Tuesday, 26 June 2018

अब बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 3000 करोड़ का घोटाला

सरकारी बैंकों में जिस तरह गड़बड़ियां और घोटालों की खबरें आ रही हैं वह सभी के लिए भारी चिन्ता का विषय है। यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पीएनबी में हुए घोटाले के बाद आने वाले दिनों में बैंक घोटाले होंगे या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जिस तरह से पुराने बैंकिंग घोटाले सामने आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अभी कई और घोटाले सामने आएंगे। 83 वर्ष पुराने बैंक ऑफ महाराष्ट्र के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) रवीन्द्र मराठे, कार्यकारी निदेशक राजेन्द्र गुप्ता और पूर्व सीएमडी निदेशक सुशील सहित अनेक लोगों को पुणे की डीएसके समूह को फर्जी तरीके से कर्ज देने और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तारी बैंकिंग व्यवस्था के संस्थागत क्षरण को ही बताती है। इस मामले में डेवलपर डीएस कुलकर्णी और उसकी पत्नी को पहले ही गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह तो पुलिस और आर्थिक अपराध शाखा का काम है, जिसने गड़बड़ी सामने आने और शिकायत दर्ज होने के बाद कार्रवाई की। असल महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि जो बैंक छोटे-छोटे निवेशकों को आवास, वाहन कर्ज या छात्र लोन वगैरह के लिए दर्जनों चक्कर लगवाते हैं, तरह-तरह की औपचारिकताएं पूरी करवाते हैं। वे एक बिल्डर को कैसे कई हजार करोड़ रुपए का कर्ज न केवल देते हैं, वह भी बिना चुकाए साफ बच निकलने का तरीका भी बताते हैं। चिन्ता का विषय यह है कि आखिर रिजर्व बैंक, सरकारी बैंकों का नियामक तंत्र इन गड़बड़ियों और धोखाधड़ी को रोकने में नाकाम कैसे हो रहा है? डूबते कर्ज के कारण बैंकों की हालत खस्ताहाल होती जा रही है और इसके चलते 21 सार्वजनिक बैंकों में से 11 को रिजर्व बैंक ने त्वरित सुधार कार्रवाई प्रणाली के अंतर्गत रखा है। इसके अलावा बैंक की ओर से बढ़ाई गई प्रोविजनिंग भी इसका ही कारण है। इसका मतलब है कि बैंक अप्रैल-मई-जून में भी डूबे कर्ज बढ़ने की आशंका जता रहा है। सार्वजनिक बैंकों का सामूहिक शुद्ध घाटा वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 85,370 करोड़ रुपए हो गया है। घोटाले की सबसे ज्यादा मार पंजाब नेशनल बैंक झेल रहा है जबकि आईडीबीआई बैंक इस मामले में दूसरे पायदान पर है। उपभोक्ता अपने पैसों को बैंक में सुरक्षित मानता है। लेकिन इस घाटे से बैंकों की विश्वसनीयता लगातार घट रही है। इससे दोहरा नुकसान हो रहा है, पहला कि लोग अपना पैसा अब बैंकों की बजाय घर में रखना ज्यादा बेहतर मानते हैं और दूसरा पैसों की कमी की वजह से यह पैसा व्यवस्था में नहीं आता और आर्थिक प्रगति प्रभावित हो रही है। लोगों का भरोसा कम होने से बैंक जमा पूंजी के प्रवाह में कमी आ रही है। एनपीए से डरे बैंक लोन देने में भी अब हिचकिचाते हैं। इससे महंगाई बढ़ने का भी खतरा है।

-अनिल नरेन्द्र

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