वर्ष 2012-13 की नई बिजली दरें तय करने के लिए दिल्ली इलैक्ट्रिसिटी रेग्यूलेटरी कमीशन (डीईआरएस) के सामने गत गुरुवार को जन सुनवाई आरम्भ हुई। पहले ही दिन डीईआरएस और बिजली कम्पनियों को जनता के मूड का पता चल गया। जन सुनवाई के दौरान बिजली कम्पनियों ने पहली बार जनता की शिकायतें सुनीं और उन्हें पता चला कि जनता उनके रवैये से कितनी त्रस्त है। जहां लोगों ने कक्ष में मौजूद अधिकारियों के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और बिजली कम्पनियों की पिटीशन में कई खामियां गिनाईं वहीं बाहर लोगों ने हाथ में काले फीते बांधकर विरोध जताया। आयोग के अध्यक्ष पीडी सुधाकर की अध्यक्षता में जन सुनवाई हुई। लोगों का कहना था कि जब तक बिजली कम्पनियों के खाते की जांच कैग से नहीं होती तब तक आयोग को नई दरों के निर्धारण की प्रक्रिया शुरू नहीं करनी चाहिए। इन लोगों ने कहा कि कम्पनियों के लिए परफार्मेंस स्टैंडर्ड भी लागू नहीं किए गए हैं और न ही बिजली के तेज भागते मीटरों का विवाद हल हुआ है। पहले आयोग को लोगों को विश्वास में लेना चाहिए, उसके बाद ही नई दरों के निर्धारण प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। आरडब्ल्यूए की तरफ से कहा गया कि बिजली कम्पनियां एग्रीगेट टेक्निकल एण्ड कामर्शियल (एटी एण्ड सी) लॉस एक साथ दिखाती हैं जबकि नेशनल टैरिफ पॉलिसी के मुताबिक इन्हें अलग-अलग दिखाना चाहिए। क्योंकि टेक्निकल लॉस लगभग बराबर ही रहता है और कामर्शियल लॉस जिसमें बिजली चोरी, नॉन रेवेन्यू बिजली शामिल होती है उसे कम किया जा सकता है। जनता के प्रतिनिधि कम्पनी के अधिकारियों की सफाई, दलीलें सुनने को तैयार नहीं थे। एक आरडब्ल्यूए प्रतिनिधि ने कहा कि सोलर पॉवर के नाम पर बिजली कम्पनियां कंज्यूमर को महंगी बिजली देंगे। इस रेगुलेशन में सर्टिफिकेट सिस्टम की बात कही गई है जिसमें बिजली कम्पनियां फर्जी सर्टिफिकेट दिखाकर सस्ती थर्मल पॉवर को महंगी सोलर पॉवर बताकर जनता को लूटेंगी। उन्होंने कहा कि जब तक सोलर पॉवर के दाम कम नहीं होते तब तक हमें सोलर पॉवर की जरूरत नहीं है। डीआरसी के अध्यक्ष ने कहा कि इसी मामले पर ड्राफ्ट बनाने के लिए राय मांगी गई है। कम्पनियां अपने खातों में झूठी सूचनाएं दे रही हैं, कैग अथवा इस प्रकार की एजेंसी से इन बिजली कम्पनियों की जांच अति आवश्यक है। बिजली अवाम को सीधा प्रभावित करती है। आम शिकायत है मीटरों के तेज भागने की पर इस पर कोई सुनवाई नहीं। वैसे यह भी सही है कि बिजली की चोरी भी कम नहीं। दिल्ली में काफी मात्रा में लोगों ने सीधी बिजली की तारों से कनेक्शन ले रखे हैं। बिजली कम्पनियां इस घाटे को बिल देने वाले उपभोक्ताओं से पूरा करती हैं। शुंगलू कमेटी ने भी बिजली कम्पनियों के खिलाफ कई आरोप लगाए हैं, कमियां गिनाई हैं पर इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। फिर बिजली कम्पनियों को आरटीआई के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है? बिजली सरप्लस होने पर उसे मार्केट रेट पर बेचने के लिए बिजली कम्पनियों ने क्या कदम उठाए हैं? महंगे दाम पर बिजली खरीदने और सरप्लस का बोझ उपभोक्ता पर ही पड़ता है।
Anil Narendra, Daily Pratap, DERC, Electricity, RWA, Vir Arjun
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