Friday 13 May 2016

उत्तराखंड फ्लोर टेस्ट के दूरगामी परिणाम

उत्तराखंड में फ्लोर टेस्ट के बाद से ही कांग्रेस पार्टी का उत्साहित होना स्वाभाविक ही है। हरीश रावत का फिर मुख्यमंत्री बनना तय है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फ्लोर टेस्ट में रावत की जीत पर मुहर लगा दी। इसके बाद केंद्र सरकार ने कोर्ट के आदेश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश कर दी। मंगलवार को फ्लोर टेस्ट के दौरान 61 वोट पड़े, इनमें से 33 वोट रावत के पक्ष में पड़े। कांग्रेस को सदन में बहुमत तो येन-केन-प्रकारेण मिल गया लेकिन अब वह अपने बूते स्पष्ट बहुमत में नहीं रहेगी। इसका असर यह होगा कि उसे समर्थक दलों और विधायकों के आगे झुकना पड़ेगा। हरीश रावत को जो नए सहयोगी मिले हैं, वे दूसरी पार्टी के हैं। उन पर किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं होगी। ऐसे में उन्हें साधकर रखना चुनौतीपूर्ण होगा। अब तक अपने कुछ सहयोगी मंत्रियों से भी हरीश रावत का तालमेल बिगड़ गया है। अब जब उन्होंने रावत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है, ऐसे में उनको संतुष्ट करने के लिए भी अतिरिक्त उपाय करने जरूरी होंगे। इसके लिए अपने पास रखे मलाईदार माने जाने वाले विभागों को अपने कैबिनेट के मंत्रियों में बांटने पड़ सकते हैं। कांग्रेस को इस फ्लोर टेस्ट से एक तरह से नई संजीवनी मिली है। कांग्रेस को लग रहा है कि उत्तराखंड के नतीजों से आने वाले दिनों में गैर भाजपा सरकारों, खासकर कांग्रेस शासित राज्यों को नया जीवनदान मिल सकता है। पार्टी मान रही है कि इस पूरे प्रकरण से उसे परसेप्शन के स्तर पर फायदा होगा। जिस तरीके से भाजपा को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है, उसके बाद माना जा रहा है कि भाजपा सरकार अब कांग्रेस के दूसरे राज्यों पर हाथ डालने से हिचकेगी। दरअसल अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड की सरकार केंद्र सरकार का दूसरा शिकार बनी। माना जा रहा है कि उत्तराखंड के बाद केंद्र सरकार कांग्रेस शासित दूसरे राज्यों मसलन मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में तथाकथित संवैधानिक संकट खड़ा कर कांग्रेस सरकारों के अस्थिर करने से बचेगी। कांग्रेस के साथ-साथ न्यायपालिका से भी सरकार को जिस तरह से नसीहतें मिलीं, उससे भी भाजपा की इमेज को धक्का लगा है। देखना यह होगा कि जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं वहां पर कांग्रेस को कितनी सहानुभूति मिलती है। इस पूरे मामले में बहरहाल हरीश रावत की स्टिंग ऑपरेशनों से छवि जरूर खराब हुई है। इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सीबीआई बार-बार अब रावत को पूछताछ के बहाने परेशान कर सकती है। कांग्रेस के एक तबके का यह भी विचार चल रहा है कि हरीश रावत को अब हटाना बेहतर होगा और नया चेहरा लाकर अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में पार्टी व सरकार जुट जाएं। फ्लोर टेस्ट में हरीश रावत सरकार के पक्ष में बहुजन समाज पार्टी का वोट करना आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बनने वाले समीकरण को इंगित करता है। बेशक बसपा का ऐसा करना उसकी मजबूरी रही हो। पार्टी के पास सिर्प तीन ही विकल्प थे। एक, विश्वास मत के पक्ष में वोट करें। दो, विश्वास मत के विरोध में वोट डालें और तीसरा सदन से गैर हाजिर हों। आखिरी दो विकल्प भाजपा के लिए मददगार होते। सदन से गैर हाजिर होना भी भाजपा के लिए फायदेमंद होता, ऐसा करने से यह संदेश जाने का खतरा था कि बसपा ने भाजपा की मदद के लिए ऐसा किया। बहन जी यह कतई नहीं चाह रही थीं कि उस पर किसी तरह भाजपा की मदद करने का ठप्पा लगे। उनके लिए उत्तराखंड की राजनीति उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितना यूपी है। भाजपा से अपने को अलग दिखाने के लिए बसपा को विश्वास मत के पक्ष में वोट करना पड़ा। सबसे ज्यादा पूरे प्रकरण में भाजपा को नुकसान हुआ है। पार्टी की छवि भी खराब हुई और सत्ता की उम्मीद धराशायी हो गई। उन्हें कांग्रेस के अंदरुनी झगड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए था। हरीश रावत सरकार तो अपनी अंदरुनी सियासत की वजह से खुद--खुद गिर जाती।

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