Wednesday, 27 June 2012

यूरोप में बढ़ता मुस्लिम प्रभाव

पिछले दिनों फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी राष्ट्रपति चुनाव हार गए थे। ज्यादातर लोग सर्कोजी की हार उनके दक्षिणपंथी विचारधारा और मॉडल कार्ला ब्रूनी से इश्क होने की वजह बता रहे थे। उनकी हार को दक्षिणपंथी हार और वामपंथ की जीत के रूप में देखा जा रहा है पर दरअसल निकोलस सर्कोजी को हराने में फ्रांस के प्रोग्रेसिव सोशलिस्ट तबके के अलावा अनिवासी मुसलमानों का भी बड़ा हाथ है। पश्चिमी मीडिया जानबूझ कर इस बात को दबा या नजरअन्दाज कर रहा है। निकोलस की जीत में भी मुस्लिम दुश्मनी का बड़ा हाथ था। यही वजह थी कि उनके जीतने पर पेरिस समेत फ्रांस के लगभग हर शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी हुई थी। यह शायद पहला मौका था जब किसी फ्रैंच प्रेसिडेंट के जीतने पर जश्न की बजाय हर तरफ आग और धुआं फैल गया था। लियोन में तो 10,000 कारें पूंक दी गई थीं। निकोलस ने जीत के लिए किया गया वादा पूरा भी किया और फ्रांस में हिजाब-नकाब को बैन कर दिया। उनके नक्शे कदम पर चलते हुए यूरोप के कुछ और देशों ने भी बुर्के पर पाबंदी लगा दी। जाहिर है कि इससे यूरोप के मुसलमानों के खिलाफ माहौल बन रहा है। माना जा रहा है कि 9/11 का खाका जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में तैयार किया गया। नीदरलैंड में कई मुस्लिम चरमपंथी हमले हो चुके हैं। फिल्म मेकर क्योवेन गाग 2004 में मार दिया गया जिसने एक लड़की के बदन पर कुरान की आयतें लिख दी थीं और फिर उसकी एक फिल्म बनाई थी। जर्मनी के म्यूनिख शहर में भी मुस्लिम चरमपंथी इजरायली खिलाड़ियों को मौत की नींद सुला चुके हैं। ब्रिटेन में तो कई आतंकवादी हमले हो चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया का डाक्टर हनीफ प्रकरण भी सभी को याद होगा। इन हालात का नतीजा है कि यूरोप एक नई किस्म की चुनौती में उलझ गया है। यूरोप की सरकारें अब मुसलमानों के मामलों में पहले से ज्यादा संवेदनशील होने पर कुछ हद तक मजबूर हो रही हैं। मुसलमान वहां की सरकारों के बनने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं। इस तब्दीली की वजह यह भी है कि यूरोप में मुसलमानों की तादाद बढ़ती जा रही है। कुल 27 देशों के यूरोपीय यूनियन की करीब 50 करोड़ की आबादी में पौने दो करोड़ मुसलमान हैं। फ्रांस सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन चुका है। वहां हर 10वां व्यक्ति मुसलमान है। निकोलस को इसलिए भी जिताया गया था कि पेरिस और लियोन की मुख्य आबादी वाली जगहों पर ये मुसलमान और एशियाई-अफ्रीकी अपनी सम्पत्ति बढ़ाते जा रहे हैं और फ्रैंच मूल के लोग आउटस्कर्टस में बसने पर मजबूर हो रहे हैं। पेरिस की कई सड़कों पर छोले-भटूरे, समोसे, इमरती बिरयानी, कबाब, भुट्टे, पाए, सीख कबाब, शीरमाल और पूरी-कचौड़ी बिक रही है। पूरी मार्केट में बॉलीवुड की सीडी, डीवीडी, साड़ी और भारतीय परिधान बिक रहे हैं। वीआईपी की तर्ज पर `बीआईपी' यानि बंगलादेश, इंडिया, पाकिस्तान संगठन चल रहे हैं। किसी को फ्रैंच किराएदार तंग करते हैं तो यह संगठन भारतीय शैली में उससे निपटता है। फ्रैंच समाज इस बदलते माहौल से बुरी तरह परेशान है। ऐसे में मूलत उदार फ्रैंच समाज ने उस वामपंथी सौम्य समाजवादी औलाद को राष्ट्रपति चुना। यह वही समाज है जिसने निर्वासित जीवन जीने के लिए बेनजीर भुट्टो का पनाह दी थी और उस आयतुल्लाह खोमैनी को पनाह दी जिसने पेरिस में रहकर ईरानी इस्लामी इंकलाब का खाका तैयार किया।

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