Saturday 28 May 2016

मोदी सरकार के दो वर्ष ः कुछ खट्टे, कुछ मीठे परिणाम

पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के दो साल पूरे होने पर इन दिनों खूब समीक्षा हो रही है। मोदी सरकार ने 26 मई 2014 को शपथ ली थी। यह स्वीकार करना होगा कि मोदी सरकार के बारे में आम राय यही उभरी है कि बेशक कुछ चुनावी वादे पूरे करने में भले ही इस सरकार का रिकार्ड बहुत सकारात्मक न रहा हो पर आमतौर पर जनता की नजरों में इसकी पो-एक्टिव छवि बनी है। कुछ मीडिया हाउस इस सरकार की बखियां उधेड़ रहे हैं तो कुछ गुणगान करने में लगे हैं। मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर सभी मंत्री अपनी-अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं लेकिन यह भी कहना होगा कि बेशक इस सरकार ने बहुत-सी विकासकारी योजनाएं चालू की हैं और इनका परिणाम भी आएगा पर इन योजनाओं के परिणाम आने में वक्त लगता है। कई साल लगेंगे सकारात्मक परिणाम आने में। दूसरी ओर हमें यह कहने में भी संकोच नहीं कि पूर्ववर्ती सरकार ने जनता की आदतें खराब कर दी हैं। जनता अब बिना मेहनत किए, पतीक्षा किए तुरंत रिजल्ट चाहती है। अधिकतर जनता को रोजी-रोटी से मतलब है। वह महंगाई से निजात पाना चाहती है, सुरक्षा चाहती है, रोजगार चाहिए (वह भी तुरंत) और इन क्षेत्रों में वह मोदी सरकार से नाखुश है। वह इस सरकार से ज्यादा कल्याणकारी स्कीमें चाहती है। हाल में संपन्न हुए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में हमने देखा कि किस तरह जयललिता ने केवल ऐसी कल्याणकारी योजनाओं पर अपना सारा ध्यान केंद्रित किया। अम्मा ब्रांड आटा, अम्मा पैंटीन, अम्मा साड़ी, अम्मा क्लीनिक इत्यादि इत्यादी ऐसी योजनाएं थीं जिससे जनता की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होती हैं। इसी का लाभ भी उन्हें मिला। जब से नरेन्द्र मोदी ने पदभार संभाला है तभी से देश के कुछ वर्ग जिनमें राजनीतिक विरोधी भी हैं, अल्प संख्यकों का एक वर्ग, पत्रकार और मीडिया से जुड़ा एक वर्ग, कुछ बुद्धिजीवी इस सरकार के खिलाफ हैं। इनकी वजह से जनता के एक वर्ग में खासकर अल्पसंख्यक वर्ग में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। देश कुछ हद तक विभाजित हुआ है। इस सरकार को  असुरक्षा की भावना को कम करने, इस खाई को पाटने के लिए, देश को एकजुट करने के लिए और ठोस पयास करने होंगे। मोदी सरकार के दो साल से लोगों में निराशा तो है लेकिन गुस्सा नहीं है और अधिकतर कहते हैं कि दो साल का वक्त बहुत कम होता है, हमें नतीजे आने की पतीक्षा करनी होगी। हमें यह कहने में संकोच नहीं कि जनता की उम्मीदें जरूरत से ज्यादा बढ़ गई थीं। अच्छे दिनों का जो वादा किया गया था वह अभी तक आए तो नहीं लेकिन उन्हें लाने की कोशिश जरूर हो रही है। उसे जमीन पर उतरने में वक्त लगेगा। किसी भी केंद्र सरकार के काम जमीनी स्तर पर दिखने में राज्यों की बड़ी भूमिका होती है क्योंकि ज्यादातर स्कीमें राज्यों को ही लागू करनी होती हैं। मोदी सरकार को राज्यों के साथ अपना रैपो कायम करने के लिए बेहतर तालमेल बिठाने की जरूरत है। एक-दो आतंकी हमलों को छोड़ दें तो घरेलू मोर्चे पर मोटे तौर पर देश में शांति रही। मीडिया व अन्य संस्थाओं द्वारा गिनाई जाने वाली नाकामियों को सिरे से खारिज करना सही नहीं है और इन पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर उद्योग मंडल एसोचैम ने सरकार को आगाह किया है कि वह संभल जाए, क्योंकि टेक्स विवादों और बैंकिंग पणाली में फंसे हुए कर्ज की भारी-भरकम राशि काफी परेशान करने वाली है। कारोबारी मंदी को ध्यान में रखते हुए इस मसले पर बढ़ती चिंताओं पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इस मामले में सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों को काफी सजगता से काम करने की जरूरत है। इसके अलावा टैक्स विवादों के निस्तारण, कृषि सुधार, विनिवेश और महत्वपूर्ण जीएसटी विधेयक पर सरकार को अभी बहुत काम करने की जरूरत है। यानी फिलहाल राजग सरकार का `कार्य पगति पर है' वाली सरकार तब तक ठीक होगी, जब तक कि रेलवे और राजमार्ग क्षेत्रों में किए गए ठोस कामों के परिणाम सामने नहीं आते। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि नरेन्द्र मोदी ने दुनिया की नजरों में भारतीयों की इज्जत बढ़ाई है उनका अब दुनिया में सम्मान होना शुरू हो गया है और भारत एक उभरती शक्ति बन कर उभरा है। अंगेजी अखबार इकोनामिक टाइम्स और बिग डेटा फर्म मवने मैग्नेट ने एक ऑन लाइन सर्वे कर मोदी सरकार के दो वर्षों के कामकाज के बारे में लोगों की राय ली। इस सर्वे के लिए सोशल मीडिया पर लोगों से बातचीत, ब्लॉग्स और न्यूज साइट्स पर टॉपिक्स को आधार बनाकर रिजल्ट निकाला गया। यह स्टडी एक जून 2015 से लेकर 20 अपैल 2016 तक इंटरनेट पर 15000 से ज्यादा बातचीतों पर आधारित है। इसके मुताबिक मोदी सरकार की पहली एनिवर्सिरी पर 48 पतिशत लोगों का सकारात्मक रुख देखा गया। लेकिन इस साल यह 8 पतिशत नेगेटिव हो गया। स्टडी के मुताबिक सरकार पर हुई बातचीत  में 46 पतिशत लोग सकारात्मक दिखे, वहीं 54 पतिशत नाखुश। लोगों का मोदी सरकार की तरफ खिंचाव पहले साल के +48 पतिशत के मुकाबले दूसरे साल -8 पतिशत तक गिर गया है। मोदी सरकार से हम उम्मीद करते हैं कि उसे इस निराशा का ज्ञान होगा। आगामी एक-दो साल मेक या ब्रेक मोमेंट होगा। इस दौरान न सिर्फ वादों को पूरा करने के लिए फुल स्पीड लानी होगी बल्कि वह जमीन पर fिदखे इसके लिए भी और पयास करने होंगे। अगला एक साल ही 2019 में मोदी सरकार की किस्मत तय करेगा। अगले एक साल में 5 ऐसे मुद्दे हैं, बिंदु हैं जो मोदी सरकार के लिए बहुत अहम हैं। इन दो वर्षों में कहीं न कहीं यह आवाज उठने लगी कि सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर उतने बोल्ड रिफार्म नहीं उठाए, जितनी अपेक्षा थी। ऐसे में अगले साल जीटीएस सहित लेबर, बैंक, लैंड रिफार्म जैसे मोर्चों पर सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे। दो साल बाद भी आर्थिक विकास जोर नहीं पकड़ सका है। एक्सपोर्ट गिरा हुआ है। रूरल इकॉनिमी खस्ता हाल में है और नए पोजेक्ट आगे नहीं बढ़ रहे हैं। बहरहाल दो साल पूरा करने तक सरकार ऐसी नेगेटिविटी और वैश्विक संकट (आर्थिक) के बीच यह संदेश देने में कुछ हद तक सफल रही कि उसने जो कदम उठाए उसका असर जल्द दिखने लगेगा। ऐसे में अगले साल में वह इन दावों पर कितना खरा उतरती है उससे सरकार का भविष्य तय होगा। यूपीए सरकार में हुए घोटालों के बाद मोदी सरकार सत्ता में आई है। उसने सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफलता पाई है। पर अब आरोपों से काम नहीं चलेगा वह हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है। अगर ठोस कार्रवाई इन घोटालों पर नहीं हुई तो उसकी मंशा पर सवाल उठेंगे। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मोदी सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल के नतीजे खट्टे-मीठे रहे हैं।

अनिल नरेन्द्र

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