Wednesday 20 June 2012

राष्ट्रपति चुनाव के दंगल का तीसरा अध्याय

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20 June 2012
अनिल नरेन्द्र
राष्ट्रपति चुनाव का तीसरा अध्याय आरम्भ हो चुका है। यह चुनाव दोनों कांग्रेस गठबंधन और विपक्ष के लिए अपने-अपने कारणों से राजनीतिक चुनौती बन गया है। पहले बात करते हैं एनडीए की। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के चुनाव लड़ने से इंकार करने से एनडीए में अब आपसी फूट का खतरा बढ़ गया है। एनडीए घटक दलों की दो बैठकें हो चुकी हैं पर कोई रणनीति नहीं बन पा रही। इसकी खास वजह यही समझी जा रही है कि भाजपा के दिग्गज नेता भी यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के मुकाबले अपना उम्मीदवार उतारने या न उतारने को लेकर पशोपेश में हैं। यह बहस भी जारी है कि अब जब डॉ. कलाम दौड़ से बाहर हो गए हैं तो क्या ऐसे में लोकसभा के पूर्व स्पीकर पीए संगमा को ही अपना समर्थन दे दिया जाए? भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। आडवाणी जी कहते हैं कि लोकतंत्र में चुनाव लड़ना जरूरी होता है, वह यूपीए उम्मीदवार को निर्विरोध नहीं जिताना चाहते। सूत्रों के अनुसार भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी हार की फजीहत से बचने के लिए उम्मीदवार उतारने के पक्ष में नहीं हैं। अरुण जेटली भी गडकरी के साथ हैं। पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने 2007 का इतिहास याद कराया जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत संख्याबल नहीं होने पर भी मैदान में कूद पड़े थे। उम्मीदवार उतारने के लिए आडवाणी, सुषमा की जिद के पीछे सुब्रह्मण्यम स्वामी का तर्प यह भी है कि हमें राष्ट्रपति चुनाव से आगे की सोचनी चाहिए। अगर हम जयललिता, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी को यूपीए से दूर कर लेते हैं तो 2014 के लोकसभा चुनाव में हमें एनडीए को फैलाने का अच्छा अवसर मिलेगा। यह भी कहा जा रहा है कि अगर हम चुनाव पर अड़े रहे तो यूपीए हमें शायद उपराष्ट्रपति का पद दे दे? फिर यह भी कहा जा रहा है कि अब तक भारत के प्रेजीडेंट के लिए कोई निर्विरोध नहीं चुना गया, हर जीतने वाले उम्मीदवार को चुनाव लड़ना पड़ा है और चुनाव लड़ने के बाद ही वह रायसीना हिल्स पहुंचा है। हां अब चुनाव में काका जोगिन्दर सिंह धरतीपकड़ सरीखे के तमाशबीनों के लिए कोई जगह नहीं है। आडवाणी बार-बार 1969 के राष्ट्रपति चुनाव का जिक्र कर रहे हैं। राष्ट्रपति पद के लिए 1969 का चुनाव कई मायनों में अनोखा रहा जब वीवी गिरि और नीलम संजीवा रेड्डी के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था। आडवाणी जी ने कहा कि 1969 का राष्ट्रपति चुनाव ऐतिहासिक था और 2012 का यह चुनाव सनसनीखेज है। उन्होंने कहा कि 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील कर हरवाया था। वह एक असाधारण चुनाव था, यह सनसनीखेज चुनाव है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए तय लग रहे मुकाबले में दूसरी वरीयता के वोटों का गणित अहम साबित हो सकता है। अगर संप्रग प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी को दूसरी ओर से कड़ी टक्कर देने वाला कोई मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतरता है तो 1969 की तरह राष्ट्रपति तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है। अगर समीकरण बहुत नहीं बदलते हैं तो प्रणब और संगमा में टक्कर हो सकती है। मुखर्जी के नाम पर राजग में सहमति न बनना और संगमा का मैदान में डटे रहने की घोषणा द्वितीय वरीयता के गणित को रास्ता दे रही है। हालांकि अभी तक सिर्प एक बार 1969 में द्वितीय वरीयता निर्णायक साबित हुई है। उस समय वीवी गिरि द्वितीय वरीयता की गिनती से चुनाव जीते थे। विपक्ष यदि प्रणब के खिलाफ एकजुट हो जाता है और आदिवासी वर्ग का होने के कारण दूसरी वरीयता में पीए संगमा को क्रॉस वोट मिल जाएं तो मुकाबला रोचक हो सकता है। मसलन 1969 में कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी थे और वीवी गिरि निर्दलीय थे। कांग्रेस दो धड़ों में बंट चुकी थी। एक पुरानी कांग्रेस, जिसके मुखिया मोरारजी देसाई थे। दूसरी नई जिसकी कर्ताधर्ता इन्दिरा गांधी थीं। राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी व्हिप लागू नहीं होने का फायदा उठाते हुए इन्दिरा जी ने कांग्रेसियों से आत्मा की आवाज पर मत देने की अपील की। नतीजतन वीवी गिरि को दूसरी वरीयता में ज्यादा मत मिले और वह विजयी हुए। कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का विरोध टीम अन्ना भी कर रही है। टीम का कहना है कि राष्ट्रपति बनने से पहले उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। टीम अन्ना के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने रविवार को जोधपुर में कहा कि मुखर्जी देश के संवैधानिक पद के प्रत्याशी हैं, इसलिए जो इस पद पर बैठे, उसकी छवि साफ-सुथरी होनी चाहिए। साल 2005 को नेवी वॉर रूम लीक मामले में प्रणब की भूमिका पर संदेह है। उन पर चावल निर्यात घोटाले के भी आरोप हैं। इन मामलों में उनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए। समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह ने सफाई दी है कि उन्होंने कांग्रेस से कोई डील नहीं की। डील तो दलाल लोग करते हैं। मुलायम कहते हैं कि अगर ममता सोनिया गांधी से मिलने के बाद यह घोषणा नहीं करतीं कि कांग्रेस दो नामों को आगे बढ़ा रही है, प्रणब मुखर्जी और हामिद अंसारी, तो सोनिया गांधी कुछ और ही खेल खेल सकती थीं। अगर 13 जून को 10 जनपथ जाने के पहले तक तृणमूल कांग्रेस की नेत्री ममता बनर्जी को ही नहीं मालूम था कि किस उम्मीदवार पर कांग्रेस दाव लगाना चाहती है तो फिर किसको पता था? सोनिया गांधी द्वारा बताए गए दो नामों प्रणब मुखर्जी और हामिद अंसारी को ममता जाहिर नहीं करतीं तो इस पर रहस्य ही बना रहता। 2007 में सोनिया गांधी ने अंतिम समय में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का नामांकन कर यह संदेश दे दिया था कि वे किस प्रकार के व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन देखना चाहती हैं। सम्भव था कि अगर ममता कांग्रेस की पसंद को सार्वजनिक नहीं करतीं तो अंतिम समय में सोनिया मीरा कुमार या हामिद अंसारी का नाम घोषित कर देतीं। मुलायम ने कहा कि हम तो हमेशा से प्रणब को चाहते थे पर सोनिया को प्रणब पर विश्वास नहीं था। इस बार राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दिन-प्रतिदिन दृश्य बदल रहा है। कुछ भी दावे से कहना मुश्किल है। अभी समय है और भी अध्याय सामने आ सकते हैं।
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