Sunday, 22 May 2016

पांच राज्यों के परिणाम से भाजपा और क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ी है

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के जो जनादेश आए हैं उससे दो-तीन बातें सामने आती हैं। पहली कि इन चुनावों में कांग्रेस औंधे मुंह गिरी है। भाजपा का कांग्रेस मुक्त अभियान काफी हद तक सफल होता नजर आ रहा है। जहां कभी कांग्रेस सन् 2000 में 15 राज्यों में शासन करती थी वहीं यह अब घटकर सिर्प छह छोटे राज्यों में सिमट गई है। पुडुचेरी और बिहार को मिला दें तो आठ राज्यों में ही कांग्रेस शासन रह गया है। कांग्रेस देश की सिर्प 15.6 फीसदी आबादी पर ही अब राज कर रही है। जबकि यह 50 फीसदी से अधिक कभी हुआ करता था। इस पर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हुआ है जिसमें जुमला लिखा हैö`सोनिया-राहुल' ः हम-तुम जंगल में बैठे हों और मोदी आ जाए...। वास्तव में पांच चुनावों के नतीजों पर यह तंज सही ही है। असम में कुर्सी छिनी, मोदी ने कब्जा कर लिया। चाय बेचने वाले ने तो चाय के बागानों पर ही कब्जा कर लिया। केरल में भी वाम मोर्चे ने कब्जा कर लिया। पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण ममता बनर्जी के ऑफर को ठुकरा कर लेफ्ट के साथ गठबंधन कर लिया। अब वहां न तो लेफ्ट ही बचा और न कांग्रेस। क्या इसे कांग्रेस मुक्त भारत की शुरुआत न माना जाए। पश्चिम बंगाल में वामदलों ने और तमिलनाडु में डीएमके ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया था, लेकिन करारी हार के बाद लेफ्ट और डीएमके दोनों ने इसका ठीकरा कांग्रेस के ही सिर फोड़ दिया है। डीएमके ने कहा कि कांग्रेस से गठजोड़ करने की वजह से उसे हार का सामना करना पड़ा है। वहीं माकपा ने कहा कि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना एक बड़ी भूल थी, एक बड़ी गलती थी। राज्य के लोगों ने इस गठजोड़ के लिए वामदलों को जिम्मेदार मानते हुए उसे पूरी तरह नाकार दिया। दूसरी प्रमुख बात जो उभर कर आती है वह है कि पांच राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सिर्प पाया ही है खोया कुछ नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि इन चुनाव नतीजों का असर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर नजर आएगा और फिर इसकी गूंज लोकसभा चुनाव में भी सुनाई दे सकती है। पार्टी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने नॉर्थ-ईस्ट में पहली बार किसी राज्य में चुनावी जीत हासिल की है और वह सरकार बनाने जा रही है। इसके अलावा उसने केरल जैसे राज्य में भी अपना खाता खोल लिया है। पश्चिम बंगाल में भी पार्टी ने न केवल वोट बढ़ाया है बल्कि पार्टी ने अपनी पिछली सीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी भी की है। भाजपा के लिए असम के नतीजे एक तरह से संजीवनी की तरह हैं। यह पहला राज्य है जहां लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ने नरेंद्र मोदी के अलावा पार्टी के ही किसी नेता का चेहरा पेश किया। पार्टी का यह दांव कामयाब रहा। इससे पहले बिहार में बिना चेहरे के और दिल्ली में बाहर से किरण बेदी को लाकर चुनाव लड़ने से भाजपा की करारी हार हुई थी। लेकिन सर्वानंद सोनेवाल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश कर पार्टी ने दांव चला और यह पूरी तरह कामयाब हुआ। यह इस मायने से ही महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करने के बावजूद यह सवाल उठते रहे हैं कि भाजपा न तो नॉर्थ-ईस्ट में है और न साउथ में, इसलिए उसे नेशनल पार्टी कैसे कहा जा सकता है? भाजपा का अब 13 राज्यों (चार एनडीए) में शासन स्थापित हो चुका है जो देश की 43.1 प्रतिशत आबादी बनती है। पांच राज्यों के चुनाव में से भले ही भाजपा ने सिर्प एक राज्य में अपनी सरकार बनाने में कामयाबी पाई हो लेकिन इन नतीजों का सबसे बड़ा असर पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी पर नजर आएगा। दिल्ली और बिहार में मिली करारी हार के बाद मोदी के करिश्मे और शाह की रणनीतिक समझ पर सवाल उठने लगे थे लेकिन अब दोनों की स्थिति मजबूत होती नजर आएगी और अब बात करते हैं क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती सियासी हैसियत की। हमारा मानना है कि कांग्रेस का कमजोर होना देशहित में नहीं है। जो सियासी स्पेस कांग्रेस छोड़ती जा रही है उसे ममता बनर्जी व जयललिता सरीखे की नेता भरती जा रही हैं। पश्चिम बंगाल में मतदाताओं ने ममता बनर्जी पर दोबारा भरोसा जताया है और यह साफ संदेश दिया है कि वहां जनता के बीच जाकर जो काम करेगा, वही राज करेगा। तमिलनाडु में एमजीआर के बाद कोई सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरी बार लौटी है तो इसका श्रेय जयललिता को जाता है। जयललिता छठी बार सूबे की मुख्यमंत्री बनेंगी। जयललिता की जीत के पीछे उनकी कल्याणकारी योजनाओं का असर साफ दिखा। अम्मा कैंटीन, अम्मा औषधालय, राशनधारी कार्ड वालों को 20 किलो चावल, मुफ्त मिक्सर ग्राइंडर, दुधारू गाय, बकरियों को बांटना और महिलाओं के लिए मंगल-सूत्र के लिए चार ग्राम सोना देने जैसी योजनाएं रंग लाई हैं। केंद्र सरकार को भी विकासकारी योजनाओं के साथ कल्याणकारी योजनाओं पर अम्मा से सबक लेना चाहिए। लगातार दो चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी और जयललिता की केंद्र में धमक बढ़ना तय माना जा रहा है। केंद्र सरकार को तृणमूल और अन्नाद्रमुक से राज्यसभा में अटके पड़े जेटीएस समेत कई महत्वपूर्ण बिलों पर समर्थन की जरूरत पड़ेगी। कांग्रेस ने बंगाल में ममता और तमिलनाडु में जया के खिलाफ चुनाव लड़ा था। ऐसे में यह माना जा सकता है कि राज्यसभा में तृणमूल और अन्नाद्रमुक के रिश्ते कांग्रेस के साथ पहले जैसे रहना मुश्किल हैं। ऐसे में भाजपा को इसका फायदा हो सकता है क्योंकि पार्टी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। पार्टी को उम्मीद है कि ममता और जया आर्थिक सुधारों में केंद्र का साथ दे सकती हैं। इन दोनों राज्यों में न केवल इन दोनों नेताओं ने अपना जादू बरकरार रखा बल्कि नए कीर्तिमान भी स्थापित किए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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