भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की चुनौतियों से जूझ रही मनमोहन सरकार को उस समय तग़ड़ा झटका लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने काले धन से जुड़े सारे मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित कर दिया था। इस विशेष जांच दल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी करेंगे और एक अन्य सेवानिवृत्त जज एमबी शाह इसके सदस्य होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हसन अली और कैलाश नाथ तापड़िया सहित काले धन से जुड़े सभी मामलों की जांच, इनमें आगे की कार्रवाई तथा मुकदमा चलाने की जिम्मेदारी इस विशेष जांच दल की होगी पर केंद्र सरकार को लगता है कि यह मंजूर नहीं है कि काले धन की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो। तभी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश की पुनर्समीक्षा याचिका दायर की है। सरकार ने इस फैसले को कार्यकारी अधिकारों का न्यायिक अतिक्रमण मानते हुए कहा है कि कार्यपालिका और न्याय पालिका की अलग-अलग शक्तियां हैं और शीर्ष अदालत का फैसला इन सिद्धांतों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि न्यायालय का यह कहना सरासर गलत है कि काला धन वापस लाने के लिए सरकार जोरदार प्रयास नहीं कर रही। ऐसा होता तो सरकार इस मामले में उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन नहीं करती। यह एक ऐतिहासिक केस साबित हो सकता है क्योंकि सरकार की याचिका पर फैसला करते समय जहां अदालत को कुछ अतिमहत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं का ध्यान रखना होगा, वहीं अदालत सरकार से यह सवाल भी कर सकती है कि आखिरकार अदालत को इस तरह का आदेश क्यों पारित करना पड़ा। सरकार ने भले ही समीक्षा याचिका दायर करना जरूरी समझा क्योंकि कैबिनेट में कुछ महत्वपूर्ण कानून वे शामिल है, लेकिन इससे सरकार की कार्यप्रणाली, जांच एजेंसियों के प्रति इसके रवैये और स्वयं जांच एजेंसियों की भूमिका पर बहस छिड़ सकती है।
काले धन का मामला अतिमहत्वपूर्ण है क्योंकि देश का वैध धन अवैध तरीके से विदेशों में जाना तो चिंता का विषय है ही, साथ ही इसके परिणाम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से भी जुड़े हैं, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था उसका अभी तक कुछ ठोस परिणाम नहीं आ सका। दरअसल हो बिल्कुल उल्टा रहा है। अब तक एसआईटी तो हुआ नहीं है, वित्त मंत्रालय की तरफ से गठित समितियां भी काम नहीं कर पा रही हैं और अब सरकार द्वारा अपील दायर करने से मामला और उलझ गया है। अब ये समितियां निर्धारित समय अवधि में अपनी रिपोर्ट भी नहीं दे सकेंगी। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस बारे में अपना फैसला नहीं सुनाता, यह काम बाधित रहेगा। यही हाल काले धन पर गठित दूसरी समिति का भी हो गया है। यह समिति सीबीडीटी चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में इस समिति का भी जिक्र है। इस समिति को काले धन पर रोक लगाने के लिए मौजूदा किन कानूनों में संशोधन करने की जरूरत है, इसके बारे में सुझाव कमेटी को देने को कहा गया था। कमेटी ने अपनी पहली बैठक में पब्लिक से सुझाव मांगे थे और तीन हफ्ते में 4000 सुझाव व प्रतिक्रिया आई थी पर अब यह मामला भी रुकने का डर है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हर हालत में ब्लाक करने पर तुली है, ऐसा लगता है।
काले धन का मामला अतिमहत्वपूर्ण है क्योंकि देश का वैध धन अवैध तरीके से विदेशों में जाना तो चिंता का विषय है ही, साथ ही इसके परिणाम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से भी जुड़े हैं, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था उसका अभी तक कुछ ठोस परिणाम नहीं आ सका। दरअसल हो बिल्कुल उल्टा रहा है। अब तक एसआईटी तो हुआ नहीं है, वित्त मंत्रालय की तरफ से गठित समितियां भी काम नहीं कर पा रही हैं और अब सरकार द्वारा अपील दायर करने से मामला और उलझ गया है। अब ये समितियां निर्धारित समय अवधि में अपनी रिपोर्ट भी नहीं दे सकेंगी। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस बारे में अपना फैसला नहीं सुनाता, यह काम बाधित रहेगा। यही हाल काले धन पर गठित दूसरी समिति का भी हो गया है। यह समिति सीबीडीटी चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में इस समिति का भी जिक्र है। इस समिति को काले धन पर रोक लगाने के लिए मौजूदा किन कानूनों में संशोधन करने की जरूरत है, इसके बारे में सुझाव कमेटी को देने को कहा गया था। कमेटी ने अपनी पहली बैठक में पब्लिक से सुझाव मांगे थे और तीन हफ्ते में 4000 सुझाव व प्रतिक्रिया आई थी पर अब यह मामला भी रुकने का डर है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हर हालत में ब्लाक करने पर तुली है, ऐसा लगता है।
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