Sunday 27 May 2012

दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27 May 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भारी पड़ गए। पार्टी में संघ की नहीं चली और संजय जोशी को भाजपा कार्य समिति की बैठक से पहले बाहर का रास्ता दिखाना ही पड़ा। मोदी के दबाव में गडकरी और संघ नतमस्तक दिखे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि मोदी ने साफ कहा कि अगर कार्य समिति में संजय जोशी आए तो बैठक से खुद को दूर रखने को मजबूर होंगे। गडकरी ने बुधवार शाम को फोन से बात की थी। गडकरी ने कोर कमेटी की बैठक में मोदी से बातचीत का सार रखा। सूत्रों के मुताबिक कुछ वरिष्ठ भाजपा नेता मोदी की धमकी को स्वीकार्य करने के इच्छुक नहीं थे मगर गडकरी और संघ के दबाव के चलते संजय जोशी को दो लाइन का इस्तीफा फैक्स से भेजना पड़ा। दरअसल मोदी और गडकरी में सौदे की सुगंध आ रही है। मोदी ने शर्त रखी कि जोशी को बाहर करो और गडकरी ने शर्त रखी कि मुझे दूसरा कार्यकाल देने का आप समर्थन करें। अब लगता है कि गडकरी के दूसरे कार्यकाल मिलने में सभी रुकावटें दूर हो गई हैं और उन्हें दूसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय है। गडकरी का तीन साल का कार्यकाल 25 दिसम्बर को पूरा हो रहा है। इस प्रस्ताव के लिए बाकायदा संगठन के संविधान में संशोधन किया जाना प्रस्तावित था, जिसे अमली जामा पहनाया गया। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने औपचारिक रूप से बैठक में अध्यक्ष के कार्यकाल को एक्सटेंशन दिए जाने का प्रस्ताव रखा जिसका दूसरे पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने अनुमोदन किया। इस सौदे का एक पहलू यह भी है कि केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य छत्रप के प्रभाव को स्वीकार कर लिया है। यह न तो भाजपा के लिए अच्छा संकेत है और न ही संघ के लिए। राष्ट्रीय पार्टी की छवि को लेकर जिस भाजपा को राष्ट्रवाद और अनुशासन के लिए जाना जाता था अब उस सिद्धांत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। भाजपा का बौना होता नेतृत्व और उस पर हावी होते राज्य छत्रप संघ के लिए चुनौती बन गए हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे, गुजरात में नरेन्द्र मोदी और कर्नाटक में वीएस येदियुरप्पा से जो चुनौतियां मिल रही हैं वह भाजपा को कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरने से भी रोक रही है। भाजपा अध्यक्ष गडकरी के कार्यकाल को बढ़ाकर संघ भाजपा पर अपनी पकड़ जरूर साबित करना चाह रहा है लेकिन वह इकबाल और इस्तकबाल नहीं दिख रहा जो भाजपा में पहले होता था। भाजपा के इतिहास में यह पहला मौका है जब भाजपा को संघ की ओर से नियुक्त करवाए गए व्यक्ति को हटाना पड़ा है। इससे भी साबित होता है कि संघ की भाजपा पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। हमें लगता है कि भाजपा के अन्दर भी ऐसे नेता हैं जो चाहते हैं कि संघ की भाजपा मामलों में दखलअंदाजी कम हो। पूरे प्रकरण में जहां नरेन्द्र मोदी की जीत हुई है वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक मायने में हार हुई है। इससे नरेन्द्र मोदी का कद और बढ़ेगा और दुनिया को उन्होंने साबित कर दिया कि दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।
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