Sunday, 31 July 2011

अन्ना आंदोलन पर तुले, सरकार इसे फेल करने पर


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31st July 2011
अनिल नरेन्द्र
जैसी इस संप्रग सरकार से उम्मीद थी वही हुआ। केंद्र सरकार ने टीम अन्ना को जोर का झटका दिया है। कैबिनेट ने लोकपाल बिल को मंजूरी दे दी है। जिस मसौदे को पास किया गया है, उसमें अन्ना हजारे की प्रमुख सिफारिशों को एकदम दरकिनार कर दिया गया है। सरकारी मसौदे और टीम अन्ना के मसौदे में सबसे बड़ा अंतर प्रधानमंत्री और ज्यूडिशरी को लेकर है। टीम अन्ना इस बात पर जोर दे रही थी कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री व ज्यूडिशरी जरूरी है जबकि सरकारी मसौदे में प्रधानमंत्री इस कानून के दायरे से बाहर रहेंगे। जब वह पद छोड़ेंगे, तब भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच लोकपाल कर सकता है। इसी तरह ज्यूडिशरी भी लोकपाल की जद से बाहर होगी। ज्यूडिशरी की जिम्मेदारी के लिए अलग बिल मानसून सत्र में लाने की उम्मीद सरकार ने जताई है। सरकारी मसौदे में संसद में सांसदों का बर्ताव भी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा। अलबत्ता, संसद से बाहर के कामों पर लोकपाल जांच कर सकता है। अन्ना चाहते हैं कि संसद के अंदर भी सांसदों का बर्ताव लोकपाल बिल में कवर हो। एक बड़ा मतभेद नौकरशाहों को लेकर है। टीम अन्ना के लोकपाल में पूरी ब्यूरोकेसी इसके दायरे में होनी चाहिए, चाहे वह केंद्र की हो या राज्यों की जबकि सरकारी लोकपाल में ग्रुप `ए' के नीचे की ब्यूरोकेसी जांच के दायरे से बाहर रहेगी। उनके लिए अलग सिस्टम होगा। ऊपर के अधिकारियों की जांच लोकपाल कर सकता है।
टीम अन्ना के सभी सिपहसालार सरकार के रवैये और मसौदे से भड़क गए हैं। प्रशांत भूषण का कहना है कि जो मसौदा मंजूर किया गया है, वह लोकपाल कानून का नहीं `जोकपाल' विधेयक है। प्रशांत ने कहा कि वे सरकार के इस कारनामे के खिलाफ पूरे देश में `गांधीगीरी' करेंगे। 16 अगस्त से जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे ने आमरण अनशन का ऐलान पहले से ही कर दिया है। प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने को संविधान विरुद्ध बताया। अन्ना ने कहा कि सरकार ने छल किया है, हम जनता के बीच जाएंगे। टीम अन्ना ने जोर दिया था कि कैबिनेट के सामने दोनों (सरकारी और अन्ना का) मसौदा रखे जाएं, ताकि सही फैसला हो सके पर सिविल सोसायटी का मसौदा कैबिनेट के सामने रखा ही नहीं गया केवल मंत्रियों का मसौदा ही रखा गया। दूसरी ओर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का दावा है कि इस आरोप में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा कि टीम अन्ना ने लोकपाल विधेयक के लिए 40 प्रमुख बिंदु रखे थे। इसमें से 34 बिंदुओं को विधेयक में समाहित कर लिया गया है। टीम अन्ना की किरण बेदी कहती हैं कि जो विधेयक मंजूर किया गया है, वह एकदम लंगड़ा-लूला है। इस कानून के दायरे से प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को बाहर रखा गया है। राज्यों में भ्रष्टाचार के मामले भी इसकी परिधि में नहीं आएंगे। राज्यों में अनिवार्य रूप से लोकपाल नियुक्त करने का सुझाव भी नहीं माना गया। इस तरह यह विधेयक देश की जनता के साथ एक कूर मजाक जैसा है। सूचना अधिकार के जाने-माने कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मंजूर किए गए विधेयक के उस प्रावधान पर हैरानी जताई, जिसमें व्यवस्था की गई है कि भ्रष्टाचार के मामले की कोई शिकायत झूठी निकलती है तो उसे भारी जुर्माना या दो साल तक की सजा भी हो सकती है। वे कहते हैं कि शिकायतकर्ता के खिलाफ ही इतना कड़ा प्रावधान बनाने से लोग डर जाएंगे। इससे भ्रष्टाचारियों को उल्टा और ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा कि मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि लोकपाल कानून भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाया जा रहा है या बड़े भ्रष्टाचारियों को कवच प्रदान करने के लिए बनाया जा रहा है? केजरीवाल ने लोकपाल विधेयक को `धोखापाल' विधेयक करार दिया है।
लोकपाल बिल के मसौदे के जो भी गुण-दोष हैं, उन्हें एक तरफ रख भी दिया जाए, तो यह साफ है कि इसे लेकर बहुत तीखे मतभेद हैं। एक ओर सरकार और सिविल सोसायटी के बीच मतभेद हैं तो दूसरी ओर सरकार और विपक्ष के बीच। कोई विपक्षी दल सरकार के मसौदे से सहमत नहीं है और इसका परिणाम तब सामने आएगा, जब विधेयक संसद में पेश होगा। सोमवार से संसद सत्र आरम्भ हो रहा है और यह बताने के लिए किसी ज्योतिष-ज्ञान की जरूरत नहीं है कि इस विधेयक पर भारी हंगामा होगा और पूरी-पूरी संभावना यह है कि इस बिल को संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया जाएगा, यानि इस बात की कोई संभावना नहीं दिखती कि यह तुरन्त पारित हो जाएगा। पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में एक लहर दौड़ रही है और पब्लिक चाहती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अविलंब कुछ प्रभावी और सख्त कदम उठाए जाएं। लोकपाल बेशक हर मर्ज की दवा नहीं है, लेकिन वह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावशाली संस्था जरूर बन सकता है और देश में यह संदेश जाता है कि सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने पर गंभीर है पर तात्कालिक राजनैतिक स्वार्थ और मतभेद लोकपाल पर किसी किस्म की आम सहमति नहीं बनने दे रहा है। लोकपाल पर जब देश की सर्वोच्च संस्था संसद में बहस होगी तब शायद कोई प्रभावी कदम उभरकर निकले। फिलहाल तो टीम अन्ना अपने आंदोलन की तैयारी में जुट जाएगी और सरकार इसे फेल करने में।
Tags: Anil Narendra, Anna Hazare, Congress, Daily Pratap, Lokpal Bill, Vir Arjun

No comments:

Post a Comment