Thursday 14 June 2012

देश की अर्थव्यवस्था चौपट करने के लिए सोनिया-मनमोहन जिम्मेदार


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 14 June 2012
अनिल नरेन्द्र
जो बात हम अक्सर कहा करते हैं उसकी पुष्टि अब अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) ने कर दी है। हम अक्सर कहा करते थे कि हमारे पधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की गलत नीतियों, अनिर्णय की आदत ने देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया है। भारत की गिरती आर्थिक साख के लिए सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह जिम्मेदार हैं। यह आरोप विपक्षी दलों का नहीं बल्कि एस एंड पी का है। एजेंसी ने भारत की केडिट रेटिंग को और कम करने की चेतावनी देते हुए सीधे शब्दों में कांग्रेस को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। बकौल एजेंसी, पार्टी जहां अंदरूनी मतभेदों से भरी है वहीं संपग सरकार का ढांचा ही दोषपूर्ण है। एस एंड पी ने संपग सरकार के सियासी ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास सर्वोच्च अधिकार हैं। लेकिन वह कैबिनेट में नहीं हैं। जबकि बिना चुने हुए नियुक्त पधानमंत्री के पास राजनीतिक फैसला लेने के लिए आधार नहीं है। पधानमंत्री का अपने मंत्रिमंडल पर ही कंट्रोल नहीं है। वह अपने मंत्रियों से भी अपनी बात नहीं मनवा सकते, कड़े फैसले लेने तो दूर रहा। आर्थिक सुधारों पर लगे ब्रेक का जिम्मा सहयोगी दलों के तेवर और विपक्ष के असहयोगी रुख पर थोपती रही सरकार के लिए एजेंसी की यह टिप्पणी बड़ा झटका है। एजेंसी ने इतना ही नहीं कहा बल्कि एक कदम और बढ़ते हुए सोमवार को महज केडिट पर ही नहीं बल्कि भारत की राजनीतिक स्थिति की भी रेटिंग नीचे गिरा दी। डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रहे रुपए और आर्थिक सुधारों पर असमंजस की स्थिति का हवाला देते हुए एजेंसी ने चेतावनी दी कि अब भारत की रेटिंग खतरनाक स्थिति पर जा सकती है। सवाल राजनीतिक मंशा पर उठाया गया और कहा गया कि सुधार रोकने के लिए विपक्ष या सहयोगी दल नहीं खुद कांग्रेस और सरकार जिम्मेदार है। पार्टी के अंदर ही इसे रोका जा रहा है। पार्टी अध्यक्ष राजनीतिक रूप से मजबूत हैं लेकिन वह सरकार में नहीं हैं। जिसके हाथ में सरकार की लगाम है उसके पास राजनीतिक आधार और समर्थक नहीं हैं। निर्णायक नेतृत्व की कमी और नीतिगत फैसला लेने में अनिर्णय की छवि के कारण निवेशकों का विश्वास डगमगा गया है। एजेंसी ने भारत की साख घटाने की चेतावनी दी है। यदि ऐसा हुआ तो भारत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, द. अफीका) देशों में साख गंवाने वाला पहला मुल्क होगा। एजेंसी की चेतावनी की कई वजह हैं जिनका उसने उल्लेख किया है। देश में अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। औद्योगिक वृद्धि के ताजे आंकड़े से यह बात साबित भी होती है। पूंजीगत उत्पादों और विनिर्माण उत्पादन में गिरावट के कारण औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर इस साल अपैल महीने में भारी गिरावट के साथ 0.1 फीसद पर आ गई है। यह पिछले साल अपैल में 5.3 फीसद थी। इसमें कोई दोराय नहीं कि पिछले कई सालों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर अच्छी नहीं है। अपैल में जीडीपी में पिछले नौ वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई। राजकोषीय घाटा बढ़ा है और व्यापार घाटा भी। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि इस सरकार में देश को इस आर्थिक दलदल से उभारने के लिए न तो कोई प्लान है और न ही इच्छाशक्ति।
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