Thursday, 7 June 2012

हुस्नी मुबारक को तो टांग दिया पर अब आगे क्या?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 8 June 2012
अनिल नरेन्द्र
मिस्र यानि इजिप्ट में सबसे लम्बे वक्त शासन करने वाले इजिप्ट के वॉर हीरो रहे मोहम्मद हुस्नी मुबारक को अब बाकी जिन्दगी सलाखों के पीछे गुजारनी होगी। देश पर सख्ती से शासन करने और राजधानी काहिरा के भव्य राष्ट्रपति भवन में 30 साल गुजारने के बाद मुबारक को अपने जीवन का बाकी हिस्सा दक्षिणी काहिरा की कुख्यात तोरा जेल में काटना होगा। इस्लामी चरमपंथियों ने 1981 में राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या कर दी जिसके बाद मुबारक ने उथल-पुथल के बीच अरब देशों में सबसे प्रमुख देश के मुखिया की बागडोर सम्भाली थी। इस उथल-पुथल के कारण युद्ध, आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता ने पश्चिम एशिया को चपेट में ले लिया। अपने शासनकाल के दौरान 6 बार मुबारक की हत्या की कोशिश हुई और वह हर बार बच गए। लेकिन काहिरा की सड़कों पर जब अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन हुआ तो उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी। अरब क्रांति के ज्वार में मिट जाने वालों में एक मिस्र के पूर्व तानाशाह हुस्नी मुबारक का नाम भी जुड़ गया है। लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी को जहां मौत नसीब हुई वहीं मुबारक अरब दुनिया के पहले सत्ताधीश हैं जिन्हें अदालत ने सजा सुनाई है। 10 महीने चली लम्बी सुनवाई के बाद नागरिक अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा दी। मिस्र की जनता इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। सड़कों पर फैसले के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं, जनता मुबारक को मौत की सजा से ज्यादा संतुष्ट होती। मुद्दा यह नहीं कि हुस्नी मुबारक को फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई बल्कि सवाल यह है कि क्या अब मिस्र वाकई सैन्य तानाशाह से मुक्त हो सकेगा, जहां अगले राष्ट्रपति का कुछ दिनों में चुनाव होना है। मुबारक ने देश को अपने ढंग से चलाया, वह आमतौर पर पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका की लाइन पर चले। उनके शासनकाल में इस्लामी कट्टरपंथ पर लगाम लगी रही। अब स्थिति विस्फोटक बन गई है। मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे कट्टरपंथी संगठन के सत्ता में आने की सम्भावना है। सत्ता की लड़ाई अब कट्टरपंथी मुस्लिम ब्रदरहुड और मुबारक के करीबियों के बीच है। मुबारक के दोनों बेटों को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी करने और क्रांति की आवाज उठाने वालों को मौत के घाट उतारने वाले शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों को सजा न मिलने पर भी उसे हल्के से नहीं लिया जा सकता। एक तरफ मुबारक के विश्वासपात्र अहमद शफीक के चुनाव जीत जाने की स्थिति में तानाशाही दौर से दोबारा उभरने का डर है तो मुस्लिम ब्रदरहुड के सत्तासीन होने पर कट्टरवाद की नई आशंका सिर उठा सकती है। दरअसल अरब दुनिया में क्रांति के बाद भी वैसा आमूलचूल बदलाव नहीं आ पाया है जिसकी अपेक्षा की गई थी। ट्यूनीशिया से शुरू हुआ विद्रोह काहिरा के तहरीर चौक पर खत्म होगा इसकी भी गारंटी नहीं है। मध्य पूर्व अस्थिरता के दौर में प्रवेश कर चुका है। सीरिया में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। लोकतंत्र के नाम पर तानाशाहों को तो विदा कर दिया पर क्या आज तक किसी भी अरब देश में लोकतंत्र सही मायनों में स्थापित हो सका? लीबिया से लेकर यमन और मिस्र तक महत्वाकांक्षी सेना अधिकारियों को सत्ता पर काबिज होते और कट्टरवाद के कथित विरोध के नाम पर अमेरिका से समर्थन और मदद लेकर अपनी तानाशाही चलाते देखा जा सकता है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Egypt, Husne Mubarak, Vir Arjun

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