Wednesday, 27 July 2011

गुलाम फई की गिरफ्तारी से फिर बेनकाब हुआ पाकिस्तान


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th July 2011
अनिल नरेन्द्र
सभी जानते थे कि अमेरिका में पाकिस्तान लॉबी बहुत प्रभावशाली है और पिछले कई वर्षों में इसी लॉबी के कारण सब कुछ जानते हुए भी अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान की आर्थिक, सैनिक मदद करता चला आ रहा है पर यह नहीं पता था कि इस लॉबी के पीछे कौन-कौन-सी शक्तियां काम कर रही हैं। गत दिनों अमेरिका ने अपने एक और नागरिक को गिरफ्तार किया है जो दशकों से एक एनजीओ की आड़ में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम कर रहा था और कश्मीर पर भारत विरोधी प्रचार के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा था। `कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल' नामक इस एनजीओ के डायरेक्टर के रूप में गुलाम नबी फई आईएसआई से हवाला के जरिये करोड़ों रुपये नियमित रूप से पाता था और इसका इस्तेमाल अमेरिकी सांसदों को कश्मीर पर भारत के खिलाफ भड़काने के लिए करता था। गुलाम फई ऐसे दूसरे पाकिस्तानी मूल के अमेरिकन हैं जिन्हें हाल में अमेरिका ने गिरफ्तार किया है। इससे पहले आतंकी डेविड हेडली गिरफ्तार हुए थे। चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि फई आईएसआई के इशारों और पैसों से अमेरिका में कश्मीर पर सेमिनार आयोजित करता था और इस आयोजन में बहुत से नामी भारतीय भी हिस्सा लेते रहे हैं। सूत्रों के अनुसार भारत सरकार ने प्रख्यात पत्रकार दिलीप पडगांवकर को जम्मू-कश्मीर मामले में प्रमुख वार्ताकार बनाया है वह भी फई के सेमिनार में हिस्सा ले चुके हैं। आईएसआई के सहयोग से आयोजित होने वाले सेमिनारों में भाग लेने वालों में प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर, अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख, राजेन्द्र सच्चर, पत्रकार गौतम नवलखा, हरिन्दर बवेजा, मनोज जोशी, हमीदा नईम, वेद भसीन, जेडी मोहम्मद समेत तमाम भारतीय रहे हैं। सेमिनार में न केवल कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा होती थी बल्कि पाकिस्तान का समर्थन करने वाला प्रस्ताव भी पारित होता था। फई दरअसल सेमिनार के बहाने पिछले 25 सालों से दुनिया का कश्मीर पर नजरिया बदलने में लगा हुआ था। उसकी कोशिश इसके माध्यम से कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना, भारत को कश्मीरवासियों के साथ अन्याय करने का दोषी बनाना तथा दूर तक षड्यंत्र के तार जोड़ने की थी। एफबीआई के मुताबिक फई अमेरिका से चलने वाले कश्मीर अमेरिकन परिषद का कार्यकारी निदेशक हैं। वह इसे आईएसआई के इशारे पर चला रहा है। फई पर आईएसआई के लिए जासूसी करना, उसके इशारे पर पाकिस्तान के कश्मीर पर रुख को समर्थन देने के इरादे से विशेषज्ञों, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों तथा समाज के अगुवा लोगों के लिए सेमिनार आयोजित करके लोगों का नजरिया बदलने का आरोप है। एफबीआई के अनुसार उसके इस प्रयास का कई अमेरिकी सीनेटर भी हिस्सा रहे हैं। फई को एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद भारत में इसकी आंच पहुंची और पता चला कि कई भारतीय नामचीन हस्तियां भी उसके बुलावे पर अमेरिका का दौरा करती रही हैं। खुफिया सूत्र बताते हैं कि सेमिनार में भाग लेने के लिए फई के नियंत्रण पर लोगों को काफी फख्र होता था। इसके लिए अमेरिका आने-जाने, सेमिनार में भाग लेने, रहने-खाने के अलावा इसमें भाग लेने के एवज में मोटी धनराशि मिलती थी। सेमिनार के अन्त में एक प्रस्ताव भी पारित होता था और उसमें पाकिस्तान का समर्थन करने वाली राय को बल देने वाला प्रस्ताव भी पारित होता था। दिलीप पडगांवकर ने फई द्वारा आयोजित सेमिनार में उसके बुलावे पर अमेरिका जाने की बात मानी है। उन्होंने कहा कि वह बहुत पहले फई के नियंत्रण पर वहां गए थे, लेकिन उन्हें फई के आईएसआई के साथ जुड़े होने की कोई जानकारी नहीं थी। क्या यह महज संयोग था कि गुलाम फई की गिरफ्तारी ऐन ऐसे मौके पर हुई जब अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भारत यात्रा पर थीं। अमेरिका को कम से कम छह साल पहले से गुलाम की हकीकत मालूम थी। एक बार तो फई को भारी-भरकम रकम (नकदी) के साथ पकड़ा गया था और उससे गहन पूछताछ भी हुई थी। भारत काफी समय से फई और उनके एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा था। कमाई का कोई प्रत्यक्ष स्रोत नहीं दिखने के बावजूद गुलाम फई अमेरिका में रईसों की जिन्दगी बसर करता था। आश्चर्य नहीं कि धुर भारत विरोधी के रूप में कुख्यात रिपब्लिकन सांसद डैन बर्टन को गुलाम ने सबसे अधिक चन्दा दिया था। वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अनजाने में अपने चुनाव अभियान में गुलाम फई से चन्दा ले चुके हैं। पाकिस्तान गुलाम के जरिये अमेरिका को इस बात के लिए राजी करना चाहता था कि वह भारत पर दबाव डाले कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए। फई की पैठ तो संयुक्त राष्ट्र में भी थी। गुलाम कश्मीरी अलगाववादियों का तो वह सबसे बड़ा एम्बेसेडर था और इसकी गिरफ्तारी से इन भारत विरोधी तत्वों के होश उड़ने स्वाभाविक ही हैं। डॉ. गुलाम फई का मुकदमा शिकागो में हेडली-राणा मुकदमे के बाद अमेरिका में दूसरा हाई-प्रोफाइल मुकदमा होगा। अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका आखिरकार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी पर इस बात का दबाव डालने में सफल होगा कि वह इस प्रकार की गतिविधियों पर अंकुश लगाए, आईएसआई के सारे सम्पर्कों का पता लगाए? हो सकता है कि गुलाम फई के आतंकी संगठनों से भी सीधे संबंध हों। देखें मुकदमे में क्या-क्या उभरकर आता है?
Tags: Anil Narendra, Daily Pratap, Fai, FBI, ISI, Jammu Kashmir, Vir Arjun

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