Thursday, 28 June 2012

मिस्र के नए राष्ट्रपति मुर्सी की चुनौतियां

मिस्र में 30 साल तक बिना रोकटोक शासन करने वाले होस्नी मुबारक के सत्ता से हटने के बाद पहली बार हुए राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुर्सी को जीत हासिल हुई है। उन्हें 51.73 प्रतिशत वोट हासिल हुए हैं जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पूर्व प्रधानमंत्री अहमद शफीक को 48.2 प्रतिशत वोट मिले। जैसे ही घोषणा हुई उसी के साथ तहरीर चौक में आतिशबाजी और पटाखे फूटने लगे और लोग ढोल बजाकर और हॉर्न बजाकर अपनी खुशी का इजहार करने उतर आए। लेकिन मुस्लिम ब्रदरहुड की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धताओं के बारे में सन्देह रखने वाले अनेक लोग सहमें हुए थे। मुस्लिम ब्रदरहुड थोड़े अन्तर से ही जीता है। इसका मतलब यह भी है कि मिस्र की काफी आबादी उनके चुनाव से खुश नहीं है। चूंकि पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से राष्ट्रपति का चुनाव हुआ है। इस दृष्टि से इसे ऐतिहासिक कहा जा सकता है पर अब मिस्र में जनता की पसंद के लोकतांत्रिक शासन का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। मिस्र में शासकीय बदलाव ने आधुनिक दौर में क्रांति की सम्भावना के नए रास्ते खोले हैं। इस चुनाव से मुर्सी ने अपनी लोकप्रियता और मुस्लिम ब्रदरहुड ने मिस्र की जनता पर अपनी पकड़ साबित की है। जिस तरह होस्नी मुबारक के खिलाफ उभरे व्यापक जन विद्रोह ने पूरी अरब दुनिया के मिजाज को प्रभावित किया उसी तरह इस चुनाव नतीजे का देश के बाहर भी असर पड़ सकता है। इससे पहले तुर्की में और फिर ट्यूनीशिया में भी उदार रखने वाली इस्लामी राजनीतिक शक्तियां जनादेश पाने में सफल हुई हैं। लीबिया में अगले महीने चुनाव होने हैं। क्या वहां भी यही रुझान सामने आएगा? जो भी हो मुर्सी के सामने चुनौतियों की कमी नहीं है। मुर्सी के लिए मिस्र को पूरी तरह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ी बाधा सेना हो सकती है। सैन्य सर्वोच्च परिषद के अब तक के रवैये से जाहिर हो गया है कि वह इस लोकतांत्रिक संक्रमण से भयभीत है। राष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न होने से पहले ही वहां की संवैधानिक या सर्वोच्च अदालत ने संसद को भंग कर दिया, जिसका चुनाव पिछले साल नवम्बर से इस साल मार्च के बीच हुआ था। इस अदालत के जजों की नियुक्ति मुबारक के समय हुई थी। संसद को भंग करने के पीछे अदालत की दलील थी कि इसके एक-तिहाई सदस्य अवैध ढंग से चुने गए थे पर असली वजह शायद यह थी कि इस संसद में मुस्लिम ब्रदरहुड का वर्चस्व था। फिर राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा आने से पहले सैन्य परिषद ने राष्ट्रपति और संसद के कई विशेषाधिकार खुद हथिया लिए, जिनमें संविधान में बदलाव के किसी प्रस्ताव को वीटो करना, नए कानून प्रस्तावित करना, नागरिकों को नजरबन्द करना, कहीं भी फौज तैनात करना और युद्ध-शांति की घोषणा करने जैसे कई अधिकार शामिल हैं। मुर्सी के लिए सेना से समन्वय बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी और सेना इतनी आसानी से अपनी ताकत कम नहीं होने देगी। मुर्सी खासे पढ़े-लिखे राजनेता हैं और उन्होंने इस्लामिक लोकतंत्र के साथ सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की घोषणा भी की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके नेतृत्व में मिस्र में लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल होगी और देश में विकास और समृद्धि का सर्वथा नया युग शुरू होगा। देश को इस्लामिक कट्टरता की ओर जाने से रोकने की चुनौती उनके सामने होगी।

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