Tuesday, 19 July 2011

जब वोट बैंक राजनीति देश की सुरक्षा पर भी भारी पड़े

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th July 2011
अनिल नरेन्द्र
ताजा मुंबई हमलों में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रिया ठीक उसी लाइन पर आई जिसकी उनसे उम्मीद रखी जा सकती है बल्कि आश्चर्य तो तब होता जब उन्हें इस ताजा बम कांड में हिन्दू आतंकवादियों का हाथ नजर न आता। तभी आश्चर्य नहीं हुआ जब दिग्विजय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हुए शनिवार को कहा कि मुंबई धमाकों में हिन्दू सगठनों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है, वैसे अभी मुंबई धमाकों में संघ का हाथ होने के सुबूत नहीं मिले हैं परन्तु जांच एजेंसियों को सभी बिन्दुओं से जांच करनी चाहिए। अब दिग्विजय ने कहा कि मैं आरएसएस की आतंकी गतिविधियों के सुबूत दे सकता हूं। उन्होंने कहा कि वह अपनी इस बात से पीछे नहीं हट रहे हैं कि देश में हुई आतंकवादी घटनाओं के पीछे हिन्दू संगठनों का हाथ रहा है। पहले हम समझते थे कि दिग्विजय जो कहते हैं वह उनकी अपनी सोच, रणनीति के तहत हो रहा है, चूंकि उनका 10 साल का राजनीतिक बनवास समाप्त होने जा रहा है इसलिए वह अपनी जड़ें पुन राजनीति में जमाना चाहते हैं इसलिए उन्होंने एंटी हिन्दू लाइन ली है ताकि अल्पसंख्यक वोटों के पैठ बना सकें पर जैसे उनके विवादास्पद बयानों का कांग्रेस आला कमान समर्थन करता है उससे साफ लगता है कि दिग्गी राजा को आला कमान का पूरा समर्थन हासिल है। मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों का दिग्विजय सिंह ने जिस तरह आनन-फानन में सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया उसमें हमें उम्मीद थी कि शायद पार्टी हाई कमान उन्हें कड़ी फटकार लगाए और अपने आपको इस बयान से अलग करे पर न केवल चुप्पी साधकर शीर्ष नेतृत्व ने इसे अपनी मौन स्वीकृति दी बल्कि यह भी जता दिया कि हिन्दू संगठनों की जोरदार खिलाफत उसकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है जिसके दिग्विजय सिंह मोहरे मात्र हैं। अभी तक दिग्विजय के बयानों पर कांग्रेस टोकाटाकी करती थी पर जिस तरह से प्रवक्ता शकील अहमद ने खुले तौर पर दिग्विजय का समर्थन किया है उससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए दिग्विजय सिंह आज तक जो भी बोलते आ रहे थे वह कांग्रेस नेतृत्व की सोची-समझी चरणबद्ध नीति थी और ऐसे बेहूदा और बेतुके बयानों के लिए दिग्विजय सिंह को बाकायदा पुरस्कृत भी किया गया। उन्हें उस प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है जहां कांग्रेस की नजर अल्पसंख्यक वोट बैंक पर टिकी हुई है। इस समय भी दिग्विजय सिंह उत्तर प्रदेश और असम जैसे मुस्लिम आबादी वाले प्रदेशों के प्रभारी महासचिव हैं।
यह बहुत ही शर्म की बात है कि मुंबई विस्फोट जैसे मुद्दे पर भी दिग्विजय सरीखे नेता राजनीति और वोट बैंक पॉलिटिक्स का खेल खेलने से बाज नहीं आते। हमारे देश के नेता संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में किस हद तक गिर सकते हैं। वे लाशों पर राजनीति करने के साथ-साथ उन समस्याओं से भी लाभ उठाने की ताक में रहते हैं जो राष्ट्र के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती है। मुंबई में बम विस्फोटों के बाद भारत अंतर्राष्ट्रीय चर्चों पर यह कहने की स्थिति में नहीं रह गया है कि वह आतंकवाद से अपने बलबूते पर लड़ सकता है, लेकिन बावजूद इसके केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रहे दल के महासचिव इसके लिए बेचैन हो गए कि इस घटना का राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जा सके? उन्हें इस बात की भी कतई चिन्ता नहीं कि पाकिस्तान जैसे देश इस बात का कितना फायदा उठा सकते हैं। जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देश के प्रति वफादारी का सवाल है तो कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आन रिकार्ड कह चुके हैं कि संघ को आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता। चूंकि हो सकता है कि इस तरह के ऊंट-पटांग बयान अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से जुड़े हो, इसलिए भाजपा भी मैदान में कूद पड़ी है। शनिवार को भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने दिग्विजय के बहाने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को भी लपेट लिया। राहुल से दिग्विजय की नजदीकी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राहुल खुद जो नहीं कह पाते, वह दिग्विजय सिंह से कहलवाते हैं। देश आतंकवाद से जूझ रहा है। ऐसे में दिग्विजय का संघ पर आरोप लगाना सिवाय गन्दी, तुच्छ राजनीति के और कुछ नहीं है। भाजपा के दूसरे वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं कि दिग्विजय सिंह को अरब सागर के किनारे ले जाएं और उनके शरीर में मौजूद लादेन की शैतानी रूह को भगाने के लिए कुछ झाड़-पूंक करवाएं। दिग्विजय सिंह जुबानी डायरिया का शिकार हो गए हैं। उनका अपनी भाषा और शब्दों पर कोई कंट्रोल नहीं है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि दिग्विजय सिंह को विष वमन करने की छूट इस आशा से दी गई है ताकि हिन्दू संगठनों को अपमानित और लांछित करने वाले उनके बयानों के जरिये मुस्लिम समाज के वोट आसानी से हासिल किए जा सकें? कांग्रेस की इस सोच से यह साफ है कि उसकी नजर में मुस्लिम समाज तक उसका वोट बैंक बनेगा जब उसे हिन्दू संगठनों से डराया जाएगा।
इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इस प्रकार की घटिया वोट बैंक राजनीति हो रही है। क्या यह जांच एजेंसियों को गलत दिशा में जांच करने व उन्हें जानबूझ कर भटकाने का काम नहीं है? यह एक तथ्य है कि खुद गृहमंत्री पी. चिदम्बरम कह चुके हैं कि भगवा आतंकवाद देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता, मजहब नहीं होता, यह एक विचारधारा है और यह सम्भव है कि कुछ मुट्ठीभर हिन्दू भी इसके शिकार हों पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि आप सारे हिन्दू समाज को इसका जिम्मेदार ठहराएं, उन्हें बदनाम करें जैसे कि आप मुट्ठीभर मुस्लिम आतंकियों के कारण पूरे मुस्लिम समाज को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। अगर दिग्विजय सिंह के पास कोई ठोस सुबूत हैं तो जांच एजेंसियों को बताएं ताकि वह इसकी बारीकी से छानबीन कर सके।
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