Wednesday, 13 June 2018

सार्वजनिक बैंकों की हालत लगातार खस्ता होती जा रही है

सरकारी बैंकों की हालत अत्यंत चिन्ताजनक बनी हुई है। एक तरफ बढ़ता एनपीए (डूबा कर्ज) तो वहीं दूसरी तरफ हजारों करोड़ का घाटा हो रहा है। इस लिहाज से हम अपनी अर्थव्यवस्था की सेहत को लगातार गिरती मान सकते हैं। एक दिसम्बर 2016 में देशों के बैंकों में जो एनपीए (डूबा कर्ज) आठ लाख, 40 हजार, 900 करोड़ था वो 31 मार्च 2018 को बढ़कर 10 लाख, 25 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। इनमें चार लाख करोड़ देश के बड़े उद्योगपतियों के भी डूबे कर्ज शामिल हैं। हमारी अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सैक्टर की अफरातफरी देखकर विदेशी निवेशक भी जनवरी से मार्च 2018 के बीच 32 हजार 78 करोड़ रुपए निकाल चुके हैं और यह निकलना जारी है। अब चौंकाने वाली खबर आई है कि सार्वजनिक बैंकों का सामूहिक शुद्ध घाटा वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 85,370 करोड़ रुपए हो गया है। घोटाले की मार झेल रहे पंजाब नेशनल बैंक को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ जबकि आईडीबीआई बैंक इस मामले में दूसरे पायदान पर है। बैंकों द्वारा जारी तिमाही आंकड़ों के मुताबिक वित्तवर्ष के दौरान इंडियन बैंक और विजया बैंक को छोड़कर शेष बैंकों को कुल मिलाकर 85,370 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इससे पहले वित्तवर्ष 2016-17 के दौरान इन 21 बैंकों को कुल 473.72 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था। आंकड़ों में बताया गया है कि 14 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का दंश झेल रहे पंजाब नेशनल बैंक को इस बार सबसे ज्यादा घाटा हुआ है, जबकि वित्तवर्ष 2016-17 में उसने 1,324.8 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था। सार्वजनिक बैंकों की दुर्दशा देखते हुए अब लोग अपने पैसों को बैंकों में सुरक्षित नहीं मानते। यही वजह है कि इस समय देश की जनता के हाथ में नकदी का स्तर 18.5 लाख रुपए से ऊपर पहुंच गया है। यह अब तक का अधिकतम स्तर है। यह नोटबंदी के दौर की तुलना में दोगुने से अधिक है। नोटबंदी के बाद जनता के हाथ में मुद्रा सिमट कर करीब 7.8 लाख करोड़ रुपए रह गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। आरबीआई के मुताबिक चलन में मौजूदा कुल मुद्रा में से बैंकों के पास पड़ी नकदी को घटा देने पर पता चलता है कि चलन में कितनी मुद्रा लोगों के हाथों में पड़ी है। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले देश के विभिन्न हिस्सों में नकदी संकट की खबरें आई थीं जबकि इसके विपरीत लोगों के पास बड़ी मात्रा में नकदी मौजूद है। गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद करीब 99 प्रतिशत मुद्रा बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गई थी। ताजा आंकड़ों के मुताबिक लगता है कि जनता का बैंकों से विश्वास उठता जा रहा है और वह अपना पैसा घरों में ज्यादा सुरक्षित मानती है। इससे तमाम औद्योगिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं और बैंकों की हालत लगातार खस्ता होती जा रही है।

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