Thursday, 19 May 2016

उपचुनाव परिणाम ः भाजपा और आप को झटका, कांग्रेस को संजीवनी

करीब एक वर्ष की अवधि के लिए तीनों निगमों के 13 वार्डों में रविवार को संपन्न दिल्ली नगर निगम उपचुनाव भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों के लिए सेमीफाइनल की तरह था। नतीजे चौंकाने वाले माने जा सकते हैं। पहले बात करते हैं भाजपा की। भाजपा के लिए रिजल्ट निराशाजनक रहा क्येंकि तीनों नगर निगमों में उसका शासन था। पार्टी नेतृत्व दावा कर रहा था कि निगमों में उसकी परफार्मेंस इस चुनाव में उसकी जीत सुनिश्चित करेगी। लेकिन सिर्प तीन सीटें जीतकर यह जाहिर हो गया कि नेता विहीन इस पार्टी को जनता ने नकार दिया है। भाजपा के लिए चिंता का विषय यह भी होना चाहिए कि जिन 13 सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें से सात पर भाजपा चुनाव जीती हुई थी। इस हिसाब से उसे चार सीटों का नुकसान तो झेलना ही पड़ा साथ ही उसे बुरी तरह हार का सामना भी करना पड़ा। इन परिणामों से भाजपा रणनीतिकार इतना जरूर कह सकते हैं कि बेशक उनकी सीटें कम हुईं पर वोट पतिशत बढ़ा। विधानसभा चुनाव में भाजपा को करीब 32 फीसदी वोट मिले थे, इन उपचुनावों में उसका वोट पतिशत बढ़कर 34.1 फीसदी हो गया। अब बात करते हैं कांग्रेस पार्टी की। इन उपचुनावों में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं था। पार्टी निगम चुनाव 2007, 2012 विधानसभा चुनाव 2013 और 2015 में कभी इन 13 वार्डों में पहले नंबर पर नहीं रही है। कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव खासा संतोषजनक माना जा सकता है और उसने चार सीटें हासिल कीं पांचवीं भी एक तरह से कांग्रेस के खाते में गई क्योंकि यहां से जीता पार्षद बागी कांग्रेसी है। कांग्रेस के लिए एक खुशी की बात यह भी हो सकती है कि जिन 13 वार्डों में उपचुनाव हुए उनमें से उसकी कोई भी सीट नहीं थी। याद रहे कि विधानसभा चुनाव (2015) में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी, उसका पमुख कारण था कि कांग्रेस का वोट बैंक खिसक कर आम आदमी पार्टी में चला गया था, लेकिन इन नतीजों ने जाहिर कर दिया है कि उपचुनाव में उसका खोया जनाधार एक बार फिर से वापस लौटने लगा है। कांग्रेसी नेताओं ने पिछले कुछ महीनों में सकिय राजनीति की है और कई मुद्दों पर आंदोलन, पदर्शन करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसी का नतीजा सामने आया है पार्टी के लिए यह परिणाम अगले साल होने वाले नगर निगम चुनावों में उसको संजीवनी पदान करेंगे। कांग्रेस 2007 के बाद से नगर निगम की सत्ता से दूर रही है। इस दौरान दिल्ली में उसकी सरकार जरूर रही, लेकिन 2013 में यहां से भी इसकी विदाई हो गई। 2015 विधानसभा चुनाव में तो इसका पूरा सफाया हो गया और विधानसभा में एक भी विधायक कांग्रेस का नहीं है। इसका परम्परागत वोट बैंक आम आदमी पार्टी के खेमे में चला गया। इसलिए इस उपचुनाव में उसके पास  खोने के लिए कुछ नहीं था, पार्टी तो बस अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की लड़ाई लड़ रही थी। उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी को 4 सीटें मिली हैं उसको 24.8 पतिशत वोट मिला है। अब बात करते हैं आम आदमी पार्टी की। आप के लिए यह रिजल्ट चौंकाने वाला कहा जाएगा। यह चुनाव पार्टी के चुनाव लड़ने वाले पार्षद पत्याशियों से ज्यादा विधायकों की अग्नि परीक्षा थी। इस तरह से आप के 67 में से 12 विधायकों की छवि दांव पर लगी हुई थी। दरअसल आम आदमी पार्टी ने अपनी कार्यशैली और तौर तरीके से इस उपचुनाव को आगामी वर्ष दिल्ली में पस्तावित तीनों निगमों के चुनावों का सेमीफाइनल बनाने की भरसक कोशिश की। चूंकि आम आदमी पार्टी इस समय दिल्ली में सत्ता में है इसलिए पार्टी  साख बचाए रखने के लिए अधिकांश सीटों पर जीत हासिल करना चाहती थी। तभी जाकर पार्टी अपने पक्ष में हवा बना पाती। आम आदमी पार्टी को कम से कम 12 सीटों पर जीतने की पूरी उम्मीद थी। पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी के आंतरिक सर्वे में भी आप को 13 में से 12 सीटें जीतती दिख रही थी। उपचुनाव से पहले आप के दिल्ली पदेश पभारी की देखरेख में एक सर्वे कराया गया था। इसमें आम लोगों की नब्ज टटोलने की कोशिश की गई थी। यह चुनाव दिल्ली सरकार के पिछले सवा साल के कामों का लिटमस टेस्ट भी एक तरह से था। यह कहना भी कुछ लोगों का है कि अब आप सरकार से जनता का विश्वास उठने लगा है इसीलिए पार्टी को 13 वार्डों में मात्र 5 पर ही संतोष करना पड़ा। आप के विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा उपाध्यक्ष के क्षेत्रों से लड़े पत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। आप सरकार और पार्टी नेता बार-बार दावा कर रहे थे कि यह चुनाव दिल्ली सरकार की उपलब्धियों पर लड़ा जा रहा है, क्योंकि सरकार ने बहुत काम किए हैं, इसलिए उसकी जीत सुनिश्चित है। लेकिन चुनाव के नतीजे उसके इस दावे पर सवाल जरूर खड़ा करेंगे । हां, पार्टी यह दावा तो कर ही सकती है कि निगम में उसका कोई भी पतिनिधि नहीं था अब पांच पतिनिधि तो पहुंच गए हैं  और पार्टी ने नगर निगम में भी एंट्री मार ली है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसी भी वार्ड में चुनाव पचार तो नहीं किया, लेकिन उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले इन वार्डों में आयोजित कार्यकमों में भाग लिया था। वहीं उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ ही कुमार विश्वास, संजय सिंह, दिलीप पांडे सहित अन्य नेता व दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने पत्याशियों के पक्ष में जमकर पचार जरूर किया था। सिवाय कांग्रेस के बाकी दोनों दलों भाजपा और आप पार्टी के लिए यह परिणाम खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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