Sunday, 29 May 2016

पश्चिम बंगाल में खिसकता वामदलों का जनाधार

लाल गढ़ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में हालिया विधानसभा में माकपा नीत वाम मोर्चे की बुरी हार के बाद माकपा के एक पोलित ब्यूरो सदस्य ने स्वीकार किया है कि कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन पार्टी के खिलाफ गया और अगर वह अपने वोट बैंक में टूट-फूट रोकने में विफल रही तो उसके सियासी वजूद पर गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे। पश्चिम बंगाल में सत्ता में तृणमूल कांग्रेस को डिगाने के लिए वाम मोर्चे ने अपनी विचारधारा को एक किनारे करते हुए सियासी दुश्मन मानी जाने वाली कांग्रेस से हाथ मिलाया, लेकिन इस पर भी उसे चुनाव में सबसे ज्यादा खोना पड़ा। उसको 2011 की 62 सीटों में से खिसककर इस बार महज 32 सीटें ही मिल सकीं। माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य व पूर्व सांसद हन्नान मुल्ला ने कहा, अगर हम अपने वोट बैंक और जनाधार में और क्षरण को नहीं रोक पाए तो हम बंगाल में माकपा और वामपंथ के वजूद पर गंभीर सवाल का सामना करेंगे। हम न सिर्फ लोगों का मिजाज और नब्ज पहचानने में नाकाम रहे बल्कि पिछले पांच साल में अपनी खोई ताकत वापस पाने में भी असफल रहे हैं। मुल्ला ने कहा कि लोगों ने कांग्रेस के साथ वामपंथ का गठबंधन स्वीकार नहीं किया। हम इससे इंकार नहीं कर सकते कि लोगों ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और औद्योगिकीकरण के मुद्दों के बावजूद बड़ी संख्या में ममता बनर्जी और तृणमूल को वोट दिया। इसके मुकाबले 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ हद तक अपना पभाव खो चुकी भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बेहतर पदर्शन किया है। इस बार उसने 70 से अधिक सीटों पर विपक्षी वाम मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन का खेल बिगाड़ने का काम किया है। प. बंगाल में भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में 17.5 फीसदी वोट की तुलना में विधानसभा चुनावों में 10.2 फीसदी मत मिले लेकिन पहली बार पार्टी ने इस राज्य में अपने दमखम पर चुनाव लड़कर तीन सीटें हासिल की हैं। इससे पहले भाजपा 2011 में उपचुनावों में दो बार जीत चुकी है और उसका मत फीसद 4.06 रहा था। प. बंगाल में ऐसा लगता है कि वाम नेतृत्व अपना जनाधार बहाल कर पाने में नाकाम रहा है। वृंदा करात ने बताया कि पार्टी नेतृत्व माकपा के खराब पदर्शन और बंगाल इकाई की चुनावी दशा का विश्लेषण करेगा जिससे सही स्थिति का पता चल सके और पार्टी जनाधार बहाल करने की रणनीति बनाई जा सके। माकपा की प. बंगाल राज्य समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि परिणाम इंगित करते हैं कि नेतृत्व परिवर्तन से लेकर विभिन्न स्तरों पर जो नए चेहरे लाने के कदम उठाए वह आमजन तक पहुंचने में हमें मदद देने में नाकाम रहे।

-अनिल नरेन्द्र

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