Thursday 31 May 2012

कांग्रेस के हाथों से फिसलता आंध्र प्रदेश ः गिरफ्तारी की राजनीति

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31 May 2012
अनिल नरेन्द्र
आंध्र प्रदेश के पूर्व लोकप्रिय मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के सांसद बेटे जगनमोहन रेड्डी की भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी पर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। यह तो होना ही था। जगनमोहन रेड्डी बहुत दिनों से कांग्रेस नेतृत्व की आंख में किरकिरी बने हुए थे। तीन दिन की गहन पूछताछ के बाद सीबीआई ने आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले आंध्र की हाई कोर्ट ने भी जगन को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया था। जगन से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में राज्य के अनेक नेता, अफसर, उद्योगपति और बिचौलिये पहले ही सीबीआई के शिकंजे में आ चुके थे। इसलिए जगन की पूछताछ और गिरफ्तारी की भविष्यवाणी पहले से ही चल रही थी। चर्चा तो यह थी कि पिता की कुर्सी की ताकत पर रातोंरात अरबपति बने इस युवा नेता को सीबीआई पहले ही दिन सलाखों के पीछे डाल देगी, लेकिन सीबीआई ने यह काम तीसरे दिन किया। इस विलम्ब के पीछे कहीं इस धारणा को निर्मूल करना तो नहीं था कि जगन को सलाखों में डालने की वजह भ्रष्टाचार से अधिक आंध्र की राजनीति में छुपी है। इसमें कोई शक नहीं कि राजशेखर रेड्डी की हादसे से मौत के बाद से बेटे जगन ने कांग्रेस के नाक में दम कर रखा था। कहते हैं कि हेलीकाप्टर हादसे से मौत के बाद राजशेखर रेड्डी का अंतिम सस्कार भी नहीं हुआ था कि वहां शोक प्रकट करने गए कांग्रेस के आला नेताओं के आगे जगन ने खुद को पिता की कुर्सी का वारिस होने की इच्छा प्रकट कर दी थी। पार्टी आला कमान को यह गंवारा नहीं था, क्योंकि पिता की ताकत पर अकूत दौलत के मालिक बन बैठे जगन के भ्रष्टाचार के किस्सों से अधिक उसे जगन की आसमानी महत्वाकांक्षा का डर था। यह विचित्र है कि गिरफ्तारी से जगन को सहानुभूति का लाभ मिलने और कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान हेने के आसार जताए जा रहे हैं। इस विरोधाभास के लिए किसी हद तक खुद कांग्रेस जिम्मेदार है। उसने कभी यह प्रदर्शित नहीं किया कि जगनमोहन रेड्डी की अवैध कमाई उसके लिए चिन्ता की कोई बात है। उसे परेशानी तब महसूस हुई जब जगन की महत्वाकांक्षा हिलोरे लेने लगी और वे अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी का दावा कर बैठे। यह महज इत्तेफाक नहीं कहा जा सकता कि जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ सीबीआई जांच तब शुरू हुई जब उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर वाईएसआर कांग्रेस के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। आंध्र प्रदेश कांग्रेस का गढ़ रहा है। 2004 और पिछले चुनावों में भी उसे सबसे ज्यादा सीटें इसी राज्य से मिलीं। लेकिन राजशेखर रेड्डी के दिवंगत होने के बाद राज्य में जितने भी उपचुनाव हुए उन सब में कांग्रेस को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी है। तेलंगाना में टीआरएस की बड़ी ताकत उसके लिए अलग सिरदर्द बनी हुई है। 12 जून को राज्य में लोकसभा की एक और विधानसभा की 18 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। राजनीतिक पंडितों का ख्याल है कि उपचुनावों में भी कांग्रेस की झोली खाली रह सकती है। अगले लोकसभा चुनाव में भी अब कांग्रेस वह उम्मीद नहीं कर सकती जो सफलता उसे पिछले चुनाव में मिली थी। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश एक चुनौती बनती जा रही है।
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