Friday, 25 May 2012

मनमोहन सरकार की तीन साल की उपलब्धि ः मायूसी और हताशा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 May 2012
अनिल नरेन्द्र
संप्रग ने अपनी तीसरी वर्षगांठ पर देश को जबरदस्त तोहफा दिया है। रातोंरात 7.50 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़ा दी है। रुपये की कीमत इतनी गिर गई है कि पुराने सारे रिकार्ड टूट चुके हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 55.39 पर गिर गई है। मुद्रास्फीति में भी तेजी से वृद्धि हो रही है और सबसे मजेदार बात यह है कि सरकार कहती है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है। वह अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों पर मजबूर है। लगता है कि इस सरकार को अब विश्वास हो चुका है कि यह उनकी आखिरी पारी है इसलिए जो करना है कर लो। सत्ता में फिर तो आना नहीं जितना हो सके कर लो। देश की जनता मजबूर है। वह कुछ भी तो नहीं कर सकती। इन्हें सत्ता में लाना उनको इतना भारी पड़ेगा, इसकी शायद ही जनता ने कल्पना की हो। केंद्रीय सत्ता की दूसरी पारी में तीन साल पूरे करने वाली कांग्रेस की नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की छवि इतनी गिर चुकी है कि अगर निकट भविष्य में चुनाव हो जाएं तो यह कभी भी जीत कर वापस न आए। समाचार चैनल आईबीएन-7 द्वारा कराए गए सर्वेक्षण की मानें तो जनता इस यूपीए सरकार से बुरी तरह नाराज है। सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि क्या यूपीए को एक और मौका मिलना चाहिए तो 49 फीसदी लोगों ने नहीं में जवाब दिया। यही नहीं, 55 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाना चाहिए। 33 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह की जगह राहुल को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए जबकि 20 फीसदी ने प्रणब दा और सिर्प 7 फीसदी ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की राय दी। सरकार के अलोकप्रिय होने के पीछे सबसे बड़ा कारण महंगाई है। यह पूछे जाने पर कि दूसरी पारी में मनमोहन की सबसे बड़ी नाकामी क्या है तो 31 फीसदी लोगों ने बेकाबू कीमतों को मुख्य वजह बताया। 17 फीसदी लोगों ने भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी नाकामी बताया जबकि 13 फीसदी लोगों ने विकास की रफ्तार पर ब्रेक को बड़ी वजह माना। 10 फीसदी लोगों ने कहा कि मनमोहन सिंह संकट के समय फैसले लेने में नाकाम रहे। कुल मिलाकर 59 फीसदी लोगों ने कहा कि वह इस सरकार से संतुष्ट नहीं। अगले चुनाव में अगर एनडीए जीत जाए तो किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहिए। इस सवाल पर सबसे अधिक 39 फीसदी लोगों की पसंद नरेन्द्र मोदी की है, 17 फीसदी ने लाल कृष्ण आडवाणी को पसंद किया। यूपीए-2 सरकार के तीन साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मंगलवार को एक रिपोर्ट कार्ड जारी किया। पीएम ने इस मौके पर महंगाई का जिक्र तक करना जरूरी नहीं समझा। कटु सत्य तो यह है कि तीन साल में इस सरकार के पास जनता को बताने के लिए एक भी उपलब्धि नहीं है। इस सरकार ने देश को महंगाई, भ्रष्टाचार और मायूसी के अलावा कुछ नहीं दिया है। इस सरकार के कुप्रबंधन ने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इस सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण आज देश से विदेशी पूंजी का पलायन हो गया है। वित्तीय घाटे को सम्भालने की न तो कोई योजना है और न ही गारंटी। इसका एक नतीजा यह हुआ है कि रुपया रिकार्ड निचले स्तर पर आ पहुंचा है। पूरी इकानिमी कैश होने की कगार पर है। घोटालों से देश की नींद हराम हो गई है। लोकपाल और लोकायुक्त जैसे कदम जिससे भ्रष्टाचार पर काबू लग सके को बहाने बनाकर टाला जा रहा है। मनरेगा जैसी क्रांतिकारी मानी जाने वाली योजनाओं में घोटाले नहीं रुक सके। इस सरकार के बारे में आम धारणा यह बन गई है कि यह भ्रष्टाचार रोकने में दिलचस्पी ही नहीं रखती। रिकार्ड पैदावार के बावजूद अनाज को सुरक्षित रखने के लिए गोदाम नहीं। नतीजतन अनाज सड़ रहा है, बर्बादी हो रही है। किसान आत्महत्या पर मजबूर है। युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रहीं। इस सरकार के पास हर मर्ज की बस एक ही दवा है, गठबंधन धर्म की मजबूरी। नक्सलवाद पनप रहा है क्योंकि इस सरकार के पास इसका मुकाबला करने के लिए न तो कोई ठोस नीति है, न ही इच्छाशक्ति। आज पूरे देश में मायूसी का माहौल है, जनता को समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे। जनता के पास अगर यह हथियार आज होता कि इस सरकार को चलता कर सकती तो शायद 10 सैकेंड भी नहीं लगाती।

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