Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 22nd July 2011
अनिल नरेन्द्र
अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा अमेरिकी दृष्टि से बहुत सफल रही। हर बार की तरह इस बार भी अमेरिका ने भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर हमदर्दी के कुछ शब्द कहकर अपना पलड़ा झाड़ लिया है। हिलेरी की यात्रा मुंबई में ताजा बम विस्फोटों के तुरन्त बाद हुई थी। इसलिए भी भारत के पास पाक प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने पर अमेरिका का खुला समर्थन पाना जरूरी था। समय भी था पर पाकिस्तान अमेरिका की मजबूरी है। आज भी वह पाकिस्तान पर कुछ हद तक निर्भर है। जब तक अमेरिका अफगानिस्तान में मौजूद है तब तक अमेरिका पाकिस्तान से नहीं बिगाड़ेगा। यूं ही लड़ता-झगड़ता रहेगा, दोनों देशों के बीच नौटंकी जारी रहेगी। समय की पुकार थी कि हिलेरी पाकिस्तान को सख्त संदेश देतीं लेकिन आतंकवाद पर कड़कमिजाजी दिखा रहा अमेरिका आतंकी संगठनों के पनाहगार पाक को लेकर सम्भलकर बात करता नजर आया। भारत यात्रा पर आईं हिलेरी क्लिंटन ने मंगलवार को कहा कि पाक पर आतंक के खिलाफ कदम उठाने के लिए जितना सम्भव हो सके, उतना दबाव बनाया जाएगा। लेकिन इसकी भी एक हद होती है। हैदराबाद हाऊस में हिलेरी ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का आश्वासन तो दिया वहीं यह कहने से भी नहीं चूकीं कि इस लड़ाई में पाक भी अमेरिका का अहम साथी है। अमेरिका भारत पर पाक से शांतिवार्ता जारी रखने का अक्सर दबाव बनाता रहता है। इसकी पुष्टि हिलेरी ने यह कहकर की कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी वार्ता से हम उत्साहित हैं। अमेरिकी दृष्टिकोण में पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख सहयोगी है। आतंकवादियों ने मस्जिदों व सरकारी भवनों पर हमला करके बड़ी संख्या में पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतारा है, यह दलील देकर क्लिंटन ने भारत को समझाने का प्रयास किया कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार है। अमेरिका का दोहरा चेहरा फिर एक बार भारत के सामने आया है। वह दोहरे मापदंड रखता है। उसके लिए उसका अपना हित सर्वोपरि है। अमेरिका ने असैन्य एटमी करार को पूर्णता के साथ लागू करने के आश्वासन के जरिये भारत को भले ही राहत देने की कोशिश की हो पर परमाणु दुर्घटना कानून पर मतभेद के संकेत भी दे दिए हैं। हिलेरी ने मंगलवार को कहा कि भारत के साथ असैन्य करार के पूर्णता से किया जाएगा लेकिन क्रियान्वयन नाभिकीय दुर्घटना से होने वाले नुकसान की भरपायी के मामले में भारत को अपने कानून को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के मुताबिक करना होगा। हिलेरी ने कहा कि भारत को अपने मुआवजे कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार करने के लिए यूएन कन्वेंशन की पुष्टि की औपचारिकता पूरी करनी होगी।गत दिवस ही हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि पाकिस्तान से मुंबई हमले के सूत्रधारों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने यह कहने में भी कोई सकोच नहीं किया कि पाकिस्तान के सन्दर्भ में अमेरिका और भारत क्या कर सकते हैं, इसकी एक सीमा है। इसका सीधा मतलब है कि अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव बनाने का कोई इरादा नहीं रखता कि वह अपनी जमीन से आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए और भारत विरोधी गतिविधियों का परित्याग करे। अगर भारत यह समझता है कि पाक प्रायोजित आतंकवाद की लड़ाई में अमेरिका भारत का साथ देगा तो वह गलतफहमी में है और हिलेरी ने इसे साफ भी कर दिया है। हमें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। बेशक पाकिस्तानी सेना अपने पश्चिमी हिस्से में तालिबान से लड़ने की नौटंकी कर रही हो पर पूर्वी हिस्से में तो उसकी मदद से आतंकवादी शिविर चल रहे हैं जहां से भारत पर हमले किए जाते हैं। क्या अमेरिका को इसकी जानकारी नहीं है? सब कुछ जानते हुए भी जब वह अनजान बन जाता है तो इसका मतलब साफ है कि उसके सामने उसके सामरिक हित प्राथमिकता रखते हैं, उसे इस बात की कोई परवाह नहीं कि पाकिस्तान, भारत के खिलाफ क्या करता है? अमेरिका के इस रवैये से बार-बार अवगत होने के बावजूद यही स्टैंड रहा है कि भारत इन आतंकी अड्डों को नष्ट न करे। अगर अमेरिका का दबाव न होता तो शायद अब तक भारत कम से कम कुछ आतंकी शिविरों पर तो सर्जिकल स्ट्राइक कर ही देता। कब तक भारतीय नेता यह उम्मीद पाले रखेंगे कि पाकिस्तान की आतंकवादी नीतियों पर अमेरिका हमारा समर्थन करेगा? इससे प्रश्न उठता है कि भारत की पाकिस्तान के प्रति नीति आखिर है क्या? कभी उसको गाली देता है तो कभी दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। क्या यह केवल अपने अमेरिकी आकाओं को खुश करने के लिए होता है। अमेरिका की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं पर हमें अपनी स्पष्ट करने की सख्त जरूरत है, जितनी जल्दी यह बात भारतीय नेताओं को समझ आ जाए उतना ही देश के लिए अच्छा होगा। कुल मिलाकर हिलेरी की भारत यात्रा अमेरिकी दृष्टिकोण से सफल रही और भारत को एक बार फिर झुनझुना थमा दिया गया है।
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