अगर केंद्रीय गृह मंत्रालय, श्री कपिल सिब्बल और दिल्ली पुलिस ने यह समझा था कि रामलीला मैदान में आधी रात को सोते लोगों पर की गई लाठीचार्ज इत्यादि को सुप्रीम कोर्ट के जजों से छिपा लेंगे तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी में थे। बाबा रामदेव और उनके समर्थकों से उस रात पुलिस ने क्या बर्ताव किया, इसके बारे में माननीय जजों को पहले से ही मालूम था। माननीय न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार पहले से ही तैयार आए थे, उन्होंने अपना होमवर्प अच्छे से कर रखा था। उनके तीखे सवाल इस बात की गवाही देते हैं। भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर सत्याग्रह करने पर रामलीला मैदान से बलपूर्वक बेदखल किए गए बाबा रामदेव ने रात के अंधेरे में हुई कार्रवाई का ठीकरा सुप्रीम कोर्ट में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के सिर पर फोड़ने का जहां प्रयास किया वहीं इस कार्रवाई में दिल्ली पुलिस के जवाब पर असंतोष व्यक्त करते हुए माननीय न्यायाधीशों ने नया हलफनामा दाखिल करने को कहा। दोनों जजों ने सोमवार को दिल्ली पुलिस से कुछ सहज सवाल पूछे। न्यायाधीश एक से तीन जून के बीच के घटनाक्रम के साथ ही उन परिस्थितियों के बारे में जानना चाहते हैं जिनकी वजह से पुलिस ने रात के अंधेरे में बाबा और उनके समर्थकों को बलपूर्वक निकाल बाहर करना पड़ा। याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने रामलीला मैदान में सत्याग्रह कर रहे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर चार जून की रात में पुलिस की बर्बर कार्रवाई का स्वत ही संज्ञान लेते हुए इस मामले में छह जून को मनमोहन सिंह सरकार और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के आला अफसरों से जवाब-तलब किया था। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त बीके गुप्ता से भी व्यक्तिगत रूप से जवाब-तलब किया है। इससे पहले बाबा रामदेव की ओर से उनके वकील राम जेठमलानी ने गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को निशाना बनाते हुए कहा कि वे रामलीला मैदान में निहत्थे सत्याग्रहियों के खिलाफ हुए बल प्रयोग की जड़ हैं। उन्होंने दावा किया कि चूंकि बाबा रामदेव को दिल्ली से बेदखल करने का कोई आदेश ही नहीं था। इसलिए न्यायालय को गृहमंत्री से व्यक्तिगत रूप से जवाब-तलब करके पता लगाना चाहिए कि इस बारे में कब और किन परिस्थितियों में निर्णय लिया गया था। जेठमलानी ने आरोप लगाया कि शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह कर रहे व्यक्तियों ने इन ज्यादतियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने ऐसा करने से इंकार कर दिया।
दोनों जज न्यायाधीश बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार पूरी तैयारी से आए थे, उन्होंने केस के सारे पहलुओं पर गहन अध्ययन किया हुआ था। माननीय जजों ने दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि अधिकारियों द्वारा की गई ज्यादतियों के खिलाफ योगगुरु के समर्थकों की शिकायत पर पुलिस ने प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की थी? शीर्ष न्यायालय ने कहा कि पिछले वाले हलफनामे में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि एक जून से तीन जून के बीच क्या हुआ? उसने कहा कि डीवीडी, चित्रों और दस्तावेजों से स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि उस स्थल पर योगाभ्यास करवाया जा रहा था। न्यायालय ने अधिकारियों से इस बात की सफाई देने के लिए कहा कि किन परिस्थितियों के तहत उन्हें रामदेव का यह कार्यक्रम रोकना पड़ा था, पीठ ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि पुलिस ने तम्बुओं से घेरे गए उस स्थल से लोगों को बाहर निकालने के लिए आंसू गैस के गोलों और पानी की धार का इस्तेमाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह उम्मीद नहीं की जाती कि किसी घिरे गए हिस्से में आंसू गैस और पानी की धार का प्रयोग किया जाएöक्या ऐसा नहीं था कि रात साढ़े 11 बजे जब लोग सो रहे थे, आपने लाठियां बरसाईं? चित्रों से पता चलता है कि पुलिस आयुक्त किसी से बातचीत कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चार जून की पुलिसियाई कार्रवाई को तार-तार कर सरकार को बेनकाब कर दिया। पुलिस का झूठा हलफनामा अदालत को गुमराह नहीं कर सका। पुलिस अपने इस दावे को साबित नहीं कर सकी कि उसने आंसू गैस इसलिए छोड़ी क्योंकि बाबा रामदेव के समर्थक हिंसा पर उतर आए थे और उन्होंने पुलिस पर पथराव किया। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तारीख निर्धारित की है। बाबा रामदेव को चाहिए कि वह दिल्ली पुलिस को राज बाला की यह हालत करने पर सुप्रीम कोर्ट में आवाज उठाएं। राज बाला जीवन-मरण के बीच लटकी हुई है। बाबा को चाहिए कि वह अगली सुनवाई में महिलाओं समर्थकों से बलात्कार के प्रयास का भी जिक्र करें, जैसा उन्होंने आरोप लगाया है। हम माननीय जजों का धन्यवाद करना चाहते हैं कि वह किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं आए और उन्होंने उस काली रात केस में दूध का दूध, पानी का पानी कर दिया है।
Tags: Anil Narendra, Baba Ram Dev, Corruption, Daily Pratap, delhi Police, Kapil Sibal, P. Chidambaram, Ram Lila Maidan, Supreme Court, Vir Arjun
No comments:
Post a Comment