Saturday 9 July 2011

क्या राहुल की पदयात्रा से कांग्रेस को यूपी में फायदा होगा?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 9th July 2011
अनिल नरेन्द्र
मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी अपनी यूपी 2012 मिशन पर पूरी तरह उतर चुके हैं। वे दिन-रात एक करने में जुट गए हैं। भट्टा-पारसौल से राहुल गांधी की किसान संदेश यात्रा रंग लाने लगी है। वह गांव-गांव पैदल यात्रा कर रहे हैं। यूपी की बिगड़ती कानून व्यवस्था और विकास के मुद्दे के मुकाबले माया सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति पर जबरदस्त चोट कर कांग्रेस ने यूपी में हल्ला बोल दिया है। राहुल गांधी ने दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के भट्टा-पारसौल गांव से अपनी किसान संदेश यात्रा शुरू की है जो अलीगढ़ तक जा रही है। राहुल के मुताबिक इस पदयात्रा का मकसद भट्टा से आगरा और अलीगढ़ तक हो रहे भूमि अधिग्रहण और उससे पैदा हो रही समस्याओं को समझना तथा प्रस्तावित लोगों के विचार जानना है। भट्टा-पारसौल वही गांव है जहां कुछ दिन पूर्व अपनी जमीन के अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों की उग्र भीड़ पर पुलिस ने गोली चलाई थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। उसी घटना के बाद राहुल गांधी भी वहां जाकर धरने पर बैठे थे और उन्होंने गिरफ्तारी भी दी थी। भारत में बहुत दिनों बाद किसी नेता ने पदयात्रा की है। आजकल तो नेता लोग हेलीकाप्टरों में या कारों के काफिले के साथ महज रस्म अदायगी ज्यादा करते हैं ऐसे में राहुल का पदयात्रा करते हुए गांवों में जाना और किसानों के साथ दाल-रोटी खाना, रात खटिया पर ही सोना, उनकी समस्याओं को सुनना न केवल उत्तर प्रदेश के लिए ही एक नई राजनीतिक घटना है बल्कि पूरे देश में इसका एक संदेश जा रहा है। यूं तो पदयात्रा की परम्परा नई नहीं है। सबसे पहले इसकी नींव महात्मा गांधी ने रखी थी, उनके बाद विनोबा भावे, बाबा आम्टे, पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर और अभिनेता से नेता बने सुनील दत्त की लम्बी पदयात्राएं भी काफी चर्चित रही हैं। अब दशकों बाद राहुल गांधी के रूप में कोई राजनेता किसानों के सवालों को लेकर पदयात्रा पर निकला है। कांग्रेस के युवराज धूल, धूप, बारिश, मिट्टी और गर्मी के बीच गांव की गलियों की खाक छान रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेसी उन्हें मिल रहे अपार जन समर्थन के बलबूते सत्ता वापसी का सपना देखने लगे हैं। यहां तक कि 9 जुलाई को अलीगढ़ में प्रस्तावित किसान महापंचायत के लिए तैयारियां युवराज के करिश्में के भरोसे ही छोड़ दी गई हैं। कांग्रेसियों को लगने लगा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी सत्ताधारी बहुजन समाज पार्टी को सीधे टक्कर देने की स्थिति में आ गई है। उनका मानना है कि जनता से यह सीधा संवाद रंग लाएगा और 21 साल बाद यूपी की सत्ता में वापसी सम्भव हो सकेगी। यहां तक कि अलीगढ़ में राहुल की गिरफ्तारी की सम्भावना से भी कांग्रेसी काफी खुश हैं। पार्टी नेताओं का मानना है कि यदि मायावती राहुल को गिरफ्तार करती हैं या प्रयत्न करती हैं तो उनके शासन के लिए ताबूत की अंतिम कील साबित होगी। हालांकि प्रशासन की तरफ से आ रही खबरों के मुताबिक धारा 144 लागू होने के बावजूद राहुल को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
किसानों को न्याय दिलाने के मकसद से राहुल की पदयात्रा से मुख्यमंत्री मायावती बेचैन जरूर होंगी। इधर अदालती फैसलों ने बहन जी की सरकार की नाक में दम कर रखा है, उधर राहुल को मिल रहा जन समर्थन बहन जी के लिए चिन्ता का विषय जरूर बन गया है। बेशक बहन जी और उनके रणनीतिकार यह दलील दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश हमेशा से अजीत सिंह का गढ़ रहा है, जाट बैल्ट है जो बसपा के साथ नहीं है। अगर राहुल गांधी की पदयात्रा से जाट वोट कांग्रेस को जाता है तो बसपा को कोई ज्यादा नुकसान नहीं होता। यह वोट तो उसके खिलाफ पड़ता ही था पर बहन जी को यह समझना चाहिए कि राहुल की पदयात्रा का असर केवल ग्रेटर नोएडा से लेकर अलीगढ़ बैल्ट तक ही सीमित नहीं रहेगा। इसका प्रभाव पूरे प्रदेश पर पड़ेगा। अगर मैं यह कहूं कि पूरे देश में किसान बैल्टों पर पड़ेगा तो शायद गलत न हो। किसान भोले-भाले सीधे लोग होते हैं। एक बार उनके साथ हुक्का-पानी ले लो और बड़े-बुजुर्ग सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दे दें तो वह इतनी आसानी से पलटते नहीं। राहुल की मेहनत जरूर रंग लाएगी। राहुल ने आज के दूसरे राजनेताओं को भी एक तरह से बेनकाब कर दिया है जो जनता के हितों की, किसानों के हितों की बातें तो लम्बी-चौड़ी करते हैं पर करते कुछ नहीं। राहुल ने करके दिखा दिया है।
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