Wednesday 2 May 2012

इस बार राष्ट्रपति चुनाव बहुत पेचीदा बन गया है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 2 May 2012
अनिल नरेन्द्र
देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, यह चर्चा आजकल राजनीतिक गलियारों में तेज हो गई है। इसका कारण है कि फैसला करने का समय आ चुका है। राष्ट्रपति का चुनाव अगले महीने जून में होना है और अभी तक न तो यूपीए ने न एनडीए ने और न ही क्षेत्रीय दलों ने अपना कोई उम्मीदवार घोषित किया है। फैसला मुख्यत तो कांग्रेस पार्टी को करना है पर मुश्किल यह हो गई है कि अकेले अपने दम-खम पर इस बार कांग्रेस अपना उम्मीदवार जीताने की स्थिति में नहीं है। पिछली बार जैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अचानक श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का नाम घोषित कर सबको चौंका दिया था, इस बार ऐसा नहीं हो सकता। एक बहुत बड़ा फर्प तब और अब में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत है। राष्ट्रपति के होने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दलों की दबंगई साफ नजर आने लगी है। पूरी कोशिश इस बात की हो रही है कि इस बार राष्ट्रपति भवन में क्षेत्रीय दलों का उम्मीदवार पहुंचे। इसके लिए जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर क्षेत्रीय दलों की सक्रियता आने वाले दिनों में दोनों कांग्रेस और भाजपा के लिए एक नई चिन्ता का सबब बन सकती है। क्षेत्रीय दल अपनी ताकत को पहचान रहे हैं कि इस बार उनके समर्थन के बिनाह न तो कांग्रेस और न ही भाजपा अपनी मनमानी कर सकती है और उनके सहयोग के बिना रायसीना हिल्स पर कौन विराजमान होगा, इसका फैसला नहीं हो सकता। दरअसल राष्ट्रपति चुनाव के बहाने क्षेत्रीय दल आगामी लोकसभा चुनाव के राजनीतिक समीकरणों की इबादत भी लिखने को तैयार हैं। सबसे ज्यादा सक्रिय समाजवादी पार्टी दिख रही है। इसके पीछे उसके अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद सपा देश की राष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव देख रही है। दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और भाजपा की पकड़ कमजोर होती जा रही है और क्षेत्रीय दलों की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। सपा की कोशिश है कि अगला प्रधानमंत्री गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा का बने। इसके लिए वह अभी से जुट गई है। क्षेत्रीय दलों को इकट्ठा करके वह पहले राष्ट्रपति चुनाव में अपनी संयुक्त ताकत को आजमाना चाहती है। मगर वह इसमें सफल रहती है तो निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव में नए-नए समीकरण नजर आएंगे। राष्ट्रपति चुनाव में इस बार सपा के अलावा तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, अन्नाद्रमुक, बसपा और बीजद भी प्रमुख भूमिका निभाएगी। किसी तटस्थ उम्मीदवार के उतरने पर राजग में शामिल जद (यू) और शिरोमणि अकाली दल का समर्थन भी उन दलों को मिल सकता है। क्षेत्रीय दलों का गठबंधन यदि किसी एक नाम पर आमराय बना लेता है तो दोनों बड़े दलों कांग्रेस और भाजपा को उसे सिरे से नकारना मुश्किल हो सकता है। संख्या बल देखें तो यूपीए के सभी घटक यदि एक साथ रहें तो उनके पास 40 फीसद मत हैं जबकि अकेले कांग्रेस के पास 71 फीसद मत हैं। यही हाल राजग का है, उसके पास कुल मिलाकर 31 फीसद मत हैं जबकि अकेले भाजपा के पास 24 फीसद मत हैं। हां कांग्रेस और भाजपा मिलकर कोई उम्मीदवार तय करें तो वह उम्मीदवार जीत सकता है।
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