Friday, 4 May 2012

मामला तलाक को आसान बनाने का

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 4 May 2012
अनिल नरेन्द्र
तलाक को आसान बनाने के प्रावधान वाले विधेयक को लेकर बुधवार को राज्यसभा में खासा विवाद हुआ। सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दलों समेत विभिन्न दलों ने इस विधेयक को महिला विरोधी बताते हुए इसके प्रावधानों पर एतराज जताया। भारतीय संस्कृति और परम्परा में विवाह की पवित्रता और इसके सामाजिक महत्व का जिक्र करते हुए भाजपा, बीजद, तेदेपा, वामदलों और सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे सपा तथा बसपा ने हिन्दू विवाह विधि (संशोधन) विधेयक-2010 को इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। सदस्यों का कहना था कि इस विधेयक के प्रावधानों से जहां तलाक की प्रवृत्ति बढ़ेगी वहीं महिलाओं की परेशानी में भी इजाफा होगा। सदस्यों ने विवाद से हुए बच्चों के संरक्षण के अधिकार तथा उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी भी स्पष्ट किए जाने की मांग की। इससे पूर्व सपा के नरेश अग्रवाल ने मांग की कि इसे आगे की चर्चा के लिए प्रवर समिति में भेज दिया जाना चाहिए। जया बच्चन ने इस विधेयक को जटिल बताते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि यह समाज के एक खास वर्ग और कुछ लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि तलाक की प्रक्रिया को इतना आसान भी मत बना दीजिए कि बातों-बातों में ही तलाक हो जाए। बीजद के वैष्णव परोदा, माकपा के एमपी अच्यूतन और तेदेपा की जी. सुधा रानी ने भी इसे महिला विरोधी बताते हुए प्रवर समिति को भेजने की मांग की। भाजपा की माया सिंह ने कहा कि इस विधेयक से महिलाओं खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की परेशानी बढ़ जाएगी। कांग्रेस के शादी लाल बत्रा ने इस बात पर आपत्ति जताई कि विधेयक में जीवन निर्वाह भत्ते के बारे में तय करने का अधिकार अदालत पर छोड़ दिया है। दूसरी ओर विधेयक का स्वागत करते हुए कांग्रेस के सैफुद्दीन सोज और शांता राम नाइक ने कहा कि जहां तक हो तलाक से बचना चाहिए। इस विधेयक से महिलाओं की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और उन्हें काफी राहत मिलेगी। द्रमुक की कनिमोझी ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि अगर पति-पत्नी एक साथ नहीं रह सकते तो अलग हो जाने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में बच्चों के संरक्षण के बारे में कुछ नहीं कहा गया। राकांपा के वाईपी त्रिवेदी ने विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि जब परिस्थिति ऐसी बन जाए तो उसे एक बेहतर मोड़ देना ही श्रेयस्कर होगा। उधर सरकार की ओर से कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि सदस्यों द्वारा दिए गए सुझावों और उनकी आपत्तियों के अध्ययन के लिए समय देने की जरूरत है। हमारा कहना है कि चूंकि यह मामला मुसलमानों के धर्म से भी जुड़ा है इसलिए बेहतर होगा कि उलेमाओं की राय भी जान ली जाए। मुस्लिम महिला प्रतिनिधियों से भी उनके विचार जाने जाएं। यह इसलिए भी जरूरी है कि भविष्य में किसी प्रकार का धार्मिक टकराव से बचा जा सके। मामला पेचीदा है, सोच समझ कर ही कोई कदम उठाया जाए।
Anil Narendra, Daily Pratap, Hindu Law, Hindu Marriage Act. Hindu Succession Act, Vir Arjun

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