Saturday 16 July 2011

खून से लथपथ मुंबई और केंद्रीय गृह मंत्रालय


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 16th July 2011
अनिल नरेन्द्र
मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, आईबी और आतंकी मामलों की बड़ी धूमधाम से बनाया गया एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के चौकसी और सतर्प रहने के सारे दावों की पोल खोलकर रख दी है। गृह मंत्रालय और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का बतौर गृहमंत्री अच्छा रिकार्ड चल रहा था। जनता को उनमें विश्वास होने लगा था कि अंतत एक ऐसा मंत्री आया है जिसने धमाकों का सिलसिला थोड़ा थामा है। 26 नवम्बर 2008 के मुंबई हमलों के बाद से कोई बड़ा धमाका नहीं हुआ था। छोटे-मोटे बम विस्फोट का सिलसिला तो चलता ही रहा पर जिस तरह से संसद भवन या अक्षरधाम मंदिर या मुंबई में बड़े हमले हुए थे वैसा कोई नहीं हुआ था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के लिए यह धमाके इसलिए भी बड़ी शर्मिंदगी बनते दिख रहे हैं क्योंकि यह ठीक उस समय हुए हैं जब आतंकी हमलों के लिए विशेषतौर पर गठित एनआईए की टीम पहले से ही मुंबई में जमी थी और सोमवार को केंद्रीय गृह सचिव भी मुंबई दौरे पर थे। हालांकि यह दौरा निजी था लेकिन वह और एनआईए की टीम सम्भावित खतरे को कैसे नहीं भांप पाई, खासतौर पर जब पिछले कुछ दिनों से अलर्ट पर थी। तमाम सवालों के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल की आंच से अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की शान पट्टी में आतंकियों ने गुस्ताखी कर दी। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक जनवरी से अब तक करीब आधा दर्जन बार खुफिया चेतावनियों के बाद भी आतंकवादी बुधवार को मुंबई में 11 मिनट के अंतराल पर तीन विस्फोट कराने में सफल रहे जबकि इस सिलसिलेवार विस्फोटों से कुछ घंटे पहले ही अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारत को मुंबई समेत कुछ शहरों में सम्भावित आतंकी हमले की चेतावनी दी थी। इतना ही नहीं, मुंबई में 26 नवम्बर 2008 को हुए आतंकी हमले के मुख्य अभियुक्त आमिर अजमल कसाब का 24वां जन्मदिन भी बुधवार को ही था। इन सबके बावजूद सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों की सतर्पता धरी की धरी रह गई। मंत्रालय आतंकी हमलों की आशंका को लेकर किस कदर लापरवाह बना हुआ बस इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जुलाई के पहले सप्ताह में मंत्रालय ने जब अपनी मासिक रिपोर्ट पेश की थी उस समय इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपाई थी कि पिछले छह महीने में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ है। शायद मंत्रालय इस सम्भावित खतरे को भांप नहीं पाया था। केंद्रीय गृहमंत्री के तौर पर पी. चिदम्बरम के मंत्रालय का पद्भार सम्भालने के बाद यह पहली बार है जब आतंकी संगठनों ने एक साथ तीन धमाके कर सीधी चुनौती दी है। इससे पहले हुए पुणे के जर्मन बेकरी धमाके और बनारस घाट पर हुए धमाके में भी मंत्रालय के हाथ अभी तक खाली ही हैं। रोचक तथ्य यह है कि जर्मन बेकरी धमाके में मंत्रालय एक बार मामले को लगभग खोलने का दावा कर चुका था, लेकिन बाद में इस मामले को अनसुलझा करार दिया।
बेशक बुधवार के मुंबई धमाकों में मुंबई की जनता ने हमेशा की तरह वारदात का मुकाबला साहस, धैर्य से किया पर कटु सत्य यह है कि मुंबई अब वैसा नहीं रहा जैसा था। मुंबई पर 1993 से अब तक आधे दर्जन से ज्यादा आतंकी हमले हुए हैं जिनमें 2008 का हमला भी शामिल है। इन सभी हमलों में कम से कम 700 लोग मारे गए हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि अब भी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। आमतौर पर मुंबई पर हुए हमलों के पीछे दलील होती है कि अगर भारत की वित्तीय राजधानी और मनोरंजन की गतिविधियों के प्रमुख केंद्र पर हमला होता है तो वह देश के लिए जबरदस्त धक्का हो सकता है। साथ ही इन हमलों से दहशतगर्द गुट दुनिया की नजर अपनी तरफ खींच सकते हैं। लेकिन अब लगता है कि यह कहानी का केवल एक सिरा है। मुंबई में रहने वाले कई लोग आपको बताएंगे कि शहर 1993 से ढलान पर लुढ़कने लगा था जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पूरा शहर दो सप्ताह तक सांप्रदायिक दंगों में झुलसता रहा। दंगों के दो महीनों के बाद अंडरवर्ल्ड ने बदला लेने की कार्रवाई के तहत सिलसिलेवार बम धमाके किए जिनमें 250 से अधिक लोगों की जान गई। उनमें कई मुसलमान भी थे। कई लोग मानते हैं कि कानून का साया उस दिन से उठने लगा। 1998 में दो खंडों में सांप्रदायिक दंगों पर आई रिपोर्ट को हर सरकार ने नजरअंदाज किया और दंगों में कथित रूप से शामिल नेताओं और पुलिस कर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन उसी समय प्रशासन ने उनके खिलाफ जरूरी कार्रवाई की जो बम धमाकों में शामिल थे। इसमें सरकार पर आरोप लगा कि वो मुसलमान विरोधी है। मुंबई शहर में रह रहे दो बड़े समुदायों के बीच भरोसा खत्म होने लगा। मुंबई शहर पर काफी सराही गई किताब `मुंबई फेबल्स' के लेखक का कहना है कि मुंबई को अब तक एक कानून पसंद, खुले दिमाग वाला शहर के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन यह छवि अब एक काल्पनिक तस्वीर बन चुकी है। 1990 के मध्य से ही राजनेताओं, बिल्डर्स, अपराधी, हिन्दू चरमपंथी, मुस्लिम चरमपंथियों की साजिश अब शहर की रगों में दौड़ती है। अब भी तस्वीर कुछ बदली दिखाई नहीं देती। शहर इन साजिशों से चरमरा गया है और इसीलिए उस पर हमला करना मुश्किल नहीं लगता। इसकी रातों की चमक, फिल्मी सितारों के ब़ड़े-बड़े बंगले, भारत के सबसे धनी व्यक्ति की सबसे महंगी इमारत, इन सब परतों के नीचे मुंबई शहर एक थका हुआ कड़वाहट से भरा हुआ शहर बनकर रह गया है। इसकी बड़ी आबादी झोपड़-पट्टियों में रहती है। हजारों लोग आज भी सड़कों पर रात गुजारते हैं। इन सबके चलते यह शहर खुशनुमां नहीं हो सकता, हर धमाके या विपदा के बाद मुंबई स्पिरिट का हवाला अब उबाऊ हो गया है।
Tags: Anil Narendra, Bomb Blast, Congress, Daily Pratap, Mumbai, NIA, P. Chidambaram, Vir Arjun

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