिन इससे उन्हें अश्वेतों खासकर दूसरे देशों के अप्रवासियों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। विपक्षी पार्टी सीनेट में ओबामा प्रशासन की नई नियुक्तियों को मंजूरी पर भी अड़ंगा लगा सकती है लेकिन इससे भारी हार झेलने वाले डेमोकेटिक नेताओं को उन पर हमले का बड़ा हथियार मिल जाएगा। राष्ट्रपति ओबामा की इस घोषणा से भारत से आए साढ़े चार लाख लोगों को भी फायदा पहुंचने की उम्मीद है जो यहां अवैध तरीके से रह रहे हैं। अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए ओबामा द्वारा उठाया गया यह कदम काफी अहम माना जा रहा है। इस कदम से यहां तकनीकी क्षेत्र में काम कर रहे भारतीयों की एक बड़ी आबादी को मदद मिलेगी। खासकर उन लोगों के लिए तो यह और भी महत्वपूर्ण है जिनके पास एच1बी वीजा है। इन कदमों से बगैर वैध दस्तावेजों वाले अनुमानित 1.10 करोड़ कर्मचारियों  में से 50 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलने की उम्मीद है। ओबामा के इस कदम से लगभग अमेरिका में 4.5 लाख अवैध भारतीयों की जिंदगी भी  बदल सकती है। पिछले हफ्ते ही जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के 50 में से 28 राज्यों में भारत का स्थान काफी ऊपर है। मैक्सिको के बाद उन पांच देशों में भारत शामिल है जहां के लोग सबसे ज्यादा संख्या में गैर कानूनी तरीके से यहां रह रहे हैं।

Sunday, 23 November 2014

सड़क पर भीख मांगते यह मजबूर बच्चे

दिल्ली के आईटीओ चौराहे पर खड़ी पांच साल की मासूम रेश्मा को नहीं पता कि बाल दिवस क्या होता है? उसे सिर्प इतना पता है कि अगर शाम तक भीख मांगकर 35 रुपए जमा नहीं किए तो भूखे ही सोना पड़ेगा। दिल्ली गेट चौराहे पर फूल बेचने वाली रेखा कहती है कि स्कूल की बसों को जाते देखकर लगता है कि काश! हम भी पढ़ पाते लेकिन खाने को दो वक्त का खाना नहीं है कैसे करें पढ़ाई? यह कहानी केवल इन दो बच्चों की नहीं बल्कि गैर सरकारी संगठनों के आंकड़े मानें तो पांच लाख स्ट्रीट चिल्ड्रन दिल्ली की सड़कों पर ही जीने पर मजबूर हैं। यह बड़ी हैरत की बात है कि सरकार बच्चों के विकास के लिए लाखों खर्च करने का दावा करती है लेकिन राजधानी सहित पूरे देश में कोई सरकारी आंकड़ा ही नहीं है कि कितने बच्चे सड़कों पर हैं। दरियागंज के चौराहे पर खड़ी निर्मला कहती है कि रोजाना फूल बेचकर 100-150 रुपए मिल जाते हैं, जिस दिन फूल नहीं बिकते तो उस दिन भूखे पेट ही सोना पड़ता है। हां, पास के स्कूल में बच्चों को जाते देखकर पता चलता है कि हम कितने अभागे हैं। निजामुद्दीन चौराहे पर दरगाह के तमाम भीख मांगने वाले बच्चोंöबबलू, सुमन, निजाम, हैदर सबका यही कहना है कि हमें तो यह चिंता है कि अब सर्दियां आ गई हैं। गर्मियां तो सड़क पर कट गईं लेकिन सर्दियों में कैसे गुजारा होगा? कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर परिसर के आसपास दर्जनों  बच्चे रोजाना चौराहे पर भीख मांगते दिख जाते हैं। इनमें से बहुत से बच्चे तो नशे के आदी हो चुके हैं। हालत यह है कि इन बच्चों में तमाम तरह की बीमारियां फैलती जा रही हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में करोड़ों खर्च कर कनॉट प्लेस को सुंदर तो बनाया गया लेकिन इन बच्चों व यहां मौजूदा भिखारियों की फौज का कोई समाधान नहीं हो सका। बच्चों की भिखारी फौज बढ़ती ही जा रही है। दूसरी ओर बच्चों के प्रति अपराध का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। बच्चों के प्रति आपराधिक घटनाओं में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2011 में 33,098 मामले बच्चों के प्रति अपराध के दर्ज किए गए थे जबकि 2010 में यह संख्या 26,694 थी। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (16.6…) दूसरे नम्बर पर मध्यप्रदेश (13.20…), दिल्ली (12.8…), महाराष्ट्र (10.2…), बिहार (6.7…) और आंध्र प्रदेश (6.7…) का नम्बर आता है। जनगणना के मुताबिक 1991 में देश में जहां 11.28 मिलियन बाल श्रमिक थे, वहीं 2001 में इनकी संख्या 12.66 मिलियन हो गई। पान, बीड़ी, सिगरेट (12…), निर्माण (17…), कताई-बुनाई (11…) में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हैं। कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों की वास्तविक स्थिति क्या है। इनमें से काफी संख्या में बच्चे बड़े होकर अपराधी बन जाते हैं। हमने निर्भया कांड व दूसरे कांडों में देखा कि नाबालिग बच्चे कितने बड़े-बड़े अपराध करते हैं। सरकारों को चाहिए कि वह इन बच्चों को बचाने के लिए एक समग्र नीति बनानी चाहिए ताकि इनका भविष्य सुधरे और इनकी मजबूरियां खत्म हों।

-अनिल नरेन्द्र

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम

रिटायरमेंट के ठीक 12 दिन पहले जब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के डायरेक्टर रंजीत सिन्हा को खुद उनके विभाग की ओर से जारी 2जी स्पेक्ट्रम जांच प्रक्रिया से अलग किया, तो संभवत पहला ऐसा मौका बना जब किसी संस्थान के हैड को अपने ही विभाग के किसी मामले में दखल से अलग किया गया हो। गुरुवार को अभूतपूर्व फैसले में सिन्हा को 1.76 लाख करोड़ रुपए के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपियों की मदद करने का आरोप अदालत ने प्रथम दृष्टि में सही माना। सीबीआई प्रमुख के लिए इससे ज्यादा शर्मिंदगी की बात और क्या हो सकती है कि उन्हें इस जांच से हटाया गया। रंजीत सिन्हा ने सपनों में भी उम्मीद नहीं की होगी कि अदालत इतनी सख्त टिप्पणी व कार्रवाई करेगी। दरअसल रंजीत सिन्हा शुरू से ही विवादों में बने रहे। सीबीआई डायरेक्टर के रूप में नियुक्ति भी विवादों में रही। यूपीए सरकार ने कालेजियम सिस्टम के अमल में आने से ठीक पहले सेंट्रल विजिलेंस कमिशन की अनुशंसा को दरकिनार कर उनका चयन कर लिया था। भाजपा ने तब इस पर काफी हंगामा मचाया था। बाद में सफाई दी थी कि सीबीआई को बिना डायरेक्टर के अधिक दिनों तक नहीं रख सकते। हैरत की बात यह भी है कि Šजी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच से हटाए जाने के फैसले पर सिन्हा साहब कह रहे हैं कि उन्हें कोई शर्मिंदगी नहीं है। यह अगर आत्मविश्वास है तो बेहद विचित्र किस्म का और इससे उनकी अधिक छीछालेदर होना तय है। उनके रिटायरमेंट में महज 12 दिन बचे हैं और ऐसे में यही बेहतर होगा कि वह  अपने बचे-खुचे मान-सम्मान के लिए सीबीआई प्रमुख पद से इस्तीफा दे दें। चूंकि उन्हें कोई शर्मिंदगी ही नहीं, इसलिए वह ऐसा शायद ही करें। जो भी हो उन्होंने अपने आचरण से खुद के साथ-साथ सीबीआई की विश्वसनीयता व प्रतिष्ठा दोनों को दांव पर लगा दिया है। यह कितने शर्म की बात है कि वह ऐसे सीबीआई प्रमुख के तौर पर जाने जाएंगे जो केवल संदिग्ध किस्म के लोगों से मुलाकात करते थे बल्कि घोटालेबाजों की कथित रूप से मदद करने के लिए भी तत्पर थे। प्रशांत भूषण ने आरोप के पक्ष में सिन्हा के घर ऐसे कई अति प्रभावशाली लोगों के बार-बार आने के सबूत पेश किए जो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपी थे। उनके नाम विजिटर्स डायरी में दर्ज थे। सिन्हा ने बचाव में तमाम दलीलें दीं और अपने ही एक अधिकारी पर गोपनीय दस्तावेज को लीक करने का आरोप लगाया। अदालत ने उनकी तमाम दलीलों को खारिज करते हुए इस बात को माना कि कहीं न कहीं इन आरोपों में दम है। पहले भी अदालत इन्हीं मामलों में सीबीआई को `पिंजरे में बंद तोता' कह चुकी है। यह सभी जानते हैं कि देश की यह सर्वोच्च जांच एजेंसी वही और उतना ही करती है जितना उसे केंद्र सरकार से इशारा मिलता है। यह सीधे प्रधानमंत्री के अधीन काम करती है। अदालत का यह आदेश इस मामले में ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि पहली बार किसी निदेशक को इतनी महत्वपूर्ण जांच से अलग किया गया हो। सिन्हा अपने पूरे कार्यकाल में बहुत विवादास्पद अधिकारी रहे हैं। सिन्हा की जिद के कारण इशरत जहां कांड में सीबीआई और आईबी दोनों आमने-सामने आ गई थीं। यहां तक कि आईबी के एक अधिकारी के खिलाफ तो व्यक्तिगत वैमनस्यता के स्तर पर उतर कर वह उसकी गिरफ्तारी पर आमादा हो गए थे। इतने जिम्मेदार पद पर बैठे किसी अधिकारी के लिए इतना पूर्वाग्रह ठीक नहीं होता। सार्वजनिक जीवन में ईमानदार होना जितना जरूरी है उतना ही ईमानदारी दिखाना भी ताकि लोगों को अंगुली उठाने का मौका न मिल सके। अगर रंजीत सिन्हा पर लगे आरोपों में तनिक भी सत्यता है कि वह 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल कुछ लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे थे तो फिर केवल इतने से संतोष नहीं किया जा सकता कि उन्हें इस मामले की जांच से हटा दिया गया। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि वह एक तरह से देश के भरोसे का कत्ल कर रहे थे। आखिर ऐसे लोग कैसे शीर्ष पदों तक पहुंच जाते हैं इस सवाल का जवाब भी यूपीए सरकार से लेना चाहिए।

Saturday, 22 November 2014

एक जेई से 100 करोड़ का मालिक कैसे बना रामपाल

भारतीय संविधान में अपने नागरिकों को किसी भी धर्म और आस्था को मानने की आजादी है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि आस्था के नाम पर इस संविधान की धज्जियां उड़ाई जाएं। खुद को संत बताने वाले रामपाल और उनके समर्थकों ने हरियाणा के हिसार में बरवाला स्थित सतलोक आश्रम में जिस तरह का उत्पात मचाया वैसा नजारा भारतीय इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया। साढ़े 33 घंटे के आपरेशन के बाद हरियाणा पुलिस जब सतलोक आश्रम में घुसी तो तलाशी के दौरान पुलिस को कंडोम, महिला शौचालयों में खुफिया कैमरे, नशीली दवाएं, बेहोशी की हालत में पहुंचाने वाली गैस, अश्लील साहित्य समेत भारी तादाद में आपत्तिजनक सामग्री मिली। बुधवार को आश्रम से बाहर आने वाली महिलाओं ने भी चौंकाने वाले अनेक खुलासे किए। उनके अनुसार रामपाल के निजी कमांडो उन्हें बंधक बनाकर दुष्कर्म तक करते थे और ऐसी जगह रखते थे कि किसी तक उनकी आवाज नहीं पहुंच सकती थी। आश्रम से बाहर आई एक महिला ने बताया कि वह अपने पति और बच्चे के साथ यहां आई हुई थी और पिछले सात दिनों से वह आश्रम में ही है। उसने कहा कि कुछ दिनों से उसके साथ दुष्कर्म किया जा रहा था। पांच दिनों से पति के साथ उसका सम्पर्प नहीं हो पा रहा है। हरियाणा के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी करने वाला रामपाल 100 करोड़ का मालिक कैसे बन गया? रामपाल के पास करीब 100 करोड़ की सम्पत्ति है। 16 एकड़ में फैले बरवाला स्थित आश्रम की कीमत करीब 20 करोड़ बताई जाती है। आश्रम के अंदर लग्जरी की सारी सुविधाएं हैं। हर कमरे में एसी है। इसके पास लगभग 70 लग्जरी कारें हैं जिसमें मर्सडीज, बीएमडब्ल्यू, यूएसवी, आरसीवी शामिल है। इसके अलावा 20 ट्रैक्टर, दो ट्रक और करीब पांच बसें भी हैं। उसके  पास बरवाला में एक और आश्रम है जो करीब छह एकड़ में बन रहा है। बरवाला में ही रामपाल ने 50 एकड़ जमीन और खरीदी है। इसकी कीमत 28 करोड़ है। रोहतक जिले में झज्जर रोड पर गांव करौंधा में चार एकड़ का आश्रम है जिसकी कीमत पांच करोड़ है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली में भी रामपाल की करोड़ों की जमीन बताई जा रही है। सतलोक आश्रम रामपाल के 25 लाख अनुयायी होने का दावा करता है। रामपाल सूट-बूट में सत्संग करता है। रामपाल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने अनुयायियों का योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल किया। आश्रम में घुसने के लिए केवल एक ही मुख्य द्वार है, इसलिए रामपाल के आश्रम के मुख्य गेट के बाहर बुजुर्ग, युवा, महिलाओं व बच्चों को बहुत व्यवस्थित तरीके से ड्यूटी पर लगाया गया ताकि पुलिसकर्मी किसी भी तरह अंदर प्रवेश न कर सकें। आश्रम के गेट पर करीब 2000 महिलाएं, पुरुष और बच्चों को तैनात किया गया था। इसके बाद 4-5000 अनुयायी और निजी कमांडो आश्रम की 50 फुट लंबी दीवार के पीछे तैनात थे जो 8-10 घंटे में बदलते रहते थे। रामपाल के अनुयायी रिटायर्ड फौजी और पुलिसकर्मी अंदर  बैठ कर पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए थे और योजना को अंजाम देने में जुटे थे। आश्रम के फ्रंट गेट पर सबसे पहले बच्चों को बिठाया गया। यह बच्चे महिलाओं के बीच में घुले-मिले होने के कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहे थे। उनके पीछे महिलाएं और युवतियों को तैनात किया गया। ऐसी महिलाओं को तैनात किया गया जिनके छोटे-छोटे बच्चे हों। उनके पीछे बुजुर्ग महिलाएं, पुरुष थे। इन सबके पीछे युवाओं की एक टोली बैठी थी जो आश्रम की दीवार से सटे हुए थे। यहीं पर पेट्रोल बम, डीजल, तेजाब के पाउच आदि रखे हुए थे। जैसे ही पुलिस ने कार्रवाई शुरू की इन लोगों ने पुलिस पर  पेट्रोल बम आदि फेंकने शुरू कर दिए। पांचवें चरण में आश्रम की छत पर चार से पांच हजार युवाओं को तैनात किया गया था। इनमें बाबा के निजी कमांडो भी थे। यह राइफल, बंदूक, रिवाल्वर, पेट्रोल बम इत्यादि से हमला करने के लिए तैनात थे। मेरा मानना है कि इतनी तैयारी के साथ रामपाल ने अपने आश्रम में बंदोबस्त किया था कि पुलिस अगर जोर-जबरदस्ती करती तो सैकड़ों में लोग मर सकते थे। पुलिस प्रशासन ने बहुत संयम से काम किया और इसका सबूत यह है कि सौ से ऊपर पुलिसकर्मी इस 33 घंटे के संघर्ष में घायल हो गए। जो चार लोग मरे भी वह आश्रम के अंदर ही मरे। रामपाल सोनीपत जिले के फनाना में आठ सितम्बर 1951 को भगत नंदराम के घर जन्मे। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया, सिंचाई विभाग में जेई की नौकरी की। नौकरी के दौरान दबंगई के कारण उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया गया। रामपाल जब कबीरपंथ के रामदेवानंद महाराज के सम्पर्प में आए तो उनके जीवन की दिशा बदल गई। उन्होंने 1999 में करौंधा में सतलोक आश्रम की स्थापना की। 2006 में स्वामी दयानंद सरस्वती की सत्यार्थ प्रकाश पर विवादास्पद टिप्पणी कर संत रामपाल सुर्खियों में आए। आर्य समाजियों में और रामपाल समर्थकों में हिंसक झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसके बाद एसडीएम ने 13 जुलाई 2006 में उनके आश्रम को कब्जे में लेकर रामपाल सहित 24 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया। डेढ़ साल जेल में रहे रामपाल और जमानत पर छूटे। 13 जुलाई 2013 को एक बार फिर रामपाल और आर्य समाज समर्थकों में झड़प हुई जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई। इसके बाद एक बार फिर पुलिस ने आश्रम पर कब्जा कर लिया। रामपाल तथा सतलोक आश्रम के अधिकारियों के खिलाफ पुलिस ने राजद्रोह एवं अन्य आरोपों के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। इनके अलावा धारा (121) युद्ध छेड़ने या प्रयास करने, धारा 121(सरकार के खिलाफ अपराध की साजिश), धारा 122 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के इरादे से हथियार जमा करने। जैसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। रामपाल जैसे तथाकथित संतों का न तो धर्म, आध्यात्मिकता और नैतिकता से कोई संबंध है और उन्होंने अपने आश्रमों को कुकर्म का अड्डा बना दिया है पर सोचने की बात यह भी है कि एक जेई से संत रामपाल बनने की यात्रा में उसे कितना राजनीतिक संरक्षण भी मिला है। बिना राजनीतिक संरक्षण के यह कलंकी अपराधी इतनी दूर तक नहीं पहुंच पाते। अब जब बाबा गिरफ्त में आ चुका है पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पंजाब के सारे डेरों की रिपोर्ट तलब की है। अगर जांच सही तरीके से हुई तो और बाबाओं की भी पोल खुलेगी और उनके गोरख-धंधे सामने आ सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 21 November 2014

तैयार रहें, महाराष्ट्र में 4-6 महीने में हो सकते हैं चुनाव

नागपुर में आठ दिसम्बर से शुरू होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में देवेंद्र फड़नवीस सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल जो दलगत स्थिति है उसमें भाजपा के 121 विधायक हैं जबकि साधारण बहुमत के लिए उन्हें 144 विधायकों का समर्थन चाहिए। करीब 12 अन्य विधायकों को भी जोड़ लें तो भी यह आंकड़ा 144 का नहीं बनता। शिवसेना के 63, कांग्रेस के 42, एनसीपी के 41 और अन्य आठ हैं। इतने दिन बीतने के बाद भी भाजपा-शिवसेना का समझौता नहीं हो सका। सौदेबाजी चल रही है। नागपुर में होने वाले विधानसभा सत्र में फड़नवीस सरकार के खिलाफ विपक्ष सख्त तेवर अपनाएगा, क्योंकि सरकार ने भले ही ध्वनिमत से सदन में बहुमत साबित कर दिया हो, मगर विरोधी दल उसे अभी भी अल्पमत की सरकार मानते हैं। हालांकि सरकार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का बाहर से बिना शर्त समर्थन हासिल है लेकिन भाजपा राकांपा पर भरोसा नहीं कर सकती। खासकर जब इसके मुखिया शरद पवार इस तरह का बयान दें ः तैयार रहें, महाराष्ट्र में 4-6 महीने में फिर से हो सकते हैं चुनाव? देवेंद्र फड़नवीस सरकार को समर्थन के मसले पर एनसीपी के सुर बदलने लगे हैं। पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार को अपने कार्यकर्ताओं को मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा। पवार रायगढ़ के अलीबाग में पार्टी के दो दिनी सम्मेलन में बोल रहे थे। महाराष्ट्र में स्थिर सरकार देना एनसीपी की जिम्मेदारी नहीं है। मौजूदा हालात राज्य में राजनीतिक स्थिरता का संकेत नहीं देते। एनसीपी ने विधानसभा चुनाव के तुरन्त बाद भाजपा की आने वाली सरकार को समर्थन का ऐलान किया था। देवेंद्र फड़नवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी शरद पवार ने कहा था कि सरकार पूरे पांच साल करेगी। एनसीपी ने विश्वासमत के दौरान विधानसभा से गैर हाजिर रह कर या सीधे पक्ष में वोट देकर सरकार को बचाने की तैयारी भी कर ली थी। शायद इस तरह वह भाजपा पर नैतिक दबाव बनाना चाहती थी, जिसे उसने चुनाव के दौरान नेचुरली करप्ट पार्टी कहा था। लेकिन फड़नवीस सरकार ने ध्वनिमत से विश्वासमत पारित करा लिया और एनसीपी सदस्य चुपचाप अपनी बैंचों पर बैठे रह गए। शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार को शायद यह नागवार गुजरा। शरद पवार के मध्यावधि चुनाव की संभावना पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने तुरन्त जवाब दिया ः मुझे नहीं लगता कि राज्य में मध्यावधि चुनाव होंगे। कोई पार्टी ऐसा नहीं चाहती। वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि हमने सरकार में शामिल होने के संबंध में कोई फैसला नहीं किया है। भविष्य में हालात को देखते हुए फैसला करेंगे। शिवसेना के हाथ में सरकार के भविष्य की चॉबी है। जब तक वह विपक्ष के साथ नहीं जाती तब तक सरकार गिर नहीं सकती। इसीलिए वह चाहती है कि एनसीपी फड़नवीस सरकार से समर्थन वापस ले और वह भाजपा को आइना दिखाए। अपनी शर्तों पर सरकार में शामिल और उसे बचाने का श्रेय भी लेना चाहती है।

-अनिल नरेन्द्र

आईएस की बढ़ती ताकत अमेरिका और यूरोप के लिए खतरा

इराक और सीरिया में पसरे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने एक और खौफनाक कार्रवाई में अमेरिकी बंधक पीटर कैसिग समेत 19 लोगों का सिर कलम कर दिया है। आईएस ने अपने दावे में पीटर और 18 सीरियाई सैन्य अधिकारियों का सिर कलम करने की वीडियो भी जारी की है, जिसमें उसने बताया है कि यह कदम उसने अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों को चेतावनी देने के लिए उठाया है। पीटर को आतंकियों ने सीरिया से अगवा किया था। हालांकि आईएस द्वारा जारी इस वीडियो की पुष्टि नहीं हो पाई है। व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां वीडियो की प्रमाणिकता जांचने की कोशिश में जुटी है। अगर इसकी पुष्टि होती है तो ये हत्या भयभीत करने वाले हैं। दो ब्रिटिश और दो अमेरिकी नागरिकों का सिर कलम करने वाले आईएस के एक ब्रिटिश जेहादी जॉन के अमेरिकी हवाई हमले में घायल होने की भी खबर है। इंग्लैंड के अखबार डेली मेल ने ब्रिटिश मंत्रालय के हवाले से बताया कि जेहादी जॉन नाम से कुख्यात और ब्रिटिश शैली में बात करने वाला आईएस का हत्यारा उत्तरी इराक में एक बंकर पर हुए हमले में बच निकलने में सफल रहा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि हमें खबर मिली है कि जेहादी जॉन घायल हुआ है। पीटर कैसिग अमेरिका का  पूर्व सैनिक भी था और इस्लाम धर्म कबूल कर चुका था। वीडियो में आईएस आतंकी एक कटा सिर लिए खड़ा है जो कैसिग जैसा दिखता है। वीडियो में आतंकवादी कह रहा है... यहां दबिक में हम पहले अमेरिकी को दफन कर रहे हैं और आपकी बाकी सेना का बेसब्री से इंताजर कर रहे हैं। इसके पहले वीडियो में दिखाया गया है कि आतंकी 18 सीरियाई सैनिकों को एक कतार में लेकर आए। उन्हें घुटने के बल बिठाया और उनका सिर कलम कर दिया। उल्लेखनीय है कि 16वीं सदी का वह युद्ध स्थल है जो अब उत्तरी सीरिया में है। यहां तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य ने ममलूक लोगों को हराया था और अपने साम्राज्य और खिलाफत का विस्तार किया था जिसका उत्तराधिकारी अब आईएस खुद को मानता है। यह संगठन अपना विरोध करने वाले अब तक सैकड़ों इराकी और सीरिया के लोगों को मौत के घाट उतार चुका है। संगठन इन देशों के जातीय समूहों का नरसंहार करने, उनकी औरतों को बेचने और उन्हें अपना दास बनाने व कैमरे के सामने कई लोगों का सिर कलम करने जैसी कार्रवाई कर चुका है। राष्ट्रपति बराक ओबामा की असमंजस की स्थिति और पश्चिमी देशों द्वारा आईएस की ताकत को कम करके आंकने की वजह से इस सुन्नी कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन की ताकत लगातार बढ़ रही है। अमेरिका यह नहीं तय कर पा रहा कि वह इस चुनौती से निपटने के लिए क्या रणनीति अपनाए। आईएस ने दो लाख लड़ाकों की सेना तैयार कर ली है। इराक में अमेरिकी हवाई हमलों की कामयाबी के बावजूद इस आतंकी संगठन ने अमेरिकी पत्रकार के कत्ल का वीडियो जारी किया है। इस्लामिक स्टेट का विस्तार सीरिया तक है। क्या अमेरिका अब आईएस के पीछे सीरिया तक जाने को तैयार है? यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा? अमेरिकी पूर्व सहायक विदेश मंत्री पीजे क्राउली का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से बेहद सोच-समझकर और अकेले में दो टूक बोलते हैं। जब बराक ओबामा ने स्पष्ट कहा कि हमारे पास इस्लामिक स्टेट से निपटने के लिए कोई रणनीति नहीं है तो सब हैरान रह गए। इस तरह दो टूक बोलना समझदारी हो या न हो लेकिन उनका उद्देश्य आईएस के खिलाफ अमेरिकी सैन्य अभियान के इराक से सीरिया में विस्तार के कयासों पर लगाम लगाना था। पत्रकार जेम्स फॉली और स्टीवन सोटलाक की दिल दहलाने वाली हत्याओं ने जता दिया कि सीरिया में दांव पर क्या है। इसके  बावजूद इस्लामिक स्टेट के पीछे सीरिया में न घुसने का ओबामा का फैसला कुछ मायनों में सही ही है क्योंकि आईएस भी यही चाहता है कि अमेरिका उसके पीछे सीरिया में आए। बता दें कि आईएस दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है जिसका बजट दो अरब डॉलर का है। विश्व में अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे और अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना इसका घोषित लक्ष्य है जिसमें वह सफल होता दिख रहा है। अमेरिका में अमेरिकनों के सिर कलम करने से हाहाकार मचा हुआ है और लोग ओबामा की आलोचना कर रहे हैं कि वह इस संगठन के खिलाफ कार्रवाई करने से कतरा क्यों रहे हैं।

Thursday, 20 November 2014

न्यूयार्क और लंदन से कम नहीं अपनी दिल्ली

दिल्ली वाले भले ही न्यूयार्क और लंदन जैसे शहरों में बसने का सपना देखते हों लेकिन सच्चाई यह है कि अपनी दिल्ली इन शहरों से कम नहीं है। फिर चाहे हत्या या कानून व्यवस्था की बात हो, आय की तुलना हो या परिवहन के सभी मामलों में दिल्ली किसी से कम नहीं। लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स की एक रिपोर्ट पेश हुई है।  इस खोज रिपोर्ट के मुताबिक धीमी गति से विकसित शहरी परिदृश्य के बावजूद दिल्ली का घनत्व न्यूयार्क मेट्रो क्षेत्रों से दोगुना है। अगर हम अपराध और कानून व्यवस्था की बात करें तो रिपोर्ट के मुताबिक खास बात यह है कि दिल्ली में हिंसात्मक अपराध का स्तर भी न्यूयार्क और इस्तांबुल जैसे शहरों से काफी कम है। न्यूयार्क में पति लाख लोगों में हत्या जैसे अपराध की औसत दर 5.6 फीसदी है वहीं दिल्ली में यह महज 2.7  फीसदी है। लेकिन अमेरिकी देशों में जैसे बगोटा है उसमें पति लाख लोगों में यह दर 16.1 फीसदी है। शहरी परिदृश्य कम होने के बावजूद दिल्ली का घनत्व दुनिया के बड़े शहरों जैसे लंदन, बगोटा, लागोस, टोक्यो, न्यूयार्क, इस्तांबुल और बर्लिन की तुलना में अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली का घनत्व 19,698 पति वर्ग किलोमीटर है वहीं न्यूयार्क मेट्रो क्षेत्र का घनत्व 11,531 पति वर्ग किलोमीटर है यानी दिल्ली में एक किलोमीटर वर्ग में 19,698 लोग रहते हैं वहीं न्यूयार्क में यह संख्या 11,531 है। इस पकार न्यूयार्क की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी का घनत्व दोगुना है। अगर आमदनी की बात करें तो 2012-30 के बीच दिल्ली में पति व्यक्ति आय 7 पतिशत से अधिक दर से बढ़ सकती है। लंदन में इस दौरान सिर्फ 2.8 पतिशत बढ़ सकती है। टोक्यो में 1.1 पतिशत  और लागोस में 6.6 पतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद लगाई गई है। जागरुकताः विधानसभा चुनावों में दिल्ली में 66 पतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। लंदन जैसे शहर में मतदान का पतिशत 39 पतिशत और न्यूयार्क में यह 24 पतिशत दर्ज किया गया।  आवागमन के क्षेत्र में दिल्ली का बस किराया लंदन जैसे शहरों से दस गुना सस्ता है। हां, सावर्जनिक परिवहन के मामले में दिल्ली टोक्यों जैसे शहरों से कम है। दिल्ली में 42 पतिशत लोग सार्वजनिक परिवहनों का पयोग करते हैं जबकि टोक्यो में 67 पतिशत और लागोस में 70 पतिशत लोग सार्वजनिक परिवहन का पयोग करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि दिल्लीवासी अपने निजी वाहन कार और मोटरसाइकिल, स्कूटर, स्कूटी इत्यादि का ज्यादा पयोग करते हैं। मेट्रो के आने से सार्वजनिक परिवहन में निश्चित बढ़ोतरी हुई है। लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स ने दुनिया के आठ शहरों पर आधारित अध्ययन में यह तथ्य सामने रखे। यह शहर हैं दिल्ली, लंदन, न्यूयार्क, टोक्यो, बर्लिन, लागोस, बगोटा और इस्तांबुल। सह मुख्य, कार्यकारी दायचे बैंक के अंशु जैन के मुताबिक भारत के विकास को बरकारार रखने के लिए अगले कुछ दशकों में न्यू शिकागो के बराबर निर्माण करने की जरूरत है। ऐसे में सरकार की 100 स्मार्ट सिटी बनाने की पहल महत्वपूर्ण है।
अनिल नरेंद्र


रामपाल के सतलोक आश्रम में खूनी संघर्ष

सतलोक आश्रम के पमुख रामपाल का मामला हिंसक मोड़ ले चुका है। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस जब मंगलवार को रामपाल के हरियाणा के बरवाला स्थित सतलोक आश्रम पहुंची तो     उसे रामपाल समर्थकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने पुलिस पर आश्रम परिसर से जमकर पथराव किया तो पुलिस को उन्हें हटाने के लिए लाठी चार्ज और बाद में आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। पुलिस की मानें तो आश्रम परिसर से पुलिस पर फायरिंग भी हुई। घंटों सतलोक आश्रम के बाहर रणक्षेत्र जैसा दृश्य रहा। इस हिंसक भिड़ंत में दो सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए जबकि भीड़ के हमले में 12 पुलिसकमी जख्मी हो गए। हद तो तब हो गई जब पुलिस ने मीडियाकर्मियों तक को नहीं बक्शा। उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। पाप्त जानकारी के अनुसार पुलिस रामपाल को गिरफ्तार करने में कामयाब नहीं हो सकी। जेसीबी मशीनों से आश्रम को तोड़कर उसमें घुसने गई पुलिस उस वक्त अबाक रह गई जब संत समर्थकों ने वहां जमा बच्चों, युवकों व महिलाओं को ढाल के रूप में इस्तेमाल शुरू कर दिया। रामपाल के आश्रम में होने पर संस्पेंस बना हुआ है। उनके पवक्ता ने कहा है कि रामपाल आश्रम में नहीं हैं जबकि हरियाणा के डीजीपी उसके आश्रम में होने का दावा कर रहे हैं। आश्रम से निकलने वाले लोगों ने कहा कि काफी लोग बाहर आना चाहते हैं लेकिन आने नहीं दिया जा रहा है और उन्हें जबरन ढाल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। आश्रम ने 8-10 लोगों की मौत का दावा किया जिसे डीजीपी ने खारिज कर दिया। संत रामपाल मामले में जो किया जा रहा है उससे गलत संदेश जा रहा है। यह तल्ख टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस जयपाल एवं जस्टिस दर्शन सिंह की खंडपीठ ने कोर्ट के बार-बार आदेश के बाद भी रामपाल को गिरफ्तार न करने पर की। खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस रामपाल को गिरफ्तार न कर अपराधियों और कानून तोड़ने वालों को गलत संदेश दे रही है। कल हर अपराधी खुद को कानून से बचाने के लिए यही हथकंडे अपनाएगा। इस तरह तो पशासनिक मशीनरी ही तबाह हो जाएगी। हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई 21 नवंबर को रखी है और पुलिस को सख्त आदेश दिया है कि रामपाल को सुबह दस बजे हर हालत में पेश किया जाए। धर्म की आड़ में गलत करने वाले संतों को छूट नहीं दी जा सकती। रामपाल पर हत्या का आरोप है। वर्ष 2006 में रामपाल समर्थक और एक अन्य गुट में हुए झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। 2008 में इस मामले में रामपाल को जमानत मिल गई थी। 14 जुलाई   2014 को कोर्ट ने रामपाल को हिसार कोर्ट में वीडियो कांपेंसिंग के जरिए पेश होने को कहा था। रामपाल समर्थकों ने इसका तब भी विरोध किया था और हिसार अदालत का घेराव किया। अदालत परिसर में तोड़फोड़ भी की गई। इसके बाद हिसार जिला बार एसोसिएशन ने मामले की शिकायत हाई कोर्ट से की। हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना के तहत सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया है। लंबे-चौड़े परिसर में फैले सतलोक आश्रम की 50 फुट उंची चारदीवारी बना रखी है। इस किलेनुमा परिसर में बाहर से पवेश बहुत कठिन है। रामपाल के समर्थकों का कहना है कि उनके संत (भगवान) को जबरन केस में फंसाया जा रहा है। अगर यह सही भी है तो भी उनके समर्थकों का इस पकार हिंसा पर उतरना न केवल सही नहीं बल्कि यह अपने संत को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं। अगर उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है तो अदालत में केस उड़ जाएगा। इन्हें अदालत पर भरोसा करना चाहिए।  पुलिस ने अभी भी संयम बरता है अगर वह अपने हथकंडे पर उतर आई तो भारी जान-माल का नुकसान होगा। खट्टर सरकार की यह कड़ी परीक्षा है। देंखे, वे इस समस्या से कैसे निपटते हैं

Wednesday, 19 November 2014

बॉलीवुड में पुरुष मेकअप आर्टिस्टों का वर्चस्व खत्म

सुपीम कोर्ट ने 59 साल से जारी पुरुषों के एकाधिकार को खत्म करते हुए बॉलीवुड में महिला मेकअप आर्टिस्टों के काम करने पर लगी पाबंदी हटा दी है। इस क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व की लंबी परंपरा ने अब तक फिल्मी सेटों पर महिला मेकअप आर्टिस्टों का रास्ता रोके रखा था। केवल महिला हेयर स्टाइलिस्ट को इस क्षेत्र में काम करने की छूट थी। बॉलीवुड की यूनियन ने पुरुषों की अजीविका पर पड़ने वाले असर का हवाला देते हुए अब तक महिला मेकअप आर्टिस्टों के काम करने पर पाबंदी लगाई हुई थी। सोमवार को सुपीम कोर्ट ने बॉलीवुड में महिला मेकअप आर्टिस्ट पर लगी रोक हटाते हुए कहा कि हम 2014 में हैं, 1935 में नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि सिने कॉस्ट्यूम मेकअप आर्टिस्ट एंड हेयर ड्रेसर्स एसोसिएशन (सीसीएमएम) खुद इस सिस्टम को हटा दे तो बेहतर होगा। याचिकाकर्ता चारू खुराना ने इसी एसोसिएशन के नियमों को चुनौती दी थी। इसके नियमों में फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ पुरुषों को ही मेकअप आर्टिस्ट बनने का अधिकार दिया गया था। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने भी इस नियम को हटाने के लिए एसोसिएशन से कहा था लेकिन एसोसिएशन ने सरकार का कहना नहीं माना। जनवरी 2013 को नौ महिला मेकअप आर्टिस्टों ने अदालत में याचिका दायर की थी। उनकी शिकायत थी कि बॉलीवुड की ताकतवर यूनियन उन्हें मेकअप आर्टिस्ट का काम नहीं करने दे रही है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और यू यू ललित की बैंच ने कहा कि अब तक इस तरह का भेदभाव कैसे जारी है? अदालत इसकी इजाजत कतई नहीं दे सकती। हमारे संविधान में भी इसकी इजाजत नहीं है। मेकअप आर्टिस्ट का काम केवल पुरुष ही क्यों करें? आगे कहा कि यदि महिला मेकअप आर्टिस्ट काबिल हैं तो ऐसी कोई वजह नहीं कि उनके काम करने पर पाबंदी लगाई जाए। अदालत ने सिने कॉस्ट्यूम मेकअप आर्टिस्ट एंड हेयर ड्रेसर्स एसोसिएशन को आदेश दिया है कि वह महिला मेकअप आर्टिस्टों पर लगाई गई पाबंदी को फौरन खत्म करे। जजों ने कहा कि हम 1935 में नहीं 2014 में जी रहे हैं। ऐसे रिवाजों को एक दिन भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता चारू खुराना कहती हैं कि उन्होंने मेकअप की ट्रेनिंग कैलिफोर्निया के स्कूल से ली लेकिन बॉलीवुड में उन्हें काम करने नहीं दिया गया। खुराना ने बीबीसी को बताया, मैंने कुछ फिल्मों में काम तो किया है लेकिन अनुभव बहुत बुरा रहा। यहां की यूनियन बेहद ताकतवर और दबंग है। फिल्म में महिला मेकअप आर्टिस्ट के काम करने की खबर मिलते ही वे उस फिल्म पर रोक लगा देते हैं। निर्माताओं को जुर्माना भी भरना पड़ता है। वे बताती हैं कि ऐसी कई महिला मेकअप आर्टिस्ट हैं जो बॉलीवुड में काम करना चाहती हैं। अभिनेत्रियों और महिला कलाकारों को भी उनसे मेकअप करवाने में सहूलियत रहती है। फिल्मों में काम पाने की कोशिश करने वाली कई महिला मेकअप आर्टिस्टों के साथ मार-पीट तक हो चुकी है। 5 साल तो इन्साफ पाने में लगे पर अब आगे का रास्ता खुल जाएगा।

-अनिल नरेंद्र

दवा के नाम पर जहर खा रहे थे लोग

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक सरकारी नसबंदी शिविर में नसबंदी आपरेशन के बाद 18 महिलाओं की मौत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस शिविर में न तो सही डाक्टर थे और न ही सही दवाएं। चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि दवा के नाम पर जहर दिया गया, महिला मरीजों को मौतों की वजह सिपोसिन-500 दवा को बताया जा रहा है और अब सवाल उठ रहा है कि सालों से बिक रही इस सिपोसिन-500 दवा को खाकर कितने लोग मरे होंगे? शायद उनकी मौत के लिए कभी इस दवा को जिम्मेदार माना ही नहीं गया। दवाओं की जांच न होती तो यह राज भी कभी नहीं खुलता। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सचिव डाक्टर आलोक शुक्ला कहते हैं कि पेंडारी और गौरेला पेंड़ा के नसबंदी शिविर में महिलाओं को मैसर्स महावर फार्मा पाइवेट लिमिटेड की सिपोसिन-500 टेबलेट (सिपोफ्लाक्सेसिन) खाने के बाद उल्टियां शुरू हुईं जो जानलेवा साबित हुईं। इस कंपनी के खिलाफ केस दर्ज करके उसके मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया है। स्वास्थ्य सचिव ने स्थानीय लैब में परीक्षण के बाद मीडिया के सामने दावा किया कि सिपोसिन-500 में जहरीला जिंक फास्फेट मिला है, जिसका इस्तेमाल चूहा मार दवा में होता है। हालांकि उनका कहना है कि केंद्र सरकार की लैब में इसके परीक्षण के बाद ही अंतिम उचित निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। अभी तक छत्तीसगढ़ की दवा दुकानों से 43 लाख रुपए से अधिक की दवाएं जब्त हो चुकी हैं। अत्यन्त दुख का विषय यह भी है कि घटिया और मिलावट वाली दवाओं की आपूर्ति करने वाली कंपनी महावर फार्मास्यूटिकल्स पा. लि. को अपने उत्पादों की खराब गुणवत्ता के कारण पहले भी सामना करना पड़ा था। राज्य सरकार ने जांच बैठा दी है और तुरंत कार्रवाई करते हुए चार डाक्टरों को सस्पेंड कर दिया गया है और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। मृतकों के परिवार को दो लाख रुपए बतौर मुआवजा दिया जाएगा। पधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से बात कर पूरे मामले की गहन जांच करने और एक्शन लेने को कहा है। सीएम ने भी माना है कि कैंप में लापरवाही हुई। बिलासपुर छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का विधानसभा क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा है कि गर्भाशय कांड, और बालोद, बागबाहरा व आंखफोड़वा कांड से सबक न लेते हुए मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी अमर अग्रवाल को सौंपी है। आरोपों से घिरे व्यक्ति को स्वास्थ्य मंत्री बनाकर मुख्यमंत्री ने सरकार की नियत उजागर कर दी है। नकली दवाओं का काला धंधा पूरे देश में मौजूद है। पैसों की खातिर मानव जीवन की कीमत कितनी गिर गई है, चौंकाने वाली है। जरूरत इस बात की है कि कसूरवार व्यक्तियों को सख्त से सख्त सजा मिले ताकि ऐसे अपराधियों में डर पैदा हो। क्वालिफाइड डाक्टरों की भी कमी है। ऐसे शिविरों को तभी लगाया जाए जब पूरा बंदोबस्त हो जाए। हालांकि डाक्टर से ज्यादा दवाओं की जांच करना सरकार का काम है जिसमें छत्तीसगढ़ की सरकार बुरी तरह फेल हुई है।

Tuesday, 18 November 2014

सुनंदा पुष्कर की मौत का रहस्य गहराया

पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेसी नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत की जांच में एक नया मोड़ आ गया है। सुनंदा पुष्कर की मौत जहर से हुई थी यह गत दिनों पुलिस को सौंपी गई मेडिकल रिपोर्ट में मेडिकल बोर्ड ने साफ कह दिया है। लेकिन जहर सुनंदा ने खुद खाया या किसी ने खिलाया है, जहर किस रसायन से बनाया गया है, इसका पता मेडिकल बोर्ड नहीं लगा सका है। याद रहे कि सुनंदा पुष्कर का शव दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में बरामद हुआ था। बोर्ड ने 12 पन्ने की रिपोर्ट में कहा था कि जहर में ऐसे कई रसायन हैं जिनका पता फोरेंसिक विशेषज्ञ नहीं लगा सकते हैं। कई रसायन पेट में जाने के बाद जहरीले बनते हैं। भारतीय लैब इतनी विकसित नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे थे कि चिकित्सा की अच्छी जानकारी रखने वाले व्यक्ति ने तो सुनंदा की हत्या नहीं की? बोर्ड ने माना कि देश में ऐसी तकनीक का अभाव है, जिससे विसरा जांच के समय खास जहरीले रसायन के बारे में पता लगाया जा सके। ऐसे कई रसायन हैं जिनका लोग उपयोग करते हैं। जनहित को ध्यान में रखते हुए उनका उल्लेख नहीं किया जा सकता है। मेडिकल बोर्ड में एम्स के फोरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता, एडिशनल प्रोफेसर डाक्टर आदेश कुमार व सीनियर रेजिडेंट डॉ. शशांक पुनिया शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने कथित रूप से दुबई और पाकिस्तान से 17 जनवरी को भारत आने और वहां से जाने वाले लोगों की सूची तलब की है। इसी दिन सुनंदा पुष्कर की राजधानी के होटल लीला पैलेस में मौत हुई थी। पुलिस के इस कदम से इस बात के संकेत मिलते हैं कि इस हत्याकांड में किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ होने का शक है। इसके साथ ही पुलिस सुनंदा पुष्कर के विसरा की  जांच लंदन में कराने पर भी सोच रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यदि उन्हें जहर दिया गया था तो यह कौन-सा जहर था? पुलिस के पास अमेरिका में फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (एफबीआई) की प्रयोगशाला में विसरा भेजने का भी विकल्प है, जहां सीबीआई विशेष मामलों की जांच के लिए सम्पर्प करती रही है। गौरतलब है कि भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा था कि सुनंदा पुष्कर को रूस का कोई जहर दिया गया था लेकिन इस पर शशि थरूर ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। उन्होंने कहा था कि वह स्वामी की बातों को गंभीरता से नहीं लेते। दुबई और पाकिस्तान से आने-जाने वाले नामों की सूची पुलिस इसलिए चाहती है कि वह इस बात को पुष्ट कर सके कि 17 जनवरी को आए लोग दिल्ली के उस पांच सितारा होटल में थे या नहीं? इसके साथ ही पुलिस इस बात की जानकारी चाहती है कि 17 जनवरी या एक-दो दिन आगे पीछे कोई आए गए थे या नहीं? उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मामले में अंतत सच्चाई सामने आएगी और यह निर्णायक रूप से पता चले कि सुनंदा पुष्कर ने आत्महत्या की थी, खुद जहर खाया या फिर उनकी हत्या की गई।

-अनिल नरेन्द्र

मुद्गल समिति के खुलासे से क्रिकेट जगत में मची खलबली

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस मुद्गल समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। समिति के जो निष्कर्ष सार्वजनिक हुए उनसे साफ है कि बीसीसीआई के विवादित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन, राजस्थान रॉयल्स के को-ओनर राज पुंद्रा और आईपीएल के सीओसी सुंदर रमण इस घोटाले में शामिल हैं। मुद्गल समिति की रिपोर्ट में इन व्यक्तियों का नाम आना बताता है कि सभ्यजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के संचालन में कैसे-कैसे अनैतिक खेल हो रहे हैं। शीर्ष अदालत की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को है, जिसमें पूरी संभावना है कि क्रिकेट को कलंकित करने में संलिप्त कुछ खिलाड़ियों के नाम भी सामने आएं। मुद्गल समिति ने अपनी रिपोर्ट में इनकी संदिग्ध भूमिका की चर्चा की। खुलासा होते ही बोर्ड ने बीसीसीआई के संविधान को ताक पर रखते हुए न सिर्प 20 नवम्बर को होने वाली बैठक (एजीएम) बल्कि चुनाव भी टाल दिए। जाहिर है कि इस खुलासे से भारतीय क्रिकेट में बड़ा तूफान आएगा और इस खेल की विश्वसनीयता और लोकप्रियता पर विपरीत असर पड़ेगा। क्रिकेट की गरिमा और दर्शकों-प्रशंसकों के विश्वास से खिलवाड़ करने वाले इस अनैतिक खेल का पूरा खुलासा होना चाहिए। दूसरी ओर आरोपों के घेरे में आने के बाद से श्रीनिवासन बोर्ड पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए तरह-तरह के दांव चल रहे हैं और उनके इस खेल में बोर्ड के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी उनका साथ दे रहे हैं। बोर्ड का संविधान कहता है कि 30 सितम्बर से पहले एजीएम होना अनिवार्य है। कार्यकारी समिति की पिछली बैठक में जिसमें श्रीनिवासन भी शामिल थे, एजीएम की 20 नवम्बर यह सोचकर तय की गई थी कि शायद उनका और उनके दामाद मयप्पन का नाम रिपोर्ट में शामिल न हो। लेकिन नतीजा उलटा आने के बाद श्रीनिवासन कैंप के तोते उड़ गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होनी है, इसलिए उन लोगों ने एकतरफा तौर पर एजीएम टाल दी है। कोर्ट ने श्रीनिवासन के चुनाव लड़ने पर बैन लगा रखा है, इसलिए वे चुनाव आगे खिसकाकर अपने लिए या अपने किसी विश्वास पात्र चहेते के लिए रास्ता बनाने में लगे हुए हैं। इसका एक ठोस आर्थिक तर्प है। क्रिकेट अब खेल से ज्यादा कारोबार बन चुका है। इससे देशव्यापी रसूख और करोड़ों की सम्पत्ति हासिल होने लगी है। ऐसे में स्पॉट फिक्सिंग न केवल एक घोटाला है बल्कि इस लोकप्रिय खेल की गरिमा तथा विश्वसनीयता बचाने के उपक्रम के रूप में भी देखा जाना चाहिए। यह देखना हैरतअंगेज है कि श्रीनिवासन ने शुरू से ही इस प्रकरण पर परदा डालने की कोशिश की। श्रीनिवासन मनमाफिक जांच समिति बनाकर पूरे प्रकरण पर लीपापोती करने में लगे रहे। भला तो न्यायपालिका का हो जिसने न केवल बीसीसीआई की जांच समिति को अवैध ठहराया बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा जस्टिस मुद्गल को सौंपकर पूरी सच्चाई सामने आने की भूमिका रच दी। अब देखना यह होगा कि श्रीनिवासन सहित जिन व्यक्तियों के नाम जांच में सामने आए हैं उन पर क्या कार्रवाई होती है। आईपीएल की नियमांवली में प्रावधान था कि यदि कोई टीम मालिक या प्रबंधन से जुड़ा व्यक्ति फिक्सिंग या सट्टेबाजी में लिप्त पाया जाता है तो उस टीम को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाए। जरूरी है कि क्रिकेट को बदनाम करने वाली गतिविधियों में लिप्त प्रशासकों, टीम मालिकों और खिलाड़ियों पर बेहद सख्त कार्रवाई हो ताकि भविष्य में कोई क्रिकेट की साख से खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।

Sunday, 16 November 2014

अकेले रोहित शर्मा से हारी पूरी लंका

रनों की स्याही, चौकों की कलम और छक्कों की इबारत से वन डे क्रिकेट का इतिहास नए सिरे से कोलकाता के ईडन गार्डन में लिखा गया। श्रीलंका के खिलाफ भारत के रोहित शर्मा के बल्ले से निकलने वाले तूफान में रिकार्ड ध्वस्त होते चले गए। श्रीलंका के खिलाफ चौथे वन डे मुकाबले में रनों की यह आंधी रुकी तो रोहित ने वन डे की सबसे बड़ी पारी अपने नाम कर ली थी। कुछ पारियां ऐसी होती हैं जो इतिहास में अमर हो जाती हैं और दर्शकों के दिलो-दिमाग में अमिट छाप छोड़ जाती हैं। ऐसी ही एक पारी रोहित शर्मा ने बृहस्पतिवार को ईडन गार्डन में श्रीलंका के खिलाफ चौथे वन डे में खेली जब उन्होंने 264 रन  की रिकार्ड पारी खेली। ईडन गार्डन के ऐतिहासिक स्टेडियम में रोहित ने वन डे इतिहास की सबसे बड़ी पारी खेल अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करा लिया। रोहित ने 173 गेंदों की पारी में 33 चौके और नौ छक्के मारे। पांच जनवरी 1971 में जब वन डे इतिहास का पहला मैच खेला गया था तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि सीमित ओवरों के इस प्रारूप में कोई बल्लेबाज 200 रनों का आंकड़ा पार कर सकेगा। लेकिन इस मिथक को क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 200 रन की पारी खेल कर तोड़ दिया। सचिन ने जहां वन डे में दोहरे शतक के मिथक को तोड़ा वहीं रोहित शर्मा ने वन डे इतिहास में मील का पत्थर स्थापित किया और 250 रन का आंकड़ा पार करने वाले पहले बल्लेबाज बने। रोहित की इस पारी ने वन डे क्रिकेट को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां अब 300 रनों की पारी भी अछूती नहीं दिख रही है। रोहित की यह पारी इसलिए भी खास है क्योंकि अंगुली की चोट के कारण वह इस सीरीज में अपना पहला मैच खेल रहे थे। यह पारी इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि उन्होंने वन डे में दूसरी बार दोहरा शतक जड़ा और ऐसा करने वाले वह पहले बल्लेबाज हैं। भविष्य में क्रिकेटरों के लिए रोहित ने एक ऐसी लकीर खींच दी है जिसे पार करना एक नए इतिहास को लिखना है। रोहित ने इस पारी के दौरान वन डे में सर्वाधिक व्यक्तिगत पारी के हमवतन वीरेन्द्र सहवाग के 219 रन के रिकार्ड को तोड़ा जिन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 2011 में यह रिकार्ड बनाया था। रोहित को इतनी लंबी पारी खेलने में श्रीलंका ने भी मदद की और जब उन्होंने दो बार जीवन दान दिया। पहला कैच तो तब ड्राप हुआ जब रोहित चार रन पर थे। जब-जब रोहित की इस पारी को याद किया जाएगा तब-तब शमिंडा इरांगा की गेंद पर थर्ड मैन पर खड़े तिसारा परेरा को भी याद किया जाएगा जिन्होंने आसान-सा कैच छोड़ा जब रोहित मात्र चार रन पर थे। रोहित ने पूरे 50 ओवर बल्लेबाजी की और पारी की आखिरी गेंद पर एक और छक्का मारने के प्रयास में बाउंड्री में कैच हो गए। यह जरूरी नहीं था, वह नाबाद भी रह सकते थे। हम रोहित शर्मा को बधाई देना चाहते हैं। उन्होंने देश की शान को चार चांद लगा दिए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मदरसों में जेहाद की शिक्षा से खुफिया एजेंसियों का इंकार

देश के अधिकांश मदरसों में जेहाद की शिक्षा नहीं दी जाती है, यह कहना है देश की खुफिया एजेंसियों का। गृह मंत्रालय ने अपनी तमाम सुरक्षा एजेंसियों से मिले इनपुट के आधार पर मदरसों को लेकर एक आंतरिक रिपोर्ट तैयार की है। इसके अनुसार भारतीय मदरसों का जेहादी गतिविधियों में लिप्त होने का कोई प्रमाण नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देवबंद, अल हदीस, जमात और  बरेलवी के अधीन संचालित होने वाले मदरसों से कोई जेहादी गतिविधियां संचालित नहीं होतीं। रिपोर्ट के अनुसार इन संस्थाओं के मदरसे पारम्परिक तरीके से शिक्षा दे रहे हैं। हालांकि सरकार बंगलादेश से सटे असम और पश्चिमी बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में चल रहे मदरसों को लेकर जरूर सतर्प है। यहां काफी मदरसे बंगलादेशी नागरिकों के सहयोग से चल रहे हैं। यहां के कई शिक्षक भी बंगलादेशी हैं। इन मदरसों के बारे में अलग से रिपोर्ट तैयार की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि वर्दवान विस्फोट की घटना में एक मदरसे के शिक्षक को भी कथित तौर पर लिप्त पाया गया था। उसका संबंध भी बंगलादेश से बताया गया है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनका विभाग मदरसों के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की छानबीन कर रहा है, जो दूसरे देशों के हैं। खासकर ऐसे कई मदरसे सीमा से लगे क्षेत्रों में चल रहे हैं जहां विदेशी शिक्षक या कर्मचारी हैं। ऐसे मदरसे पाकिस्तान की सीमाओं पर चल रहे हैं। मदरसों पर पिछले साल से ही नजर रखी जा रही है। तमाम खुफिया एजेंसियों ने एक साथ इन मदरसों पर नजर रखी हुई है। हालांकि अभी तक किसी मदरसे से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है जो किसी भी तरह आपत्तिजनक हो। अधिकारी ने कहा कि पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार और केरल के मदरसों ने अपना पंजीकरण करवा रखा है। अन्य राज्यों में मदरसों को सूचीबद्ध नहीं किया गया है। अधिकांश मदरसों में शिक्षक स्थानीय लोग हैं, इनमें से किसी में भी आपत्तिजनक बातें देखने को नहीं मिलीं। गौरतलब है कि संघ परिवार के संगठनों ने इस तरह के आरोप लगाए थे कि देश में चल रहे मदरसों में आतंक और जेहाद की शिक्षा दी जा रही है। लेकिन खुफिया एजेंसियों द्वारा गृह मंत्रालय को दी गई रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है। हमें इन पर विश्वास करना होगा क्योंकि इस समय गृह मंत्रालय भाजपा दिग्गज राजनाथ सिंह संभाल रहे हैं और देश में नरेंद्र मोदी की सरकार है। हालांकि खुफिया एजेंसियों ने इस बात से इंकार नहीं किया कि कुछ मदरसों में विदेशी शिक्षक गलत पहचान पत्र के आधार पर काम कर रहे हैं। सरकार के पास जो आंकड़े हैं उसके अनुसार बंगलादेश की सीमा पर करीब 1700 मदरसे चल रहे हैं। यह सभी मदरसे पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और मेघालय में हैं और यह सभी अंतर्राष्ट्रीय सीमा से महज 20 किलोमीटर की परिधि में हैं। समझा जाता है कि बेरोजगारी के कारण इस तरह के मदरसे लगातार बनते जा रहे हैं। इन मदरसों में बगैर किसी सिलेबस या कार्यक्रम के आधार पर शिक्षा दी जाती है।