Saturday 23 June 2012

क्या नीतीश बिहार में आर-पार की लड़ाई छेड़ रहे हैं?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23 June 2012
अनिल नरेन्द्र
राष्ट्रपति चुनाव उम्मीदवार को लेकर छिड़ी राजग में एक नया विवाद छिड़ गया है। संप्रग उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को लेकर तो पहले ही एनडीए में दरार पड़ गई थी पर अब तो लगता है कि कहीं एनडीए ही न टूट जाए? ताजा विवाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयानों को लेकर खड़ा हो गया है। नीतीश कुमार ने एक अखबार में यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि राजग का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए, जिसकी छवि धर्मनिरपेक्ष हो। उनके इस बयान को जहां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सम्भावनाओं पर पानी फेरने की कोशिश कहा जा सकता है वहीं उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि वह नरेन्द्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और अगर भाजपा ने ऐसा किया तो वह एनडीए छोड़ भी सकते हैं और उन्हें इस बात की परवाह भी नहीं होगी कि बिहार में उनकी भाजपा के साथ सांझी सरकार चलती है या गिरती है। नीतीश ने आखिर यह बयान इस समय क्यों दिया? उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे फिर यह बयान देने के पीछे उद्देश्य क्या है? क्या वह अपने को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं? नीतीश के बयान आने के बाद और तो और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी सीधा मैदान में कूद पड़ा। संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने नीतीश कुमार पर पलटवार करते हुए यह सवाल खड़ा कर दिया कि कोई हिन्दुवादी देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकता? हालांकि भागवत ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन माना जा रहा है कि संघ अब नरेन्द्र मोदी के पक्ष में खुलकर खड़ा हो गया है। चलो एक बात और साबित हो गई कि संघ जो आज तक यह कहता आया है कि वह राजनीति में दखल नहीं देता अब खुलकर राजनीतिक विषयों पर बोलने लगा है। पहले एपीजे अब्दुल कलाम को समर्थन देने का बयान और अब नीतीश कुमार के बयान का जवाब। भावी प्रधानमंत्री के साथ-साथ सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता को लेकर भाजपा और जद (यू) के बीच जंग तीखी हो गई है। भागवत के बयान से तिलमिलाए नीतीश बोले कि 2002 में गुजरात दंगों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को हटाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने मोदी को राजधर्म की नसीहत दी थी। नीतीश की बात में मिर्च-मसाला लगाकर जद (यू) नेता शिवानन्द तिवारी तो एक कदम और आगे बढ़ गए। उन्होंने कहा कि अगर मोदी पीएम पद के उम्मीदवार होंगे तो एनडीए टूट जाएगा? जद (यू) एनडीए छोड़ देगा। तिवारी आगे बोले कि भाजपा को तय करना है कि अगले चुनाव के बाद उसे केंद्र सरकार बनानी है या विपक्ष में रहना है। देश को प्रधानमंत्री के रूप में कोई धर्मार्थ चेहरा पसंद नहीं है। 1996 में ही भाजपा ने समझ लिया था कि वह कट्टर हिन्दुत्व के आधार पर केंद्र में सरकार नहीं बना सकती इसलिए समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर का मुद्दा छोड़ा गया। अगर गोधरा कांड के बाद वाजपेयी ने नरेन्द्र मोदी को बर्खास्त किया होता तो एनडीए 2004 का चुनाव नहीं हारती। वाजपेयी चाहते थे कि दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी इस्तीफा दें पर आडवाणी ने इससे मोदी को रोका था। एक सवाल अब यह उठ रहा है कि बिहार में जद (यू)-भाजपा गठबंधन सरकार का क्या होगा? नीतीश और तिवारी के तीखे बयानों की भाजपा में तीखी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही था। इनके जवाब में नरेन्द्र मोदी समर्थक भाजपा के वरिष्ठ नेता व नीतीश सरकार में पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार को चुनौती दे दी। उन्होंने कहा कि वे मोदी के साथ हैं और उन्हें किसी से धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है। गिरिराज ने तो यहां तक कह डाला कि नरेन्द्र मोदी के समर्थन से मुख्यमंत्री नीतीश अगर असहज महसूस करते हैं और उनमें दम है तो उन्हें बर्खास्त कर दें। इससे पहले मंगलवार को भी गिरिराज ने तल्ख लहजे में कहा था कि धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा फिर से तय होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी प्रकरण पर जद (यू) और भाजपा नेताओं की जुबानी जंग को थामने के लिए उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आगे आए। बुधवार को दिनभर खबरिया चैनलों में बयानी जंग के मद्देनजर सुशील मोदी ने समझाया कि बिहार में नरेन्द्र मोदी मुद्दा नहीं है, लालू है मुद्दा। सड़क-बिजली जैसे मुद्दे हैं। आज पार्टी पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं कर रही है कि गठबंधन पर पुनर्विचार जैसी बात हो। जिन मुद्दों और शर्तों पर गठबंधन बना, वे वैसे ही है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कहा कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को लाभ पहुंचाने के लिए नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता का शिगूफा छोड़ रहे हैं। बिहार में भ्रष्टाचार के मुद्दे से भटका रहे हैं। पासवान ने नीतीश से पूछा कि वे बताएं कि आडवाणी सेक्यूलर हैं या सांप्रदायिक? बिहार में जद (यू)-भाजपा गठबंधन की सरकार है। नीतीश इस तरह की बयानबाजी कर नूराकुश्ती का खेल खेल रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष महबूब अली कैसर ने कहा कि प्रधानमंत्री के दौर में बने रहने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नौटंकी कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की आलोचना सिर्प दिखावा है। उन्होंने कहा कि गोधरा कांड के समय नीतीश कुमार केंद्र में मंत्री थे और उस समय मोदी के बचाव में सामने आए थे। उन्होंने कहा कि बिहार में भोज पर बुलाकर मना करना और दिल्ली में हाथ मिलाना, जनता के साथ कूर मजाक है। इनकी कथनी और करनी में काफी अन्तर है। जहां तक बिहार में जद (यू)-भाजपा गठबंधन का सवाल है, सत्ता के गणित के मुताबिक 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में सत्ताधारी गठबंधन का जोड़ 208 है। जद (यू) के पास 117 और भाजपा के पास 91 जबकि सत्ता में बने रहने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है। ऐसे में अगर भाजपा सत्ता से हटती है तो जद (यू) के पास सरकार के लिए जरूरी पांच विधायक कम रह जाएंगे। दिखने में यह संख्या छोटी है पर इसे जुटाना इतना आसान नहीं है। बिहार में राजद-लोजपा गठबंधन के पास 23 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के चार और निर्दलीय के छह विधायक हैं। एक सम्भावना यह है कि नीतीश कांग्रेस से गठबंधन कर लें और एक-दो निर्दलीय विधायकों को शामिल कर लें। अगर बिहार में नीतीश कांग्रेस से हाथ मिलाते हैं तो केंद्र में भी वह संप्रग सरकार का हिस्सा बन सकते हैं। अब भाजपा को यह तय करना है कि वह ऐसी सरकार में बने रहना चाहेंगे जो आए दिन पार्टी को कोसते रहते हैं। लगता है कि नीतीश अब ज्यादा दिन भाजपा के दोस्त नहीं रहेंगे। उन्होंने अलग होने का फैसला तय कर लिया है। यह उसकी शुरुआत है।
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