Wednesday 30 May 2012

डिनर डिप्लोमेसी से एक तीर से कई शिकार करने का प्रयास

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30 May 2012
अनिल नरेन्द्र
जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर कांग्रेस ने एक बार फिर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। यूपीए-2 के तीन वर्ष पूरे होने के मौके पर हुए आयोजन में मुलायम सिंह यादव को दिए सम्मान का तात्कालिक महत्व भले ही न हो पर इससे कांग्रेस की रणनीति की साफ झलक जरूर मिलती है। मजेदार बात यह है कि युवराज राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी का हाल ही में सम्पन्न हुए यूपी विधानसभा चुनाव में घोषणा पत्र फाड़ा था उसी के मुलायम सिंह यादव न केवल यूपीए सरकार की उपलब्धियों की रिपोर्ट कार्ड ही जारी करते दिखे बल्कि डिनर टेबल पर उन्हें सोनिया गांधी ने अपने टेबल पर स्थान दिया। यूपीए खासतौर से कांग्रेस और सपा के रिश्ते को 1999 से देखना चाहिए, जब मुलायम सिंह यादव ने एनडीए सरकार के एक वोट से गिरने के बाद ऐन मौके पर सोनिया गांधी को समर्थन देने की चिट्ठी देने से इंकार कर दिया। अगर उस समय सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं तो इसकी एक वजह मुलायम का विरोध था। इसके बाद 2004 को दूसरा मोड़ आया जब मुलायम उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद भी यूपीए सरकार के बुलावे का इंतजार ही करते रह गए। अब यह तीसरा दौर शुरू हो रहा है। राजनीति में न तो कोई स्थायी शत्रु होता है और न ही स्थायी मित्र। इसलिए हमें ताज्जुब नहीं हुआ कि जिस समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र राहुल ने फाड़ा आज उसी के मुखिया को इतना सम्मान वही पार्टी दे रही है। कांग्रेस ने मुलायम के सम्मान के माध्यम से सीधा संदेश ममता बनर्जी को देने का प्रयास किया है। बात-बात पर यूपीए सरकार को आंखें दिखाने वाली ममता के लिए यह संकेत है कि यदि वह किसी बात पर सरकार से समर्थन वापस लेती हैं तो सपा की ठंडी छांव में सरकार को सहारा मिल सकता है। मुलायम के सहारे से कांग्रेस ने सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस को यह एहसास करा दिया कि उसने बात-बात पर केंद्र सरकार पर ज्यादा दबाव बनाया तो सपा सरकार का हिस्सा बन सकती है। मगर इसके बावजूद आज मुलायम का पलड़ा भारी दिखता है। यूपी विधानसभा चुनाव में 225 सीटें जीतने के बाद यदि उनकी पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देख रही है तो इसमें ही भावी राजनीति की पुंजी भी छिपी है। इसलिए हमें तो नहीं लगता कि मुलायम सिंह जैसा राजनीति में शातिर खिलाड़ी कांग्रेसियों की चालबाजी में इतनी आसानी से फंसेंगे। हां उत्तर प्रदेश में केंद्र की मदद के लिए यूपीए के साथ मधुर संबंध रखना सपा की मजबूरी है पर यदि वह यूपीए में शामिल होते हैं तो यह उनके लिए आत्मघाती भी हो सकता है। यही बात ममता पर भी लागू होती है, जिनकी कीमत पर मुलायम के साथ आने की अटकलें हैं। ममता भी जानती हैं कि अभी यूपीए में बने रहना ही उनके लिए लाभदायक है, क्योंकि सरकार में रह कर पश्चिम बंगाल के लिए वह जो दबाव अन्दर रहकर बना सकती है वह सरकार से बाहर निकलने पर नहीं बना सकेगी। कांग्रेस का मुलायम को सम्मान देने के पीछे एक और कारण यह हो सकता है कि राष्ट्रपति चुनाव सिर पर हैं। बिना सपा के समर्थन से कांग्रेस अपना उम्मीदवार चुनवाने में दिक्कत महसूस कर सकती है।
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