Thursday 14 June 2018

ट्रंप की शानदार उपलब्धि ः किम जोंग उन को वार्ता टेबल पर लाना

अभी चन्द महीने पहले की ही बात है, दहशत पूरे एशिया पर हावी थी। उत्तर कोरिया एक के बाद एक परमाणु बम और इंटरकॉटिनेंटल मिसाइलें दाग रहा था और आए दिन वह अमेरिका को धमकियां देता था कि हम तुम्हें तबाह कर देंगे। दूसरी तरफ अमेरिका की धमकियों से ऐसा लग रहा था कि उसके बमवर्षक बस उत्तर कोरिया पर हमला बोलने ही वाले हैं। लेकिन समय ऐसा पलटा कि करीब 70 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर अमेरिका और उत्तर कोरिया के नेता मंगलवार को मिले तो दुनियाभर में शांति कायम रहने की उम्मीद को नए पंख  लगा दिए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नॉर्थ कोरिया के नेता किम जोंग उन के बीच करीब 45 मिनट तक ऐतिहासिक शिविर वार्ता हुई। सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन की मुलाकात के पीछे सम्पूर्ण विश्व की नजर लगी हुई थी तो यह बिल्कुल स्वाभाविक था। पिछले कई सालों से विश्व का यह सबसे खतरनाक क्षेत्र बना हुआ था। उत्तर कोरिया द्वारा लगातार नाभिकीय परीक्षणों से केवल उसी प्रायद्वीप में नहीं बल्कि पूरे विश्व में हड़कंप मचा हुआ था। तनाव के इस माहौल में अचानक ही समझदारी कहां से पसरी यह कहना तो मुश्किल है पर मंगलवार को Eिसगापुर में जब उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते पर हस्ताक्षर किए तो बहुत सारे मिथक टूट गए। निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक समझौता था, ऐतिहासिक मौका भी। उत्तर कोरिया ने वादा किया है कि वह बहुत जल्द अपने परमाणु हथियारों के खात्मे की शुरुआत करेगा। हालांकि जिस सहमति पर दोनों ने दस्तखत किए हैं उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि परमाणु हथियारों के खात्मे यानि डी न्यूक्लियराइजेशन का क्या अर्थ है? यह भी कहा जा रहा है कि दोनों ही देश इस शब्द की अलग-अलग व्याख्या कर सकते हैं। लेकिन फिलहाल यह तकनीकी मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि दोनों देशों के नेता एक साथ बैठे, दोनों ने पांच घंटे तक बात की और बातचीत बड़े ही आशावादी माहौल में खत्म हुई। इस शांतिपूर्ण संबंधों की मंजिल तक पहुंचाने के लिए दोनों पक्षों को अभी लंबा सफर तय करना होगा। लेकिन बावजूद इसके यह मुलाकात एक ऐसी शुरुआत है जिसे कूटनीति के स्तर पर ट्रंप के समूचे शासनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। उत्तर कोरिया पर लगे सख्त अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों ने भी इसके पीछे निश्चय ही एक अहम भूमिका निभाई होगी। निश्चित रूप से तनाव का इतिहास पीछे छूटता दिख रहा है। लेकिन पूरी तरह पीछे वह छूटेगा यह दोनों देशों पर निर्भर है। किम जोंग उन को अपनी बात पर कायम रहना पड़ेगा और समझौते को पूरी तरह लागू करना होगा तभी यह समझौता सही मायनों में ऐतिहासिक रहेगा।

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