Sunday, 3 June 2018

जब सीमा पर जनाजे उठ रहे हों तो शांति वार्ता कैसे हो सकती है

मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के अवसर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ कर दिया कि जब तक सीमा पर लोग मारे जाते रहेंगे, जनाजे उठते रहेंगे, तब तक पाकिस्तान के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं होगी। उन्होंने साफ कहा कि जब तक आतंकवाद को पड़ोसी से मदद मिलती रहेगी, वार्ता नामुमकिन है। पाकिस्तान को यह दो टूक संदेश देना होगा इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की ओर से यह संकेत दिए जा रहे हैं कि वह भारत से बातचीत को तैयार है। चूंकि यह संकेत खुद पाकिस्तान सेना पमुख के हवाले से दिया गया इसलिए यह रेखांकित करना और भी जरूरी था कि भारत इसकी अनदेखी करने को तैयार नहीं कि सीमा पर उत्पात मचाने के साथ जम्मू-कश्मीर में किस तरह आतंकियों की घुसपैठ कराई जा रही है। आखिर पाकिस्तान यह सोच भी कैसे सकता है कि उसकी ओर से आतंकियों की खेप भेजने के बाद भी भारत उससे बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा? आतंक और बातचीत दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। सुषमा स्वराज के इस तर्प  के पक्ष में यो तो बहुत सारे वाकए गिनाए जा सकते हैं, पर उनके बयान के एक रोज पहले कश्मीर में हुई दो-तीन घटनाओं को ताजा संदर्भ में देखा जा सकता है। पुलवामा में सैन्य शिविर पर रविवार रात आतंकी हमला हुआ, जिसमें सेना के एक जवान और एक असैन्य नागरिक की जान चली गई। फिर शोपियां जिले में सोमवार को आतंकियों द्वारा किए गए विस्फोट में तीन सैनिक घायल हो गए। उधर अनंतनाग जिले में आतंकियों ने एक बैंक से 1,70,000 से अधिक की रकम लूट ली और गार्ड की राइफल लेकर फरार हो गए। यह भी गौरतलब है कि यह घटनाएं ऐसे वक्त हुई हैं जब रमजान के मद्देनजर केंद्र ने राज्य में सैन्य अभियान पर रोक लगा रखी है। यही नहीं पिछले दिनों सेना पमुख ने कहा कि अगर रमजान के दौरान शांति बनी रहेगी तो सैन्य अभियान पर रोक की अवधि आगे बढ़ाई जा सकती है। ताजा आतंकवादी घटनाओं से जाहिर है कि कौन लोग शांति नहीं चाहते। पिछले तीन-चार सालों में संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं में जैसी तेजी रही है। उसके तो मद्देनजर दोनों देशों के बीच बातचीत होना मुश्किल हो गया है। रूस के उफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान पुतिन की पहल पर पाकिस्तान के तत्कालीन पधानमंत्री नवाज शरीफ से पधानमंत्री मोदी की बातचीत हुई थी। उसमें संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं न होने देने और सरहद पर शांति सुनिश्चित करने की सहमति भी बनी थी। मगर नियंत्रण रेखा पर दोनों तरफ के आला फौजी अफसरों की बैठक से ज्यादा कुछ नहीं हो पाया। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी चाहता है कि दोनों देशों में बातचीत हो। सवाल अलग-अलग नजरिए का भी है कि किसी भी सूरत में पाक से बातचीत होनी भी चाहिए या नहीं? बातचीत तभी किसी सार्थक नतीजे पर पहुंच सकती है जब इसके लिए पहले अनुकूल माहौल हो।

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