Sunday 17 July 2011

भारत सरकार को आतंकवाद पर जीरो टालरेंस नीति अपनानी होगी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 17th July 2011
अनिल नरेन्द्र
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम जब यह कहते हैं कि मुंबई बम धमाकों के कसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा तो जनता को अब बुरा-सा लगने लगा है और ऐसे कोरे आश्वासन सुनकर अब जनता उखड़ने लगी है। मनमोहन सिंह ने यही शब्द 26 नवम्बर 2008 को भी मुंबई वालों को कहे थे। तब से लेकर इस सरकार ने किया क्या? कुछ नहीं। केवल कोरे आश्वासन। मुंबईवासी अब इन कोरे आश्वासनों से ऊब चुके हैं। वह कैंडिल मार्चों, शांति पीस मार्चों से ह्यूमन चेन बना-बनाकर आजिज आ चुके हैं। जनता कहती है कि कुछ कर के दिखाओ। अमेरिका से कुछ तो सबक लो। जब अलकायदा ने 28/11 को अमेरिका पर हमला किया था उसी समय अमेरिका ने घोषित कर दिया था कि वह तब तक दम नहीं लेगा जब तक वह ओसामा बिन लादेन व अलकायदा को खत्म नहीं कर देगा। बेशक इस काम में अमेरिका को 10 साल लगे पर उसने यह दिखा दिया कि वह अपने इरादे का पक्का है और जो कहता है उसे पूरा करने की इच्छाशक्ति भी रखता है। उसने अपने दुश्मन के घर में घुसकर दुश्मन को तहस-नहस करके ही दम लिया। आदमी अनुभव से सीखता है और भविष्य में उस सबक से सुधार करता है। यही वजह है कि ब्रिटेन, स्पेन और दूसरे पश्चिमी देश हर दम चौकन्ने रहकर आतंकवादियों के मंसूबे को फेल करते आ रहे हैं। यह इसलिए कामयाब हो रहे हैं क्योंकि उन्होंने `जीरो टालरेंस' की नीति अपना रखी है यानि एक भी हमला हम बर्दाश्त नहीं करेंगे और हमारे यहां हमले पर हमले होते जाते हैं और हम कोरी धमकियां देने से बाज नहीं आते। माननीय गृहमंत्री जी 12 मार्च 1993 से जुलाई 2011 के बीच अकेले मुंबई में 8 बम धमाके हो चुके हैं जिनमें 682 जानें जा चुकी हैं। क्या आपको यह मालूम है कि मुंबई में आतंकी घटनाओं में मरने वालों की संख्या अब कराची और काबुल में मरने वालों की संख्या के लगभग बराबर पहुंच चुकी है। अकेले मुंबई में लगभग 394 लोग 2005 से मारे जा चुके हैं जबकि इसी वक्फे में कराची में 500 और काबुल में 520 लोग मरे। अगर पूरे महाराष्ट्र की संख्या जोड़ी जाए तो यह संख्या 506 बन जाती है। मुंबई को अब दुनिया में सबसे खतरनाक शहरों में आपकी लचर नीति ने बना दिया है। चिदम्बरम ने बड़े जोरशोर से एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की घोषणा की थी। क्या किया आपकी एनआईए ने? अगर 26/11 के बाद में हुए पांच अन्य हमलों की बात करें तो लगता है कि आपकी एनआईए कुछ नहीं कर पाई। 26/11 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई पांच घटनाओं का सुराग अभी तक तलाशा ही जा रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से तीन मामलों की जांच एनआईए के हाथों में है। 13 फरवरी को पुणे की जर्मन बेकरी, 17 अप्रैल को चेन्नई के चिन्नास्वामी स्टेडियम में आईपीएल मैच से ठीक पहले धमाका, पिछले साल सितम्बर के अन्त में जामा मस्जिद में गोलीबारी, दिल्ली हाई कोर्ट में धमाका और वाराणसी में हुए बम धमाकों का रहस्य अभी भी बरकरार है। याद कराना चाहेंगे कि चिदम्बरम साहब आपने बड़े जोरशोर से घोषणा की थी कि एनआईए का गठन गृह मंत्रालय ने इसलिए किया है ताकि देशभर में आतंकवाद से संबंधित मामले सुलझाए जा सकें। इस एजेंसी ने जामा मस्जिद, वाराणसी और चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई घटनाओं की गुत्थी सुलझाने का बीड़ा उठाया था, लेकिन अभी तक कामयाबी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। वहीं हाई कोर्ट और जर्मन बेकरी धमाकों को लेकर स्थानीय पुलिस द्वारा छानबीन की जा रही है, मगर स्थिति वही ढाक के तीन पात ही है। इस मामले में एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन एटीएस, घटना में उसकी संलिप्तता मजबूती से साबित नहीं कर पाई। इन मामलों में जांच में शक की सुई आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन पर घूमती रही है, लेकिन एजेंसी को उसकी संलिप्तता के पुख्ता सबूत अभी तक हाथ नहीं लग सके। इक्का-दुक्का मामले में अगर कोई केस अदालत जाता है तो वह भी सबूतों के अभाव में ठप हो जाता है। बम धमाकों के मुजरिम अक्सर कई मामलों में बरी हो जाते हैं। वजह यह कि जांच एजेंसियां लचर तरीके से सबूत जुटाती हैं और ऐसे सबूत अदालत में पुख्ता तौर पर ठहर नहीं पाते। देश में बम धमाकों के मुकदमों से जुड़े वकील भी तस्दीक करते हैं कि जांच एजेंसियां सबूत जुटाने के मामले में अक्सर ढीलाढाला, गैर-पेशेवर रवैया अख्तियार करती हैं जिसमें अभियुक्त छूट जाते हैं और जांच एजेंसियां कोर्ट की लताड़ झेल पहले की तरह गैर-पेशेवर ढर्रे पर चलने लगती हैं। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब जबरिया कबूलनामे के आधार पर झूठा केस बना दिया गया हो। यूपीए सरकार ने टाडा हटाने में बहुत जल्दी की पर आज तक उसकी जगह ऐसा कोई प्रभावी कानून नहीं बनाया जिससे आतंकियों को सजा मिल सके। देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने आतंकवाद से निपटने के लिए आज भी कोई विशेष कानून देश में मौजूद नहीं है। अक्तूबर 2005 से लेकर 7 दिसम्बर 2010 तक छोटे-बड़े मिलाकर कुल 21 आतंकी मामले हो चुके हैं।
मुंबई में ताजा बम धमाकों के पीछे पाकिस्तान का हाथ कहीं न कहीं जरूर है। अमेरिकी मीडिया भी यही कह रहा है। अमेरिकी मीडिया ने इन धमाकों पर कहा है कि इन धमाकों ने पाकिस्तान द्वारा आतंकियों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई की प्रभावशीलता पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं और इसके पीछे लश्कर का हाथ होने का सन्देह है। जिसने 2008 में भी मुंबई में आतंकी हमला करवाया था। जांच से चाहे जो भी पता चले लेकिन एक चीज साफ है कि पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के भारी दबाव के बावजूद यह समूह अभी भी वहां से अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं और भारत सरकार कोई सख्त कदम उठाने की जगह दोस्ती का हाथ बढ़ा रही है। भारत सरकार अब तक मुंबई में पिछले हमलों में पाकिस्तान में चल रहे मुकदमे को आगे नहीं बढ़वा सकी व कसूरवारों को सजा दिलवाना तो दूर रहा। पाकिस्तान से बातचीत की क्या तुक है, यह अपनी समझ से बाहर है। पाकिस्तान के चाल-चलन में कोई फर्प नहीं आया। आज भी टेरर स्टेट पॉलिसी है। पाक समर्थक आतंकी संगठनों के निशाने पर आज भी मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे बड़े शहर हैं। हम जब तक जीरो टालरेंस की नीति पर नहीं चलते तब तक इन धमाकों का सिलसिला रुकने वाला नहीं यानि एक भी हमला हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। हमारे प्रधानमंत्री या गृहमंत्री में इतनी हिम्मत नहीं कि लश्कर या इंडियन मुजाहिद्दीनों का इस हमले के पीछे होने की बात कह सकें या इशारा तक कर सकें? इंडियन मुजाहिद्दीन और पाकिस्तान के लश्कर-ए-तोयबा के बीच रिश्ते रहे हैं। सरकार आज तक पाकिस्तान से मुंबई हमलों के सूत्रधारों से पूछताछ करने की अनुमति नहीं ले सकी है जबकि एक मात्र जीवित बचे आतंकवादी कसाब को सीने से चिपकाए हुए हैं और अफजल गुरु को शो पीस बनाकर रखा हुआ है। क्यों नहीं अब अफजल गुरु को फांसी पर लटका देती ताकि इन आतंकियों को एक स्पष्ट संकेत जाए? आज उन जुलियस रिबेरो, केपीएस गिल की याद आती है जब उन्होंने पंजाब में आतंकवादियों को यह संदेश दिया था कि तुम एक मारोगे तो हम 10 मारेंगे। गोली का जवाब गोली से दिया जाएगा। यूं ही पंजाब में आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ था। उसके पीछे ठोस रणनीति थी, सरकार की इच्छाशक्ति थी और सुरक्षाबलों को अपने हिसाब से कार्रवाई करने की खुली छूट थी।
देश की जनता इस सरकार की आतंकवाद से निपटने की ढुलमुल नीति से तंग आ चुकी है। अगर यह कहें कि जनता जीरो टालरेंस पर आ चुकी है तो शायद गलत न होगा। मुंबई वासियों को आखिर कब तक इसी तरह आतंक के साये में जीना पड़ेगा? एक भी आतंकी हमला आखिर क्यों बर्दाश्त किया जाए? लोग यह सुनते-सुनते आजिज आ चुके हैं कि हम एक खतरनाक पड़ोस में रहते हैं। उनके कान यह सुनकर पक चुके हैं कि हम कसूरवारों को नहीं बख्शेंगे। जनता को सुरक्षा की गारंटी चाहिए ताकि वह निरापद जीवन जी सके। बेशक उनको रुटीन पर लौटना कुछ हद तक जरूरी है पर इसका मतलब सरकार को यह नहीं निकालना चाहिए कि वह सब तरह की कोरी बकवास और हजम करने को तैयार है। अगर कोई नेता आतंकी हमले का शिकार होता तो भी क्या सरकार का यही रुख होता? यह तो बेचारी, निहत्थी, भोली-भाली साधारण पब्लिक है जो मारी जाती है पर सरकार को जनता के मूड को समझना होगा। जनता चीख-चीखकर पुकार रही हैö`बस अब और नहीं।'
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