Wednesday, 31 July 2019

पाक अखबारों में इमरान की अमेरिका यात्रा बेहद सफल रही

पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अखबारों में इस हफ्ते इमरान खान की अमेरिका यात्रा से जुड़ी खबर सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही। इमरान खान पिछले हफ्ते तीन दिनों के अमेरिकी दौरे पर गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी मुलाकात के बाद ट्रंप ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत के पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे कश्मीर के मामले में मध्यस्थता करने को कहा था। ट्रंप के इस बयान के फौरन बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन कर दिया। लेकिन जाहिर है कि ये बात इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं थी। अखबार एक्सपेस के अनुसार पाकिस्तान लौटने के बाद इस्लामाबाद हवाई अड्डे पर जमा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संबोधित करते हुए इमरान ने कहा आज लगा है कि मैं विदेश यात्रा करके नहीं बल्कि वर्ल्ड कप जीतकर लौटा हूं। इमरान खान ने खुद और उनकी पार्टी ने तो इसे ऐतिहासिक और किसी भी पाकिस्तानी नेता का सबसे सफल अमेरिकी दौरा करार दिया लेकिन पूरे हफ्ते पाकिस्तानी मीडिया में इसी बात पर चर्चा होती रही कि आखिर इमरान को अमेरिकी दौरे से क्या हासिल हुआ? अखबार एक्सपेस ने सुर्खी लगाई हैö कश्मीर समस्या पर दुनिया सकिय, चीन भी मध्यस्थता का समर्थक। अखबार के अनुसार कश्मीर समस्या पर पूरी दुनिया सकीय हो गई है। चीन ने अमेरिका के मध्यस्थता के पस्ताव पर स्वागत करते हुए इसके समर्थन की घोषणा की है। अखबार के अनुसार चीनी विदेश मंत्रालय की पवक्ता फुनइंग ने कहा कि चीन भारत और पाकिस्तान दोनों का पड़ोसी देश है। इसलिए चीन की दिली इच्छा है कि दोनों देश ही कश्मीर समस्या का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करें। अखबार के अनुसार अमेरिका के मध्यस्थता के पस्ताव का चीन के जरिए स्वागत किया जाना भारत के लिए एक कूटनीतिक धोखा है। अखबार दुनिया ने सुर्खी लगाई है कि भारत की एक और कूटनीति हार, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने का खतरा। कश्मीरियों का आंदोलन सफलता की ओर बढ़ने लगा।  वह लिखता है कि राष्ट्रपति ट्रंप के कश्मीर के संबंध में दिए गए बयान से भारतीय संसद में भूकंप आ गया। विदेश मंत्री जय शंकर ने भले ही ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया है लेकिन मोदी सरकार अभी दबाव में है। अखबार नवा--वक्त के अनुसार अमेरिका का मानना है कि इमरान-ट्रंप की मुलाकात के दौरान किए गए वादों को पूरा करने का वक्त आ गया है। अखबार लिखता है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय की पवक्ता मार्गन आटोगस ने वाशिंगटन में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि इमरान खान और डोनाल्ड ट्रंप की पहली मुलाकात कामयाब रही और अब वक्त आ गया है कि इस मुलाकात के वक्त किए गए वादों को पूरा किया जाए और आगे बढ़ा जाए। नवा--वक्त ही में छपी एक खबर के अनुसार अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए सैन्य मदद बहाल कर दी है। अमेरिका अब पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के लिए 12 करोड़ 50 लाख डालर और लाजिस्टिक मदद करेगा।

-अनिल नरेन्द्र

भ्रष्ट अधिकारियों पर सर्जिकल स्ट्राइक-2 की तैयारी

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्ट और सुस्त अधिकारियों पर सर्जिकल स्ट्राइक जारी रहेगी। पिछले महीने वित्त सेवा से जुड़े अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई से यह सर्जिकल स्ट्राइक शुरू हुई।  सरकार ने राजस्व विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न के आरोपों में बाहर का रास्ता दिखाया था। बेशक यह जरूरी कदम है और सराहनीय भी। इन अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों के विस्तार में जाएं तो पता चलता है कि ये सारे मामले न सिर्प गंभीर हैं बल्कि पूरी व्यवस्था सारी जानकारी और मामलों की गंभीरता को समझते हुए भी लगातार चल रही थी। उदाहरण के तौर पर आप एक आयकर आयुक्त का मामला ही लें। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप सही पाए गए थे और उन आरोपों के कारण उन्हें दस साल पहले ही निलंबित कर दिया गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार कानून के तहत मामला दर्ज कराया गया जो अभी तक चल रहा है। इसी केस से हमें पता चलता है कि भ्रष्टाचार रोकने की हमारी व्यवस्था में कितनी खामियां हैं। जब किसी कर्मचारी को निलंबित करके उसके खिलाफ मामला चलाया जाता है तो उसे इस निलंबन के दौरान उसके वेतन का एक हिस्सा तब तक दिया जाता है जब तक उसके मामले में अंतिम फैसला न हो जाए। दुखद पहलू यह है कि इस मामले में अंतिम फैसला पिछले दस साल से लटका हुआ था। पिछले महीने भ्रष्ट अधिकारियों पर सर्जिकल स्ट्राइक का दूसरा भाग अब उन करप्ट आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ एक्शन की तैयारी है। सूत्रों के अनुसार पीएमओ ने ऐसे 200 अधिकारियों के खिलाफ करप्शन और दूसरे मामलों में की गई शिकायतों का जल्द से जल्द निपटरा करने को कहा है। जांच पूरी होने के बाद उन्हें सेवा से हटाया जा सकता है। पिछले दिनों अधिकारियों के साथ मीटिंग में पीएम ने करप्शन के लंबित मामलों पर अपनी चिंता जाहिर की थी। पीएम ने मंत्रालय और विभागों से आने वाली भ्रष्टाचार की शिकायत और उसके खिलाफ एक्शन लेने में सुस्ती पर गहरा ऐतराज जताया। रेलवेपोस्टल, सप्लाई समेत आधे दर्जन मंत्रालयों की भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायत की सूची पीएमओ को भेजी गई। पीएम ने पगति समीक्षा बैठक में कहा कि यह चिंता की बात है कि मंत्रालय स्तर पर शिकायत न सुनने के कारण लोग पीएमओ में अपनी शिकायत लेकर आ रहे है। मोदी ने दूसरे टर्म में पीएम बनने के बाद इस तरह की शिकायतों को टालने पर सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि अब ऐसे मामलों में ब्लैक एंड व्हाइट कार्रवाई होगी। यानी जो ईमानदार होंगे उन्हें डरने की जरूरत नहीं और जो दागी पाए जाएंगे अब उन्हें बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए सबसे जरूरी यह है कि मामलों का निपटारा जल्दी हो और सेवा मुक्त किया जाना स्वागत योग्य है पर पशासन से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सबसे आगे बढ़कर बहुत कुछ करने की जरूरत है।

विराट-रोहित के आपसी मतभेद से टीम को नुकसान हो रहा है

टीम इंडिया में सब कुछ ठीक नहीं है। आपसी गुटबाजी बढ़ती ही जा रही है। टीम इंडिया के सीनियर प्लेयर्स में मतभेद हैं यह हमें विश्व कप में पता चला। खबरें आने लगीं कि कप्तान विराट कोहली और उपकप्तान रोहित शर्मा के बीच टीम के चयन को लेकर भारी मतभेद हैं। विराट और रोहित के बीच विश्वकप में लिए गए कुछ फैसलों पर विवाद की खबरें आई थीं। टीम के उपकप्तान रोहित शर्मा ने टीम में मोहम्मद शमी और रविन्द्र जडेजा को जगह नहीं दिए जाने का विरोध किया था। शमी को केवल चार मैच खिलाए गए जबकि उनका प्रदर्शन शानदार रहा। रोहित ने जडेजा को भी विश्वकप से मौका दिए जाने का समर्थन किया था, लेकिन विराट और कोच रवि शास्त्राr ने उसकी बात को नहीं चलने दिया। कुलदीप के फ्लॉप होने के बाद जडेजा को मौका दिया गया और उसने दिखाया कि वह किस स्तर के खिलाड़ी हैं। रोहित ने सेमीफाइनल में हार के बाद भी टीम चयन को लेकर अपना विरोध जताया था। अब भारत की वनडे टीम में इन्हीं सीनियर खिलाड़ियों के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा है। बीसीसीआई के एक सीनियर प्रशासक ने कोशिश भी की कि कोई खिलाड़ी सोशल मीडिया पर टीम में एकता पर मतभेद की बात पोस्ट करता है तो उससे टीम की छवि को नुकसान होता है। इसलिए ऐसी कोई पोस्ट न लिखे। पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। दरअसल टीम में कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो विराट को कप्तान के तौर पर पसंद नहीं करते हैं। कुछ खिलाड़ी रोहित के साथ सहज रहते हैं लेकिन विराट को कप्तानी से हटाना इतना आसान भी नहीं होगा। बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि टीम में विवाद की खबरों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और इससे पहले कि इससे टीम के प्रदर्शन पर फर्प पड़े, इस मुद्दे को सुलझाना चा]िहए। अधिकारी ने कहा कि यह किसी कामकाजी जगह में होने वाले विवाद की तरह है जिससे टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। अगर इसे तुरन्त नहीं सुलझाया गया तो यह काफी खतरनाक हो सकता है और इससे टीम भावना पर असर पड़ सकता है। अधिकारी ने कहा कि आपकी टीम के दो कप्तान नहीं हो सकते और उनकी मीडिया टीम एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल नहीं खेल सकते। इस विवाद में दोनों कोचों का भी योगदान रहा है। रवि शास्त्राr और संजय बांगड़ ने टीम में एकता करने की जगह गुटबाजी को हवा दी है। इन्हें बदलने से शायद टीम इंडिया की स्थिति बदल जाए। टीम आजकल वेस्ट इंडीज के दौरे पर है। वहां दोनों फार्मेट में रोहित और विराट को कप्तान बनाया गया है। केवल कप्तान बनाने से काम नहीं चलेगा, उसकी अपने अनुसार टीम के चयन की भी पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

कांग्रेस में नेतृत्व संकट से पार्टी को भारी नुकसान हो रहा है

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पद से इस्तीफा देने के इतने दिन बाद भी कांग्रेस नेतृत्व कौन करे यह तय नहीं हो पा रहा है। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर स्पष्टता की कमी के कारण पार्टी को नुकसान हो रहा है। इस्तीफे के बाद से पार्टी के नेताओं के झगड़े बढ़ गए हैं। पार्टी का अनुशासन तार-तार हो रहा है। कोई नेता किसी की नहीं सुन रहा है। इस्तीफा देने के बाद से राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के सिवाय कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है। झगड़े और अनुशासनहीनता की हालत यह है कि हरियाणा में प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर, प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद के ही निर्देश नहीं मान रहे हैं। तंवर की बनाई चुनाव संबंधी कमेटी को जब आजाद ने भंग कर दिया, तब भी उन्होंने उस कमेटी की बैठक होने दी। इसी तरह महाराष्ट्र, दिल्ली में भी नेतृत्व संकट पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दिया था तो उम्मीद तो यह थी कि लोकसभा में पार्टी की करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल की तरह बाकी वरिष्ठ पदाधिकारियों ने अपना इस्तीफा नहीं दिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि राहुल ने जब इस्तीफे की पेशकश की थी तो पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कार्यसमिति में विचार-विमर्श होता और पार्टी का सर्वसम्मति से नया अध्यक्ष चुना होता। पर इतने समय बीतने के बाद भी कांग्रेस को नया अध्यक्ष नहीं मिला। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने रविवार को कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर असमंजस से पार्टी को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में सुधार का रास्ता यही हो सकता है कि कार्यसमिति सहित पार्टी  में सभी महत्वपूर्ण पदों के लिए चुनाव हों, जिससे चुनने वाले नेताओं को स्वीकार्यता हासिल करने में मदद मिले। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के आकलन का भी समर्थन किया कि कांग्रेस की कमान किसी युवा नेता को सौंपी जाए। राहुल के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर मझधार में फंसी पार्टी की कमान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को सौंपे जाने की आवाज बुलंद होने लगी है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की न केवल पुरजोर वकालत की है, बल्कि यह भी कहा है कि उनमें ही अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह मुश्किल वक्त में पार्टी को दोबारा सत्ता में ला खड़ा करने का दमखम है। इन नेताओं ने यह दलील भी दी है कि यदि गांधी परिवार से  बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया तो पार्टी में बिखराव होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। केंद्र सरकार के पूर्व मंत्रियोंöनटवर सिंह, भक्त चरण दास, श्री प्रकाश जायसवाल, अनिल शास्त्राr आदि नेताओं के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद शशि थरूर ने भी उम्मीद जताई है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में  प्रियंका जरूर हिस्सा लेंगी। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र व पश्चिम बंगाल की जांगीपुर संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमाने वाले अभिजीत मुखर्जी भी पहले ही कह चुके हैं कि अपनी दादी की तरह ही प्रियंका गांधी में भी पार्टी को इस मुश्किल दौर से उबार कर दोबारा सत्ता में खड़ा करने की क्षमता है। दूसरी ओर चुनावी हार के बाद बीते 25 मई की कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे की पेशकश करने वाले राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके बाद उनके परिवार का कोई और व्यक्ति भी यह पद नहीं संभालेगा। लेकिन दिक्कत यह है कि दो महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है और कांग्रेस पार्टी राहुल का विकल्प ढूंढने में सफल नहीं हो पाई। इस बीच सोनभद्र आदिवासी हत्याकांड मामले में प्रियंका गांधी के तीखे तेवर देख तमाम पार्टी नेताओं को उनसे उम्मीदें बंध गई हैं। अब कांग्रेस का कर्नाटक की गठबंधन सरकार के पतन और देशभर में कांग्रेस पार्टी में मची भगदड़ को देखते हुए यह देखना अहम है कि कांग्रेस कब तक इस महत्वपूर्ण मामले में निर्णय तक पहुंच पाती है।

Monday, 29 July 2019

आईएसआई और सेना प्रमुख को इमरान अपने साथ क्यों ले गए

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का अमेरिका के दौरे से लौटने पर बुधवार रात इस्लामाबाद एयरपोर्ट पर जोरदार स्वागत हुआ। उनकी पार्टी पाकिस्तान--तहरीक--इंसाफ के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में मौजूद थे और ढोल-नगाड़े बजा रहे थे। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सफल दौरे से लौटे प्रधानमंत्री का जिस तरह जोरदार स्वागत हुआ उस पर खुद इमरान ने कहाöउन्हें ऐसा लग रहा है कि वह किसी विदेशी दौरे से नहीं लौटे हैं बल्कि वर्ल्ड कप जीतकर आए हैं। इस मौके पर पार्टी कार्यकर्ता नाच-गा रहे थे और इमरान के समर्थन में नारे लगा रहे थे। इमरान ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि हमें पाकिस्तान को महान बनाना है। कवि उलेमा इकबाल के सपनों के अनुरूप पाकिस्तान का महान मुल्क बनना तय है। अमेरिकी दौरे की कामयाबी को एक बड़ी राहत जरूर समझा जा रहा है। एक अमेरिकी थिंक टैंक ने भी इमरान खान के दौरे को खुशगवार तब्दीली कहा है। मसलन अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी ने इस दौरे को सराहा है। दुनिया के कई अखबारों और टीवी चैनलों, जो दक्षिण एशिया पर गहरी नजर रखते हैं, उन्होंने भी इस दौरे को इमरान की एक बड़ी कामयाबी करार दिया है। साफ नजर आता है कि इमरान खान ने और उनकी समर्थक आर्मी एस्टेबलिशमेंट ने राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात से पहले अच्छा होमवर्प किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान पहली बार अमेरिका गए। ऐसा माना जा रहा था कि इमरान के अमेरिकी दौरे में सेना की अहम भूमिका रहेगी, क्योंकि उनके साथ सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद भी मौजूद रहे। इमरान आखिर सेना और आईएसआई प्रमुखों को अमेरिका लेकर क्यों गए? क्या इमरान को व्हाइट हाउस आने का न्यौता देकर अमेरिका, पाकिस्तान को यह संदेश देना चाहता है कि अगर पाकिस्तान चरमपंथ के संबंध में अपनी नीतियां बदलता है तो अमेरिका से उसके संबंधों में सुधार आएगा? पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त शरत सभरवाल कहते हैं कि वो पैसा मांगने नहीं जा रहा है। कहा गया कि व्यापार और निवेश सबसे प्रमुख एजेंडे में होगा। लेकिन अफगानिस्तान में शांति बनाने का मुद्दा सबसे अहम रहेगा? अमेरिका के लिए सबसे अहम तालिबान है, जो अमेरिकी सेना के खिलाफ अफगानिस्तान में तबाही मचा रहा है। तालिबान पर पाकिस्तान का कुछ प्रभाव है, लिहाजा वह चाहता है कि तालिबान के मुद्दे पर अमेरिका को सहयोग करे। ट्रंप प्रशासन यह जानता है कि सेना के समर्थन के बिना पाकिस्तान में किसी भी बड़े फैसले को लागू नहीं किया जा सकता है। इमरान के साथ अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत के दौरान उनके सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख मौजूद रहे। अमेरिका का प्रयास है कि जनरल बाजवा और आईएसआई प्रमुख हमीद को साथ बिठाकर अमेरिका उसे ठोस आश्वासन दे ताकि भविष्य में सरकार और सेना दोनों को जवाबदेही ठहराया जा सके। पाकिस्तान के लिए उसकी आर्थिक और सामरिक रणनीति के  लिए अमेरिका बहुत अहम है। चूंकि मुख्य मुद्दा अफगानिस्तान होगा, इस पर पाक सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख अहम भूमिका निभा सकते हैं। अमेरिका के रुख में बदलाव तो हुआ है। आईएमएफ ने पाक को जो बेलआउट दिया है उसे अमेरिका रोक सकता था लेकिन उसने रोका नहीं। कुल मिलाकर इमरान खान का यह दौरा पाकिस्तान के लिए बहुत अहम था। पाकिस्तान चाहता है कि आपसी रिश्तों को फिर पटरी पर लाया जा सके। चूंकि इसमें पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की प्रमुख भूमिका होगी इसलिए इमरान खान जनरल बाजवा और आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को अपने साथ अमेरिका ले गए।

-अनिल नरेन्द्र

सूचना का अधिकार संशोधन बिल लोकतंत्र पर हमला है

राज्यसभा में भारी विरोध के बाद भी आरटीआई विधेयक को जल्दी पास करने पर विपक्ष की अलग-अलग पार्टियों से जुड़े 17 सांसदों ने शुक्रवार को इस पर आपत्ति जताते हुए सभापति को पत्र लिखा है। विधेयकों को बगैर किसी पुनमूर्ल्यांकलन के पारित कराना संसदीय परंपराओं के खिलाफ बताया। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की तरफ से बिना आम लोगों के परामर्श से पेश यह संशोधन विधेयक सूचना आयोगों की स्वायत्तता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जो सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत अंतिम निर्णायक है। साल 2005 में पारित आरटीआई अधिनियम निश्चित तौर पर देश की जनता के लिए सबसे सशक्त कानूनों में एक रहा है। सूचना हासिल करने के लिए इसके तहत हर वर्ष लगभग 60 लाख आवेदन आते हैं। इसीलिए भारत का आरटीआई कानून तंत्र की पारदर्शिता सुनिश्चित कराने के मामले में विश्व में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला कानून है। लोग तमाम मुद्दों पर सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित कराने के लिए इस कानून का उपयोग करते हैं। फिर चाहे मामला राशन से जुड़ा हो या पेंशन से। बड़े घोटाले, लोक सेवकों की सम्पत्ति से लेकर मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी सूचनाएं भी इसके तहत मांगी जाती हैं। इसका इस्तेमाल देश के शक्तिशाली लोगों से जवाब मांगने के लिए भी किया जाता रहा है यानि लोकतांत्रिक ढांचे में सत्ता के बंटवारे को सुनिश्चित करने की दिशा में यह कानून बाखूबी काम करता है। इसी वजह से ताकतवर लोग, सरकारी अधिकारी व नेता इसे कमजोर करने की लगातार कोशिश करते रहे हैं। अंतत उन्हें इसमें सफलता मिल गई है। आरटीआई अधिनियम, 2005 में आरटीआई संशोधन विधेयक 2019 में केंद्र सरकार को केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों के सूचना आयुक्तों की सेवा, कार्यकाल, वेतन, भत्ते और अन्य शर्तों को तय करने के लिए नियम बनाने का अधिकार का प्रस्ताव है। केंद्रीय सूचना आयोग के सात पूर्व सूचना आयुक्तों ने संशोधनों को सूचना आयोग की स्वायत्तता और लोगों के जानने के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला करार दिया है। उन्होंने सरकार से प्रतिगामी संशोधनों को वापस लेने का आग्रह भी किया है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बारे में ईमानदार नहीं है कि वह यह संशोधन क्यों ला रही है? दीपक संधु ने कहा कि आरटीआई अधिनियम एक सामाजिक आंदोलन के माध्यम से आया था और आरटीआई संशोधन विधेयक पर जनता के साथ किसी भी प्रकार का विमर्श करने में सरकार की विफलता को रेखांकित करता है। अब कोई व्यापक घोटाला सामने नहीं आएगा। आरटीआई कानून को कमजोर करके मोदी सरकार ने भ्रष्टाचारियों के ही हाथ मजबूत किए हैं। उस अत्यंत सफल कानून और जनता का हाथ मजबूत करने वाले इस कानून में संशोधन किया जा रहा है। आरटीआई कानून इस सिद्धांत पर बना था कि जनता यह जानने का अधिकार रखती है कि देश कैसे चलता है? इसके लिए सूचना आयोग को स्वायत्तता दी गई कि वह सरकारी नियंत्रण से मुक्त होगा। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन, भत्ते और कार्यकाल यह सब सुप्रीम कोर्ट के जज और चुनाव आयुक्तों के समान होगा यानि सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त। अब चूंकि यह सरकार ईमानदार है, इसलिए उन्होंने कानून बदल दिया। अब सूचना आयोग स्वायत्त नहीं होगा। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन, भत्ते आदि अब केंद्र सरकार निर्धारित करेगी यानि वह सब जिसे चाहे, जितने समय के लिए चाहे, रखेगी। चाहेगी तो हटा देगी यानि अब सूचना आयोग एक और पिंजरे का तोता बनकर काम करेगा। आरटीआई कानून अब दुनिया का सबसे बेहतर नागरिक अधिकार कानून नहीं रहेगा। अब इस लोकतंत्र में सारे अधिकार सिर्प चन्द गिने-चुने लोगों के हाथ में होंगे। लोकतंत्र का संघीय ढांचा अपने कदम पर रोएगा।

Saturday, 27 July 2019

हिमा दास पूरे देश को आप पर गर्व है

हमारे देश में क्रिकेट का इतना बोलबाला है कि खेलप्रेमियों का ध्यान और खेलों पर कम ही जाता है। प्रतिभा का रास्ता कांटों भरा हो सकता है, कुछ समय तक के लिए बाधित दिख सकता है। लेकिन उसे अपने मुकाम तक पहुंचने से स्थायी तौर पर रोका नहीं जा सकता। मैं बात कर रहा हूं भारत की उड़नपरी हिमा दास की। देश की नई उड़नपरी हिमा दास ने हाल ही में चेक गणराज्य की नादे थेस्टो नाड मैंटुजी ग्रां प्री में महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में सीजन बेस्ट 52.09 सैकेंड के साथ गोल्ड मैडल हासिल किया। एक महीने के भीतर उनका यह पांचवां स्वर्ण पदक है। उन्होंने दो जुलाई को यूरोप में, सात जुलाई को पुंटी एथलेटिक्स मीट में, 13 जुलाई को चेक गणराज्य में और 17 जुलाई को टाबोर ग्रां प्री में अलग-अलग स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक हासिल किए। हिमा दास पहली ऐसी भारतीय महिला बन गई हैं जिन्होंने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप ट्रेक में स्वर्ण पदक हासिल किया है। 18 साल की हिमा असम के ढिंग शहर के पास एक छोटे से गांव कपुंलियारी की रहने वाली हैं। उन्होंने महज दो साल में ही अपना नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज कराया है। हिमा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता का नाम रंजीत दास है और वे किसान हैं। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हिमा को शुरू में फुटबॉल में दिलचस्पी थी। वे स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं और हमेशा से ही इसे अपना करियर बनाना चाहती थीं। वे गांव में आने वाली गाड़ियों के साथ रेस लगाती थीं। वह लड़कों को रेस में हरा देती थीं। यह देखकर उनकी पीटी टीचर ने उन्हें धावक बनने की सलाह दी। स्थानीय कोच निपुन दास की सलाह मानकर हिमा ने जिला स्तर की 100 और 200 मीटर की स्पर्धा में भाग लिया। हिमा की लगन देखते हुए निपुन दास उन्हें गुवाहाटी लेकर आए। यहां से हिमा दास का करियर एथलीट के तौर पर शुरू हुआ। हिमा दास क्रिकेट के मुकाबले अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों को बेहद कम तवज्जो मिलने से दुखी हैं। कहती हैंö11 सैकेंड दौड़ने के लिए वर्षों एड़ियां घिस जाती हैं। कोई धावक रोज सुबह चार बजे उठकर आठ-आठ घंटे प्रैक्ट्सि करता है, ऐसे में अगर देश उसकी उपलब्धियों को नजरंदाज कर दे तो उसे कैसा लगेगा, आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं। प्लीज हमें भी क्रिकेटरों जैसा प्यार दें। हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए। लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके। हिमा दास उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

टेररिस्तान है पाकिस्तान आखिर माने इमरान खान

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी सांसदों के सामने वह सच कबूल किया है जिसे पाकिस्तान उसे नकारता रहा है। इमरान ने कहा कि पाकिस्तान में आज भी 30-40 हजार आतंकवादी मौजूद हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान और कश्मीर में ट्रेनिंग ली और वहां लड़े भी हैं। एक समय हमारे देश में 40 हजार आतंकी संगठन थे, लेकिन पहले की पाकिस्तानी सरकारों ने यह बात छिपाई। इमरान ने यह भी माना कि 14 फरवरी को पुलवामा में हुए हमले के लिए जैश--मोहम्मद जिम्मेदार है। यह पहली बार है जब पाकिस्तानी सरकार या उसके प्रधानमंत्री ने सीधे-सीधे कबूल किया है कि पुलवामा हमले में जैश--मोहम्मद का हाथ था जिसका आका मसूद अजहर पाकिस्तान में है। सालोंसाल जिस पाकिस्तान पर आतंकवाद की नर्सरी होने का आरोप लगता रहा है, आखिरकार वहां के मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया, वह भी सार्वजनिक रूप से, अमेरिका में। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सालभर पहले आरोप लगा चुके हैं कि पाकिस्तान से उनके देश को झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला है। दरअसल इमरान ने ऐसे समय में अमेरिका की यात्रा की, जब उनका देश आर्थिक रूप से जर्जर हो चुका है और वह खुद चौतरफा दबाव में हैं, वहीं अमेरिका को अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी के लिए पाकिस्तान की जरूरत है। अब तक पाकिस्तान की सरकारें जिस सच्चाई को छिपाने का प्रयास करती रही हैं, उसे वहीं के प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक करने का मकसद क्या है? दरअसल पाकिस्तान अभी एक तरफ आर्थिक संकट से जूझ रहा है, तो दूसरी तरफ उसके खिलाफ आतंक के वित्त-पोषण के मामले में वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) द्वारा और कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है। इमरान किसी भी तरह से अमेरिका का विश्वास हासिल करना चाहते हैं, ताकि अपने देश को आर्थिक संकट से उबार सकें। इसलिए आतंकवाद के मामले में उनकी स्वीकारोक्ति को साहस की तरह नहीं, बल्कि एक और छलावे के तौर पर ही देखा जाना चाहिए, जो किसी तरह से अमेरिका की सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं। अगर आतंकियों को पनाह देने की सच्चाई छिपा नहीं सकते, तो ऐसे में इमरान सरकार के लिए यही उपयुक्त था कि उसे स्वीकार कर और उसके खिलाफ अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दिखाकर पाकिस्तान की छवि को बदलें, ताकि अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति अर्जित कर कुछ फायदा उठाया जा सके। इसीलिए बिना दाढ़ी वाला तालिबान खान के नाम से मशहूर इमरान की कई बातों पर सहज विश्वास करना कठिन है। इसीलिए इमरान के अमेरिका रवाना होने से पहले जमात-उद-दावा और लश्कर--तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के सरगना हाफिज मोहम्मद सईद को हिरासत में लेने का नाटक किया गया। अगर इमरान यह कहना चाहते हैं कि उनकी सरकार आने पर ही पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, तो यह सत्य नहीं है। इमरान के सत्तासीन होने से पहले ही पाक स्थित आतंकियों पर कार्रवाई हो रही थी, पर यह तहरीक--तालिबान पाकिस्तान जैसे उन संगठनों के खिलाफ हो रही थी, जिससे पाकिस्तानी हितों को चोट पहुंच रही थी। यह इमरान की ईमानदारी की स्वीकारोक्ति नहीं कही जा सकती क्योंकि पुलवामा हमले को स्थानीय आतंकवादियों की करतूत बताना उनकी उस मानसिकता को दिखाती है। ऐसे में भारत को यह जरूर प्रयास करना चाहिए कि उनकी यह स्वीकारोक्ति आतंकवाद पर निगरानी रखने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की अक्तूबर में होने वाली बैठक में पाकिस्तान पर शिकंजा कसने का आधार बने। इमरान को इधर-उधर की बात करने की बजाय अपनी जमीन पर सक्रिय भारत विरोधी आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके दिखाना चाहिए।

Friday, 26 July 2019

सुप्रीम कोर्ट ने 42000 फ्लैट खरीददारों को दी बड़ी राहत

जिन लोगों ने पाई-पाई इकट्ठा करके, अपना पेट काटकर घर का सपना लिया था उनके लिए सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला नई किरण और राहत लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली ग्रुप से रेरा के तहत पंजीकरण रद्द कर दिया है। कोर्ट ने फ्लैट खरीददारों के हितों को सर्वोपरि बताते हुए समूह के अधूरे प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) को नियुक्त किया है। पीठ ने आम्रपाली के 42 हजार से ज्यादा खरीददारों को राहत देते हुए नोएडा व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को विभिन्न प्रोजेक्ट में रह रहे खरीददारों को परियोजना पूरी होने तक संबंधी प्रमाण पत्र जारी करने का भी निर्देश दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने मंगलवार को प्राधिकरणों द्वारा आम्रपाली को दी गई सम्पत्तियों के पट्टे भी रद्द कर दिए। पीठ ने वरिष्ठ वकील आरआर वेंकटरमणी को रिसीवर नियुक्त किया। इस फैसले का असर पूरे देश में लंबित प्रोजेक्ट्स पर पड़ेगा, लेकिन इससे कम से कम एनसीआर में दो लाख फ्लैटों के जल्द पूरे होने की आस जगी है। इनमें सबसे ज्यादा एक लाख फ्लैट ग्रेटर नोएडा में लटके हुए हैं, जबकि 42,000 नोएडा में। गाजियाबाद में 23,000, गुरुग्राम में 22,000, भिवाड़ी में 5000, फरीदाबाद में 3500 और दिल्ली में 4000 फ्लैट लेटलतीफी का शिकार हैं। इन सभी लंबित फ्लैटों की अनुमानित कीमत 1.26 लाख करोड़ है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से ऐसी अधूरी पड़ी परियोजनाओं की फेहरिस्त मांगी है। इन मामलों में क्या फैसला होता है, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन फेहरिस्त मांगने भर से बिल्डरों और सरकारों पर अधूरी योजनाओं को पूरा करने का दबाव तो बनेगा ही। अदालत ने जिस तरीके से फ्लैट बायर्स के हितों को सर्वोपरि माना है और आम्रपाली ग्रुप के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है उससे भी उन्हें संदेश मिला ही होगा। ऐसे सख्त संदेश की जरूरत इसलिए भी की कि गृह निर्माण क्षेत्र के घोटाले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं और इनकी शिकायतें किसी एक-दो जगह से नहीं, देशभर से आ रही हैं। इन्हें खत्म करने के लिए सरकारें भी काफी समय से सक्रिय हैं। घर के खरीददारों को न्याय मिल सके, इसके  लिए रियल इस्टेट रेगुलेशन एक्ट यानि रेरा जैसे कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन सच यह है कि इनका भी कोई बड़ा नतीजा नहीं निकल सका। न घोटाले कम हुए, न शिकायतें। शायद किसी भी कानून से ज्यादा इस संदेश की जरूरत थी कि घपला करने वाले किसी को भी किसी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। इसकी शुरुआत सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से हो सकती है, बशर्ते सरकारी संस्थाएं पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने में ईमानदारी व सक्रियता दिखाएं।

-अनिल नरेन्द्र

क्या बोरिस जॉनसन ब्रेग्जिट को संभव कर दिखाएंगे?

ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में जेरेमी हंट को मात देकर बोरिस जॉनसन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए हैं। ब्रेग्जिट पर यूरोपीय संघ के साथ समझौते को संसद से पास न होने पर टेरीजा मे ने पिछले दिनों इस्तीफा दे दिया था। ब्रिटेन की सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी के नेता के लिए हुए चुनाव में बोरिस जॉनसन का मुकाबला जेरेमी हंट से था। परिणाम आने के बाद 55 वर्षीय जॉनसन ने कहा कि आज अभियान समाप्त हुआ। अब काम शुरू होगा। मैं शक करने वाले उन सभी लोगों से कहना चाहता हूं कि हम लोग इस देश को ऊर्जीवत करने जा रहे हैं। हम लोग ब्रेग्जिट को संभव करके दिखाएंगे। बोरिस जॉनसन अपनी दिलचस्प शख्सियत और बार-बार विवादों में घिरने के लिए चर्चित रहे हैं। टेरीजा मे के कार्यकाल में बोरिस जॉनसन विदेश मंत्री थे। उन्होंने परंपरागत राजनीति को चुनौती दी। बोरिस जॉनसन ने पत्रकार, सांसद, मेयर और विदेश मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक सफर तय किया है। उनका समर्थन करने वाले कहते हैं कि उन्हें लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगता है और शायद यही उनके आकर्षण का राज है लेकिन इसके पीछे तेज दिमाग और मेहनती शख्स भी छिपा है। बोरिस जॉनसन ब्रेग्जिट समर्थकों की सबसे बड़ी और शायद आखिरी उम्मीद हैं। जॉनसन ने बेशक उस राजनीतिक अनिश्चय की स्थिति पर विराम लगा दिया है, जो टेरीजा मे के पद छोड़ने से पैदा हुई लेकिन नए प्रधानमंत्री की प्रबल ब्रेग्जिट समर्थक की छवि को देखते हुए बाजार से उद्योग तक में बन रही अनिश्चय की स्थिति उतनी ही देखने लायक है। यह स्थिति ब्रेग्जिट की जटिलताओं के कारण तो है ही, जिसके कारण पिछले तीन साल में दो ब्रिटिश प्रधानमंत्रियों को बाहर का रास्ता देखना पड़ा है। जॉनसन ने ब्रेग्जिट पर अपने कठोर रुख के कारण स्थितियों को कहीं ज्यादा जटिल बना दिया है। सिर्प यही नहीं कि चांसलर फिलिप हैमंड समेत कई प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों ने उनके नेतृत्व में काम न करने की घोषणा की है, बल्कि अगले सप्ताह होने वाले दो उपचुनावों में कंजरवेटिव पार्टी अगर हार जाती है तो हाउस ऑफ कॉमंस में उसकी स्थिति और कमजोर हो जाएगी, क्योंकि अभी निचले सदन में उसे मामूली बहुमत ही है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री निवास, 10 डाउनिंग स्ट्रीट बंगले में पहुंचते ही उन्हें सीधे ब्रेग्जिट की हकीकत से टकराना होगा। जॉनसन खुद भी इसे जानते हैं और प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के तुरन्त बाद पार्टी सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने इसकी रूपरेखा भले ही न पेश की हो, लेकिन इसकी समयसीमा जरूर दी है। बाद में उन्होंने एक ट्वीट करके भी कहा है कि यह फैसला 31 अक्तूबर तक हो जाएगा यानि इसके लिए कुल जमा तीन महीने से कुछ ही ज्यादा समय है। बोरिस जॉनसन यह भी अच्छी तरह जानते होंगे कि इसके पहले ब्रेग्जिट का मसला उनकी पार्टी के ही दो प्रधानमंत्रियों डेविड कैमरन और टेरीजा मे की बलि ले चुका है। अभी तक के ज्यादातर विश्लेषण यही बताते हैं कि ब्रेग्जिट से ब्रिटेन को फायदा बहुत कम होगा, लेकिन नुकसान बहुत ज्यादा हो सकता है। आर्थिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे ब्रिटेन की जनता को इसका डर भी सता रहा है। फिर टेरीजा मे के प्रस्ताव जिन वजहों से गिरे थे, वे वजहें भी बरकरार हैं। यूरोपीय संघ के सदस्य आयरलैंड गणतंत्र और ब्रिटेन का हिस्सा उत्तरी आयरलैंड के बीच खुली सीमा से ब्रेग्जिट का उद्देश्य पूरा नहीं होने वाला और जॉनसन के पास वक्त नहीं है कि वह ब्रेग्जिट की कोई समानांतर योजना पेश कर सकें। भारतवंशी दूसरी पत्नी मैरिना व्हीलर के कारण भारत से उनके अच्छे रिश्ते हैं और उनकी कैबिनेट में दो प्रीति पटेल और रिषी सुनक जैसे भारतवंशियों के शामिल होने की संभावनाएं भी हैं। लेकिन यह देखने लायक होगा कि खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की विरासत संभालते हुए ट्रंप समर्थक छवि के कारण उनके नेतृत्व में ब्रिटेन विश्व राजनीति में किस तरह की भूमिका निभाएगा और ईरान के अलावा हुवावे के मुद्दे पर चीन के साथ पैदा हुए तनाव पर वह क्या रुख अख्तियार करेंगे? हम बोरिस जॉनसन को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह ब्रिटिश जनता की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे।

Thursday, 25 July 2019

ईरान ने अमेरिकी जासूसों को दी फांसी

ईरान ने सोमवार को दावा किया कि उसने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के 17 जासूसों को अपने कब्जे में ले लिया है। ईरान के सरकारी समाचार चैनल ने देश के खुफिया मंत्रालय के हवाले से यह भी कहा है कि कब्जे में लिए गए अमेरिकी जासूसों को फांसी भी दे दी गई है। खुफिया मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि पकड़े गए सभी जासूस संवेदनशील, निजी आर्थिक केंद्रों, सेना और साइबर क्षेत्र में नौकरी कर रहे थे। ये जासूस देश के संवेदनशील क्षेत्रों समेत कुछ निजी सेक्टरों में काम कर रहे थे, जिनमें आर्थिक परमाणु, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेना और साइबर क्लासीफाइड जानकारियां चुरे रहे थे। यह घोषणा अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ तीन माह पहले से शुरू हुए टकराव के बाद अब की गई है। ईरान द्वारा शुक्रवार को जब्त किए गए ब्रिटिश टैंकर के सभी चालक दल सुरक्षित हैं और वे अभी पोत पर ही हैं। बता दें कि स्टेना इम्पेटो नामक इस टैंकर के चालक दल के सदस्यों की कुल संख्या 23 है, जिनमें 18 भारतीय हैं। फिलहाल सभी सदस्य स्वस्थ हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि यह रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी है। हाल के दिनों में वाशिंगटन और तेहरान के बीच तनाव काफी बढ़े हैं। इस तनाव की शुरुआत बीते साल तब हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर कर दिया था। ट्रंप ने समझौता तोड़ते हुए कहा था कि ईरान के हित के लिए है। ट्रंप ने बीते साल नवम्बर में यह ईरान पर कड़े प्रतिबंध (आर्थिक) लगा दिए। इसके बाद से लगातार दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ता जा रहा है। ट्रंप ने अमेरिका को ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से बाहर करते हुए कहा कि ईरान आतंकवादी राष्ट्र है और अमेरिका उससे समझौता नहीं करेगा। वहीं ईरानी धर्मगुरु अयातुल्लाह खोमैनी ने कहा कि हम अमेरिका पर न भरोसा करते हैं, न करेंगे। इसी साल ट्रंप ने कहा कि जो देश ईरान के साथ व्यापार करेंगे उन पर भी अमेरिकी प्रतिबंध लगेंगे। इसी दौरान अमेरिका ने अपने युद्धपोत अब्राह्म लिंकन होर्मूज की खाड़ी के पास भेज दिए। बता दें कि होर्मूज की खाड़ी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण और सामरिक महत्व का रास्ता है। अमेरिका और ईरान के बीच भारी तनाव के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। होर्मूज में अब सैन्य गतिविधियां बढ़ गई हैं। होर्मूज की खाड़ी से ही ईरान ने शुक्रवार को बर्तानी तेल टैंकर को जब्त किया। ईरान की इस कार्रवाई के बाद ब्रिटेन और ईरान भी आमने-सामने आ गए हैं और ब्रिटेन ने ईरान को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। कुल मिलाकर मध्य पूर्व में स्थिति विस्फोटक बनती जा रही है, किसी भी समय यह लड़ाई में बदल सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

डोनाल्ड ट्रंप के 10796 बड़े झूठ या कोई नया खेल?

प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने जून में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थीöबतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने 869 दिन के कैरियर में 10 हजार 796 बार झूठ बोल चुके हैं। वाशिंगटन पोस्ट की फैक्ट चेकर्स टीम ने राष्ट्रपति ट्रंप के हर वैसे संदिग्ध बयानों का विश्लेषण किया जो उन्होंने दिए थे। अखबार ने दावा किया कि ट्रंप ने हर रोज 23 झूठ बोले हैं। उस दिन भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ प्रेसवार्ता में डोनाल्ड ट्रंप ने एक और बहुत बड़ा झूठ बोला। साझा प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने कहा कि मैं इस मामले में मदद कर सपूं तो भारत-पाक के कश्मीर मसले में मध्यस्थ बनने में मुझे खुशी होगी। विवादित बयानों के लिए चर्चित ट्रंप ने यहां तक दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनसे कश्मीर की मध्यस्थता की बात कही थी। हालांकि तुरन्त बाद व्हाइट हाउस से जारी विज्ञप्ति में कश्मीर का जिक्र तक नहीं था। वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी ट्रंप के दावे को खारिज करते हुए कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने कभी भी मध्यस्थता की बात नहीं की। मीडिया से ट्रंप ने कहा कि यदि भारत-पाक चाहें तो वह मध्यस्थता को तैयार हैं। ट्रंप ने दावा किया कि पिछले महीने जी-20 समिट के दौरान मोदी से कश्मीर मसले पर बातचीत हुई थी। बकौल ट्रंप मोदी ने उनसे पूछा था कि क्या आप मध्यस्थ बनना चाहेंगे? मैंने पूछा कहां, तो उन्होंने कहा कश्मीर पर। ट्रंप ने कहा मुझे लगता है कि भारतीय भी हल चाहते हैं और आप भी। मैं मदद कर सकता हूं तो खुशी होगी। दो शानदार देश, जिसके पास स्मार्ट लीडरशिप है वे इतने सालों से यह मसला हल नहीं कर पा रहे हैं। इमरान की तरफ देखते हुए ट्रंप ने आगे कहाöमुझे पता है कि भारत के साथ आपके रिश्ते तनावपूर्ण हैं, हम भारत से बात करेंगे। अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब उनके किसी राष्ट्रपति ने किसी देश को लेकर कोई बयान दिया और उन्हीं के विदेश मंत्रालय ने चन्द घंटों में ही उसका स्पष्टीकरण जारी किया हो। भारत ने जिस तरह से ट्रंप के बयान का खंडन करते हुए उसे झूठा करार दिया है। उससे साफ है कि कश्मीर को लेकर ट्रंप ने सरासर मनगढ़ंत बात की है। ट्रंप की इस हरकत से भारत में हर कोई सकते में आ गया है। भारत की संसद से लेकर सोशल मीडिया तक यह मामला गरमाया है और पूछा जा रहा है कि जब भारत ने ऐसी कोई बात की ही नहीं तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने कैसे इतनी बड़ी बात कह डाली और वह भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की मौजूदगी में। सवाल यह है कि क्या ट्रंप ने झूठ बोला है? आखिर इस झूठे बयान के पीछे ट्रंप की मंशा क्या है? कश्मीर मसले पर मध्यस्थता को लेकर ट्रंप के दावे की पोल खोलते हुए डेमोकेटिक पार्टी के सांसद ब्रेंड शेरमैन ने कहा कि सभी जानते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी ऐसी बात नहीं करेंगे। डोनाल्ड ट्रंप का बयान गलत और शर्मनाक है। अब सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर को लेकर ट्रंप ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? इस झूठ के जरिये आखिर वह क्या हासिल करना चाहते हैं? ट्रंप के इस झूठ के पीछे की वजहों पर हम चर्चा कर सकते हैं। अपने बयान से ट्रंप यह दिखाना चाहते हैं कि भले ही भारत की हैसियत बढ़ गई हो लेकिन अभी वो उनके मामलों में टांग अड़ा सकता है? वह इस बयान से एक तीर से दो शिकार शायद करना चाहते हैं। पहला कि वह पाकिस्तान को खुश करना और दूसरा, खुद की हैसियत को दुनिया के सामने ताकतवर नेता साबित करना। अमेरिका अफगानिस्तान से हटना चाहता है और इसके लिए उसे पाकिस्तान की मदद की जरूरत है। फिर यह भी कारण हो सकता है कि पाकिस्तान चीन का साथ छोड़कर पूरी तरह से अमेरिका की शरण में आ जाए। अमेरिका के कई पूर्व राष्ट्रपतियों को शांति प्रयासों के लिए नोबेल प्राइज मिल चुका है। शायद कश्मीर मुद्दे में जबरन घुसकर ट्रंप भी खुद को नोबेल प्राइज में शामिल करवाना चाहते हों। फिर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रंप अपनी दूसरी पारी के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और अमेरिका में काफी पाकिस्तानी मूल के अमेरिकन हैं। पिछले कुछ दिनों से ट्रंप कुछ नया करना चाहते हैं। कुछ ऐसा जो उन्हें दुनिया में उभारकर सामने ला दे। वो हर उस मुद्दे पर जाना चाहते हैं जो अनसुलझा है। इसे सनक कहो या कूटनीति? वे खुद को सर्वशक्तिशाली बनाने में जुटे हैं। वे किम जोंग की तारीफ करते हैं, उत्तर कोरिया में कदम रखते हैं तो ईरान को युद्ध के लिए ललकारते भी हैं। कभी मोदी को दोस्त कहते हैं तो कभी भारत पर ट्रेड वॉर छेड़ देते हैं। जिनपिंग को अपना जैसा बताते हैं तो चीन को आंखें भी दिखाते हैं, वे पाकिस्तान को दोगला और धोखेबाज बताते हैं तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से गले मिलते हैं और पाकिस्तान आने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के आमंत्रण को स्वीकार भी करते हैं। ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में देखा और माना जाता है। अगर एक इतना ताकतवर जिम्मेदार नेता इस तरह के झूठ से सुर्खियां बटोरे और विवादों को जन्म दे तो इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है।

Wednesday, 24 July 2019

भाई की बेनामी संपत्ति पर मायावती को गुस्सा क्यों आया?

आयकर विभाग द्वारा नोएडा में 400 करोड़ रुपए की बेनामी व्यवसायिक भूखंड जब्त करना कोई अपत्याशित घटना नहीं है, लेकिन जिस व्यक्ति के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है, वह किंचित चौकाने वाला जरूर है। आधिकारिक आदेश के मुताबिक जब्त की गई संपत्ति बसपा सुपीमो मायावती के भाई आनंद कुमार और भाभी विचित्र लता की है। उपाध्यक्ष आनंद कुमार के पास गैर कानूनी तरीके से कथित बनाई गई अकूत संपत्ति का जो खुलासा हो रहा है वह इस बात का स्पष्ट पमाण लगता है कि सत्ता की मदद से कैसे कोई व्यक्ति धनकुबेर बन सकता है। यह भारत के भ्रष्ट तंत्र की जीती-जागती मिसाल है। आनंद कुमार बसपा पमुख मायावती के भाई और पार्टी के दूसरे नंबर के नेता की हैसियत वाले हैं। जाहिर है कि उन्होंने मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए कथित रूप से जमकर भ्रष्टाचार किया और खुद को सारे नियम-कायदों से ऊपर रखते हुए बेनामी संपत्ति का कथित पहाड़ खड़ा कर डाला। आयकर विभाग ने फिलहाल जो बड़ी कार्रवाई की है उसमें नोएडा में चार सौ करोड़ रुपए की कीमत वाली जमीन को जब्त किया है। इस जमीन पर मालिकाना हक आनंद कुमार और उनकी पत्नी का बताया गया है। यहां एक पांच सितारा होटल और आलीशान इमारते बनाने की योजना थी। बसपा पमुख और उनका परिवार लंबे समय से आयकर विभाग के निशाने पर है। आयकर विभाग ने कुछ समय पहले ही आनंद कुमार के ठिकानों पर छापे मारे थे और साढ़े तेरह अरब रुपए से ज्यादा की संपत्ति के दस्तावेज जब्त किए थे। इन संपत्तियों की फिलहाल जांच चल रही है। अपने भाई की बेनामी संपत्ति जब्त किए जाने से नाराज बसपा पमुख मायावती ने केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा पर बेहद तल्ख आरोप लगाते हुए कहा कि इस पार्टी ने पिछला लोकसभा चुनाव बेनामी संपत्ति के जरिए ही तो जीता है और उसे सबसे पहले इसका खुलासा करना चाहिए। मायावती ने लखनऊ में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि जब दलित और वंचित वर्ग का कोई व्यक्ति तरक्की हासिल करता है तो भाजपा के लोगों को बहुत परेशानी होती है और फिर वह सत्ता और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके अपनी ओर से जातिवादी द्वेष निकालते हैं। मायावती ने दावा किया कि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के खाते में दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम जमा हुई जिसका खुलासा आज तक नहीं किया गया। क्या वह बेनामी संपत्ति नहीं है? बसपा अध्यक्ष ने कहा, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को छोड़ दें। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह एंड कंपनी की जो सरकार है उनसे मैं पूछना चाहती हूं कि उनके सत्ता में आने के बाद अरबों-खरबों की संपत्ति उनकी पार्टी दफ्तरों के लिए कहां से आई उसका भी तो खुलासा होना चाहिए? क्या यह बेनामी पैसे से खरीदी गई संपत्ति नहीं है? पर मोदी सरकार की मौजूदा कार्रवाई जनता में इस धारणा को पुख्ता करेगी कि कानून की नजर में हर कोई बराबर है। मगर कानून के शासन को मजबूती पदान करने के लिए यह भी आवश्यक है कि कार्रवाई निष्पक्ष भाव से हो। कोई न उसे विपक्षियों को परेशान करने की कार्रवाई बता सके। इसलिए जरूरी है कि कानून के हिसाब से ही इस दिशा में कार्रवाई हो, ताकि इस मुहिम की गंभीरता और विश्वसनीयता बनी रहे। जब यह मामला अदालत में जाएगा तभी इसकी असल स्थिति पता चलेगी।

-अनिल नरेन्द्र

राज्यपाल मलिक के बयान पर मचा बवाल

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के एक बयान से राज्य में बवाल खड़ा हो गया है। जो सियासी तूफान खड़ा हुआ है उसके विरोध में कई नेता राज्यपाल के विरोध में खड़े हो गए हैं। दरअसल सत्यपाल मलिक ने लद्दाख क्षेत्र के कारगिल लद्दाख पर्यटन महोत्सव-2019 का उद्घाटन करते हुए रविवार को कहा कि आतंकवादियों को हत्या ही करनी है तो सुरक्षाकर्मियों समेत बेगुनाहों की हत्या बंद करें और उसकी बजाए उन लोगों को निशाना बनाएं जिन्होंने वर्षों तक कश्मीर की संपदा को लूटा है। आतंकवादियों को पुलिस वालों की जगह भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों की हत्या करनी चाहिए। सत्यपाल मलिक का तर्प था कि यही लोग राज्य को लूट रहे हैं। राज्यपाल मलिक ने कहा था कि पुलिस अपना काम बहुत अच्छे से कर रही है लेकिन अगर एक भी जान जाती है, अगर वो आतंकी की क्यों न हो मुझे तकलीफ होती है। कारगिल में भाषण के दौरान सत्यपाल मलिक ने यह भी कहा कि यहां के नेता ही राज्य को लूट रहे हैं, इसलिए आतंकी नेताओं को ही मारें, पुलिस बलों को नहीं। राज्यपाल के इस बयान पर सियासी तूफान खड़ा होना स्वाभाविक ही था। उमर अब्दुल्ला इस बयान पर भड़क गए और कह दिया कि अगर किसी भी नेता की हत्या होती है तो उसके जिम्मेदार राज्यपाल होंगे। नेकां उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि एक जिम्मेदार व्यक्ति जो राजभवन में बैठा है, आतंकियों से उन नेताओं और नौकरशाहों को मारने के लिए कह रहा है, जिन्हें वह भ्रष्ट समझते हैं। अब यहां जो राजनीतिक हत्याएं होंगी, उसके लिए राज्यपाल को जिम्मेदार माना जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मलिक को दिल्ली में अपनी छवि को देखना चाहिए। पदेश कांग्रेस अध्यक्ष जी ए मीर ने भी राज्यपाल पर हमला करते हुए कहा कि एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की बयानबाजी नहीं करनी चाहिए। राज्यपाल क्या यहां जंगलराज कायम करना चाहते हैं। राज्यपाल ने अब्दुल्ला परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि चूंकि एक साल से मैं यहां हूं, जो चीज खोदता हूं, उसमें यही लोग नजर आते है। वही तीन पीढ़ी पहले तक यह कुछ भी नहीं थे। बाद में मलिक ने कहा कि उन्होंने यह टिप्पणी राज्य के संवैधानिक पमुख के तौर पर नहीं की थी, लेकिन यह उनकी भावनाओं को दर्शाती है और जब वह राज्यपाल नहीं रहेंगे तब भी यही बात कहेंगे। मलिक ने बीबीसी चैनलों से कहा, यहां व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते यह गुस्से एवं निराशा में कही गई बात थी। मैं जहां देखता हूं, वहां भ्रष्टाचार मिलता है। एक संवैधानिक पद पर रहते हुए मुझे ऐसी टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए थीं। लेकिन मैंने जो कहा वह इस मुद्दे को लेकर मेरे भाव थे। मैं इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हूं।

Tuesday, 23 July 2019

आखिर साल दर साल बिहार बाढ़ की चपेट में क्यों आता है?

लगभग एक महीने पहले बिहार भीषण गर्मी की वजह से चमकी बुखार का प्रकोप झेल रहा था तो अब भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। बिहार में बारिश की वजह से अब तक मरने वालों की संख्या 92 तक पहुंच गई है। तमाम उत्तर भारत बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हुआ है। उत्तर बिहार के गांवों में तबाही मचा रही बाढ़ का रुख अब शहरों की ओर है। शुक्रवार को मुजफ्फरपुर, दरभंगा व समस्तीपुर के शहरी क्षेत्रों के कई मोहल्लों में बाढ़ का पानी घुस गया। अफरातफरी के माहौल के बीच बाढ़ग्रस्त मोहल्लों के लोग लगातार बाढ़ग्रस्त एनएच, सड़क व अन्य स्थानों पर शरण लेने को मजबूर हो गए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में बयान देते हुए भारी बारिश को बाढ़ का जिम्मेदार बताया और इसे प्राकृतिक आपदा कहा। कुछ लोग नेपाल को भी दोषी ठहरा रहे हैं कि उसने पानी छोड़ दिया। नदियों को मोड़ने के लिए बनाए गए तटबंधों और सुरक्षा बांधों को भी लोग बाढ़ के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। बीबीसी के नीरज प्रियदर्शी ने इस विषय पर एक विस्तृत जानकारी भरा लेख लिखा है। मैं पाठकों के समक्ष इस लेख के कुछ प्रमुख भाग पेश कर रहा हूं। बिहार में बाढ़ जैसे हालात लगभग हर साल बनते हैं लेकिन तबाही तब मचती है, जब कोई बांध टूट जाता है। 2008 की कुसहा त्रासदी को भला कौन भुला सकता है। उससे पहले भी जितनी बार बिहार ने बाढ़ की विभीषिका को झेला है उसके कारण बांध टूटना रहा। इस बार की तबाही का एक कारण कई जगहों से तटबंधों का टूटना ही है। जैसे कोई तटबंध टूटता है तो पानी इतनी तेजी से आगे बढ़ता है कि लोगों को संभलने का वक्त भी नहीं मिल पाता। पिछले शनिवार को मधुबनी के झंझारपुर प्रखंड के नरवार गांव के पास कमला बांध टूट गया था। जिस जगह बांध पर तटबंध टूटा है ठीक सामने नरवार गांव है। तटबंध पर शरण लिए लोगों ने कहा कि गांव की शुरुआत में 40 घर थे। 39 गिर गए, बह गए। फंस गए लोगों ने कहा कि रातभर पुलिस और प्रशासन को खबर करते रहे, कोई नहीं आया। जब सुबह एनडीआरएफ की टीम आई, तब तक काफी कुछ बह गया था। बिहार राज्य प्रबंधन विभाग ने बुधवार की शाम तक बाढ़ से अब तक 67 लोगों की मौत की पुष्टि की थी जो इस लेख लिखने तक 92 तक पहुंच गई है। सबसे अधिक 17 लोग सीतामढ़ी में मारे गए हैं। लगातार टूट रहे तटबंधों और सुरक्षा बांधों के कारण बाढ़ की विभीषिका बढ़ती जा रही है। पूरे बिहार में 47 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं। करीब एक लाख लोगों ने राहत शिविरों में शरण ले रखी है। आपदा विभाग के अपडेट में एक आंकड़ा चौंकाने वाला था। मंगलवार की शाम को अपडेट में लिखा गया कि 125 मोटरबोटों को बचाव कार्यों में लगाया गया है। लेकिन अगले दिन जब प्रभावितों की संख्या दोगुनी के करीब पहुंच गई, तब भी अपडेट यही कर रहा था कि 125 मोटरबोटों को रेस्क्यू में लगाया गया है, क्या एनडीआरएफ के पास और मोटरबोट नहीं हैं? इंस्पेक्टर सुधीर कुमार कहते हैं कि हमारे पास जितने मोटरबोट थे, सभी रेस्क्यू ही कर रहे हैं, अगर और मोटरबोटों की जरूरत पड़ी तो मंगानी पड़ेंगी। इतनी तबाही हर साल मचती है फिर भी कोई स्थायी प्रबंध नहीं किया जाता। लेकिन जब सरकार से जवाब मांगा जाता है तो एक ही जवाब मिलता है, जैसा कि मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैंöबिहार में आई बाढ़ प्राकृतिक आपदा है।

-अनिल नरेन्द्र

इमरान खान का इंटरनेशनल अपमान

कंगाल अर्थव्यवस्था और आतंकवादियों को संरक्षण देने के दाग के साथ प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका के अपने पहले दौरे पर पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का यहां न तो स्वागत हुआ और न ही सत्कार। एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने ट्रंप प्रशासन की तरफ से कोई बड़ा अधिकारी मौजूद नहीं था। अमेरिका में पहले से बस मौजूद पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और राजदूत असद मजीद खान ही मौजूद थे। इमरान को मेट्रो की यात्रा कर अपने राजदूत के निवास तक जाना पड़ा। वह किसी होटल के बजाय अपने राजदूत के घर पर ही ठहरे हैं। यही नहीं वह विशेष विमान के बजाय कतर एयरवेज की सामान्य उड़ान के साथ अमेरिका पहुंचे। उनके साथ पाक सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद भी गए हैं। यह पहली बार है जब पाक पीएम के साथ सेना प्रमुख और आईएसआई प्रमुख अमेरिका यात्रा पर हैं। यह भी बताया गया है कि इमरान और उनकी टीम की एयरपोर्ट पर सामान्य यात्रियों की तरह जांच भी हुई। अमेरिकी एयरपोर्टों पर यह जांच किस प्रकार की होती है सभी जानते हैं। इस जांच की प्रक्रिया से जनरल बाजवा और जनरल फैज हमीद को भी गुजरना पड़ा। जिस तरह का ट्रंप प्रशासन ने एयरपोर्ट पर व्यवहार किया वह इमरान की तो तौहीन हुई ही, पाकिस्तान की भी तौहीन है। इससे पहले पाक के किसी राष्ट्र प्रमुख से इस प्रकार का व्यवहार नहीं हुआ। इस पर हमें भी दुख है क्योंकि आपके मतभेद चाहे जैसे भी हों पर प्रोटोकॉल तो जरूर अपनाया ही जाना चाहिए था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने इमरान को ट्रोल करने वालों को आड़े हाथों लिया। उमर ने ट्वीट कियाöइमरान ने अपने देश का पैसा बचाया। वह अपने साथ ईगो लेकर नहीं चलते जैसा ज्यादातर नेता करते हैं। मुझे याद दिलाएं कि यह कैसे एक बुरी चीज है। यह अमेरिका की सत्ता पर कठोर आघात करता है न कि इमरान खान पर। इमरान के शनिवार को वाशिंगटन पहुंचने पर उनको तय प्रोटोकॉल के तहत अगवानी न मिलने के विवाद के बाद व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया है कि आगवानी के लिए उनकी कार्यकारी प्रोटोकॉल प्रमुख मेरी को फिशर हवाई अड्डे पर मौजूद थीं। दरअसल इमरान का तय प्रोटोकॉल के तहत स्वागत नहीं होने की शुरुआती सूचना के बाद मीडिया में उनकी किरकिरी शुरू हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट करके जानकारी दी थी कि उन्होंने हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री इमरान खान का स्वागत किया। इसके बाद मीडिया में इमरान को अमेरिका में उचित स्वागत नहीं किए जाने की खबरें प्रसारित होने लगीं और ट्विटर पर कई पाकिस्तानियों ने अपना गुस्सा निकाला। ट्रंप प्रशासन में पाकिस्तान से अमेरिका के रिश्ते अब तक के इतिहास में सबसे उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। ट्रंप लगातार पाकिस्तान पर आतंकवाद रोकने के लिए दबाव बनाते आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इस दबाव को अमेरिका बरकरार रखना चाहता है और इसी के तहत शनिवार को ट्रंप प्रशासन ने इमरान का उचित स्वागत नहीं किया।

Monday, 22 July 2019

उत्तर प्रदेश में अपराधियों को अब सरकार का कोई खौफ नहीं रहा

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के उम्मा गांव में बुधवार को जो हुआ, उससे एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर किसी का नियंत्रण रहा भी है या इन अपराधियों को बेलगाम होकर मारकाट करने वाले कोई नहीं है? फेरावाल इलाके के उम्मा गांव में दर्जनों ट्रैक्टरों पर सवार खतरनाक हथियारों से लैस कई सौ लोग जमीन पर कब्जा करने पहुंचे और जब गांव वालों ने विरोध जताया तो निहत्थे ग्रामीणों पर इन हथियारबंद लोगों ने खौफनाक तरीके से हमला कर दिया। इस जमीनी विवाद को लेकर 10 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया। गौरतलब है कि उस इलाके में बसे आदिवासियों के समुदाय के लोग लंबे समय से सरकारी जमीन पर खेती करते आ रहे थे। यहां की ज्यादातर जमीन वनभूमि है और इस पर कब्जे को लेकर अकसर विवाद सामने आते रहे हैं। जमीन के जिस मामले में ताजा कत्लेआम को अंजाम दिया गया, उस पर भी काफी समय से विवाद चल रहा था। गांव के प्रधान और आदिवासी समुदाय के लोगों के बीच किस तरह के टकराव की स्थिति बनी हुई थी। यह भी कोई गोपनीय जानकारी नहीं थी बल्कि खबरें यहां तक आई हैं कि इस कत्लेआम को जमीनी विवाद का नतीजा बताकर आदिवासियों को बेदखल करने का मामला है। फिर इन विवादों को जिन वजहों से इस हद तक पहुंचने के लिए छोड़ दिया गया, जिसमें एक पक्ष को सैकड़ों लोगों के साथ गांव पर हमला और लोगों की हत्या कर देने का मौका मिला? खतरनाक हथियारों से लैस इतनी बड़ी तादाद में लोगों के भीतर वहां बिना किसी बाधा के पहुंचने और कत्लेआम करने की हिम्मत इन लोगों में कहां से आई? क्या स्थानीय पुलिस-प्रशासन भी गुप्त रूप से इनकी मदद कर रहा था? उनके भीतर इस भरोसे का क्या आधार था कि ऐसी हिंसा और अराजकता फैलाने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता? यूपी सरकार का यह हाल है कि चंदौसी जिला न्यायालय में पेशी के बाद बुधवार की शाम 24 बंदियों को चार्ली वैन से मुरादाबाद जेल लाया जा रहा था। बनियाढेर थाने क्षेत्र में इंजीनियर हत्याकांड के आरोपी तीन बंदियों के पास बैठे सिपाही ब्रजपाल सिंह (28) और हरेंद्र सिरोही (58) की पहले तो आंखों में मिर्च झोंक दी गई, इसके बाद बंदी वाहन के गेट के चैनल को टेढ़ा करके फरार होने लगे। पकड़ने की कोशिश करने पर बंदियों ने सिपाहियों की गोली मारकर हत्या कर दी। सोनभद्र में भूमि विवाद के चलते मारे गए आदिवासियों के परिवारों से मिलने जा रही थीं तो प्रियंका गांधी वाड्रा को रास्ते में ही रोक दिया गया। प्रियंका सुबह वाराणसी के बीएचयू ट्रामा सेंटर में घायलों से मिलने पहुंचीं। वहां से सोनभद्र जाते वक्त मिर्जापुर जिले के नारायणपुर में उन्हें रोका गया। प्रियंका वहीं धरने पर बैठ गईं। थोड़ी देर बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और चुनार गेस्ट हाउस ले गईं। प्रियंका वहां भी धरने पर बैठ गईं। उसके बाद गेस्ट हाउस की बिजली गुल हो गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने बिजली तो काटी ही, पानी भी नहीं दिया। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने राज्य में अपराध, कानून-व्यवस्था को मुख्य मुद्दा बनाया था। सच यह है कि राज्य में पिछले काफी समय से अपराधों में वृद्धि ही हुई है। ऐसा लगता है कि अपराधी तत्वों में अब कानून का कोई खौफ नहीं रह गया है।

-अनिल नरेन्द्र

अलविदा शीला, बहुत याद आओगी

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता शीला दीक्षित (81) का शनिवार को निधन हो गया और इसके साथ ही हमने सबसे कर्मठ, प्यारी शीला जी को हमेशा के लिए खो दिया। अब तो बस शीला जी की यादें ही रह गई हैं। वह लंबे समय से बीमार थीं और उनकी तीन बार बाइपास सर्जरी हो चुकी थी। उल्टी की शिकायत के बाद शनिवार सुबह उन्हें फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया। दिल का दौरा पड़ने से दोपहर बाद 3.55 बजे उनका निधन हो गया। 15 साल तक दिल्ली की सीएम रहीं शीला जी को राष्ट्रीय राजधानी के विकास का चेहरा माना जाता है। फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल के मुताबिक शीला को दौरा पड़ने के चलते अस्पताल लाया गया। दोपहर बाद फिर दिल का दौरा पड़ा और उन्हें बचाया नहीं जा सका। रविवार दोपहर को निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। शीला जी की अंतिम यात्रा में आई भीड़ से पता चलता है कि वह कितनी मिलनसार थीं जो सबकी बातें ध्यान से सुनती थीं। चाहे उनकी पार्टी का हो चाहे विपक्ष का हो। मुझे वह अकसर मजाक में कहती थीं कि अनिल तुम तो भाजपाई हो जबकि उन्हें मालूम था कि मैं स्वतंत्र विचार का हूं। शीला जी से मेरा बहुत पुराना संबंध रहा। उनके पति स्वर्गीय विनोद दीक्षित और मैं मॉडर्नाइटस के एक ड्रामा ग्रुप अग्रदूत के सदस्य थे और अग्रदूत द्वारा पेश किए गए नाटकों में काम करते थे। यह बात साठ के दशक की है। तभी से मेरा शीला जी से सम्पर्प हुआ। साल में दो-तीन बार शीला जी से मिलने का सौभाग्य रहा। जब वह मुख्यमंत्री थीं तब मेरे स्वर्गीय पिता श्री के. नरेन्द्र के जन्मदिन में मैं शीला जी को आमंत्रित करने गया। हालांकि वह जानती थीं कि पिताश्री भाजपा के कट्टर समर्थक थे पर फिर भी शीला जी हमारे निवास टालस्टॉय मार्ग कोठी पर आईं। शीला जी से जब भी मैं मिला, वह बड़ी गर्मजोशी से मिलती थीं और लंबी बातचीत, बहस होती थी। शीला जी शादी से पहले शीला कपूर के नाम से जानी जाती थीं। उनके आईएएस पति विनोद कुमार दीक्षित कांग्रेस के कद्दावर नेता उमाशंकर दीक्षित के पुत्र थे। 1974 में इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री बने। राजनीति की ए, बी, सी, डी उन्होंने कांग्रेस में लगातार मजबूत होते अपने ससुर से सीखीं। 1980 में एक रेलयात्रा के दौरान विनोद कुमार दीक्षित की मौत हो गई। उसके बाद शीला दीक्षित अपने ससुर के साथ राजनीति में सक्रिय हो गईं। 1984 के आम चुनाव में कन्नौज से जीतकर पहली बार लोकसभा आईं। 1991 में शीला ने उनकी विरासत पूरी तरह संभाल ली। शीला जी का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में पंजाबी खत्री परिवार में हुआ। दिल्ली के कॉन्वेंट जीसस मैरी में और दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांड हाउस कॉलेज में उन्होंने इतिहास में मास्टर डिग्री ली। भले ही आर्यन लेडी शीला दीक्षित बीमारी से हार गईं, लेकिन 34 साल पहले उन्होंने मौत को मात दे दी थी। पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान उस गाड़ी को बम से उड़ा दिया गया था, जिसका इस्तेमाल शीला दीक्षित कर रही थीं। धमाके से चन्द मिनट पहले ही वे गाड़ी से उतरी थीं और उनकी आंखों के सामने गाड़ी के परखच्चे उड़ गए थे। इस हादसे का जिक्र उन्होंने अपनी किताब माई टाइम, माई लाइफ में भी किया है और हादसे को याद कर रूह कंपा देने वाले माहौल को बयां किया। मिलनसार, हंसमुख और अपनी बुराई को धैर्य से सुनने वाली शीला जी को हर कोई सोशल मीडिया पर नम् आंखों से श्रद्धांजलि दे रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि मैं शीला दीक्षित जी के निधन पर बहुत दुखी हूं। वह कांग्रेस पार्टी की प्रिय बेटी थीं, जिनके साथ मेरा नजदीकी रिश्ता रहा। सभी को साथ लेकर चलने की उनकी खासियत थी। उनके विपक्षी नेताओं से भी ऐसे संबंध रहे कि बड़ी से बड़ी उलझन दूर हो जाती थी। ऐसे कई उदाहरण हैं जब उन्होंने न सिर्प अपनी पार्टी में विरोधी बल्कि विपक्षी नेताओं को भी मुरीद बना लिया था। एक वक्त था, जब दिल्ली की राजनीति में शीला को अजेय माना जाता था। आज दिल्लीवासी दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सीएनजी, मेट्रो से एनसीआर को जोड़ने और फ्लाईओवर से ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने वाली शीला जी को भुला नहीं सकता। वह आखिर तक दिल्ली के लिए लड़ती रहीं। शीला जी की कमी हमेशा महसूस होती रहेगी और उनको भुलाया नहीं जा सकता।

Sunday, 21 July 2019

आखिर जमीन पर आया पाकिस्तान, खोला अपना एयर स्पेस

आखिरकार पाकिस्तान भारत के असैन्य विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र जिसे उसने बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद अचानक बंद कर दिया था खोलने के लिए मजबूर हो गया। बालाकोट की स्ट्राइक के बाद उसने 26 फरवरी से यह पाबंदी लगा रखी थी। हाल में पाकिस्तान ने कहा था कि भारत जब तक सीमा के नजदीक हवाई अड्डों से अपने लड़ाकू विमानों को नहीं हटाता, यह प्रतिबंध जारी रहेगा। हालांकि इस प्रतिबंध की वजह से उसको काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा था। एक अनुमान के मुताबिक पाक को करीब 100 मिलियन डॉलर (688 करोड़ रुपए) की चपत लगी है। फरवरी से जून तक करीब 400 उड़ानों पर पाक एयर स्पेस बंद होने का असर पड़ा था। इस करीब पांच महीने में पाकिस्तान ने पांच बार एयर स्पेस बंद रखने की मियाद बढ़ाई थी। यही नहीं, उसने अपने हवाई क्षेत्र को बंद रखने की समय सीमा आखिरी बार 26 जुलाई तक बढ़ा भी दी थी। चूंकि भारत ने पाकिस्तान की मांग पर गौर करने से इंकार कर दिया था। इसलिए यह माना जा रहा था कि वह भारतीय विमानों के लिए अपना एयर स्पेस बंद ही रखेगा, लेकिन अब उसने यकायक अपने फैसले को बदलना बेहतर समझा। निस्संदेह इस पाबंदी के चलते भारतीय विमानों को अधिक दूरी तय करनी पड़ रही थी। सबसे बड़ा नुकसान हमारी एयर इंडिया को हुआ। पाकिस्तानी एयर स्पेस बंद होने के कारण भारतीय विमानन कंपनियों को जून मध्य तक करीब 550 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान 491 करोड़ रुपए का एयर इंडिया को उठाना पड़ा। एयर स्पेस बंद होने की वजह से यूरोप जाने वाले विमानों को अधिक दूरी तय करनी पड़ रही थी। बेशक पाकिस्तान के इस कदम से पाकिस्तान खुद भी परेशान था। उसे हवाई पथ संबंधी शुल्क से वंचित होना पड़ रहा था। यह किसी से छिपा नहीं है कि बीते कुछ समय से पाकिस्तान किस तरह गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। यह मानने के इसलिए अच्छे-भले कारण हैं कि इसी आर्थिक संकट ने पाकिस्तान को भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र खोलने के लिए मजबूर किया। बीते 26 फरवरी से अब तक पाक हवाई क्षेत्र बंद होने से भारतीय विमानन कंपनियों की परिचालन तो बढ़ ही गई थी पर समय भी ज्यादा लग रहा था। दिल्ली-दुबई सेक्टर की ही बात करें तो दिल्ली से उड़ान भरने वाला विमान अमृतसर होते हुए पाकिस्तान के ऊपर से उड़ान भरते हुए दुबई निकल जाता था। लेकिन प्रतिबंध के बाद वह मुंबई के ऊपर से उड़ते हुए अरब सागर होते हुए दुबई जाता था। इससे विमान को 40 से 45 मिनट ज्यादा समय लगता था। इस प्रतिबंध के कारण एयर इंडिया को सिर्प खाड़ी देशों की उड़ान के लिए वैकल्पिक मार्ग लेना पड़ रहा था बल्कि अमेरिका और यूरोपीय मार्गों के लिए भी लंबा रास्ता चुनना पड़ रहा था। विमानन मंत्री हरदीप पुरी ने बीती तीन जुलाई को संसद में बताया था कि दो जुलाई तक ही एयर इंडिया को 491 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। अब तो यह नुकसान 500 करोड़ से भी ऊपर पहुंच गया होगा। यह अच्छा हुआ कि अंतत पाकिस्तान को सद्बुद्धि आई और उसने स्वेच्छा से अपना एयर स्पेस खोल दिया।

-अनिल नरेन्द्र

कुलभूषण केस में भारत की नैतिक व कानूनी जीत

नीदरलैंड के शहर हेग में स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में जो फैसला दिया है वह भारत के लिए कानूनी और राजनयिक जीत के रूप में आया है। न्यायालय ने बहुमत से पाकिस्तान को वियना संधि के उल्लंघन का दोषी मानते हुए उससे कहा है कि वह जाधव की मौत की सजा की समीक्षा व उस पर पुनर्विचार करे यानि 2016 से जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी जेल में बंद जाधव की मौत की सजा पर आईसीजे द्वारा लगाई गई रोक बरकरार रहेगी। इसके अलावा उसने जाधव को काउंसलर एक्सेस देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने माना है कि जाधव को इतने दिनों तक कानूनी सहायता न देकर पाकिस्तान ने वियना संधि का उल्लंघन किया है। उसने यह भी कहा है कि इस मामले में पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक सुनवाई हो। मतलब यह कि यह सुनवाई पाकिस्तान की सेना की अदालत में नहीं हो सकती। बता दें कि तीन मार्च 2016 को पाकिस्तान ने कहा था कि जाधव बलूचिस्तान से जासूसी के मामले में पकड़े गए थे। भारत ने माना कि कुलभूषण भारतीय नागरिक हैं, लेकिन भारत ने कुलभूषण यादव के जासूस होने की बात से इंकार किया। यह उल्लेखनीय है कि बहुमत से दिए गए इस फैसले में चीन के जज भी शामिल थे। इस पर हैरानी नहीं कि जो इकलौता जज फैसले से सहमत नहीं हुए वह पाकिस्तान के थे। कुलभूषण जाधव पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला भारत की कूटनीतिक और साथ ही कानूनी जीत है। कुलभूषण को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जाए या नहीं, इस पर हिचक तोड़ते हुए मोदी सरकार ने जिस कूटनीतिक साहस का परिचय दिया उसे और बल दिया हरीश साल्वे की दलीलों ने। उनकी ही दलीलों को सुनकर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने फैसला दिया था कि वह कुलभूषण को सुनाई गई फांसी की सजा पर अमल न करे। इसी आदेश के बाद पाकिस्तान कुलभूषण के परिजनों को अपने यहां आने की इजाजत देने के लिए बाध्य हुआ था, लेकिन इसके बावजूद अंतिम फैसला उसके पक्ष में नहीं आया। अंतर्राष्ट्रीय आलोचना के मद्देनजर पाकिस्तान जाधव को फांसी देने का खतरा मोल नहीं ले सकता, लेकिन वह उसे रिहा करने के लिए बाध्य भी नहीं है। इस फैसले के बाद भी जाधव को पाकिस्तान की जेल में रहना होगा। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान में इस फैसले को किस तरह लिया जाता है। क्या पाकिस्तान ईमानदारी से फैसले को गंभीरता से लेगा और उस पर अमल करेगा? अब सवाल यह है कि अंतर्राष्ट्रीय अदालत का फैसला किसी देश पर कितना बाध्यकारी है? संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अदालत के उस फैसले को मानेंगे, जिसमें वह स्वयं पक्षकार हैं। फैसला अंतिम होगा और इस पर कोई अपील नहीं सुनी जाएगी। पाक सरकार के सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने पाकिस्तानी सीनेट को बताया था कि जाधव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं, हालांकि बाद में वह इस बयान से पलट गए। सकारात्मक नतीजा तो तभी निकलेगा जब भारत अगर पाकिस्तान पर और अंतर्राष्ट्रीय दबाव बना पाए।

Saturday, 20 July 2019

विपक्षी महिला सांसदों पर टिप्पणी कर फिर घिरे ट्रंप

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का विवादों से पुराना रिश्ता है। अपनी टिप्पणियों के चलते वह कई बार आलोचनाओं के शिकार हो चुके हैं। ताजा उदाहरण कुछ विपक्षी महिला सांसदों पर की गई टिप्पणी को लेकर है। डेमोकेटिक पार्टी की चार अल्पसंख्यक महिला सांसदों पर निशाना साधते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहाöसरकार कैसे चलाई जाए, अमेरिकी लोगों को यह बताने के बजाय वे जिन देशों से आई हैं वहीं लौट जाएं। ट्रंप ने रविवार को ट्विटर पर लिखाöयह उन प्रगतिशील डेमोकेट्स महिला सांसदों के लिए देखना कितना दिलचस्प है कि वे मूल रूप से जिन देशों से आई हैं, वहां की सरकारें पूरी तरह तबाह, सबसे भ्रष्ट और दुनिया में सबसे अयोग्य हैं। वे अमेरिकी लोगों से चिल्लाकर और कूरतापूर्वक कह रही हैं कि हमारी सरकार को किस तरह चलाया जाए? वे जहां से आई हैं, वहीं वापस क्यों नहीं चली जातीं और उन तबाह व अपराध प्रभावित जगहों पर समस्या दूर करने में मदद क्यों नहीं करतीं? जिन चार सांसदों को ट्रंप ने निशाना बनाया वह हैंöपहली बार संसद पहुंचने वाली सांसद रशिदा तालिब, उल्हान उमर, अलैक्जेंड्रिया ओकासिया व कार्टेज व अयान प्रसली। इन महिला सांसदों ने ट्रंप की आव्रजन नीति और शरणार्थियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की आलोचना की थी। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे शरणार्थियों को निकलाने के लिए रविवार से अभियन शुरू किया गया है। तालिब कई बार इजरायल की आलोचना कर चुकी हैं। उमर ने श्वेत राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया है। उमर का जन्म सोमालिया में हुआ है। तालिब का फलस्तीन और अलैक्जेंड्रिया का प्यूरोरिको से ताल्लुक है। प्रसली पहली अफ्रीकी सांसद हैं। संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में स्पीकर और डेमोकेट नेता नैंसी पलोसी समेत उनकी पार्टी के कई नेताओं ने इस पर तीखी प्रक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहाöहमारी विविधता और एकता ही अमेरिका की ताकत है। सांसदों पर हमला करने के बजाय ट्रंप को हमारे साथ आव्रजन नीति और अमेरिकी मूल्य पर काम करना चाहिए। अमेरिकी संसद की हाउस स्पीकर पेलोसी ने आगे कहा कि जब डोनाल्ड ट्रंप चार अमेरिकी कांग्रेस महिलाओं को अपने देश वापस जाने के लिए कहते हैं तो इससे उनकी चेक अमेरिका ग्रेट अगेन की योजना साफ हो जाती है। वह हमेशा अमेरिका को व्हाइट (श्वेत) बनाना चाहते हैं। पर ट्रंप भी चुप रहने वाले कहां। सोमवार को पेलोसी की टिप्पणी के बाद सोमवार को भी हमलावर रुख अपनाते हुए ट्रंप ने कहा कि इन चार महिलाओं ने इजरायल, अमेरिका के लोगों को अपमानित किया। इनकी गलत भाषा से प्रेसिडेंट हाउस भी शर्मसार है। मामला आगे बढ़ता चला गया और अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस नस्लीय टिप्पणी के खिलाफ मंगलवार को निन्दा प्रस्ताव पारित कर दिया। अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में पेश किए गए प्रस्ताव के पक्ष में 240 मत पड़े, जबकि विरोध में 184 मत पड़े। सांसद मलिनोवस्की द्वारा पेश प्रस्ताव पर बोलते हुए कहाöयह आग से खेलना जैसा है क्योंकि राष्ट्रपति जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें अशांत दिमाग ऐसे लोग सुन रहे हैं जो भयानक चीजें करते हैं, हिंसक चीजें करते हैं। इसकी सीमा हद तय करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसलिए हम यही करने की उम्मीद करते हैं। महिला सांसद ग्रेग येंग ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की टिप्पणियां नक्सलवादी हैं। स्थिति यह बनी हुई है कि न तो राष्ट्रपति ट्रंप अपनी टिप्पणी को वापस लेते या किसी प्रकार का अफसोस जाहिर करते लगते हैं और न ही अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा अपने स्टैंड से बदलता दिख रहा है। न्यूजीलैंड और कनाडा समेत अमेरिका के कई सहयोगियों ने ट्रंप की टिप्पणियों की आलोचना की है। यह विवाद अमेरिकी मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है।

-अनिल नरेन्द्र

आतंकवाद होता है सिर्प आतंकवाद

इंटरनेट और सोशल मीडिया के निर्बाध प्रसार-प्रचार के कारण आतंकवाद आज वैश्विक आयाम ले चुका है। सीरिया में  बैठा आईएसआईएस केरल के युवकों को प्रभावित कर रहा है तो दुबई में बैठा पाकिस्तानी आईएसआई का हैंडलर भारत सहित दुनिया के किसी भी कोने में धमाका करा सकता है। आतंकवाद तो आतंकवाद होता है। यह हकीकत समझना बहुत जरूरी है। गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद पर काबू पाने के लिए दक्षेस देशों के क्षेत्रीय समझौते (सार्प रीजनल कन्वेंशन ऑन सप्रेशन ऑफ टेररिज्म) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। पाकिस्तान को एक दिन दुनिया के दबाव में इस समझौते पर दस्तखत करने होंगे। अगर नहीं करता है तो हमारे पास उससे निपटने के तरीके लक्षित हमले, एयर स्ट्राइक आदि हैं। राष्ट्रीय अन्वेषण अधिकरण (एनआईए) संशोधन विधेयक 2019 पर लोकसभा में चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद का कोई राइट या लेफ्ट नहीं होता। आतंकवाद सिर्प आतंकवाद होता है। चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी की एक बार तीखी नोकझोंक भी हो गई। चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के सतपाल सिंह ने कहा कि हैदराबाद के एक पुलिस प्रमुख को एक नेता ने एक आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने से रोका था और कहा कि वह कार्रवाई आगे बढ़ाते हैं तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगी। इस पर असदुद्दीन ओवैसी अपने स्थान पर खड़े हो गए और कहा कि भाजपा सदस्य जिस निजी वार्तालाप का उल्लेख कर रहे हैं और जिसकी बात कर रहे हैं वो यहां मौजूद नहीं है। क्या भाजपा सदस्य इसके सबूत सदन में रख सकते हैं? सदन में मौजूद गृहमंत्री अमित शाह ने ओवैसी को तेज लहजे में कहा कि जब द्रमुक सदस्य ए. राजा बोल रहे थे तो आपने क्यों नहीं टोका? अब आप भाजपा सदस्य को क्यों टोक रहे हैं? अलग-अलग मापदंड नहीं होने चाहिए। शाह ने कहाöसुनने की भी आदत डालिए। इस तरह से नहीं चलेगा। इस पर ओवैसी ने कहा कि आप गृहमंत्री हैं तो मुझे डराएं मत, मैं डरने वाला नहीं हूं। शाह ने ओवैसी को जवाब देते हुए कहा कि किसी को डराया नहीं जा रहा है, पर अगर डर जेहन में है तो क्या किया जा सकता है। शाह ने ओवैसी के एक अन्य सवाल पर कहाöभाजपा की सरकार कानून से चलती है। इसमें जांच, अभियोजन और फैसले अलग-अलग स्तर पर होते हैं। विधेयक पेश किए जाने पर ओवैसी ने मत विभाजन की मांग की। इसे स्वीकारते हुए शाह ने दो टूक कहा कि मत विभाजन तो हो ही जाना चाहिए। देश को भी पता चलना चाहिए कि कौन आतंकवाद के खिलाफ है और कौन साथ? इस पर विधेयक के पक्ष में 278 व विरोध में छह मत पड़े। बाद में सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी। भारत की कम से कम एक एजेंसी को पूरी तरह सशक्त बनना जरूरी होता जा रहा है अगर सही मायनों में हमें आतंकवाद से निपटना है। लोकसभा में एनआईए कानून में इस आशय का संशोधन पारित करने में लगभग सभी दलों की सहमति इस आसन्न संकट के प्रति राजनीतिक दलों की संवेदनशीलता दिखाता है। आशा है कि राज्यसभा में भी यही संवेदनशीलता दिखेगी और एनआईए को और सशक्त बनाने का रास्ता बनेगा।

Friday, 19 July 2019

बेशक जमानत तो हो गई पर फिलहाल लालू रहेंगे अंदर

अंतत चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को झारखंड हाई कोर्ट से राहत मिली है। अदालत ने सजा की आधी अवधि जेल में काटने के आधार पर शुक्रवार को लालू को जमानत की सुविधा प्रदान की है। लालू को जमानत के लिए 50-50 हजार रुपए के दो निजी मुचलके सीबीआई कोर्ट में जमा करने होंगे। इसके साथ सजा के दौरान अदालत द्वारा लगाई गई जुर्माने की राशि पांच लाख रुपए भी जमा करनी होगी। अदालत ने कहा कि अगर उन्होंने अपना पासपोर्ट अदालत में जमा नहीं किया तो निचली अदालत में उसे जमा करा दें। इससे पहले सीबीआई की ओर से लालू प्रसाद की जमानत का जोरदार विरोध किया गया। अदालत को बताया गया कि हाई कोर्ट से जब लालू प्रसाद की जमानत याचिका खारिज हुई थी तो उन्होंने फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पीटिशन (एसएलपी) दाखिल कर जमानत की गुहार लगाई थी। उसमें लालू प्रसाद की ओर से आधी सजा काटने को आधार बनाया था। सीबीआई का जवाब देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था और उनकी याचिका खारिज कर दी थी। एक बार फिर आधी सजा काटने का आधार बनाते हुए लालू की ओर से यह हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। एक बार जिस आधार पर उनकी याचिका खारिज हो गई है, दोबारा इसी आधार पर उन्हें जमानत नहीं देनी चाहिए। इसके बाद लालू प्रसाद के वकील ने अदालत को बताया कि उन्होंने मेरिट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी। इसमें कहीं भी आधी सजा को आधार नहीं बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करने का कोई आधार नहीं बताया है, इसलिए उन्हें जमानत मिलनी चाहिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने लालू को जमानत देने का निर्णय किया। लालू प्रसाद चाइबासा, देवधर और दुमका से अवैध निकासी मामले में सजायाफ्ता है। फिलहाल लालू यादव रांची स्थित रिम्स (राजेन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) में इलाज करवा रहे हैं, उन्हें मधुमेह, हृदय रोग सहित कई अन्य बीमारियां हैं। उनकी खराब तबीयत को देखते हुए प्रत्येक शनिवार को परिवार सहित राजनीतिक लोग उनसे मिलने रिम्स पहुंचते हैं, इस मामले में जमानत मिलने के बाद भी लालू प्रसाद जेल में ही रहेंगे। दुमका और चाइबासा कोषागार से अवैध निकासी के मामले में भी निचली अदालत ने उन्हें सजा सुनाई है। दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने लालू जी की जमानत याचिका पहले ही खारिज कर दी है। देवधर मामले में भले ही जमानत मिल गई है, लेकिन लालू को अभी डेढ़ साल तक जेल में ही रहना होगा। डेढ़ साल बाद ही जेल से निकल पाएंगे लालू प्रसाद यादव।

-अनिल नरेन्द्र

जस्टिस रंजन गोगोई की पहल स्वागतयोग्य है

बच्चियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट इस कदर चिंतित है कि उसने स्वत संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दायर कर दी। अदालत ने कहा कि पिछले छह माह में बच्चियों से रेप के 24 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं जो झकझोर करने वाले हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने बताया कि एक जनवरी से जून तक देशभर में बच्चियों से दुष्कर्म की 24,212 एफआईआर दर्ज हुई हैं। इनमें से 11,981 मामलों में जांच चल रही है। जबकि 12,231 केस में चार्जशीट पेश हो चुकी है लेकिन ट्रायल सिर्प 6449 मामलों में ही शुरू हुआ है। इनमें भी सिर्प चार प्रतिशत यानि 911 मामलों का निपटारा हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार के मामले उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दर्ज हुए। जबकि दूसरे नम्बर पर महाराष्ट्र है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 70 प्रतिशत लोग यौन शोषण की जानकारी नहीं देते। 93 प्रतिशत यौन शोषण की शिकार बच्चियां ग्रामीण इलाके की हैं। ट्रायल और न्याय की धीमी रफ्तार की वजह पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया है। आबादी के अनुपात में पुलिस और जजों की संख्या में भारी कमी है। 454 लोगों के लिए एक पुलिस अधिकारी होना चाहिए, संयुक्त राष्ट्र के मानक के मुताबिक 574 के लिए एक पुलिस अधिकारी है। भारत में गृह मंत्रालय के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 10 लाख लोगों के लिए 19 जज हैं, जबकि यूएन के मानक के मुताबिक 50 होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सक्रियता दिखाते हुए बाल दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं का संज्ञान लेकर बिल्कुल सही किया। इसमें संदेह है कि केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ आदेश-निर्देश देने मात्र से ही ऐसे किसी माहौल का निर्माण हो सकेगा जो बाल दुष्कर्मों की घटनाओं को कम करने में प्रभावी सिद्ध हो सके। यह किसी से छिपा नहीं कि दुष्कर्म रोधी कानूनों को कठोर बनाने से कोई लाभ नहीं हुआ है। उन कारणों की तह तक जाने की सख्त जरूरत है जिनके चलते निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म रोधी कानूनों को कठोर महज बनाने से वांछित नतीजे नहीं हासिल हो सके। इन कारणों की तह तक जाने का काम सिर्प सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है, क्योंकि इतने साल बीतने के बाद भी निर्भया कांड में दोषियों को सजा तो सुनाई गई पर अब तक उस पर अमल नहीं हो सका। कोई नहीं जानता कि देश को दहलाने वाले इस जघन्य कांड के गुनहगारों को फांसी की सजा कब मिलेगी। एक बार ऐसे कांड में शामिल दरिन्दों को सरेआम फांसी हो जाए तो उसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। क्या सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं देखना चाहिए कि निर्भया कांड के दोषियों को सुनाई गई सजा पर अब तक अमल क्यों नहीं हो सका? पता नहीं कि इस केस में न्यायिक प्रक्रिया कब पूरी होगी? कानूनों को कठोर करने का लाभ तभी है जब उन पर अमल भी किया जाए। दरअसल यह आंकड़े एक तरफ समाज की प्रवृत्ति पर सवला खड़ा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपराध न्याय प्रणाली पर। इसलिए जहां बदलते समाज में नैतिक मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने की जरूरत है तो वहीं जांच एजेंसियों व अदालतों को भी सक्षम बनना होगा, ताकि चाइल्ड रेप के मामलों में शीघ्र निष्पादन से अपराधियों में डर पैदा हो सके। ऐसे मामले रोकने के लिए पारिवारिक और समाज को अपना दायित्व निभाने की जरूरत है। बेहतर समाज के निर्माण में घर-परिवार, शिक्षा संस्थानों के साथ ही समाज की भी अहम भूमिका होती है। सुखद बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के साथ केंद्र सरकार भी इसके प्रति गंभीर दिख रही है। केंद्र ने हाल में बाल यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए पॉस्को कानून में संशोधन को मंजूरी दी है। हम उम्मीद करते हैं कि मुख्य न्यायाधीश की यह पहल रंग लाएगी और ऐसे जघन्य अपराधों पर रोक लगेगी।

Wednesday, 17 July 2019

वर्ल्ड कप फाइनल जैसा न पहले देखा न सुना, छोड़ गया कई सवाल

इंग्लैंड को किकेट का जनक माना जाता है और विश्व कप  किकेट की शुरुआत भी यहीं से 1975 में हुई थी। पर विश्व कप का खिताब जीतने में इंग्लैंड को 44 साल लग गए। पर गत रविवार को जो इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच फाइनल मैच खेला गया वैसा रोमांच इससे पहले कभी भी किसी फाइनल में देखने को नहीं मिला। पहली गेंद से 612वीं गेंद  तक तमाम उतार-चढ़ाव देखने को मिले। बावजूद इसके दोनों टीमों के एक बराबर रन थे। एक को विजेता तो घोषित करना था इसलिए आईसीसी के उस रूल का सहारा लिया गया जो कहता है कि वर्ल्ड कप फाइनल अगर टाई होता है तो सुपर ओवर खेला जाएगा। शायद यह किकेट इतिहास का पहला ऐसा मौका था जब सुपर ओवर भी टाई हो गया और वर्ल्ड कप किसे दिया जाए यह एक खास नियम से तय हुआ। अगर सुपर ओवर भी बराबरी पर छूटा तो फिर यह देखा गया कि किस टीम ने ज्यादा बाउंड्रीज (चौके और छक्के) लगाए हैं। पहले 50 ओवर के अलावा सुपर ओवर में लगाई गई बाउंड्रीज भी जोड़ी जाएंगी। इस रूल से इंग्लैंड 17 के मुकाबले 26 बाउंड्री से वर्ल्ड कप तो जीत गया लेकिन टूर्नामेंट के इतिहास में पहली बार इस्तेमाल हुए इस रूल पर सवाल खड़े होने श्gारू हो गए हैं। विश्व कप विजेता की घोषणा के बाद दोनों टीमों के पशंसक दो धड़ों में बंट गए। विजेता टीम का समर्थन करने वाले पशंसक ``नियम तो नियम होता है'' का तर्प दे रहे हैं तो हारने वाली टीम के पशंसक उस नियम को गलत ठहरा रहे हैं जिसके तहत सबसे ज्यादा बाउंड्री लगाने वाली टीम को विजेता घोषित किया गया। आईसीसी के  नियम की वजह से इंग्लैंड की किकेट टीम पहली बार विश्व विजेता बन गई है। हालांकि फाइनल मुकाबले में एक रन भी खूब विवाद में रहा। यह विवाद इंग्लैंड की पारी के 50वें ओवर की चौथी गेंद से जुड़ा हुआ है। न्यूजीलैंड की ओर से ट्रेंट बोल्ट आखिरी ओवर की गेंदबाजी कर रहे थे। अंतिम ओवर में इंग्लैंड को 15 रन बनाने थे। पहली दो गेंदों पर बेन स्टोक्स से कोई रन नहीं बना। तीसरी गेंद पर बेन स्टोक्स ने छक्का जड़ दिया। इसके बाद बोल्ट ने चौथी गेंद फुलटॉस डाली। स्टोक्स ने उसे डीप मिड विकेट की ओर खेल दिया। मार्टिन गुप्टिल ने बाल पकड़ते ही उसे थ्रो किया। गुप्टिल के थ्रो के वक्त स्टोक्स दूसरे रन के लिए भाग रहे थे। गुप्टिल का थ्रो स्टोक्स के बल्ले से टकराया और गेंद बाउंड्री के पार चली गई। अपने साथी अम्पायर से सलाह के बाद अम्पायर कुमार धर्म सेना (श्रीलंका) ने बल्लेबाजों को छह रन दे दिए। इस फैसले ने इंग्लैंड की राह आसान कर दी। तीन गेंद पर नौ रन बनाने की चुनौती के सामने अब दो गेंद पर तीन रन रह गई। इस चौथी गेंद पर मिले छह रन के बारे में ही कहा जा रहा है कि इसे पांच रन होना चाहिए था। ऐसा क्यों होना चाहिए, इससे पहले ऐसे मामलों में आईसीसी के नियम 19.8 के अनुसार अगर ओवर थ्रो या किसी फील्डर के चलते बाउंड्री हो तब बल्लेबाजों द्वारा पूरे किए गए रन को भी जोड़ दिया जाना चाहिए। पूरे किए रन के साथ अगर बल्लेबाज थ्रो या एक्ट के वक्त कोई रन पूरा करने के लिए एक-दूसरे को कास कर चुके हों तो वो भी रन पूरा माना जाएगा। नियम का दूसरा हिस्सा इस मैच के लिहाज से बेहद अहम है। क्येंकि मैच के वीडियो फुटेज में साफ दिख रहा है कि गुप्टिल ने जब डायरेक्ट थ्रो किया तब बेन स्टोक्स और आदिल रशीद ने दूसरे रन के लिए एक-दूसरे को कास नहीं किया था। हालांकि मूल नियम में थ्रो के साथ एक्ट भी लिखा है, जिससे इस बात की संभावना भी बनती है कि एक्ट का मतलब गेंद के बल्ले से टकराना या फील्डर से टकराना हो, यह भी हो सकता है। लेकिन नियम में बल्लेबाज के एक्शन का कोई जिक नहीं है। वहीं 50वें ओवर की चौथी गेंद पर बने छह रन में जो अतिरिक्त रन था वो वजह रहा जिसके चलते न्यूजीलैंड वर्ल्ड कप गवां बैठा। इससे सहमत नहीं होने वाले भी इस बात से तो सहमत होंगे कि उस ओवर थ्रो के चौके के चलते न्यूजीलैंड के हाथों से वर्ल्ड कप फिसल गया। पूर्व आईसीसी अम्पायर साइमन टोफेल ने भी वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में अम्पायर की इस गलती पर कहा कि उन्हें (अम्पायरों) यहां 5 रन देने चाहिए थे 6 नहीं। उन्होंने कहा कि ओवर थ्रो के इस चौके के बाद अगली गेंद (ओवर पांचवी गेंद) का सामना रशीद को करना था। लेकिन यहां अम्पायर ने इसे 2 प्लस 4 रन दिया और स्टोक्स ने यह गेंद फेस की। टोफेल ने कहा कि दुर्भाग्य से समय-समय पर इस तरह की चीजें होती रहती है, जो खेल हम खेल रहे हैं वह इसका हिस्सा है। विश्व कप जीतने का सपना पूरा करने के लिए इंग्लैंड की टीम को 44 साल गुजर गए। इस बीच 11 विश्व कप का सफर अंग्रेजों ने तय किया। 1979, 1989 और 1992 में इंग्लैंड फाइनल तक पहुंचा, लेकिन किसी भी इंग्लिश कप्तान को विश्व कप की ट्राफी चूमने का सौभाग्य पाप्त नहीं हुआ। किकेट के जन्म दाता इंग्लैंड का सपना पूरा हुआ भी तो एक ऐसी टीम से जिसका कप्तान, मुख्य आलराउंडर, मुख्य ओपनर, यहां तक कि मुख्य गेंदबाज तक विदेशी मूल के थे। कप्तान इयोन मोर्गन इस देश के नहीं हैं। उनका जन्म आयरलैंड में हुआ था, यहां तक कि वह वर्ल्ड कप के लिए खेलने से पहले आयरलैंड के लिए अंतर्राष्ट्रीय किकेट तक खेल चुके हैं। इंग्लैंड के पास आज विश्व कप खिताब है तो उसमें अहम भूमिका ओपनर जैसन रॉय की है। लीग मैच में जैसन रॉय चोटिल हुए तो इंग्लैंड का सेमीफाइनल में पहुंचना मुश्किल हो गया था। तब रॉय ने ही वापसी कर टीम को भारत-न्यूजीलैंड के खिलाफ जीत दिलाई। जैसन रॉय का जन्म दक्षिण अफीका के डरबन शहर में हुआ था, लेकिन उसके माता-पिता के इंग्लैंड में बसने के बाद उन्होंने इंग्लैंड के लिए वनडे में 2015 में पदार्पण किया था। यह तो बेन स्टोक्स ने भी नहीं सोचा होगा कि वह इंग्लैंड के लिए विश्व कप जीतेंगे और उस देश को हराकर जीतेंगे जहां उनका जन्म हुआ था। 28 वर्षीय बेन स्टोक्स का जन्म न्यूजीलैंड के काइस्ट चर्च शहर में हुआ था। उनके माता-पिता न्यूजीलैंड से इंग्लैंड आकर बस गए थे, लेकिन अब वह दोनों न्यूजीलैंड में ही रह रहे हैं। स्टोक्स इंग्लैंड में ही पले-बढ़े और यहीं किकेट शुरू की। स्टोक्स ने 25 अगस्त 2015 को आयरलैंड के खिलाफ अपना पहला वनडे खेला था। इंग्लैंड को चैंपियन बनाने में किसी खिलाड़ी की सबसे अहम भूमिका रही तो वह हैं बेन स्टोक्स। अगर उसने विकेट पर टिकने का जज्बा नहीं दिखाया होता तो न्यूजीलैंड ने एक समय उनका काम कर दिया था। जब युवा आलराउंडर जोफा आर्चर को सुपर ओवर डालने की जिम्मेदारी दी तो उन्होंने स्वीकारा कि वह बहुत नर्वस थे। तभी स्टोक्स ने उनके कंधे पर हाथ रखा और ऐसा मंत्र दिया कि उनके ओवर का सारा  डर काफूर हो गया। इंग्लैंड टीम के मुख्य तेज गेंदबाज जोफा आर्चर जिन्हेंने सुपर ओवर में अपनी टीम को जिताया। मुख्य रूप से कैरिबियाई देश बारबेडोस से हैं। वह किकेट का सपना लेकर ही 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ ससेक्स की ओर से अपना पहला पथम श्रेणी का मैच खेला था। विश्व कप शुरू होने से कुछ महीने पहले उन्हें नियम के मुताबिक इंग्लैंड में पांच वर्ष पूरे करने थे तभी इंग्लैंड की राष्ट्रीय टीम में उनका चयन हो सकता था, वह उन्होंने पूरे कर लिए और विश्व कप टीम का हिस्सा बने। किस्मत भी उनके साथ रही पहली बार टीम में चुने जाने पर ही विश्व विजेता टीम का हिस्सा बन गए। पाकिस्तान का विश्व कप जीतने का सपना जरूर अधूरा रह गया, लेकिन इस देश से ताल्लुक रखने वाले इंग्लैंड के दो खिलाड़ियों ने यह कर दिखाया। आदिल रशीद का जन्म भले ही इंग्लैंड के यार्कशायर में हुआ, लेकिन उनके पिता पाकिस्तान से हैं। ऐसी ही कहानी मोइन अली की भी है। मोइन के दादा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मीरपुर जिले से थे। वह इंग्लैंड आकर बस गए थे। मोइन के पिता टैक्सी ड्राइवर थे जबकि मां नहीं थीं। खैर, वर्ल्ड कप किकेट के इतिहास में पहले कभी ऐसा फाइनल मैच नहीं देखा। अगर इंग्लैंड ने कप जीता तो न्यूजीलैंड ने दिल जीता। यह मैच कई दिनों तक विवाद में रहेगा और इस पर चर्चा होती ही रहेगी। अंत में तो हम यही कह सकते हैं कि रविवार खेले गए इस वर्ल्ड कप फाइनल में भाग्य इंग्लैंड पर मेहरबान था। उसे वर्ल्ड चैंपियन बनना था। भारत को तो इसी पर संतोष करना पड़ा कि हमने पाकिस्तान को वर्ल्ड कप में फिर हरा दिया।

-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 16 July 2019

जमीन घोटाले से बैंक धोखाधड़ी तक कड़ा प्रहार

सीबीआई ने मंगलवार को भ्रष्टाचार के कलंक के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की। इस दौरान कार्रवाई में 500 से अधिक सीबीआई अधिकारियों की टीम शामिल थी। जमीन घोटालों से लेकर बैंक धोखाधड़ी तक पर कड़ा प्रहार किया है। सीबीआई ने जिन 30 मामलों में कार्रवाई की उनमें उत्तर प्रदेश का शूगर मिल्स घोटाला, हरियाणा का जमीन घोटाला, हरिद्वार बैंक घोटाला, शिमला में घोटाला और आईआरएस मामला शामिल था। मंगलवार को सीबीआई ने कार्रवाई में दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर व छत्तीसगढ़ समेत 19 राज्यों में 110 ठिकानों पर 500 अधिकारियों ने जांच-पड़ताल की। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासन में चीनी मिल बिक्री घोटाले में लखनऊ, सहारनपुर और एनसीआर में 14 जगह छापे पड़े। एजेंसी की कार्रवाई 30 एफआईआर के आधार पर हुई, इनमें कुछ नए केस भी हैं। सीबीआई ने पूर्व आईएएस नेतराम के लखनऊ में गोमती नगर और विनय प्रिय दूबे के अलीगंज स्थित आवास पर छापे मारे। नेतराम मायावती के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं। हरिद्वार में तीन करोड़ के बैंक धोखाधड़ी केस में छापा पड़ा। मामला शिवालिक नगर स्टेट बैंक ब्रांच से 13 लोन देने का है। लोन से पूर्व तकनीकी कार्रवाई पूरी नहीं की गई। वहीं श्रीनगर, जम्मू व उधमपुर में 11 जगहों पर हथियारों के फर्जी लाइसेंस व खरीद-फरोख्त को लेकर छापे पड़े। जबलपुर में 980 एकड़ जमीन के सौदे मामले में कार्रवाई हुई। इसमें फर्जी स्टाम्प पेपर का इस्तेमाल किया गया था। सीबीआई ने भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों में झारखंड के कई शहरों में छापेमारी की। सीबीआई टीम ने रांची में प्रॉविडेंट फंड में रिलायंस ब्रिक्स एंड पार्टी लिमिटेड नाम की कंपनी के 88 कर्मियों की पेंशन व पीएफ राशि में फर्जीवाड़े के आरोप में तीन तत्कालीन अधिकारियों, तत्कालीन सीनियर सोशल सिक्यूरिटी अस्सिटेंट विजय लाकड़ा, सेक्शन सुपरवाइजर (अब रिटायर्ड) जेके रॉय, अस्सिटेंट एकाउंटेट अभिमन्यु को आरोपी बनाया है। लोदना क्षेत्र के छह बीसीसीएल अधिकारियों और एंटी देवप्रभा प्राइवेट लिमिटेड के 13 ठिकानों पर धनबाद सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापेमारी की। 2017 में लोदना एरिया नम्बर 10 जीनागोरा में 6,756 टन कोल शॉर्टेज का मामला पकड़ा था। नोटबंदी के दौरान बिना केवाईसी के बैंक में 500 और 1000 के नोट जमा करने पर भी अफसरों ने गाजियाबाद और बुलंदशहर में पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधन के घर और एक अन्य कंपनी के ठिकानों की तलाशी ली। इस दौरान कड़ी पूछताछ की गई। मैंने कुछ प्रमुख छापों का जिक्र किया है। केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने का ऐलान किया है। इसी कड़ी में यह छापे मारे गए हैं और आयकर विभाग और सीमा व उत्पाद शुल्क के करीब 25 अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत कर दिया है।

-अनिल नरेन्द्र