Thursday 7 June 2012

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक ः खोदा पहाड़ निकला चूहा


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 8 June 2012
अनिल नरेन्द्र
कांग्रेस पार्टी के 126 साल पुराने इतिहास में कम ही मौके आए हैं जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठकों से कोई ठोस बातें निकल कर आई हों। सोमवार को लम्बे अंतराल तक चली बैठक में भी यही हुआ। कांग्रेस कार्यसमिति की विस्तारित बैठक रस्मी अन्दाज में शुरू हुई और उसी अन्दाज में खत्म भी। लोग-बाग सोच रहे थे कि विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन, संप्रग सरकार की घेराबंदी जैसे हालात और पार्टी के भविष्य की ओर संकेत करने वाले राष्ट्रपति चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस बार की बैठक कुछ बड़े ठोस नतीजों के साथ सम्पन्न होगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बैठक के बाद जारी बयान इसे महज एक रुटीन बैठक ही साबित करते हैं तो इसमें अस्वाभाविक क्या है? कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकें ऐसी ही होती हैं। शुरुआत में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिस तेवर से पार्टी कार्यकर्ताओं को 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके पहले होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटने का आह्वान किया, उससे जरा भी उम्मीद नहीं बंधती है। सोनिया का उद्बोधन न तो कांग्रेस जनों में उत्साह का संचार करने वाला रहा और न ही उससे यूपीए-2 सरकार के कामकाज के तौर-तरीके ही बदलने वाले हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, दोनों का कहना था कि उनकी सरकार खासकर मंदी को देखते हुए अनूठा काम कर रही है। दोनों ने कहा कि विपक्ष और सिविल सोसाइटी सरकार पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने इसके अलावा दो बातें और कहीं कि पार्टी पूरी ताकत से सरकार के साथ है और पार्टी के नेता गुटबाजी छोड़कर आम कार्यकर्ता पर भरोसा करें तो सब ठीक हो जाएगा। जाहिर है, ये दोनों बातें भी उन्होंने पहली बार नहीं कही हैं। कुछ हद तक यह सम्भावना थी कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री का बचाव करेंगी और उन्होंने किया भी पर विचार इस पर भी किया जाना चाहिए था कि आखिर ऐसी नौबत आई क्यों? यह सामान्य बात नहीं कि प्रधानमंत्री की जो छवि कभी कांग्रेस के लिए मजबूत कवच का काम करती थी उसकी रक्षा के लिए खुद पार्टी अध्यक्ष को आगे आना पड़ा। सोनिया गांधी की मानें तो कोयला खदानों के आवंटन को लेकर प्रधानमंत्री पर हाल में लगे आरोप एक साजिश का हिस्सा हैं, जो विपक्षी दलों और कांग्रेस विरोधी तत्वों की ओर से रची गई है। यदि वास्तव में ऐसा है तो फिर केंद्रीय सतर्पता आयोग की पहल पर सीबीआई किस चीज की जांच कर रही है और खुद सरकार कोयला आवंटन प्रक्रिया को दुरुस्त करने क्यों जा रही है? सवाल यह भी है कि यदि कोयला खदानों के आवंटन में कुछ गलत नहीं हुआ तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानि कैग की रिपोर्ट इस ओर संकेत करने के साथ एक लाख 80 हजार करोड़ रुपये की राजस्व क्षति का आंकलन कैसे कर रही है? क्या यह कहने की कोशिश की जा रही है कि कैग भी उस साजिश का हिस्सा है जो कि कथित तौर पर प्रधानमंत्री के खिलाफ रची गई? कार्यकारिणी की सामूहिक राय यह भी थी कि कांग्रेस को न सिर्प अपने विरोधियों के सामने बल्कि अपने सहयोगियों के सामने भी कहीं से झुकते, कमजोर पड़ते नहीं दिखना चाहिए। इसका क्या मतलब निकाला जाए? कांग्रेस के प्रवक्ता अब टीवी पर ज्यादा जोर-जोर से बोलते दिखेंगे? या यह कि बचे हुए दो सालों में अगर सरकार अपने सहयोगियों की हठधर्मिता की वजह से गिरती है तो गिर जाए, उन्हें मनाने के लिए पार्टी उनके सामने घुटने नहीं टेकेगी? आज कांग्रेस राजनीतिक और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर अंधी गली में खड़ी है। जमीनी नेतृत्व के अभाव में वह ताश फेंटने की तर्ज पर राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन करती रहती है और ऊपर से थोपे गए ऐसे नेता आम कार्यकर्ताओं और लोगों की तरफ देखने के बजाय दिल्ली दरबार की तरफ देखने के आदी बन गए हैं। ऐसा नेतृत्व न तो लोगों का भरोसा ही जीत सकता है और न ही कार्यकर्ताओं में नया जोश ही भर सकता है, जिसकी कांग्रेस को आज सख्त आवश्यकता है। कांग्रेस नेतृत्व अगर ज्वलंत मुद्दों पर साफ स्टैंड लेने से कतराता रहेगा तो कार्यकर्ताओं में आक्रमकता लाने का उसका प्रयास कुल मिलाकर कागजी कवायद ही साबित होगी।
Anil Narendra, Daily Pratap, Egypt, Husne Mubarak, Vir Arjun

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