Friday 29 June 2012

सहानुभूति में बदलने के लिए वीरभद्र ने दिया इस्तीफा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29 June 2012
अनिल नरेन्द्र
चौबीस साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट में अपने खिलाफ आरोप तय होने के बाद श्री वीरभद्र सिंह ने मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया और यह इस्तीफा मंजूर भी हो गया। जब राजा साहब पर आरोप लगे थे तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर आरोप सिद्ध होते हैं तो उन्हें कुर्सी छोड़ने में तनिक हिचक नहीं होगी। यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफा देने वाले वह तीसरे मंत्री हैं। उनसे पहले ए राजा और दयानिधि मारन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते इस्तीफा दे चुके हैं। पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे 78 वर्षीय वीरभद्र सिंह को इस्तीफा इसलिए देना पड़ा क्योंकि उनके और उनकी पत्नी के खिलाफ हिमाचल प्रदेश की एक अदालत ने 23 साल पुराने भ्रष्टाचार के एक मामले में भ्रष्टाचार और आपराधिक कदाचार का आरोप तय किया था। हालांकि कांग्रेस का यही स्टैंड था कि अदालत ने सिर्प अभी उन पर आरोप तय किए हैं कोई सजा नहीं सुनाई पर वीरभद्र सिंह ने अपने आपको और अपनी पार्टी को और फजीहत से बचाने के लिए त्यागपत्र देना बेहतर समझा। वैसे इसके पीछे हिमाचल प्रदेश की राजनीति भी काम कर रही है। इस्तीफा देने के पीछे एक मकसद पद की लालसा न होने के संदेश देने से ज्यादा इसे अपने पहाड़ी राज्य में सहानुभूति में बदलने की रणनीति भी है। वीरभद्र सिंह प्रदेश कांग्रेस में अपने तमाम समर्थकों को एकजुट रखने के लिए यही संदेश देना चाहते हैं कि उनके खिलाफ साजिश हुई है। अभी भी पार्टी के 23 में से 21 विधायक जिनमें विद्या स्टोक्स भी शामिल हैं। वे शिमला में हुए उनके 77वें जन्म दिन और राजनीति में उनके 50 साल के कार्यक्रम में आई थीं, उनके साथ हैं। इस्तीफा देकर वीरभद्र सिंह ने आगामी विधानसभा चुनावों में फुलटाइम राजनीति करने का भी रास्ता खोल लिया है। वीरभद्र सिंह ने कोर्ट की तरफ से मामले तय होने को अपने खिलाफ प्रदेश की भाजपा सरकार का षड्यंत्र बताया है। उनका यह भी कहना है कि जिस आडियो सीडी के आधार पर उनके खिलाफ मामले तय किए गए हैं उसे सही साबित करने के लिए उनकी आवाज का नमूना तक नहीं लिया गया है। दूसरे यह मामला पहले से ही हाई कोर्ट में है और उनके खिलाफ कोई फैसला नहीं आया है। यह तो कोई नहीं मानेगा कि अन्ना हजारे की टोली की राजनीतिक ताकत इतनी प्रबल है कि वे जब चाहें किसी मंत्री की कुर्सी छीन सकते हैं। बावजूद इसके अगर यह टोली भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार पर लगातार हमलावर रुख अपनाए हुए है तो उसका एक नैतिक और राजनीतिक प्रभाव तो जरूर जनता और सरकार के स्तर पर पैदा हो रहा है। बहरहाल वीरभद्र के इस्तीफे से यूपीए-2 सरकार का यह संकट फिर से सिर पर आ गया है कि वह भ्रष्टाचार में लगातार फंसते जाने के बजाय उससे लड़ती हुई कैसे दिखे? जिस दिन वीरभद्र सिंह ने दिल्ली में अपने इस्तीफे का ऐलान किया उसी दिन इस सरकार के एक और मंत्री विलासराव देशमुख मुंबई में आदर्श मामले में जांच आयोग के सामने अपने बचाव में दलीलें दे रहे थे। हिमाचल प्रदेश में यह चुनावी वर्ष है। अब वीरभद्र पर आरोप लगने से और उनके त्यागपत्र से आनंद शर्मा अकेले कांग्रेस के नेता बचते हैं जो अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकते हैं पर उनकी जमीनी पकड़ इतनी नहीं है।
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