Friday, 15 June 2018

गन्ना किसानों को पैकेज से कितनी राहत?

केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों को और चीनी मिल मालिकों को राहत देने के लिए 8500 करोड़ रुपए का जो पैकेज जारी किया है, वह किसानों के बकाये भुगतान के अलावा चीनी मिलों की क्षमता बढ़ाने आदि पर केंद्रित है, जिससे बेशक बीते कुछ समय से जारी असमंजस दूर होगी। हालांकि इस समय कहना कठिन है किन्तु है कि इस पैकेज से स्थिति कितनी सुधरेगी। इस समय चीनी उद्योग संकट से गुजर रहा है। भारी उत्पादन एवं ज्यादा स्टॉक होने के कारण चीनी के दाम बाजार में काफी गिर गए हैं। भारत में चीनी की खपत 2.50 करोड़ टन के आसपास है, जबकि उत्पादन 3.15 करोड़ टन से ज्यादा हो गया है। मिलों के लिए गन्ना किसानों का करीब 22 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना क"िन हो गया है। इस पैकेज से चीनी मिलों की हालत तो सुधरेगी पर इसमें गन्ना किसानों के उद्धार के लिए बहुत ज्यादा रकम नजर नहीं आती। इसी पैसे से चीनी मिलों को एथनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए सस्ता कर्ज मुहैया कराया जाना है। चीनी का 30 लाख टन बफर स्टॉक भी बनाया जाना है। इस पर 12 सौ करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के सिर्प एक हजार पांच सौ चालीस करोड़ रुपए रखे गए हैं। गन्ना किसानों के लिए यह फौरी राहत से कुछ ज्यादा नहीं है। हालांकि सहायता राशि से मिल मालिकों को बड़ी राहत मिलेगी। चीनी मिलों पर किसानों का बकाया कोई आज की समस्या नहीं है। मिल मालिकों का हमेशा से यह रवैया रहा है कि गन्ना किसानों को कभी समय से भुगतान नहीं किया जाता। सालोंसाल किसान बकाये के इंताजर में गुजार देते हैं। आंदोलन व कई बार आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं। मिलों के लिए गन्ना किसानों का करीब 22 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना क"िन हो गया है तो सबसे पहली जरूरत मूल्य को उस स्तर पर लाने की है जिससे किसानों को कम से कम उनकी लागत तो मिले। चूंकि गन्ना किसानों को बकाया चीनी मिलों के जरिये ही होना है, ऐसे में इसकी गारंटी होनी चाहिए कि उनको बकाये का पूरा भुगतान समय पर हो। सरकार इस पैकेज को ऐतिहासिक बता रही है जबकि इसके बजाय उसका यह फैसला चीनी उद्योग से जुड़े विरोधाभास और सरकार की बदलती प्रतिबद्धता का उदाहरण है। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब उसने देश में चीनी का स्टॉक होते हुए भी उपभोक्ताओं के हित में सस्ती चीनी का आयात किया था। लेकिन अब गन्ना उत्पादकों के हित में आनन-फानन आयात शुल्क दोगुना कर निर्यात शुल्क खत्म कर दिया है। मुक्त अर्थनीति के दौर में यह सरकारी संरक्षणवाद का बेहतर उदाहरण ही नहीं, बल्कि इसका भी प्रमाण है कि सरकार संभवत इस क्षेत्र की समस्या को समझना ही नहीं चाहती। गन्ना उत्पादकों की त्रासदी यह है कि अधिक उत्पादन के बावजूद उन्हें न तो इनका लाभकारी मूल्य मिल पाता है और न ही मिलों से समय पर पैसा मिलता है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment