भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के 25 वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा थाö`निसंदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुंचते, जिसके लिए सम्भवत वे योग्य पात्र थे। तब भारत से कश्मीर, तिब्बत, चीन और अन्य विवादों की कोई समस्या नहीं रहती।' सरदार पटेल ने 1950 में ही कह दिया था कि हमारी प्रतिरक्षा के उपाय अभी तक पाकिस्तान से श्रेष्ठता पर आधारित थे। अब हमें साम्यवादी चीन के हिसाब से अपनी गणनाओं का ध्यान रखना होगा। साम्यवादी चीन की निश्चित महत्वाकांक्षा व उद्देश्य हैं और वह किसी भी तरह से हमारे प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार नहीं रख सकता। 62 वर्ष पहले सरदार पटेल ने दो पत्रों में हालात पर गम्भीर, विवेचनात्मक दृष्टि डालते हुए दूरदर्शी नीतियां भी सुझाई थीं, जो आज कहीं ज्यादा अनिवार्य हो चली हैं। सरदार पटेल ने पहला पत्र पंडित जवाहर लाल नेहरू को 11 नवम्बर 1950 में लिखा था। इसमें सरदार ने लिखा कि ताजा और कटु इतिहास हमें यह बताता है कि साम्यवादी साम्राज्यवाद से बचने का कोई कवछ नहीं है और यह कि साम्यवादी उतने ही अच्छे या बुरे हैं जितने कि दूसरे। इस सन्दर्भ में चीनियों की महत्वाकांक्षा हमारी तरफ से न केवल हिमालय की ढलानों को ढंक लेती है, वरन उसमें असम के महत्वपूर्ण हिस्से भी शामिल हैं। बर्मा में भी उनकी महत्वाकाक्षाएं हैं। पश्चिमी शक्तियों के साम्राज्यवाद या विस्तारवाद से चीनी संस्कृति और साम्यवादी साम्राज्यवाद मित्र हैं। यह पूर्व के सिद्धांतों का आवरण मात्र है, जो उसे 10 गुना अधिक खतरनाक बनाता है। सैद्धांतिक विस्तार के पीछे छिपे हैं जातीय, राष्ट्रीय या ऐतिहासिक दावे। इसलिए उत्तर-पूर्व से खतरा साम्यवादी और साम्राज्यवादी दोनों से है जबकि सुरक्षा का हमारा पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी खतरा पहले की ही तरह बड़ा है। इस प्रकार पहली बार शताब्दियों बाद भारत को अपनी रक्षा के बारे में एक साथ दो जगहों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमारे प्रतिरक्षा के उपाय अभी तक पाकिस्तान से श्रेष्ठता पर आधारित थे। अब हमें उत्तर और उत्तर-पूर्व में साम्यवादी चीन के अनुसार अपनी गणनाओं का ध्यान करना होगा। हमारे प्रतिरक्षा के उपाय अभी तक पाकिस्तान से श्रेष्ठता पर आधारित थे। अब हमें उत्तर और उत्तर-पूर्व में साम्यवादी चीन के अनुसार अपनी गणनाओं का ध्यान रखना होगा। साम्यवादी चीन, जिसकी निश्चित महत्वाकांक्षा एवं उद्देश्य हैं और जो किसी भी तरह से हमारे प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार नहीं रख सकता।
चीन ने जब भारत को धमकी दी थी तब सरदार पटेल ने 4 नवम्बर 1950 को विदेश मंत्रालय के तत्कालीन महासचिव गिरिजा शंकर वाजपेयी को एक पत्र लिखा था। उसमें सरदार ने लिखा ः तिब्बत में चीन के आने से हमारी सुरक्षा की गणना गड़बड़ा गई है। पहली बार उत्तर और उत्तर-पूर्व में खतरा पैदा हो रहा है। उसी के साथ पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर से भी खतरा कम नहीं है। मैं पूर्णत सहमत हूं कि हम अपनी सेनाओं की स्थिति पर पुनर्विचार करें और अपनी फौजों का पुन विन्यास करने को हम नजरंदाज नहीं कर सकते। (भारतीय सीमाओं के आसपास) इस कमजोर स्थिति में चीन की अपनी संस्कृति भी जुड़ी हुई है। चीन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अपने आप में इतना मायना नहीं रखती है पर जब वह इन क्षेत्रों में असंतुष्टि के साथ मिल जाती है, भारतीय और साम्यवादी आदर्शवाद के साथ निकट संबंधों की अनुपस्थिति से स्थिति की मुश्किलें कई गुना बढ़ जाती हैं। हमें यह बात भी ध्यान में रखनी है कि सीमा के विवाद, जो इतिहास में कई बार अंतर्राष्ट्रीय विवादों के कारण रहे हैं, का फायदा साम्यवादी चीन द्वारा उठाया जा सकता है। हमें अपने देश में तथा आसपास बेइमान, अविश्वनीय और ईर्ष्यालु शक्तियों पर ध्यान देना होगा। मेरे सुझाव के अनुसार हमें उनसे केवल सतर्प रहने की ही जरूरत नहीं वरन कुछ हद तक उनके साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार भी करना चाहिए। सरदार पटेल ने 62 वर्ष पहले ही चीन से खतरे से आगाह कर दिया था पर पंडित नेहरू पर हिन्दी-चीनी भाई-भाई का इतना भूत सवार था कि उन्होंने सरदार की चेतावनियों पर गौर नहीं किया।
Anil Narendra, China, Daily Pratap, India, Sardar Patel, Vir Arjun
चीन ने जब भारत को धमकी दी थी तब सरदार पटेल ने 4 नवम्बर 1950 को विदेश मंत्रालय के तत्कालीन महासचिव गिरिजा शंकर वाजपेयी को एक पत्र लिखा था। उसमें सरदार ने लिखा ः तिब्बत में चीन के आने से हमारी सुरक्षा की गणना गड़बड़ा गई है। पहली बार उत्तर और उत्तर-पूर्व में खतरा पैदा हो रहा है। उसी के साथ पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर से भी खतरा कम नहीं है। मैं पूर्णत सहमत हूं कि हम अपनी सेनाओं की स्थिति पर पुनर्विचार करें और अपनी फौजों का पुन विन्यास करने को हम नजरंदाज नहीं कर सकते। (भारतीय सीमाओं के आसपास) इस कमजोर स्थिति में चीन की अपनी संस्कृति भी जुड़ी हुई है। चीन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अपने आप में इतना मायना नहीं रखती है पर जब वह इन क्षेत्रों में असंतुष्टि के साथ मिल जाती है, भारतीय और साम्यवादी आदर्शवाद के साथ निकट संबंधों की अनुपस्थिति से स्थिति की मुश्किलें कई गुना बढ़ जाती हैं। हमें यह बात भी ध्यान में रखनी है कि सीमा के विवाद, जो इतिहास में कई बार अंतर्राष्ट्रीय विवादों के कारण रहे हैं, का फायदा साम्यवादी चीन द्वारा उठाया जा सकता है। हमें अपने देश में तथा आसपास बेइमान, अविश्वनीय और ईर्ष्यालु शक्तियों पर ध्यान देना होगा। मेरे सुझाव के अनुसार हमें उनसे केवल सतर्प रहने की ही जरूरत नहीं वरन कुछ हद तक उनके साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार भी करना चाहिए। सरदार पटेल ने 62 वर्ष पहले ही चीन से खतरे से आगाह कर दिया था पर पंडित नेहरू पर हिन्दी-चीनी भाई-भाई का इतना भूत सवार था कि उन्होंने सरदार की चेतावनियों पर गौर नहीं किया।
Anil Narendra, China, Daily Pratap, India, Sardar Patel, Vir Arjun
No comments:
Post a Comment