Wednesday 6 July 2011

सर्वदलीय बैठक में सरकार ज्यादा सफल रही


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 6th July 2011
अनिल रेन्द्र
अगर मनमोहन सिंह सरकार की सर्वदलीय बैठक बुलाकर यह मंशा थी कि अन्ना हजारे के आंदोलन की हवा निकालने के लिए विपक्षी दलों का इस्तेमाल किया जाए तो वह इसमें पूर्ण सफल नहीं हो सकी। हां कुछ हद तक सफल जरूर हुई। विभिन्न राजनीतिक दलों ने सिविल सोसाइटी की डिमांडों पर अपने पत्ते नहीं खोले। इस बात पर सहमति बहरहाल जरूर बन गई कि एक मजबूत लोकपाल बिल जरूर होना चाहिए। इस मुद्दे पर आम सहमति बनने की उम्मीद भी नहीं थी। भाजपा का हमेशा से यही स्टैंड रहा है कि पहले सरकार संसद में विधेयक पेश करे फिर उस पर हम चर्चा करेंगे। सुषमा स्वराज का कहना था कि सर्वदलीय बैठक में मसौदे के प्रावधानों पर चर्चा नहीं हुई। हमें ऐसा लोकपाल चाहिए जो पारदर्शी तरीके से चुना जाए और निष्पक्षता के साथ काम करे। हमारे सरकारी मसौदे के प्रावधानों पर अनेक मतभेद हैं। इसमें लोकपाल की चयन प्रक्रिया, अधिकार क्षेत्र शामिल हैं। लगभग सभी दलों की राय आमतौर पर यह भी थी कि सरकार को सिविल सोसाइटी के सामने झुकना नहीं चाहिए। कुछ राजनेता अन्ना की टीम पर भी भड़के। `आपने अन्ना और उनकी सिविल सोसाइटी के बनाए हुए जन लोकपाल विधेयक का मसौदा तो हमें दे दिया, जरा अन्ना की बॉयोग्राफी भी दे दीजिए जिससे हमें उनके बारे में भी पता चल जाए।' अपने अधिकारों पर उठते सवाल से खार खाए कुछ राजनीतिक दलों का गुस्सा इस बैठक में समाजवादी पार्टी की ओर से ऐसे ही अन्दाज में बयां किया गया। `पहले तो आपको हमारी याद आई नहीं अब जब आप पीड़ित हो गए तो हमें बुला लिया। अब आप संसद में पहले स्थापित प्रक्रिया के तहत बिल लाइए, इसके बाद ही हमें जो कुछ कहना होगा कहेंगे।'
इस सर्वदलीय बैठक में आम राय होना तो दूर की बात रही सभी दल इस बात के ज्यादा इच्छुक थे कि अमुक पार्टी का स्टैंड क्या है। केंद्र सरकार इस लिहाज से सफल रही कि सभी दलों ने एक स्वर में यह कह दिया कि वह अपने अधिकारों से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि किसी भी सिविल सोसाइटी से बड़े हैं और उन्हें सिविल सोसाइटी डिक्टेट नहीं कर सकता। सरकार अपने इरादे को छिपा रही थी और उसकी इच्छा भी मामले को सुलझाने की बजाय उलझाने में ज्यादा थी। अगर ऐसा न होता तो वह दोनों मसौदों, एक जो अन्ना ने दिया था और एक जो पांच मंत्रियों ने बनाया था, का समन्वय करके अपनी ओर से एक ऐसा मसौदा पेश करती जिसमें दोनों की प्रमुख शर्तें होती तो शायद कोई आम सहमति बन जाती पर सरकार ने ऐसा नहीं किया। कुल मिलाकर इस सर्वदलीय बैठक का कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकला। टीम अन्ना ने बैठक के बाद कहा कि सर्वदलीय बैठक में तो कोई नतीजा निकलना ही नहीं था। सरकार ने कैबिनेट से पारित कोई मसौदा भी नहीं तैयार किया था। सिविल सोसाइटी कार्यकर्ता मनीष सिसोदिया ने कहा, `16 अगस्त से अन्ना हजारे का अनशन इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार कितना प्रभावी विधेयक मानसून सत्र में संसद में पेश करती है। हमारी आंखें कैबिनेट से पारित मसौदे पर अटकी हैं।' किरण बेदी ने कहा, `रविवार की बैठक में कम से कम राजनीतिक पार्टियों ने लोकपाल बिल की जिम्मेदारी तो ली।' हमें लगता है कि लोकपाल बिल सही दिशा में आगे बढ़ रहा है पर मुझे नहीं मालूम कि किरण जी के विचारों से कितने लोग सहमत होंगे।
Tags: Anil Narendra, Anna Hazare, Civil Society, Corruption, Daily Pratap, kl, Lokpal Bill, Manmohan Singh, Samajwadi Party, Sushma Swaraj, Vir Arjun

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