Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 27th July 2011
अनिल नरेन्द्र
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे मायावती की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। चार वर्ष तक तो स्थिति बहन जी के नियंत्रण में रही पर पांचवें अंतिम साल में स्थिति उनके काबू से बाहर होती जा रही है। उन पर चौतरफा दबाव बढ़ता जा रहा है। राहुल गांधी जमीन पर उतरकर गांव-गांव घूम रहे हैं, तो दूसरी तरफ अदालतों ने मायावती सरकार को कटघरे में खड़ा करके एक नई समस्या पैदा कर दी है। इन सबकी वजह से केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है। सूत्रों के मुताबिक घोटालों और आपराधिक षड्यंत्रों के लिए बदनाम हो चुकी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएमएम) योजना समेत केंद्र की सभी योजनाओं के लिए पिछले चार वर्षों में भेजे गए धन के उपयोग का हिसाब उत्तर प्रदेश सरकार से मांगे जाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसकी शुरुआत राज्य सरकार को एनआरएमएम योजना के तहत दी जाने वाली राशि में 700 करोड़ से ज्यादा की कटौती कर दी गई है। सूत्रों का यह भी कहना है कि मायावती के करीबी माने जाने वाले कुछ उद्योगपतियों और बिल्डरों पर जांच एजेंसियों का घेरा भी कसने लगा है। पिछले दिनों राज्य सरकार के एक ताकतवर मंत्री के खिलाफ हत्या के एक मामले में हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश पर भी जल्दी ही अमल हो सकता है। गृह मंत्रालय यह भी हिसाब लगा रहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई कितनी बैठकों में मायावती अभी तक शामिल हुई हैं? गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक मायावती ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बुलाई गई एक भी बैठक में शिरकत नहीं की है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश को पिछले छह वर्षों में एनआरएमएम के तहत 8570 करोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा इस वर्ष 3137 करोड़ की धनराशि और मिली। अब तक कुल 11708 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। राज्य सरकार ने इनके खर्च का कोई हिसाब केंद्र को नहीं दिया है। यही हाल मनरेगा, इन्दिरा आवास योजना, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना जैसी अन्य केंद्रीय योजनाओं का भी है। इनकी मद से भी केंद्र से राज्य को अरबों रुपये की धनराशि आ चुकी लेकिन खर्च का हिसाब राज्य सरकार ने अब तक केंद्र को नहीं दिया। जबकि गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड की गैर-कांग्रेसी सरकारें भी केंद्रीय योजनाओं को किस तरह खर्च करती हैं, उसका हिसाब नियमित रूप से देती हैं। इस सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों ने अरबों का धंधा किया तो राजधानी तक आने वाली केंद्रीय योजनाओं को जमकर लूटा है। जब सरकार के संरक्षण में मंत्री लूटने में जुटे हों तो सांसदों-विधायकों के दमन शोषण को कौन रोकेगा? इसी वजह से कई जगहों पर हत्या और बलात्कार के मामले में मंत्री से लेकर विधायक तक फंसे हैं। राहुल गांधी का भगीरथी प्रयास राज्य में कांग्रेस की वापसी के लिए भी रंग लाने लगा है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिग्रहण को लेकर अदालतों के फैसले से भी केंद्र और कांग्रेस दोनों का हौंसला बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर मायावती बुरी तरह से फंस गई हैं। देखना यह होगा कि अपने राजनीतिक कैरियर की यह सबसे बड़ी चुनौती से वह कैसे निपटती हैं?Tags: Anil Narendra, Daily Pratap, Mayawati, Uttar Pradesh, Vir Arjun
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