Wednesday 4 May 2016

खबरदार जो किसी धार्मिक समूह ने सत्ता को चुनौती दी

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश की सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। आए दिन वह नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं, चेतावनियां दे रहे हैं। हाल ही में शी जिनपिंग ने अफसरों से कहा है कि धर्म के नाम पर बहुत से लोग चीन में घुस रहे हैं, अफसरों को चाहिए कि वे उन पर नजर रखें। लोग अपने धर्म का पालन करते रहें, लेकिन सत्ता या सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी को चुनौती देने की कोशिश न करें। सरकारी मीडिया के मुताबिक जिनपिंग ने यह चेतावनी एक बैठक में दी। विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में धर्म का प्रबंधन कैसे करें? विषय पर यह बैठक आयोजित थी। राष्ट्रपति ने इस संबंध में बौद्ध और ईसाई सहित सभी धर्मों को मानने वालों के लिए गाइडलाइन भी जारी की। जिनपिंग ने कहाöसभी धार्मिक गुटों और समुदायों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की ही सत्ता स्वीकारनी होगी। इन्हें इसी सामाजिक और समाजवादी व्यवस्था और पार्टी की धार्मिक नीति को मानना होगा। जिनपिंग ने कहाöसभी धार्मिक समुदायों को चीन की सभ्यता, कानूनों और नियमों का पालन करना होगा। खुद को चीन के विकास और समाजवादी आधुनिकरण में लगना होगा। हालांकि उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक मामलों में दखल न देने का आश्वासन दिया है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी समाजवादी छवि का त्याग करते हुए उदार आर्थिक नीति अपनाई है। फिर भी नास्तिक विचारधारा को प्रमुखता देती है। इसका मानना है कि धर्म का प्रचार-प्रसार देश के भविष्य के लिए खतरा है। जिनपिंग की चेतावनी को इस नजर से भी देखा जा सकता है कि ईसाइयों की घुसपैठ के  बाद पोलैंड जैसे देशों में कम्युनिस्ट सत्ता का पतन हुआ। पिछले कुछ दशकों से चीन में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है। यहां करीब 6.5 करोड़ लोग उसे मानते हैं। ईसाई समूहों ने हाल में आरोप लगाया है कि कई गिरजाघरों पर से क्रॉस का चिन्ह सरकार ने हटवा दिया है। शायद इसी उद्देश्य से चीन ने एक नया कानून बनाकर विदेशी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर शिकंजा कस दिया है। अब इन्हें हर समय पुलिस की निगरानी में रहना होगा। उन्हें मिलने वाले फंड का स्रोत बताना होगा। आलोचकों ने इसे एनजीओ पर सरकारी अंकुश बताया है। जबकि चीनी सरकार ने कहा है कि ऐसा करना लंबे समय से विचाराधीन था। चीन में 7000 से ज्यादा विदेशी एनजीओ काम कर रहे हैं। इस पर अमेरिका ने कहा है कि इससे सिविल सोसाइटी को जगह मिलना और कम होगा। चीन और अमेरिका के बीच आदान-प्रदान में भी बाधा आएगी। जबकि बीजिंग का कहना है कि लंबे समय से चीन में विदेशी संगठन बिना किसी नियंत्रण के काम कर रहे थे। नए कानून में उनके व्यवहार की सीमाएं तय की गई हैं। भारत में भी यही समस्याएं मुंह फाड़ रही हैं। हमारे वामदलों, तथाकथित धर्मनिरपेक्षों का चीन की ताजा सख्ती पर क्या कहना है?

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