Friday, 6 May 2016

तेल और कट्टरता का निर्यातक सऊदी अरब

पिछले दिनों मैंने न्यूयॉर्प टाइम्स के श्री निकोलस क्रिस्टॉफ का एक लेख जिसका शीर्षक थाö`तेल और कट्टरता का निर्यातक' पढ़ा। मैं उस लेख को पाठकों को ज्यूं का त्यूं प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि पाठकों को सऊदी अरब की असलियत का पता चले। श्री क्रिस्टॉफ लिखते हैंöहाल ही में कॉलेज के एक छात्र को अमेरिका में उस वक्त विमान से उतार दिया गया, जब वह विमान पर चढ़ने के बाद अपने परिजनों से फोन पर बात कर रहा था। उसने संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और वह अपनी खुशी परिवार वालों से साझा करना चाहता था। उसकी गलती सिर्प यह थी कि वह अरबी में बात कर रहा था। अमेरिका में इस वर्ष मुस्लिमों को विमान से ऐन वक्त पर उतार देने का यह छठा मामला है। राजनीतिक व्यवस्था में भी इस तरह के इस्लामोफोबिया (इस्लाम का भय) को अभिव्यक्त करने से गुरेज नहीं किया जा रहा है। मसलन राष्ट्रपति की उम्मीदवारों में शुमार डोनाल्ड ट्रंप ने मुस्लिमों के अमेरिका में प्रवेश पर अस्थायी प्रतिबंध की वकालत की है। हेड कूज मुस्लिम पड़ोसियों पर विशेष निगरानी की बात कर रहे हैं। वैसे ध्यान रहे, अमेरिका में एक हजार मुस्लिम पुलिस अधिकारी मौजूद हैं। तकरीबन 50 फीसदी अमेरिकियों ने प्रतिबंध और विशेष निगरानी का समर्थन किया है। कूटनीतिक तफसीलों में उलझे बगैर यह देखना चाहिए कि अस्थिरता फैलाने में सऊदी अरब किस तरह की घातक भूमिका निभा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह किस तरह से इस्लामिक दुनिया की छवि खराब कर रहा है। वास्तविकता यह है कि ट्रंप और कूज की तुलना में सऊदी अरब के नेता इस्लाम को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए हमें उनकी कट्टरता का उसी तरह से विरोध करना चाहिए, जैसा कि हम ट्रंप का विरोध करते हैं। 9/11 के हमले से जुड़ी जांच से संबंधित गुमशुदा 28 पृष्ठों को लेकर अमेरिका परेशान है। जिनमें इस हमले में सऊदी अधिकारियों की संलिप्तता की अपुष्ट जानकारियां थीं। मगर मैं यह बता सकता हूं कि जांच आयोग के एक अधिकारी ने मुझे बताया था कि 28 पृष्ठों की यह सामग्री भ्रमित करने वाली है और आयोग ने यह पाया था कि इस हमले की साजिश में सऊदी सरकार या वहां के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा वित्तीय मदद दिए जाने के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। सऊदी अरब को लेकर चिन्ता इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि उसने चरमपंथ, घृणा, स्त्री विरोध और शिया-सुन्नी विभाजन को बढ़ावा दिया। यही विभाजन अब पश्चिमी एशिया के गृहयुद्ध का सबब बना हुआ है। वास्तव में सऊदी अरब का नाम बदलकर किंगडम ऑफ बैकवर्डनेस (पिछड़ेपन का साम्राज्य) कर देना चाहिए। सऊदी अरब में महिलाओं के ड्राइविंग पर प्रतिबंध लगा हुआ है और कार की सवारी करने पर वे सीट बेल्ट नहीं लगा सकतीं। वहां सामूहिक बलात्कार की पीड़ित 19 वर्षीय युवती को दो सौ कोड़े मारने की सजा सुनाई जा चुकी है। हालांकि विरोध के बाद किंग ने उसे माफ कर दिया था। वहां सार्वजनिक चर्चों पर प्रतिबंध है और अल्पसंख्यक शियाओं को भारी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। सऊदी अरब में इस्लाम की शुरुआत हुई थी, इस लिहाज से मुस्लिम दुनिया में इसका बहुत प्रभाव है। इस्लाम पर इसके नजरिये को विशेष वैधता प्राप्त है। इसके मौलवियों की पहुंच दूर तक है। मीडिया उनके विचारों को दुनियाभर में फैलाता है। यही नहीं, यह देश घृणा के बीज बोने के लिए गरीब मुल्कों के मदरसों को भारी आर्थिक मदद भी पहुंचाता है। पाकिस्तान से लेकर माली तक सऊदी अरब की वित्तीय मदद से जगह-जगह मदरसे उग आए हैं, धार्मिक चरमपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं और आतंकी पैदा कर रहे हैं। विकिलीक्स के जरिये जारी हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दस्तावेजों से पता चला था कि पाकिस्तान में ऐसे चरमपंथी मदरसे गरीब परिवारों को 6500 डॉलर का इनाम देते हैं ताकि वे कम से कम अपने एक बेटे को वहां भेजें। साफ-साफ शब्दों में कहें तो सऊदी अरब इस्लामिक चरमपंथ और असहिष्णुता को दुनियाभर में वैधता प्रदान करने का काम कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों से मानों सऊदी अरब उलटी दिशा में चल रहा है। उसने यमन में बर्बर युद्ध की भी शुरुआत की थी। मैं यह कहना चाहता हूं कि सऊदी अरब हमारे गैस स्टेशन से कहीं कुछ अधिक है, यह इस्लामिक दुनिया में जहर का स्रोत है और उसकी कट्टरता हमारी कट्टरता को हवा देती है।

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